Wednesday, November 19, 2014

सूर्य उपासना का केंन्द्र है देवकुंड






प्रस्तुति-- स्वामी शरण

हसपुरा (औरंगाबाद)। बाबा शिव की नगरी देवकुंड सूर्य उपासना का केन्द्र है। यहां स्थित पवित्र सरोवर में स्नान कर हजारों छठ व्रती अ‌र्घ्य देते हैं। अ‌र्घ्य के समय तालाब किनारे तिल रखने की जगह नहीं होती है।
कहा जाता है कि सरोवर के नाम पर ही इस स्थान का नाम देवकुंड रखा गया। महान तपस्वी च्यवन ऋषि द्वारा सप्त नदियों एवं सप्त सिंधुओं के जल से समावेश कर बनाए गए सरोवर से संबंधित कई आश्चर्यजनक कहानियां इतिहास के पन्नों में समाहित है। हसुपरा से देवकुंड की दूरी 6 किलोमीटर है। पुनपुन एवं मंदार नदी के संगम पर होने के कारण यह पवित्र तीर्थ स्थल है।
कहा जाता है कि पांच हजार वर्ष पूर्व कर्मनाशा नदी को पार कर भगवान राम देवकुंड पहुंचे और इसी सरोवर में स्नान कर च्यवन ऋषि का दर्शन किया। उन्हीं के द्वारा यहां शिवलिंग स्थापित की गई जिसकी चर्चा धार्मिक ग्रंथ आनंद रामायण में वर्णित है। पुराने कथाओं के अनुसार च्यवन ऋषि तपस्यारत थे। यहां गया शहर की स्थापना करने वाले राजर्षिगेय ने अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन किया। इसमें भाग लेने गया पहुंचे ऋषि च्यवन ने उस समय ककिट देश (वर्तमान मगध) की व्यापक यात्रा की। यात्रा के दौरान ही उन्होंने सिद्घवन को पाया जो सोनभद्र एवं पुनपुन के बीच स्थित था। सिद्घवन यानी देवकुंड से प्रभावित च्यवन ऋषि तपस्या पर बैठे गए। महीनों आसन पर बैठे रहे जिस कारण उनका शरीर एकत्रित मिट्टी से ढक गया।
इसी दौरान राजा ययाति अपनी पुत्री सुकन्या के साथ यहां पहुंचे। सुकन्या और च्यवन ऋषि ने इसी सरोवर में छठ किया था, फलत: उनकी मनोकामना पूर्ण हुई थी।

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