Friday, November 27, 2015

Guru Nanak / संत गुरू नानक







 
 
James Bean
 
प्रस्तुति- उषा रानी / राजेन्द्र प्रसाद सिन्हा 


Guru Nanak: In the course of his missionary activity Nanak often visited foreign countries. According to local folklore, he is said to have visited Mecca in the guise of a Muslim devotee. But his not paying heed to Mohammedan etiquette nearly cost him his life. On his first night at Mecca he slept with his feet towards the Kaaba. He was rudely awakened by an Arab clergyman who said, "Who is this sleeping Kaafir (infidel) who lies with his feet towards God?" To this Guru Nanak replied, "Turn my feet in the direction where God is not".
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Sunil Gupta
James Bean
James Bean Happy Guru Nanak Jayanti!

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My new e-book and blog about the history of Sant Mat Masters in India: "The Origins of Sant Mat, The Five Names, and the Identity of Tulsi Sahib's Guru": http://SantMatRadhasoami.Blogspot.com/…/the-origins-of-sant…
Also at Medium: https://medium.com/…/the-origins-of-sant-mat-the-five-names…
Where the Path Comes From: Everyone in contemporary Sant Mat has a clear idea about their own recent history of masters, at least dating back a few generations. Most trace their lineage of gurus back to Sant Tulsi Sahib of Hathras, India. Tulsi Sahib (1773-1843) is viewed as the adi-guru or founding guru, the "great grandfather" of modern-day Sant Mat. The identity of Sant Tulsi Sahib's guru has understandably been of great interest to many students of Sant Mat history. It's quite normal for followers of a spiritual path to be curious about "the family tree" of previous masters, wanting to know where their spiritual path comes from. So, who was the guru of Tulsi Sahib? And who was that individual's guru? Who was the guru before that? And so on....
The Five Names/Panch Naam Mantra: So, who was using the panch naam mantra -- these five names -- prior to the time of Sant Tulsi Sahib? It's an important question as it may shed further light on the identity of Tulsi Sahib's guru and the origins of this spiritual path called Sant Mat. If Tulsi Sahib did not invent the usage of the five names himself, then it's rather likely he was continuing the practice he had learned at the feet of his own guru, reflecting an even older tradition of Sants. It would be most informative to know the identity of this earlier Sant Mat path that represents the "people of the five names", if you will, those who chanted these sacred mantra-words during earlier centuries....
The Path of the Masters: The Ten Sikh Gurus are quite well-known. The Adi Granth (Guru Granth) is easy to get. There are even several translations of Sikh scriptures accessible to anyone for free on the web. I can see why it would be so easy for English-speaking westerners interested in Sant Mat to see the Ten Sikh Gurus as being a kind of "primary line of masters" before the time of Soamiji Maharaj. However, the world of Kabir and successors, Kabir Sagar volumes, bhajans of Dharam Das, other compositions of Kabir lineage gurus, Sat Saheb, Dariya Sahib with his twenty three books, and the four or five volumes of Sant Tulsi Sahib are far more obscure. For the most part, these are available only in Hindi, virtually unknown to most, especially in Europe and North America. Thus, there is a great need to focus on what has bee
n translated, the information which has come to light, and begin the process of researching that Sant Mat history prior to the time of Soamiji Maharaj and Sant Tulsi Sahib. For me, what comes into view is another "line of masters", a treasure-trove of Sant Mat literature, and a much more precise history of the Path.


James Bean

Thursday, November 26, 2015

पाताल गंगा में श्रद्धालुओ का सैलाब





धीरज पांडेय


देव - धार्मिक ,पौराणिक एवं ऐतिहासिक पाताल गंगा में आज हजारो की संख्या में महिला एवं पुरुष श्रद्धालुओं ने स्नान किया एवं यहाँ स्थित बांझन तालाब में स्नान कर महिलाओ ने पुत्र कामना भी किया। बताते चले की पूर्व के समय में इस इलाके में सुखाड़ हुआ तो देव राजा के कहने पर ज्ञानिननंद ब्रह्मचारी जी ने अपने चूटा से जमीन प्रहार किया था जिससे कारण धरती के गर्भ से जलधारा बह निकली और उसी जलधारा से इस इलाके की प्यास बुझी थी बाद में यह जलधारा को तालाब का रूप दे दिया गया जिसके बाद यह पातालगंगा के नाम से प्रसिद्ध हो गया और यहाँ प्रत्येक वर्ष कार्तिक पूर्णिमा को मेला लगता है जिसे पातालगंगा मेला के नाम से जाना जाता है । वहीँ यहाँ के ऐसा तालाब है जो वास्तुशास्त्र के मुताबिक़ तीन कोना का है यहाँ भी एक कथा प्रचलित है की इस त्रिकोणीय तालाब में वैवाहिक जीवन के बाद यदि संतान न है और इस तालाब में स्नान कर वस्त्र छोड़ा जाय तो उस महिला को एक वर्ष के अंदर संतान प्राप्ति होती है आज भी इस तालाब में सैकड़ो महिलाओ ने स्नान कर यहाँ स्थित राधा कृष्ण और भगवान् शिव का दर्शन पूजन किया । यह पातालगंगा मेला को लोग बुढ़वा मेला के नाम से भी जानते है और यहाँ इस दिन मिटटी के बने बूढ़ा और अन्य खिलौने बिकते है ।

Monday, November 16, 2015

बाल मां


 

 

 

 

अजूबा - लीना मदीना जो की मात्र पांच साल की उम्र में बन गई थी स्वस्थ बच्चे की माँ


Lina Medina
लीना मदीना, बच्चे के जन्म के तुरंत बाद  Image Credit 


हाल ही में ब्रिटेन में हाई स्कूल में पढ़ने वाली एक लड़की 12 साल की उम्र में माँ बनी है। उसे ब्रिटेन की सबसे कम उम्र की माँ का दर्ज़ा मिला है।  लेकिन यदि हम बात विशव स्तर पर करें तो यह खिताब पेरू (Peru)  की लीना मदीना (Lina Medina) के नाम दर्ज़ है जो मात्र पांच वर्ष सात महीने में एक स्वस्थ बच्चे की माँ बन गई थी। यह घटना चिकित्सा विज्ञान के लिए आज तक भी एक पहेली है की आखिर कैसे इतनी कम उम्र की बच्ची गर्भवती हुई और एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया।


Lina Medina
लीना मदीना अपने बच्चे के साथ Image Credit 
































कहानी लीना मदीना की :
लीना मदीना का जन्म पेरू के तिक्रापो में 27 सितम्बर 1933 को एक सुनार,टिबुरेलो मदीना और विक्टोरिया लोसिया के यहाँ हुआ था। लीना जब मात्र पांच साल की थी तब उसके पेट का आकार बढ़ने लगा जिससे उसके माता-पिता चिंतित हो गए। चुकी तिक्रापो एक ग्रामीण इलाका था इसलिए वो उसे उस समय पर स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, एक स्थानीय ओझा के पास परामर्श लेने के लिए ले गये। ओझा ने कई झाड़-फूँक और अनुष्ठान किए पर कोई फायदा नहीं हुआ। पेट का आकार निरंतर बढ़ता रहा।

Lina Medina
यह लीना मदीना की गर्भावस्था के दौरान ली गई एक मात्र तस्वीर है।  Image Credit  
लाचार माता पिता उसे किसी चिकित्सक को दिखाने पास के पिस्को शहर के एक अस्पताल ले गए । शुरु ने सभी ने यही सोचा कि उसके पेट में रसौली थी, लेकिन डॉक्टर उसके परीक्षण के बाद इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि वो सात माह की गर्भवती थी। डा. जेरार्दो लोज़ादा लीना की गर्भावस्था की पुष्टि के लिए उसे अन्य विशेषज्ञों को दिखाने, लीमा ले गये। वहां पर भी उसके गर्भवती होने की पुष्टि हुई।

आखिरकार 14 मई 1939 को, मदीना ने सीज़ेरियन शल्यक्रिया के द्वारा एक लड़के को जन्म दिया क्योंकि सामान्य प्रसूति उसकी कोख (श्रोणि) के छोटे आकार के कारण संभव नहीं थी। शल्यक्रिया डा. लोज़ादा और डॉ. बुसालिऊ द्वारा की गयी थी।

Lina Medina
लीना मदीना अपने बच्चे के साथ Image Credit 
मात्र ढाई साल में हो गई थी रजस्वला :
लीना की कहानी विस्तार से उस समय के मेडिकल जर्नल में प्रकाशित हुई थी जिसके अनुसार लीना को मात्र ढाई साल की उम्र से ही पीरियड आने शुरू हो गए थे,  चार साल की उम्र तक उसके स्तनों का विकास पूर्ण हो चुका था। पांच साल की उम्र तक उसकी कोख का चौड़ी होना और अस्थि परिपक्वण भी काफी हद तक हो चुका था। जब बच्चे के लिए डॉकटरों ने उसका ऑपरेशन किया तो उन्होंने भी पाया की उसके शरीर के अंदर प्रजनन अंगों का विकास पूर्ण हो चूका था।

Lina Medina
तुसाद म्यूज़ियम में लीना मदीना और उसका बच्चा   Image Credit 
लीना के बेटे का नाम, डॉ. जेरार्दो के नाम पर जेरार्दो रखा गया। जन्म के समय जेरार्दो का वजन 2.7 किलो था। बचपन में जेरार्दो की परवरिश लीना के एक भाई के रूप में की गयी थी, लेकिन जब वो 10 साल का हुआ तो उसे इस बात का पता चला कि मदीना उसकी माँ थी। 1979 में जेरार्दो की 40 साल की उम्र में एक अस्थि मज्जा रोग के कारण मृत्यु हो गई। युवावस्था में, लीना ने डॉ. लोज़ादा के लीमा में स्थित क्लिनिक में एक सचिव के रूप में काम किया, जिन्होने उसे और उसके बेटे को शिक्षा प्राप्त करने में मदद की।बाद में लीना ने राउल जुरादो से विवाह किया जो 1972 में जन्मे उसके दूसरे बेटे का पिता बना। 2002 तक यह दंपत्ति लीमा की एक गरीब बस्ती "शिकागो चिको" ("छोटी शिकागो") में रहते थे। लीना ने इस बारे में कभी भी कोई इंटरव्यू नहीं दिया यहाँ तक की 2002 में लीना ने रायटर्स को भी साक्षात्कार देने से इनकार कर दिया।

Lina Medina
लीना मदीना अपने बच्चे और पति के साथ  Image Credit 
बच्चे के पिता का कभी नहीं चला पता :
लीना ने कभी भी अपने बच्चे के पिता का नाम और उन परिस्थितियों जिनमें वो गर्भवती हुई का खुलासा नहीं किया। डॉ. एस्कोमेल के अनुसार खुद लीना को भी यह बातें ठीक से पता नहीं थीं।डॉ. जेरार्दो ने लीना की गर्भावस्था का पता चलने पर पुलिस को सूचित किया और लीना के पिता को बलात्कार और अनाचार के संदेह पर गिरफ्तार किया गया, लेकिन बाद में सबूतों के अभाव में उसे रिहा कर दिया गया। उसके बाद उसके 11 वर्षीय मंदबुद्धि भाई को भी गिरफ्तार किया गया पर उसे भी सबूतों के अभाव में रिहा कर दिया गया। मामले की समीक्षा में छपे एक 1955 लेख के अनुसार, "कुछ एंडियन गांवों में जिनमे से लीना का गांव भी एक था अक्सर उत्सव मनाये जाते थे और इन उत्सवों के अंत में सामूहिक तौर पर यौन संबंध बनाये जाते थे और इस दौरान बहुत सी लड़कियों के साथ बलात्कार भी किया जाता था, हो सकता है ऐसे ही किसी उत्सव में लीना के साथ भी शारीरिक सम्बन्ध बने हो।

Lina Medina
लीना मदीना डॉक्टर और अपने बच्चे के साथ Image Credit 


इस तरह से यह केस चिकित्सा विज्ञान के लिए एक अबूझ पहेली बनकर रह गया जो की अपने तमाम तर्कों के बाबजूद भी यह नहीं बता पाए की आखिर कैसे 5 साल की एक बच्ची माँ बन गई।

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करोड़पति गणेश जी



 

 

 

600 करोड़ रुपए के गणेशजी 

 

Diamond Ganesha
गुजरात के सूरत शहर को हीरा नगरी के रूप में जाना जाता है।  इसी हीरा नगरी में है कच्चे हीरे की 182. 3 कैरेट की गणेश जी की प्रतिमा, जिस का वजन 36.5 ग्राम है। गणेश जी के आकार के इस हीरे का बाजार मूल्य लगभग 600 करोड़ रुपय है। हीरे के इस गणेश जी की सबसे बड़ी खासियत यह है की यह प्राकर्तिक है इसे बनाया नहीं गया है।
Diamond Ganesha
आसोदरिया परिवार के है अराध्य :
गणेश जी का यह स्वरुप सूरत के प्रसिद्द हीरा व्यापारी कनुभाई आसोदरिया के घर पर है जो की पिछले 12 वर्षो से आसोदरिया परिवार के अराध्य है। आसोदरिया परिवार के मुताबिक़ आज से 12 साल पहले बेल्जियम से आए कच्चे हीरों की खेप में ये हीरा मिला था।  इसमें गणेश जी की छवि नज़र आने पर इसे घर के मंदिर में रख दिया गया, तब से यह यही पर विराजित है। 
600 करोड़ रूपए लग चुकी है कीमत :
वैसे तो अास्था की कोई कीमत नहीं होती है पर हीरे के इन गणेश जी के लिए आसोदरिया परिवार के पास अब तक 600 करोड़ रूपए तक के ऑफर आ चुके है , पर आसोदरिया परिवार इन्हे बेचने का इच्छुक नहीं है। 
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10 वि सदी की गणेश प्रतिमा


 

 

 

अदभुत गणेश प्रतिमा - दंतेवाड़ा में 3000 फ़ीट की ऊँचाई पर स्थापित 10 वि सदी की गणेश प्रतिमा

Dantewada Ganesha Statue

कुछ समय पहले पुरातत्व विभाग ने छत्तीसगढ़ में दंतेवाड़ा जिला मुख्यालय से 30 किलो मीटर दूर दुर्गम ढोल कल की पहाड़ियों पर 3000 फ़ीट की ऊंचाई पर सैकड़ों साल पुरानी, नागवंशीय राजाओं द्वारा स्थापित एक भव्य गणेश प्रतिमा की खोज की जो की लोगो के आश्चर्य का कारण बनी हुई है। लोग यह नहीं समझ पा रहे की सदियों पहले इतने दुर्गम इलाके में इतनी ऊंचाई पर आखिर क्यों गणेश प्रतिमा की स्थापना की गई ? यहाँ पर पहुँचाना आज भी बहुत जोखिम भरा काम है तो उस ज़माने में तो यह और भी जोखिम भरा रहा होगा।  तो फिर कैसे और क्यों यह गणेश प्रतिमा स्थापित की गई ? पुरात्वविदों का एक अनुमान यह है की दंतेवाड़ा क्षेत्र के रक्षक के रूप नागवंशियों ने गणेश जी यहाँ स्थापना की थी।

Ganesha Statue At Dhol KAl

भव्य है गणेश प्रतिमा : 
पहाड़ी पर स्थापित 6 फीट ऊंची 21/2 फीट चौड़ी ग्रेनाइट पत्थर से निर्मित यह प्रतिमा वास्तुकला की दृष्टि से अत्यन्त कलात्मक है। गणपति की इस प्रतिमा में ऊपरी दांये हाथ में फरसा, ऊपरी बांये हाथ में टूटा हुआ एक दंत, नीचे दांये हाथ में अभय मुद्रा में अक्षमाला धारण किए हुए तथा नीचे बांये हाथ में मोदक धारण किए हुए आयुध के रूप में विराजित है। पुरात्वविदों के मुताबिक इस प्रकार की प्रतिमा बस्तर क्षेत्र में कहीं नहीं मिलती है।
Ganesha  Temple at Dhol Kal , Dantewada
गणेश जी का एक दांत टूटने से सम्बंधित पौराणिक कथा :
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार परशुराम जी शिवजी से मिलने कैलाश पर्वत गए। उस समय शिवजी विश्राम में थे। गणेश जी उनके रक्षक के रूप में विराजमान थे। गणेश जी ने परशुराम जी को शिवजी से मिलने से रोका तो परशुराम जी क्रोधित हो गए और गुस्से में उन्होंने अपने फरसे से गणेश जी का एक दांत काट दिया तब से गणेश जी एकदंत कहलाए।
Ganesha Statue At 3000 feet height
गणेश और परशुराम में यही हुआ हुआ था युद्ध :
दंतेश का क्षेत्र (वाड़ा) को दंतेवाड़ा कहा जाता है। इस क्षेत्र में एक कैलाश गुफा भी है। इस क्षेत्र से सम्बंधित एक  किंवदंती यह चली आ रही है कि यह वही कैलाश क्षेत्र है जहां पर गणेश एवं परशुराम के मध्य युद्ध हुआ था। यही कारण है कि दंतेवाड़ा से ढोल कल पहुंचने के मार्ग में एक ग्राम परस पाल मिलता है, जो परशुराम के नाम से जाना जाता है। इसके आगे ग्राम कोतवाल पारा आता है। कोतवाल अर्थात् रक्षक के रूप में गणेश जी का क्षेत्र होने की जानकारी मिलती है।
Kailash Gufa at Dhol kal
 गुफा के अंदर का एक सीन।
दंतेवाड़ा क्षेत्र की रक्षक है यह गणेश प्रतिमा :
पुरात्वविदों के मुताबिक इस विशाल प्रतिमा को दंतेवाड़ा क्षेत्र रक्षक के रूप में पहाड़ी के चोटी पर स्थापित किया गया होगा। गणेश जी के आयुध के रूप में फरसा इसकी पुष्टि करता है। यहीं कारण है कि उन्हें नागवंशी शासकों ने इतनी ऊंची पहाड़ी पर स्थापित किया था। नागवंशी शासकों ने इस मूर्ति के निर्माण करते समय एक चिन्ह अवश्य मूर्ति पर अंकित कर दिया है। गणेश जी के उदर पर नाग का अंकन। गणेश जी अपना संतुलन बनाए रखे, इसीलिए शिल्पकार ने जनेऊ में संकल का उपयोग किया है। कला की दृष्टि से 10-11 शताब्दी की (नागवंशी) प्रतिमा कही जा सकती है।
All Image Credit - bhaskar.com 
भारत के अन्य अदभुत मंदिरों के बारे में यहाँ पढ़े -   भारत के अदभुत मंदिर
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Tag : Hindi, News, Story, History, Itihaas, Ganesha Statue, Dantewada, Dhol KAl, दंतेवाड़ा की ढोल कल की पहाड़ियों पर स्तिथ सदियों पुरानी नाग वंशीय गणेश प्रतिमा की कहानी और इतिहास 

भारत के 10 प्रसिद्ध सूर्य मंदिर




सूर्य छठ पूजा

भारत के 10 प्रसिद्ध सूर्य मंदिर (10 Famous Sun Temple In India)
1. सूर्य मंदिरमोढ़ेरा  (Sun Temple, Modhera) :-
सूर्य मंदिर, मोढ़ेरा  (Sun Temple, Modhera)
सभा मंडप   Image Credit Wikipedia 
यह मंदिर अहमदाबाद से लगभग 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण सम्राट भीमदेव सोलंकी प्रथम ने करवाया था। यहां पर इसके संबंध में एक शिलालेख भी मिलता है। सोलंकी सूर्यवंशी  थे, वे सूर्य को कुलदेवता के रूप में पूजते थे। इसलिए उन्होंने अपने आराध्य देवता की आराधना के लिए एक भव्य सूर्य मंदिर बनाने का निश्चय किया। इस प्रकार मोढ़ेरा के सूर्य मंदिर ने आकार लिया। भारत में तीन सबसे प्राचीन सूर्य मंदिर हैं जिसमें पहला ओडिशा का कोणार्क मंदिर, दूसरा जम्मू में स्थित मार्तंड मंदिर और तीसरा गुजरात के मोढ़ेरा का सूर्य मंदिर।  (यह भी पढ़े - सूर्य देव की पुत्री सुवर्चला से हुआ था हनुमान जी का विवाह)
सूर्य मंदिर, मोढ़ेरा  (Sun Temple, Modhera)
गर्भ गृह Image Credit Wikipedia 


यह मंदिर उस समय की शिल्पकला का एक अनोखा उदाहरण है। इस विश्व प्रसिद्ध मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि पूरे मंदिर के निर्माण में जुड़ाई के लिए कहीं भी चूने का उपयोग नहीं किया गया है। ईरानी शैली में निर्मित इस मंदिर को भीमदेव ने तीन हिस्सों में बनवाया था। पहला हिस्सा गर्भगृह, दूसरा सभामंडप और तीसरा सूर्य कुण्ड है। मंदिर के गर्भगृह के अंदर की लंबाई 51 फुट 9 इंच तथा चौड़ाई 25 फुट 8 इंच है। मंदिर के सभामंडप में कुल 52 स्तंभ हैं। इन स्तंभों पर बेहतरीन कारीगरी से विभिन्न देवी-देवताओं के चित्रों और रामायण तथा महाभारत के प्रसंगों को उकेरा गया है। इन स्तंभों को नीचे की ओर देखने पर वह अष्टकोणाकार और ऊपर की ओर देखने पर वह गोल दृश्यमान होते हैं। इस मंदिर का निर्माण कुछ इस तरह किया गया था कि जिसमें सूर्योदय होने पर सूर्य की पहली किरण मंदिर के गर्भगृह को रोशन करे। सभामंडप के आगे एक विशाल कुंड स्थित है जिसे लोग सूर्यकुंड या रामकुंड के नाम से जानते हैं। अलाउद्दीन खिलजी ने अपने आक्रमण के दौरान मंदिर को काफी नुकसान पहुुंचाया और मंदिर की मूर्तियों की तोड़-फोड़ की। वर्तमान में भारतीय पुरातत्व विभाग ने इस मंदिर को अपने संरक्षण में ले लिया है।
सूर्य मंदिर, मोढ़ेरा  (Sun Temple, Modhera)
सूर्य कुण्ड Image Credit Wikipedia 


कहां है मंदिर- ये मंदिर गुजरात के मोढ़ेरा में स्थित है। मोढ़ेरा मेहसाना से 25 कि.मी. व अहमदाबाद से 102 कि.मी. की दूरी पर है।

कैसे पहुंचे- रेल, सड़क या हवाई मार्ग से देश के किसी भी कोने से अहमदाबाद पहुंचकर। वहां से सड़क मार्ग द्वारा मोढ़ेरा पहुंचा जा सकता है।


2.
कोणार्क सूर्य मंदिर (Konark Sun Temple) -
कोणार्क सूर्य मंदिर (Konark Sun Temple)
Image Credit Wikipedia 


कोणार्क सूर्य मंदिर सूर्य देवता को समर्पित है। रथ के आकार में बनाया गया यह मंदिर भारत की मध्यकालीन वास्तुकला का अनोखा उदाहरण है। इस सूर्य मंदिर का निर्माण राजा नरसिंहदेव ने 13वीं शताब्दी में करवाया था। मंदिर अपने विशिष्ट आकार और शिल्पकला के लिए दुनिया भर में जाना जाता है।

हिन्दू मान्यता के अनुसार सूर्य देवता के रथ में बारह जोड़ी पहिए हैं और रथ को खींचने के लिए उसमें 7 घोड़े जुते हुए हैं। रथ के आकार में बने कोणार्क के इस मंदिर में भी पत्थर के पहिए और घोड़े है। ऐसा शानदार मंदिर विश्व में शायद ही कहीं हो। इसे देखने के लिए दुनिया भर से पर्यटक यहां आते हैं। यहां की सूर्य प्रतिमा पुरी के जगन्नाथ मंदिर में सुरक्षित रखी गई है और अब यहां कोई भी देव मूर्ति नहीं है।
कोणार्क सूर्य मंदिर (Konark Sun Temple)
Image Credit Wikipedia 


सूर्य मंदिर समय की गति को भी दर्शाता है, जिसे सूर्य देवता नियंत्रित करते हैं। पूर्व दिशा की ओर जुते हुए मंदिर के 7 घोड़े सप्ताह के सातों दिनों के प्रतीक हैं। 12 जोड़ी पहिए दिन के चौबीस घंटे दर्शाते हैं, वहीं इनमें लगी 8 ताड़ियां दिन के आठों प्रहर की प्रतीक स्वरूप है। कुछ लोगों का मानना है कि 12 जोड़ी पहिए साल के बारह महीनों को दर्शाते हैं। पूरे मंदिर में पत्थरों पर कई विषयों और दृश्यों पर मूर्तियां बनाई गई हैं।

कहां है मंदिर- ओडिशा राज्य मे पुरी के निकट कोणार्क का सूर्य मंदिर स्थित है।

कैसे पहुंचे- रेल, सड़क या वायु मार्ग से पुरी या भुवनेश्वर पहुंचकर आसानी से सड़क या रेल मार्ग से कोणार्क पहुंचा जा सकता है।


3.
मार्तंड सूर्य मंदिर (Martand Sun Temple) :-
मार्तंड सूर्य मंदिर (Martand Sun Temple)
Image Credit Wikipedia 


इस मंदिर का निर्माण मध्यकालीन युग में 7वीं से 8वीं शताब्दी के दौरान हुआ था। सूर्य राजवंश के राजा ललितादित्य ने इस मंदिर का निर्माण एक छोटे से शहर अनंतनाग के पास एक पठार के ऊपर किया था। इसकी गणना ललितादित्य के प्रमुख कार्यों में की जाती है। इसमें 84 स्तंभ हैं जो नियमित अंतराल पर रखे गए हैं। मंदिर को बनाने के लिए चूने के पत्थर की चौकोर ईंटों का उपयोग किया गया है, जो उस समय के कलाकारों की कुशलता को दर्शाता है।
मार्तंड सूर्य मंदिर (Martand Sun Temple)
Image Credit Wikipedia 


मंदिर की राजसी वास्तुकला इसे अलग बनाती है। बर्फ से ढंके हुए पहाड़ों की पृष्ठभूमि के साथ केंद्र में यह मंदिर करिश्मा ही कहा जाएगा। इस मंदिर से कश्मीर घाटी का मनोरम दृश्य भी देखा जा सकता है। कारकूट वंश के राजा हर्षवर्धन ने ही 200 साल तक सेंट्रल एशिया सहित अरब देशों में राज किया था। पहलगाम का मशहूर शीतल जल वाला चश्मा इसी वंश से संबंधित है।

ऐसी किंवदंती है कि सूर्य की पहली किरण निकलने पर राजा अपनी दिनचर्या की शुरुआत सूर्य मंदिर में पूजा कर चारों दिशाओं में देवताओं का आह्वान करने के बाद करते थे। वर्तमान में खंडहर हो चुके इस मंदिर की ऊंचाई भी अब 20 फुट ही रह गई है। मंदिर में तत्कालीन बर्तन आदि अभी भी मौजूद हैं। कश्मीरियों को चार सौ साल बाद मार्तंड के सूर्य मंदिर की याद फिर से आ गई है। चौदह सौ साल पुराने इस मंदिर में एक बार फिर आहुति डालने की तैयारियाँ चरमोत्कर्ष पर हैं। इतना जरूर है कि यह मंदिर, जो खंडहरों में तब्दील हो चुका है, आज भी सैलानियों को अपनी ओर खींचने की शक्ति रखता है।

कहां है मंदिर- मंदिर जम्मू काश्मीर राज्य के  पहलगाम से निकट अनंतनाग में स्थित है।

कैसे पहुंचे- पहलगाम से अनंतनाग पहुंचकर मार्तंड मंदिर पहुंचा जा सकता है।

4.
बेलाउर सूर्य मंदिर (Belaur Surya Mandir) :-
बेलाउर सूर्य मंदिर (Belaur Surya Mandir)


इस मंदिर का निर्माण राजा सूबा ने करवाया था बाद मे बेलाउर गांव में कुल 52 पोखरा (तालाब) का निर्माण कराने वाले राजा सूबा को राजा बावन सूब के नाम से पुकारा जाने लगा। बिहार के भोजपुर जिले के बेलाउर गांव के पश्चिमी एवं दक्षिणी छोर पर अवस्थित वेलाउर सूर्य मंदिर काफी प्राचीन है। राजा द्वारा बनवाए 52 पोखरो मे एक पोखर के मध्य में यह सूर्य मन्दिर स्थित है। यहां छठ महापर्व के दौरान प्रति वर्ष एक लाख से अधिक श्रद्धालु आते है जिनमे उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश के श्रद्धालु भी होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि सच्चे मन से इस स्थान पर छठ व्रत करने वालों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है तथा कई रोग-व्याधियों से भी मुक्ति मिलती है।

5.
झालरापाटन सूर्य मंदिर (Jhalrapatan Sun Temple) : -
झालरापाटन सूर्य मंदिर (Jhalrapatan Sun Temple)


झालावाड़ का दूसरा जुड़वा शहर झालरापाटन को सिटी ऑफ वेल्स यानी घाटियों का शहर भी कहा जाता है। शहर में मध्य स्थित सूर्य मंदिर झालरापाटन का प्रमुख दर्शनीय स्थल है। वास्तुकला की दृष्टि से भी यह मंदिर अहम है। इसका निर्माण दसवीं शताब्दी में मालवा के परमार वंशीय राजाओं ने करवाया था। मंदिर के गर्भगृह में भगवान विष्णु की प्रतिमा विराजमान है। इसे पद्मनाभ मंदिर भी कहा जाता है।

6.
मार्तंड मंदिर प्रतिरूप :-
दक्षिण कश्मीर के मार्तण्ड के प्रसिद्ध सूर्य मंदिर के प्रतिरूप का सूर्य मंदिर जम्मू में भी बनाया गया है। मंदिर मुख्यत: तीन हिस्सों में बना है। पहले हिस्से में भगवान सूर्य रथ पर सवार हैं जिसे सात घोड़े खींच रहे हैं। दूसरे हिस्से में दुर्गा गणेश कार्तिकेय पार्वती और शिव की प्रतिमा है और तीसरे हिस्से में यज्ञशाला है। हिन्दू मिथक के अनुसार मार्तण्ड कश्यप ऋषि के तीसरे बेटे का जन्म स्थान है।

7.
औंगारी ​सूर्य मंदिर (Aungari Sun Temple) -
नालंदा का प्रसिद्ध सूर्य धाम औंगारी और बडग़ांव के सूर्य मंदिर देश भर में प्रसिद्ध हैं। ऐसी मान्यता है कि यहां के सूर्य तालाब में स्नान कर मंदिर में पूजा करने से कुष्ठ रोग सहित कई असाध्य व्याधियों से मुक्ति मिलती है। प्रचलित मान्यताओं के कारण यहां छठ व्रत करने बिहार के कोने-कोने से ही नहीं, बल्कि देश भर के श्रद्धालु यहां आते हैं। लोग यहां तम्बू लगा कर सूर्योपासना का चार दिवसीय महापर्व छठ संपन्न करते हैं। कहते है कि भगवान कृष्ण के वंशज साम्ब कुष्ठ रोग से पीड़ित था। इसलिए उसने 12 जगहों पर भव्य सूर्य मन्दिर बनवाए थे और भगवान सूर्य की आराधना की थी। ऐसा कहा जाता है तब साम्ब को कुष्ठ से मुक्ति मिली थी। उन्ही 12 मन्दिरो मे औगारी एक है। अन्य सूर्य मंदिरो मे देवार्क, लोलार्क, पूण्यार्क, कोणार्क, चाणार्क आदि शामिल है।

8.
उन्नाव का सूर्य मंदिर (Sun Temple, Unnao) :-
उन्नाव के सूर्य मंदिर का नाम बह्यन्य देव मन्दिर है। यह मध्य प्रदेश के उन्नाव में स्थित है। इस मन्दिर में भगवान सूर्य की पत्थर की मूर्ति है, जो एक ईंट से बने चबूतरे पर स्थित है। जिस पर काले धातु की परत चढी हुई है। साथ ही, साथ 21 कलाओं का प्रतिनिधित्व करने वाले सूर्य के 21 त्रिभुजाकार प्रतीक मंदिर पर अवलंबित है।

9.
रनकपुर सूर्य मंदिर (Ranakpur Surya Temple) :-
रनकपुर सूर्य मंदिर (Ranakpur Surya Temple)


राजस्थान के रणकपुर नामक स्थान में अवस्थित यह सूर्य मंदिर, नागर शैली मे सफेद संगमरमर से बना है। भारतीय वास्तुकला का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करता यह सूर्य मंदिर जैनियों के द्वारा बनवाया गया था जो उदयपुर से करीब 98 किलोमीटर दूर स्थित है।

10. 
सूर्य मंदिर रांची (Sun Temple, Ranchi) :-
10. सूर्य मंदिर रांची (Sun Temple, Ranchi) :-


रांची से 39 किलोमीटर की दूरी पर रांची टाटा रोड़ पर स्थित यह सूर्य मंदिर बुंडू के समीप है 7 संगमरमर से निर्मित इस मंदिर का निर्माण 18 पहियों और 7 घोड़ों के रथ पर विद्यमान भगवान सूर्य के रूप में किया गया है। 25 जनवरी को हर साल यहां विशेष मेले का आयोजन होता है।

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