अतिरिक्त चर्बी घटाने का आसन
इस आसन को सांस की सजगता से नियंत्रणपूर्वक अभ्यास करना चाहिए और अपनी शक्ति के अनुसार उतना ही करें जितना आप कर सकते हैं. अंत में कुछ देर शवासन में विश्राम करना चाहिए.
विधि
पीठ के बल लेट जाएँ, दायीं करवट लीजिए, बायां पैर दायें पैर के ऊपर रहेगा. बायाँ हाथ बायीं जंघा पर रखें, दाएँ बाज़ू को कोहनी से मोड़ें, उसका तकिया बनाकर सिर के नीचे रखें. यह प्रारंभिक स्थिति है.
सांस भरते हुए बाएँ पैर को धीरे धीरे ऊपर उठाएं और बाएँ हाथ से टख़ना पकड़ने का प्रयास करें, लेकिन घुटने नहीं मुड़ेंगे. अगर ये संभव नहीं है तो टख़ने से नीचे पिण्डली के पास से पैर को पकड़ लें.
दोनों पैर सीधे रहेंगे, दो सेकेंड रुकें फिर सांस निकालते हुए बायाँ हाथ और बाएँ पांव को नियंत्रणपूर्वक नीचे ले आएं. 10 बार यथाशक्तिनुसार बाएँ पैर से अभ्यास करें.
इसके बाद बायीं करवट लिजिए और दाएँ पैर से भी दस बार इस आसन का अभ्यास करें.
सावधानियाँ जिन्हें श्याटिका, स्लिप डिस्क या सरवाईकल स्पोंडेलाईटिस की शिकायत है वे मेरू आकर्षण आसन का अभ्यास नहीं करें.
अर्ध पदम् पश्चिमोन्तानासन के अभ्यास से पैरों की मांसपेशियों में काफ़ी खिचाव आता है. कूल्हे के जोड़ ढ़ीले होते हैं, उनकी लचक बढ़ती है. रीढ़ और पीठ की मांसपेशियों में रक्त का संचार बढ़ता है.
&13; &13;
&13; &13; लाभ
मेरू आकर्षण आसन पैरों की मांसपेशियों में ख़ासकर जंघाओं की मांसपेशियों में लचीलापन लाता है, उसे सूडोल बानाता है. इसके अलावा पेट की मांसपेशियों में खिचाव आता है और वे सशक्त होती है.
छाती और पेट के बग़ल की मांसपेशियाँ सशक्त होती हैं, नितंभ और जंघाओं की अतिरिक्त चर्बी कम होती है.
अर्धपदम् पश्चिमोत्तानासन
विधि- दोनों पैरों को सामने फैलाकर बैठें, दोनों पैरों को मिलाकर रखें. सबसे पहले बाएँ पैर को घुटने से मोड़ें और बाएँ पैर को दाएँ पैर की जंघा पर रखें, एड़ी को जंघामूल तक लेकर जाएं. बाएँ हाथ को कमर के पीछे लेकर आएं. थोड़ा आगे झुकें और बाएँ पैर का अंगूठा पकड़ें, फिर से सीधे बैठ जाएं. यह प्रारंभिक स्थिति है.
सांस भरें और सांस निकालते हुए कमर से आगे झुकते जाएं. दाएँ हाथ से दाएँ पैर का अंगूठा पकड़ें. दाएँ हाथ को थोड़ा अपनी ओर खींचें, कमर से और आगे झुकें और हाथ को घुटने से लगाने का प्रयास करें. दाएँ पैर का घुटना नहीं मोड़ेंगे.
कुछ सेकेंड रुकिए, वापस आने के लिए अंगूठे को छोड़ दें और सांस भरते हुए फिर से सीधे बैठ जाएं. इसी तरह पैरों की स्थिति बदलें और दूसरे पैर से भी इस आसन का अभ्यास करें. यह एक राउण्ड है, तीन बार उस आसन का अभ्यास करें.
सावधानियाँ
स्लिप डिस्क, श्याटिका की जिन्हें समस्या है वे कमर से आगे झुकने वाले आसन नहीं करें.
लाभ
इस आसन के अभ्यास से पैरों की मांसपेशियों में काफ़ी कसाव आता है. कूल्हे के जोड़ ढ़ीले होते हैं, उनकी लचक बढ़ती है. रीढ़ और पीठ की मांसपेशियों में रक्त का संचार बढ़ता है.
नाभि से नीचे के भाग पर अतिरिक्त दबाव पड़ने से आँतों की क्रमाकुंचन गति बढ़ती है और क़ब्ज़ की शिकायत दूर होती है. पेट के सभी अंग जैसे लीवर, किडनी, पेनक्रियाज़ वग़ैरह की कार्यक्षमता बढ़ती है.इस आसन के नियमित अभ्यास से पेट की अतिरिक्त चर्बी घटती है.
विधि
पीठ के बल लेट जाएँ, दायीं करवट लीजिए, बायां पैर दायें पैर के ऊपर रहेगा. बायाँ हाथ बायीं जंघा पर रखें, दाएँ बाज़ू को कोहनी से मोड़ें, उसका तकिया बनाकर सिर के नीचे रखें. यह प्रारंभिक स्थिति है.
सांस भरते हुए बाएँ पैर को धीरे धीरे ऊपर उठाएं और बाएँ हाथ से टख़ना पकड़ने का प्रयास करें, लेकिन घुटने नहीं मुड़ेंगे. अगर ये संभव नहीं है तो टख़ने से नीचे पिण्डली के पास से पैर को पकड़ लें.
दोनों पैर सीधे रहेंगे, दो सेकेंड रुकें फिर सांस निकालते हुए बायाँ हाथ और बाएँ पांव को नियंत्रणपूर्वक नीचे ले आएं. 10 बार यथाशक्तिनुसार बाएँ पैर से अभ्यास करें.
इसके बाद बायीं करवट लिजिए और दाएँ पैर से भी दस बार इस आसन का अभ्यास करें.
सावधानियाँ जिन्हें श्याटिका, स्लिप डिस्क या सरवाईकल स्पोंडेलाईटिस की शिकायत है वे मेरू आकर्षण आसन का अभ्यास नहीं करें.
अर्ध पदम् पश्चिमोन्तानासन के अभ्यास से पैरों की मांसपेशियों में काफ़ी खिचाव आता है. कूल्हे के जोड़ ढ़ीले होते हैं, उनकी लचक बढ़ती है. रीढ़ और पीठ की मांसपेशियों में रक्त का संचार बढ़ता है.
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&13; अर्ध पदम् पश्चिमोन्तानासन के अभ्यास से पैरों की मांसपेशियों में काफ़ी खिचाव आता है. कूल्हे के जोड़ ढ़ीले होते हैं, उनकी लचक बढ़ती है. रीढ़ और पीठ की मांसपेशियों में रक्त का संचार बढ़ता है.&13; &13;
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मेरू आकर्षण आसन पैरों की मांसपेशियों में ख़ासकर जंघाओं की मांसपेशियों में लचीलापन लाता है, उसे सूडोल बानाता है. इसके अलावा पेट की मांसपेशियों में खिचाव आता है और वे सशक्त होती है.
छाती और पेट के बग़ल की मांसपेशियाँ सशक्त होती हैं, नितंभ और जंघाओं की अतिरिक्त चर्बी कम होती है.
अर्धपदम् पश्चिमोत्तानासन
विधि- दोनों पैरों को सामने फैलाकर बैठें, दोनों पैरों को मिलाकर रखें. सबसे पहले बाएँ पैर को घुटने से मोड़ें और बाएँ पैर को दाएँ पैर की जंघा पर रखें, एड़ी को जंघामूल तक लेकर जाएं. बाएँ हाथ को कमर के पीछे लेकर आएं. थोड़ा आगे झुकें और बाएँ पैर का अंगूठा पकड़ें, फिर से सीधे बैठ जाएं. यह प्रारंभिक स्थिति है.
सांस भरें और सांस निकालते हुए कमर से आगे झुकते जाएं. दाएँ हाथ से दाएँ पैर का अंगूठा पकड़ें. दाएँ हाथ को थोड़ा अपनी ओर खींचें, कमर से और आगे झुकें और हाथ को घुटने से लगाने का प्रयास करें. दाएँ पैर का घुटना नहीं मोड़ेंगे.
कुछ सेकेंड रुकिए, वापस आने के लिए अंगूठे को छोड़ दें और सांस भरते हुए फिर से सीधे बैठ जाएं. इसी तरह पैरों की स्थिति बदलें और दूसरे पैर से भी इस आसन का अभ्यास करें. यह एक राउण्ड है, तीन बार उस आसन का अभ्यास करें.
सावधानियाँ
स्लिप डिस्क, श्याटिका की जिन्हें समस्या है वे कमर से आगे झुकने वाले आसन नहीं करें.
लाभ
इस आसन के अभ्यास से पैरों की मांसपेशियों में काफ़ी कसाव आता है. कूल्हे के जोड़ ढ़ीले होते हैं, उनकी लचक बढ़ती है. रीढ़ और पीठ की मांसपेशियों में रक्त का संचार बढ़ता है.
नाभि से नीचे के भाग पर अतिरिक्त दबाव पड़ने से आँतों की क्रमाकुंचन गति बढ़ती है और क़ब्ज़ की शिकायत दूर होती है. पेट के सभी अंग जैसे लीवर, किडनी, पेनक्रियाज़ वग़ैरह की कार्यक्षमता बढ़ती है.इस आसन के नियमित अभ्यास से पेट की अतिरिक्त चर्बी घटती है.
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