Friday, October 21, 2022

सांचे तो जग नहीं, झूठे मिलें न राम।*/

 अमृत कथा / कृष्ण मेहता 


*अब "रहीम" मुश्किल पड़ी, गाढ़े दोऊ काम।*

*सांचे तो जग नहीं, झूठे मिलें न राम।*


*अर्थ:* बड़ी मुश्किल में आ पड़े ये दोनो काम बड़े कठिन है। सच्चाई से दुनियादारी हासिल नहीं होती, लोग रीझते नही है,और झूठ से राम की प्राप्ति नहीं होती है। तो अब किसे छोड़ा जाए, और किससे मिला जाए।

*चीजों का उपयोग करना, लेकिन उनके मोह में न पड़ना, सफलता का यही रहस्‍य है*

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एक बहुत ही मशहूर महात्‍मा थे। उनके पास रोज ही बड़ी संख्‍या में लोग उनसे मिलने आते थे। एक बार एक बहुत ही अमीर व्‍यापारी उनसे मिलने पहुंचा। व्‍यापारी ने सुन रखा था कि महात्‍मा बड़े ही सुफीयाना तरीके से रहते है। जब वह व्‍यापारी महात्‍मा के दरबार में पहुंचा तो उसने देखा कि कहने को तो वह महात्‍मा है, लेकिन वे जिस आसन पर बैठे है, वह तो सोने का बना है, चारों ओर सुगंध है, जरीदार पर्दे टंगे है, सेवक है जो महात्‍माजी की सेवा में लगे है और रेशमी ड़ोरियो की सजावट है।

व्‍यापारी यह देखकर भौंच्‍चका रह गया कि हर तरफ विलास और वैभव का साम्राराज्‍य है। ये कैसे महात्‍मा है? महात्‍मा उसके बारे में कुछ कहते, इसके पहले ही व्‍यापारी ने कहा, “महात्‍माजी आपकी ख्‍याती सुनकर आपके दर्शन करने आया था, लेकिन यहाँ देखता हूँ, आप तो भौतिक सपंदा के बीच मजे से रह रहे हैं लेकिन आप में साधु के कोई गुन नजर नही आ रहे है।“

महात्‍मा ने व्‍यापारी से कहा, “व्‍यापारी… तुम्‍हें ऐतराज है तो मैं इसी पल यह सब वैभव छोड़कर तुम्‍हारे साथ चल देता हूँ।“

व्‍यापारी ने कहा, “हे महात्‍मा, क्‍या आप इस विलास पूर्ण जीवन को छोड़ पाएंगे?“

महात्‍माजी कुछ न बोले और उस व्‍यापारी के साथ चल दिए और जाते-जाते अपने सेवको से कहा कि यह जो कुछ भी है सब के सब गरीबो में बाँट दें।

दोनो कुछ ही दूर चले होंगे कि अचानक व्‍यापारी रूका और पीछे मुड़ा और कुछ सोचने लगा।

महात्‍मा ने पूछा, “क्‍या हुआ रूक क्‍यों गए?“

व्‍यापारी ने कहा, “महात्‍मा जी, मैं आपके दरबार में अपना कांसे का लोटा भूल आया हूँ। मैं उसे जाकर ले आता हूँ, उसे लेना जरूरी है।”

महात्‍माजी हंसते हुए बोले, “बस यही फर्क है तुममें और मुझमें। मैं सभी भौतिक सुविधाओं का उपयोग करते हुए भी उनमें बंधता नहीं, इसीलिए जब चाहुं तब उन्‍हें छोड़ सकता हूँ और तुम एक लोटे के बंधन से भी मुक्‍त नहीं हो।“

इतना कहते हुए महात्‍माजी फिर से अपने दरबार की ओर जानें लगे और वह व्‍यापारी उन्‍हें जाता हुआ देखता रहा क्‍योंकि महात्‍मा उसे जीवन का सबसे अमूल्‍य रहस्‍य बता चुके थे।

इस छोटी सी कहानी का सारांश ये है कि चीजों का उपयोग करना, लेकिन उनके मोह में न पड़ना, यही जीवन का अन्तिम उद्देश्‍य होना चाहिए क्‍योंकि मोह ही दु:खों का कारण है और जिसे चीजों का मोह नहीं, वह उनके बंधन में भी नहीं पड़ता और जो बंधन में नही पड़ता, वो हमेंशा मुक्‍त ही है।


Wednesday, October 19, 2022

जय हनुमान ज्ञान गुण सागर.......

 

प्रस्तुति -  सत्यनारायण प्रसाद 


माना जाता है कि श्रीराम अवतार केसत्यनारायण प्रसाद  समय 

हनुमान जी को स्वयं भगवान श्रीरा.म ने 

अमर होने का आशीर्वाद दिया था। 

इसी कारण हनुमानजी का प्रताप चारों युगों में रहा है 

और आगे भी रहेगा, क्योंकि वे अजर-अमर हैं। 

अंजनी सुत जब तक चाहें शरीर में रहकर 

इस धरती पर मौजूद रह सकते हैं।


माना जाता है  कि पूरे ब्रह्मांड में हनुमानजी ही एकमात्र ऐसे देवता हैं जिनकी भक्ति से हर तरह के संकट तुरंत ही हल हो जाते हैं और यह एक चमत्कारिक सत्य है।@सुविचार गुप्र 


हनुमान जी की स्तुति के लिए आज के समय में सबसे सरल व सहज वंदना हनुमान चालीसा को माना गया है। हनुमान चालीसा का आधुनिक दुनिया में महत्व बहुत अधिक माना जाता है।

 

हनुमान चालीसा को महान कवि गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा था । हनुमान चालीसा से पहले भी हनुमानजी पर कई चालीसा लिखी गई और कई स्तुतियां भी लिखी गई थीं लेकिन हनुमान चालीसा का महत्व इसीलिए आधुनिक युग में है क्योंकि यह पढ़ने और समझने बहुत ही सरल है और यह भी कि इस चालीसा में हनुमानजी के संपूर्ण चरित्र का वर्णन हो जाता है जिससे उनकी भक्ति करने में आसानी होती है।

 

हनुमानजी की भक्ति के लिए आप को ई भी स्तुति या वंदना पढ़ें लेकिन हनुमान चालीसा सच में ही अपने आप में एक संपूर्ण रामचरि‍त मानस की तरह है। 


हनुमान चालीसा लिखने वाले तुलसीदासजी राम के बहुत बड़े भक्त थे। उनके इसी विश्वास के कारण औरेंगजेब ने उन्हे बंदी बना लिया था। माना जाता है  कि वहीं बैठकर उन्होंने हनुमान चालीसा लिखा था। अंत में ऐसे कुछ हुआ कि औरंगजेब को उन्हें छोड़ना पड़ा था। 

 

हनुमान चालीसा में 40 छंद होते हैं जिसके कारण इसको चालीसा कहा जाता है। यदि कोई भी इसका पाठ करता है तो उसे चालीसा पाठ बोला जाता है। आधुनिक युग की भागम-भाग में हनुमान चालीसा ही एक ऐसा पाठ है जिसे तुरंत ही आसानी से पढ़ा जा सकता है, लेकिन उसके लिए हनुमानजी की श्रद्धा भक्ति होना जरूरी है।@सुषमा गौड


आज के युग में सनातन धर्म में हनुमान चालीसा का बड़ा ही महत्व है।हनुमान चालीसा के प्रभाव को तो धीरे धीरे पश्चिम की जनता ने भी स्वीकार करना शुरू कर दिया है। 


कहा जाता है कि आज के युग में विश्व शक्ति माने जाने वाले राष्ट्र अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के सिर पर भगवान हनुमान जी का हाथ है। जी हां, बराक ओबामा हनुमानजी के बहुत बड़ भक्त हैं। इतने बड़े भक्त कि वो उनकी एक छोटी सी मूर्ति हमेशा अपनी जेब में रखते हैं।


एक इंटरव्यू के दौरान बराक ओबामा ने बताया कि जब भी वो परेशान या थका हुआ महसूस करते हैं तो हनुमान जी से मदद मांगते हैं। उनका मानना है कि इससे उन्हें पॉजीटिव एनर्जी प्राप्त होती है। 


हनुमान  चालीसा को पढ़ते रहने से व्यक्ति के मन में साहस, आत्मविश्वास और पराक्रम का संचार होता है। इसके कारण ही वह संसार पर विजय प्राप्त कर लेता है। 

 

इसके एक एक छंद का बहुत महत्व है जैसे-

 

1.बच्चे का पढ़ाई में मन ना लगे तो उसको इस छंद का पाठ करना चाहिए- बल बुधि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।

 

2.मन में अकारण भय हो तो निम्न पंक्ति पढ़ना चाहिए- भूत पिशाच निकट नहीं आवे महावीर जब नाम सुनावे।

 

3.किसी भी कार्य को सिद्ध करना हो तो यह पंक्ति पढ़ें- भीम रूप धरि असुर सँहारे, रामचन्द्र के काज सँवारे।


4.बहुत समय से यदि बीमार हैं तो यह पंक्ति पढ़ें- नासै रोग हरे सब पीरा, जपत निरन्तर हनुमत बीरा।

 

5.प्राणों पर यदि संकट आ गया हो तो यह पंक्ति पढ़ें- संकट कटै मिटै सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।

या संकट तें हनुमान छुड़ावै, मन क्रम बचन ध्यान जो लावै

 

6.यदि आप बुरी संगत में पड़े हैं और यह संत छुट नहीं रही है तो यह पढ़ें- महाबीर बिक्रम बजरंगी, कुमति निवार सुमति के संगी

 

7.यदि आप किसी भी प्रकार के बंधन में हैं तो- जो सत बार पाठ कर कोई, छूटहि बन्दि महा सुख होई।

 

8.किसी भी प्रकार का डर है तो यह पढ़ें- सब सुख लहै तुम्हारी सरना, तुम रक्षक काहू को डरना।

 

9.आपके मन में किसी भी प्रकार की मनोकामना है तो पढ़ें- और मनोरथ जो कोई लावै, सोई अमित जीवन फल पावै।


जय श्री राम🙏

Tuesday, October 18, 2022

महाराज साहब के बचन-

 *रा धा स्व आ मी!                                     

 परम गुरु महाराज साहब के बचन-कल से आगे:-(17)-गुरू की ताड़ और मार सह घर कर प्यार, मूरखों की अस्तुती पर खाक डार ।(प्रेमबानी भाग ३, वचन १६, ग़जल ५) फ़रमाया - मन बड़ा जबरदस्त हैं। जरा से मान अपमान में कैसे तरह तरह के गुनाबन उठाता है। जल्द ही बेमुख हो जाता है । हुक्म है कि ताड़ और मार को इस तरह प्यार से सहो कि जिस तरह एक दुखिया और रोगी इलाज वक्त चाहे कितनी तकलीफ़ चीरने फाड़ने या और किसी किस्म की सख्ती से होवे उसको बड़ी खुशी से झेलता है और शुक्रगुजार होता है। अगर एक गधा भी इसकी स्तुति कर दे तो यह फूला नहीं समाता है । जिनको अपनी भी खबर नहीं और दूसरे की भी खबर नहीं, ऐसे लोग स्तुति करने वाले निहायत दर्जे के बेवकूफ हैं और यह उन्हीं के संग रहना चाहता है । इसलिए हुक्म है कि मूर्खों की स्तुति पर खाक डाल।                                                                     

 क्रमशः🙏🏻रा धा स्व आ मी🙏🏻*


*रा धा स्व आ मी!     

                                 

  परम गुरु हुज़ूर महाराज-प्रेमपत्र-भाग-3-

 बचन-14-का भाग-कल से आगे:-(26)-



 अब समझना चाहिये कि असल में शुरूआत मज़हबों की किस तरह पर हुई और उनसे क्या मतलब और फ़ायदा मंजूर था। सो संतों के बचनों से ज़ाहिर होता है कि दुनिया में सब जीव आम तौर पर मन और इन्द्रियों के भोग और सुखों की प्राप्ति के लिये, देखा देखी और सुना सुनी के मुवाफ़िक्र जतन करने लगे और हर एक मुआमले में ज़्यादह से ज़्यादह आशा और तृष्णा बढ़ाते गये कि जिसके सबब से ज़्यादह मेहनत उनको करनी पड़ी, चाहे वह आसा पूरी हुई या नहीं और इस सबब से दुख सुख भोगते रहे और रोग सोग और तकलीफ़ वग़ैरह के दूर करने के लिये भी जो जतन कि उनको आम तौर पर जीवों की काररवाई देख कर मालूम हुये करने लगे। पर जब उनसे कुछ फ़ायदा न हुआ तब दुखी रहे और कोई उनकी मदद न कर सका और मौत के वक़्त तो क़तई किसी का जतन पेश न गया और वह भारी दुख सबको भोगना पड़ा, और आइन्दा की हालत से सबको बेख़बरी रही कि आया दुख मिलेगा या सुख।    

                                                          

  क्रमशः

🙏🏻रा धा स्व आ मी🙏🏻*


*रा धा स्व आ मी!        

                                                         

[दीन व दुनिया-परम गुरु हुज़ूर साहबजी


 महाराज-कल से आगे:-दृश्य-8 का अंतिम भाग:- 


फ़रिश्ता- शुक्रिया। (फ़रिश्ता ग़ायब हो जाता है, दीन टहलने लगता है और गाता है।)                                       गाना:-*                                                                                           O

 *ऐ इन्सान तुझ को यह क्या हो गया ।


 फ़हम का क्या पुरज़ा तेरे खो गया ।१ ।                                     

 तू बदबख़्त सचमुच है उस फ़ाक़ेकश सा ।

 कि ख़्वाँ आगे आते ही जो सो गया । २ ।                                     

  तेरा रब मेहरबान तुझ पै है इस दम । 

मिले फिर न यह वक़्त अब जो गया । ३ ।                                      

हो बेदार अब भी बिरादर, सँभल तू ।

 जो होना था पहले हुआ हो गया ।४।*                                       

*दीन-( रुक कर ) ऐ पाक परवरदिगार के प्यारे ! ऐ दीन के दुलारे ! फ़रिश्तों के सरताज हज़रत इन्सान ! जब कि सरीहन तू बैठना उठना सीखने के लिये माँ बाप की मदद का, बोलना चालना सीखने के लिये उस्ताद की मदद का और इल्मो फ़न सीखने के लिये माहिरान की मदद का मोहताज है तो फिर दीन की राह पर चलने के लिये क्यों तुझे रहनुमा की मदद की ज़रूरत महसूस नहीं होती ? तुझे अक़्ल किस ग़रज से दी गई थी ? क्या इसलिये कि अपने से और अपने मुहिब्बों (प्रेमियों) से दुश्मनी किया करे ? ख़ैर तू अपनी सी कर, हम अपनी सी करते हैं।                                       क्रमशः

🙏🏻रा धा स्व आ मी🙏🏻*

अति महत्वपूर्ण*


सभी लोग विशेष ध्यान दें कि बार बार मैसेज भेज कर निवेदन करने के बावज़ूद भी कटाई के लिए यंगमैन और भाई साहबान बहुत कम संख्या में पहुँच रहे हैं। 


*आज ग्रेसियस हुजूर की सख्त नाराजगी हुई है कि "दयालबाग और ब्रांच के लोग ठीक से ड्यूटी नहीं कर रहे हैं। कटाई करना उनकी ड्यूटी है। सुबह व शाम 4-4 घंटे सेवा करें।"*


इसे देखते हुए आप सभी से पुनः अनुरोध है कि सुबह और शाम दोनों समय अधिक से अधिक संख्या में कटाई और लोडिंग के कार्य के लिए पहुँचें जिससे समय से कार्य पूरा हो सके।


हार्दिक रा धा स्व आ मी 🙏🙏

Wednesday, October 12, 2022

करवा चौथ

करवा चौथ अक्टूबर 13, 2022 विशेष : कृष्ण मेहता

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करवा चौथ व्रत का हिन्दू संस्कृति में विशेष महत्त्व है। इस दिन पति की लम्बी उम्र के पत्नियां पूर्ण श्रद्धा से निर्जला व्रत रखती  है। 


करवा चाैथ पर इस वर्ष सिद्धि योग रहेगा। यह योग मंगलदायक कार्यों में सफलता प्रदान करता है। साथ ही चंद्रमा शाम 06:40 के बाद पूरे समय रोहिणी नक्षत्र में रहेगा। इस नक्षत्र में चंद्रमा का पूजन करना बेहद ही शुभ माना जाता है।


वैदिक ज्योतिष के अनुसार इस समय शनि, बुध और गुरु अपनी स्वराशि में स्थित हैं। सूर्य और बुध भी एक साथ विराजमान हैं। जिससे बुधादित्य योग का भी निर्माण हो रहा है। वहीं लक्ष्मी नारायण योग का निर्माण भी हो रहा है। इस योग के बनने से पति-पत्नी का आपसी संबंध और विश्वास मजबूत होगा। इस दिन चंद्रमा अपनी उच्च राशि वृषभ में रहेंगे। जिससे की गई प्रार्थना शीघ्र स्वीकार होगी।


पहली बार करवा चौथ का व्रत रखने वाली महिलाओं के लिए इस वर्ष शुक्रास्त होने के कारण व्रत एवं पूजा पाठ ही कर सकेंगी ऐसे मे खरीददारी अथवा अन्य मांगलिक कार्यों से बचना चाहिए।


करवा चौथ महात्म्य

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छांदोग्य उपनिषद् के अनुसार चंद्रमा में पुरुष रूपी ब्रह्मा की उपासना करने से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। इससे जीवन में किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं होता है। साथ ही साथ इससे लंबी और पूर्ण आयु की प्राप्ति होती है। करवा चौथ के व्रत में शिव, पार्वती, कार्तिकेय, गणोश तथा चंद्रमा का पूजन करना चाहिए। चंद्रोदय के बाद चंद्रमा को अघ्र्य देकर पूजा होती है। पूजा के बाद मिट्टी के करवे में चावल,उड़द की दाल, सुहाग की सामग्री रखकर सास अथवा सास के समकक्ष किसी सुहागिन के पांव छूकर सुहाग सामग्री भेंट करनी चाहिए।


महाभारत से संबंधित पौराणिक कथा के अनुसार पांडव पुत्र अर्जुन तपस्या करने नीलगिरी पर्वत पर चले जाते हैं। दूसरी ओर बाकी पांडवों पर कई प्रकार के संकट आन पड़ते हैं। द्रौपदी भगवान श्रीकृष्ण से उपाय पूछती हैं। वह कहते हैं कि यदि वह कार्तिक कृष्ण चतुर्थी के दिन करवाचौथ का व्रत करें तो इन सभी संकटों से मुक्ति मिल सकती है। द्रौपदी विधि विधान सहित करवाचौथ का व्रत रखती है जिससे उनके समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं। इस प्रकार की कथाओं से करवा चौथ का महत्त्व हम सबके सामने आ जाता है।


सरगी का महत्त्व

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करवा चौथ में सरगी का काफी महत्व है। सरगी सास की तरफ से अपनी बहू को दी जाती है। इसका सेवन महिलाएं करवाचौथ के दिन सूर्य निकलने से पहले तारों की छांव में करती हैं। सरगी के रूप में सास अपनी बहू को विभिन्न खाद्य पदार्थ एवं वस्त्र इत्यादि देती हैं। सरगी, सौभाग्य और समृद्धि का रूप होती है। सरगी के रूप में खाने की वस्तुओं को जैसे फल, मीठाई आदि को व्रती महिलाएं व्रत वाले दिन सूर्योदय से पूर्व प्रात: काल में तारों की छांव में ग्रहण करती हैं। तत्पश्चात व्रत आरंभ होता है। अपने व्रत को पूर्ण करती हैं।


महत्त्व के बाद बात आती है कि करवा चौथ की पूजा विधि क्या है? किसी भी व्रत में पूजन विधि का बहुत महत्त्व होता है। अगर सही विधि पूर्वक पूजा नहीं की जाती है तो इससे पूरा फल प्राप्त नहीं हो पाता है।


चौथ की पूजन सामग्री और व्रत की विधि   

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करवा चौथ पर्व की पूजन सामग्री👇


कुंकुम, शहद, अगरबत्ती, पुष्प, कच्चा दूध, शक्कर, शुद्ध घी, दही, मेंहदी, मिठाई, गंगाजल, चंदन, चावल, सिन्दूर, मेंहदी, महावर, कंघा, बिंदी, चुनरी, चूड़ी, बिछुआ, मिट्टी का टोंटीदार करवा व ढक्कन, दीपक, रुई, कपूर, गेहूँ, शक्कर का बूरा, हल्दी, पानी का लोटा, गौरी बनाने के लिए पीली मिट्टी, लकड़ी का आसन, छलनी, आठ पूरियों की अठावरी, हलुआ, दक्षिणा के लिए पैसे। सम्पूर्ण सामग्री को एक दिन पहले ही एकत्रित कर लें। 


व्रत वाले दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर स्नान कर स्वच्छ कपड़े पहन लें तथा शृंगार भी कर लें। इस अवसर पर करवा की पूजा-आराधना कर उसके साथ शिव-पार्वती की पूजा का  विधान है क्योंकि माता पार्वती ने कठिन तपस्या करके शिवजी को प्राप्त कर अखंड सौभाग्य प्राप्त किया था इसलिए शिव-पार्वती की पूजा की जाती है। करवा चौथ के दिन चंद्रमा की पूजा का धार्मिक और ज्योतिष दोनों ही दृष्टि से महत्व है। व्रत के दिन प्रात: स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प बोल कर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें।


करवा चौथ पूजन विधि

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प्रात: काल में नित्यकर्म से निवृ्त होकर संकल्प लें और व्रत आरंभ करें।

व्रत के दिन निर्जला रहे यानि जलपान ना करें।

व्रत के दिन प्रातः स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प बोलकर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें-

प्रातः पूजा के समय इस मन्त्र के जप से व्रत प्रारंभ किया जाता है- 


'मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।'


अथवा👇

ॐ शिवायै नमः' से पार्वती का, 

'ॐ नमः शिवाय' से शिव का, 

'ॐ षण्मुखाय नमः' से स्वामी कार्तिकेय का, 'ॐ गणेशाय नमः' से गणेश का तथा 

'ॐ सोमाय नमः' से चंद्रमा का पूजन करें।


शाम के समय, माँ पार्वती की प्रतिमा की गोद में श्रीगणेश को विराजमान कर उन्हें बालू अथवा सफेद मिट्टी की वेदी अथवा लकड़ी के आसार पर शिव-पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, गणेश एवं चंद्रमा की स्थापना करें। मूर्ति के अभाव में सुपारी पर नाड़ा बाँधकर देवता की भावना करके स्थापित करें। पश्चात माँ पार्वती का सुहाग सामग्री आदि से श्रृंगार करें।

भगवान शिव और माँ पार्वती की आराधना करें और कोरे करवे में पानी भरकर पूजा करें। एक लोटा, एक वस्त्र व एक विशेष करवा दक्षिणा के रूप में अर्पित करें।

सौभाग्यवती स्त्रियां पूरे दिन का व्रत कर व्रत की कथा का श्रवण करें। चंद्रोदय के बाद चाँद को अर्घ्य देकर अपने पति के हाथ से जल एवं मिष्ठान खा कर व्रत खोले।


करवा चौथ प्रथम कथा 

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बहुत समय पहले की बात है, एक साहूकार के सात बेटे और उनकी एक बहन करवा थी। सभी सातों भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे। यहाँ तक कि वे पहले उसे खाना खिलाते और बाद में स्वयं खाते थे। एक बार उनकी बहन ससुराल से मायके आई हुई थी।

शाम को भाई जब अपना व्यापार-व्यवसाय बंद कर घर आए तो देखा उनकी बहन बहुत व्याकुल थी। सभी भाई खाना खाने बैठे और अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन ने बताया कि उसका आज करवा चौथ का निर्जल व्रत है और वह खाना सिर्फ चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्‍य देकर ही खा सकती है। चूँकि चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है, इसलिए वह भूख-प्यास से व्याकुल हो उठी है।

सबसे छोटे भाई को अपनी बहन की हालत देखी नहीं जाती और वह दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है। दूर से देखने पर वह ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे चतुर्थी का चाँद उदित हो रहा हो।

इसके बाद भाई अपनी बहन को बताता है कि चाँद निकल आया है, तुम उसे अर्घ्य देने के बाद भोजन कर सकती हो। बहन खुशी के मारे सीढ़ियों पर चढ़कर चाँद को देखती है, उसे अर्घ्‍य देकर खाना खाने बैठ जाती है।


वह पहला टुकड़ा मुँह में डालती है तो उसे छींक आ जाती है। दूसरा टुकड़ा डालती है तो उसमें बाल निकल आता है और जैसे ही तीसरा टुकड़ा मुँह में डालने की कोशिश करती है तो उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है। वह बौखला जाती है।


उसकी भाभी उसे सच्चाई से अवगत कराती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं और उन्होंने ऐसा किया है।

सच्चाई जानने के बाद करवा निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रहती है। उसकी देखभाल करती है। उसके ऊपर उगने वाली सूईनुमा घास को वह एकत्रित करती जाती है।


एक साल बाद फिर करवा चौथ का दिन आता है। उसकी सभी भाभियाँ करवा चौथ का व्रत रखती हैं। जब भाभियाँ उससे आशीर्वाद लेने आती हैं तो वह प्रत्येक भाभी से 'यम सूई ले लो, पिय सूई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो' ऐसा आग्रह करती है, लेकिन हर बार भाभी उसे अगली भाभी से आग्रह करने का कह चली जाती है।


इस प्रकार जब छठे नंबर की भाभी आती है तो करवा उससे भी यही बात दोहराती है। यह भाभी उसे बताती है कि चूँकि सबसे छोटे भाई की वजह से उसका व्रत टूटा था अतः उसकी पत्नी में ही शक्ति है कि वह तुम्हारे पति को दोबारा जीवित कर सकती है, इसलिए जब वह आए तो तुम उसे पकड़ लेना और जब तक वह तुम्हारे पति को जिंदा न कर दे, उसे नहीं छोड़ना। ऐसा कह के वह चली जाती है।

सबसे अंत में छोटी भाभी आती है। करवा उनसे भी सुहागिन बनने का आग्रह करती है, लेकिन वह टालमटोली करने लगती है। इसे देख करवा उन्हें जोर से पकड़ लेती है और अपने सुहाग को जिंदा करने के लिए कहती है। भाभी उससे छुड़ाने के लिए नोचती है, खसोटती है, लेकिन करवा नहीं छोड़ती है।


अंत में उसकी तपस्या को देख भाभी पसीज जाती है और अपनी छोटी अँगुली को चीरकर उसमें से अमृत उसके पति के मुँह में डाल देती है। करवा का पति तुरंत श्रीगणेश-श्रीगणेश कहता हुआ उठ बैठता है। इस प्रकार प्रभु कृपा से उसकी छोटी भाभी के माध्यम से करवा को अपना सुहाग वापस मिल जाता है। हे श्री गणेश माँ गौरी जिस प्रकार करवा को चिर सुहागन का वरदान आपसे मिला है, वैसा ही सब सुहागिनों को मिले।


करवाचौथ द्वितीय कथा 

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इस कथा का सार यह है कि शाकप्रस्थपुर वेदधर्मा ब्राह्मण की विवाहिता पुत्री वीरवती ने करवा चौथ का व्रत किया था। नियमानुसार उसे चंद्रोदय के बाद भोजन करना था, परंतु उससे भूख नहीं सही गई और वह व्याकुल हो उठी। उसके भाइयों से अपनी बहन की व्याकुलता देखी नहीं गई और उन्होंने पीपल की आड़ में आतिशबाजी का सुंदर प्रकाश फैलाकर चंद्रोदय दिखा दिया और वीरवती को भोजन करा दिया।


परिणाम यह हुआ कि उसका पति तत्काल अदृश्य हो गया। अधीर वीरवती ने बारह महीने तक प्रत्येक चतुर्थी को व्रत रखा और करवा चौथ के दिन उसकी तपस्या से उसका पति पुनः प्राप्त हो गया।


करवा चौथ तृतीय कथा 

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एक समय की बात है कि एक करवा नाम की पतिव्रता स्त्री अपने पति के साथ नदी के किनारे के गाँव में रहती थी। एक दिन उसका पति नदी में स्नान करने गया। स्नान करते समय वहाँ एक मगर ने उसका पैर पकड़ लिया। वह मनुष्य करवा-करवा कह के अपनी पत्नी को पुकारने लगा।


उसकी आवाज सुनकर उसकी पत्नी करवा भागी चली आई और आकर मगर को कच्चे धागे से बाँध दिया। मगर को बाँधकर यमराज के यहाँ पहुँची और यमराज से कहने लगी- हे भगवन! मगर ने मेरे पति का पैर पकड़ लिया है। उस मगर को पैर पकड़ने के अपराध में आप अपने बल से नरक में ले जाओ।

यमराज बोले- अभी मगर की आयु शेष है, अतः मैं उसे नहीं मार सकता। इस पर करवा बोली, अगर आप ऐसा नहीं करोगे तो मैं आप को श्राप देकर नष्ट कर दूँगी। सुनकर यमराज डर गए और उस पतिव्रता करवा के साथ आकर मगर को यमपुरी भेज दिया और करवा के पति को दीर्घायु दी। हे करवा माता! जैसे तुमने अपने पति की रक्षा की, वैसे सबके पतियों की रक्षा करना।


करवाचौथ चौथी कथा 

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एक बार पांडु पुत्र अर्जुन तपस्या करने नीलगिरी नामक पर्वत पर गए। इधर द्रोपदी बहुत परेशान थीं। उनकी कोई खबर न मिलने पर उन्होंने कृष्ण भगवान का ध्यान किया और अपनी चिंता व्यक्त की। कृष्ण भगवान ने कहा- बहना, इसी तरह का प्रश्न एक बार माता पार्वती ने शंकरजी से किया था।


पूजन कर चंद्रमा को अर्घ्‍य देकर फिर भोजन ग्रहण किया जाता है। सोने, चाँदी या मिट्टी के करवे का आपस में आदान-प्रदान किया जाता है, जो आपसी प्रेम-भाव को बढ़ाता है। पूजन करने के बाद महिलाएँ अपने सास-ससुर एवं बड़ों को प्रणाम कर उनका आशीर्वाद लेती हैं।

तब शंकरजी ने माता पार्वती को करवा चौथ का व्रत बतलाया। इस व्रत को करने से स्त्रियाँ अपने सुहाग की रक्षा हर आने वाले संकट से वैसे ही कर सकती हैं जैसे एक ब्राह्मण ने की थी। प्राचीनकाल में एक ब्राह्मण था। उसके चार लड़के एवं एक गुणवती लड़की थी।


एक बार लड़की मायके में थी, तब करवा चौथ का व्रत पड़ा। उसने व्रत को विधिपूर्वक किया। पूरे दिन निर्जला रही। कुछ खाया-पीया नहीं, पर उसके चारों भाई परेशान थे कि बहन को प्यास लगी होगी, भूख लगी होगी, पर बहन चंद्रोदय के बाद ही जल ग्रहण करेगी।

भाइयों से न रहा गया, उन्होंने शाम होते ही बहन को बनावटी चंद्रोदय दिखा दिया। एक भाई पीपल की पेड़ पर छलनी लेकर चढ़ गया और दीपक जलाकर छलनी से रोशनी उत्पन्न कर दी। तभी दूसरे भाई ने नीचे से बहन को आवाज दी- देखो बहन, चंद्रमा निकल आया है, पूजन कर भोजन ग्रहण करो। बहन ने भोजन ग्रहण किया।

भोजन ग्रहण करते ही उसके पति की मृत्यु हो गई। अब वह दुःखी हो विलाप करने लगी, तभी वहाँ से रानी इंद्राणी निकल रही थीं। उनसे उसका दुःख न देखा गया। ब्राह्मण कन्या ने उनके पैर पकड़ लिए और अपने दुःख का कारण पूछा, तब इंद्राणी ने बताया- तूने बिना चंद्र दर्शन किए करवा चौथ का व्रत तोड़ दिया इसलिए यह कष्ट मिला। अब तू वर्ष भर की चौथ का व्रत नियमपूर्वक करना तो तेरा पति जीवित हो जाएगा। उसने इंद्राणी के कहे अनुसार चौथ व्रत किया तो पुनः सौभाग्यवती हो गई। इसलिए प्रत्येक स्त्री को अपने पति की दीर्घायु के लिए यह व्रत करना चाहिए। द्रोपदी ने यह व्रत किया और अर्जुन सकुशल मनोवांछित फल प्राप्त कर वापस लौट आए। तभी से हिन्दू महिलाएँ अपने अखंड सुहाग के लिए करवा चौथ व्रत करती हैं। सायं काल में चंद्रमा के दर्शन करने के बाद ही पति द्वारा अन्न एवं जल ग्रहण करें। पति, सास-ससुर सब का आशीर्वाद लेकर व्रत को समाप्त करें।


पूजा एवं चन्द्र को अर्घ्य देने का मुहूर्त

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कार्तिक कृष्ण चतुर्थी (करवाचौथ) 13 अक्टूबर को करवा चौथ पूजा मुहूर्त- सायं 05:47 से 07:01 बजे तक।


चंद्रोदय- 20:02 मिनट पर।


चतुर्थी तिथि आरंभ 12 अक्टूबर रात्रि 01:59 पर।


चतुर्थी तिथि समाप्त 13 अक्टूबर रात्रि 03:08 पर।


13 घंटे 44 मिनट का समय व्रत के लिए है। ऐसे में महिलाओं को सुबह 6 बजकर 17 मिनट से शाम 08 बजकर 02 मिनट तक करवा चौथ का व्रत रखना होगा।


करवा चौथ के दिन चन्द्र को अर्घ्य देने का समय रात्रि 8:11 बजे से 8:55 तक है।


करवाचौथ के दिन भारत के कुछ प्रमुख नगरों का चंद्रोदय समय 

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दिल्ली- 08 बजकर 09 मिनट पर


नोएडा- 08 बजकर 08 मिनट पर


मुंबई- 08 बजकर 48 मिनट पर


जयपुर- 08 बजकर 18 मिनट पर


देहरादून- 08 बजकर 02 मिनट पर


लखनऊ- 07 बजकर 59 मिनट पर


शिमला- 08 बजकर 03 मिनट पर


गांधीनगर- 08 बजकर 51 मिनट पर


अहमदाबाद- 08 बजकर 41 मिनट पर


कोलकाता- 07 बजकर 37 मिनट पर


पटना- 07 बजकर 44 मिनट पर


प्रयागराज- 07 बजकर 57 मिनट पर


कानपुर- 08 बजकर 02 मिनट पर


चंडीगढ़- 08 बजकर 06 मिनट पर


लुधियाना- 08 बजकर 10 मिनट पर


जम्मू- 08 बजकर 08 मिनट पर


बंगलूरू- 08 बजकर 40 मिनट पर


गुरुग्राम- 08 बजकर 21 मिनट पर


असम - 07 बजकर 11 मिनट पर


 इन शहरों के लगभग 200 किलोमीटर के आसपास तक चंद्रोदय के समय मे 1 से 3 मिनट का अंतर आ सकता है।


प्राचीन मान्यताओं के अनुसार करवा चौथ के दिन शाम के समय चन्द्रमा को अर्घ्य देकर ही व्रत खोला जाता है। 


चंद्रदेव को अर्घ्य देते समय इस मंत्र का जप अवश्य  करना चाहिए। अर्घ्य देते समय इस मंत्र के जप करने से घर में सुख व शांति आती है।


"गगनार्णवमाणिक्य चन्द्र दाक्षायणीपते।

गृहाणार्घ्यं मया दत्तं गणेशप्रतिरूपक॥"


इसका अर्थ है कि सागर समान आकाश के माणिक्य, दक्षकन्या रोहिणी के प्रिय व श्री गणेश के प्रतिरूप चंद्रदेव मेरा अर्घ्य स्वीकार करें।


सुख सौभाग्य के लिये राशि अनुसार उपाय

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मेष राशि👉  मेष राशि की महिलाएं करवा चौथ की पूजा अगर लाल और गोल्डन रंग के कपड़े पहनकर करती हैं तो आने वाला समय बेहद शुभ रहेगा।  


वृषभ राशि👉 वृषभ राशि की महिलाओं को इस करवा चौथ सिल्वर और लाल रंग के कपड़े पहनकर पूजा करनी चाहिए। इस रंग के कपड़े पहनकर पूजा करने से आने वाले समय में पति-पत्नी के बीच प्यार में कभी कमी नहीं आएगी। 


मिथुन राशि👉 इस राशि की महिलाओं के लिए हरा रंग इस करवा चौथ बेहद शुभ रहने वाला है। इस राशि की महिलाओं को करवा चौथ के दिन हरे रंग की साड़ी के साथ हरी और लाल रंग की चूड़ियां पहनकर चांद की पूजा करनी चाहिए। ऐसा करने से आपके पति की आयु निश्चित लंबी होगी।  


कर्क राशि👉 कर्क राशि की महिलाओं को करवा चौथ की पूजा विशेषकर लाल-सफेद रंग के कॉम्बिनेशन वाली साड़ी के साथ रंग-बिरंगी चूडि़यां पहनकर पूजा करनी चाहिए। याद रखें इस राशि की महिलाओं को व्रत खोलते समय चांद को सफेद बर्फी का भोग लगाना चाहिए। ऐसा करने से आपके पति का प्यार आपके लिए कभी कम नहीं होगा। 


सिंह राशि👉 करवा चौथ की साड़ी चुनने के लिए इस राशि की महिलाओं के पास कई विकल्प मौजूद हैं। इस राशि की महिलाएं लाल, संतरी, गुलाबी और गोल्डन रंग चुन सकती है। इस रंग के कपड़े पहनकर पूजा करने से शादीशुदा जोड़े के वैवाहिक जीवन में हमेशा प्यार बना रहता है। 


कन्या राशि👉 कन्या राशि वाली महिलाओं को इस करवा चौथ लाल-हरी या फिर गोल्डन कलर की साड़ी पहनकर पूजा करने से लाभ मिलेगा। ऐसा करने से दोनों के वैवाहिक जीवन में मधुरता बढ़ जाएगी।


तुला राशि👉 इस राशि की महिलाओं को पूजा करते समय लाल- सिल्वर रंग के कपड़े पहनने चाहिए। इस रंग के कपड़े पहनने पर पति का साथ और प्यार दोनों हमेशा बना रहेगा। 


वृश्चिक राशि👉 इस राशि की महिलाएं लाल, मैरून या गोल्डन रंग की साड़ी पहनकर पूजा करें तो पति-पत्नी के बीच प्यार बढ़ जाएगा। 


धनु राशि👉 इस राशि की महिलाएं पीले या आसमानी रंग के कपड़े पहनकर पति की लंबी उम्र की कामना करें।  


मकर राशि👉 मकर राशि की महिलाएं इलेक्ट्रिक ब्लू रंग करवा चौथ पर पहनने के लिए चुनें। ऐसा करने से आपके मन की हर इच्छा जल्द पूरी होगी। 


कुंभ राशि👉 ऐसी महिलाओं को नेवी ब्लू या सिल्वर कलर के कपड़े पहनकर पूजा करनी चाहिए। ऐसा करने से गृहस्थ जीवन में सुख शांति बनी रहेगी। 


मीन राशि👉 इस राशि की महिलाओं को करवा चौथ पर लाल या गोल्डन रंग के कपड़े पहनना शुभ होगा।

जाको राखे साईं.......

 जाको राखे  साईं....... 


प्रस्तुति - नवल किशोर प्रसाद 

जंगल में एक गर्भवती हिरनी बच्चे को जन्म देने को थी। वो एकांत जगह की तलाश में घुम रही थी, कि उसे नदी किनारे ऊँची और घनी घास दिखी। उसे वो उपयुक्त स्थान लगा शिशु को जन्म देने के लिये।


वहां पहुँचते ही उसे प्रसव पीडा शुरू हो गयी।

उसी समय आसमान में घनघोर बादल वर्षा को आतुर हो उठे और बिजली कडकने लगी।


उसने दाये देखा, तो एक शिकारी तीर का निशाना, उस की तरफ साध रहा था। घबराकर वह दाहिने मुडी, तो वहां एक भूखा शेर, झपटने को तैयार बैठा था। सामने सूखी घास आग पकड चुकी थी और पीछे मुडी, तो नदी में जल बहुत था।


मादा हिरनी क्या करती ? वह प्रसव पीडा से व्याकुल थी। अब क्या होगा ? क्या हिरनी जीवित बचेगी ? क्या वो अपने शावक को जन्म दे पायेगी ? क्या शावक जीवित रहेगा ? 


क्या जंगल की आग सब कुछ जला देगी ? क्या मादा हिरनी शिकारी के तीर से बच पायेगी ?क्या मादा हिरनी भूखे शेर का भोजन बनेगी ?

वो एक तरफ आग से घिरी है और पीछे नदी है। क्या करेगी वो ?


हिरनी अपने आप को शून्य में छोड, अपने बच्चे को जन्म देने में लग गयी। कुदरत का कारिष्मा देखिये। बिजली चमकी और तीर छोडते हुए, शिकारी की आँखे चौंधिया गयी। उसका तीर हिरनी के पास से गुजरते, शेर की आँख में जा लगा,शेर दहाडता हुआ इधर उधर भागने लगा।और शिकारी, शेर को घायल ज़ानकर भाग गया। घनघोर बारिश शुरू हो गयी और जंगल की आग बुझ गयी। हिरनी ने शावक को जन्म दिया।


हमारे जीवन में भी कभी कभी कुछ क्षण ऐसे आते है, जब हम पूर्ण पुरुषार्थ के बावजूद चारो तरफ से समस्याओं से घिरे होते हैं और कोई निर्णय नहीं ले पाते। तब सब कुछ नियति के हाथों सौंपकर अपने उत्तरदायित्व व प्राथमिकता पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए।अन्तत: यश, अपयश ,हार ,जीत, जीवन,मृत्यु का अन्तिम निर्णय ईश्वर करता है।हमें उस पर विश्वास कर उसके निर्णय का सम्मान करना चाहिए।

Tuesday, October 11, 2022

समय फिर ऐसा नहिं पावो,


 🙏🍁RADHASOAMI 


राधास्वामी  🍁🙏

हुए परसन गुरू दीनदयाल,

 लिया मोहि अपनी गोद बिठाल, 

भाग मेरा जागा आज अपार, 

मिले राधास्वामी निज दिलदार


 🙏🍁

RADHASOAMI 

राधास्वामी  🍁🙏



🙏🍁RADHASOAMI 🍁🙏


समय फिर ऐसा नहिं पावो, 

खोवो मत नहिं फिर पछतावो;

 सरन से गुरू की काज बन आय,

 मेहर कर राधास्वामी कहें समझाय 


🙏RADHASOAMI 🍁



 माटी चुन चुन महल बनाया,

 लोग कहें घर मेरा, ना घर तेरा, ना

 घर मेरा, चिड़िया रैन बसेरा!

 कौड़ी कौड़ी माया जोड़ी, 

जोड़ भरेला थैला, 

कहत कबीर सुनो भाई साधो,

 संग चले ना धेला!!

 उड़ जाएगा हंस अकेला!!!

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻



 🙏🌹 राधास्वामी🌹🙏



मैं अपराधी जनम का , 

नख शिख भरा विकार।

तुम दाता दुखभंजना,

 मेरी करो सम्हार ।।


🙏🌹राधास्वामी 🙏🌹


 🙏🍁RADHASOAMI 🍁🙏


गुरू अब कहते हेला मारी, 

शब्द बिन कोई न करे उपकारी


🙏🍁RADHASOAMI 🍁🙏




🙏🍁RADHASOAMI 🍁🙏


घर तुम्हारे कुछ कमी न होई,

 चित्त मेरा ठैराय, 

 जस तस दान देव यह प्यारे,  

जस तस लेव अपनाय


🙏🍁RADHASOAMI 🍁🙏



आवश्यक सुचना

 आवश्यक सूचना






इस बात पर सख्त नाराज़गी हुई है कि मार्च पास्ट में लोगों की संख्या, खेतों में रिपोर्ट की गई attendance से कहीं ज्यादा होती है। मार्च पास्ट के हकदार केवल वे ही लोग हैं, जिन्होंने उस शिफ्ट में खेतों में सेवा की है।

आप सबको सख्त हिदायत दी जाती है कि कोई भी आखिरी समय में आकर मार्च पास्ट की लाईन में न लगें। 

खेतों के सुपरवाइजर और सिक्युरिटी वॉलंटियर इस बात का ख्याल रखें कि जिसने खेतों में काम नहीं किया हो, उसे लाईन में बिल्कुल न लगने दें और अगर कोई लग भी गया हो तो उसे हटा दें।

सभी लोग इस बात से अवगत रहें कि यदि आप आखिरी समय लाईन में लगते हैं तो आपको हटा दिया जाएगा। खेतों की आखिरी attendance, 3:45 बजे रिपोर्ट की जाती है। 

इस बात का, जब दयालबाग के अन्दर खेत होते हैं, खास ख्याल रखें।


रा धा स्व आ मी


कृपया इस सूचना को सभी सतसंगियों तक पहुँचाएं।

Monday, October 10, 2022

महर्षि कम्बन की #इरामावतारम्# में यह कथा है.!*

 *लंकाधीश रावण कि मांग..


*बाल्मीकि रामायण और तुलसीकृत रामायण में इस कथा का वर्णन नहीं है, पर तमिल भाषा में लिखी *महर्षि कम्बन की #इरामावतारम्# में यह कथा है.!*


*रावण केवल शिवभक्त, विद्वान एवं वीर ही नहीं, अति-मानववादी भी था..! उसे भविष्य का पता था..! वह जानता था कि श्रीराम से जीत पाना उसके लिए असंभव है..!*


*जब श्री राम ने खर-दूषण का सहज ही बध कर दिया, तब तुलसी कृत मानस में भी रावण के मन भाव लिखे हैं--!*


   *खर दूसन मो   सम   बलवंता.!*

  *तिनहि को मरहि बिनु भगवंता.!!*


*रावण के पास जामवंत जी को #आचार्यत्व# का निमंत्रण देने के लिए लंका भेजा गया..!*

*जामवन्त जी दीर्घाकार थे, वे आकार में कुम्भकर्ण से तनिक ही छोटे थे.! लंका में प्रहरी भी हाथ जोड़कर मार्ग दिखा रहे थे.! इस प्रकार जामवन्त को किसी से कुछ पूछना नहीं पड़ा.! स्वयं रावण को उन्हें राजद्वार पर अभिवादन का उपक्रम करते देख जामवन्त ने मुस्कराते हुए कहा कि मैं अभिनंदन का पात्र नहीं हूँ.! मैं वनवासी राम का दूत बनकर आया हूँ.! उन्होंने तुम्हें सादर प्रणाम कहा है.!*


*रावण ने सविनय कहा --*

*आप हमारे पितामह के भाई हैं.! इस नाते आप हमारे पूज्य हैं.!  कृपया आसन ग्रहण करें.! यदि आप मेरा निवेदन स्वीकार कर लेंगे, तभी संभवतः मैं भी आपका संदेश सावधानी से सुन सकूंगा.!*


*जामवन्त ने कोई आपत्ति नहीं की.! उन्होंने आसन ग्रहण किया.! रावण ने भी अपना स्थान ग्रहण किया.! तदुपरान्त जामवन्त ने पुनः सुनाया कि वनवासी राम ने सागर-सेतु निर्माण उपरांत अब यथाशीघ्र महेश्व-लिंग-विग्रह की स्थापना करना चाहते हैं.! इस अनुष्ठान को सम्पन्न कराने के लिए उन्होंने ब्राह्मण, वेदज्ञ और शैव रावण को आचार्य पद पर वरण करने की इच्छा प्रकट की है.!*

*"मैं उनकी ओर से आपको आमंत्रित करने आया हूँ.!"*


*प्रणाम.! प्रतिक्रिया, अभिव्यक्ति उपरान्त रावण ने मुस्कान भरे स्वर में पूछ ही लिया..!*


  *"क्या राम द्वारा महेश्व-लिंग-विग्रह स्थापना लंका-विजय की कामना से किया जा रहा है..?"*


*"बिल्कुल ठीक.! श्रीराम की महेश्वर के चरणों में पूर्ण भक्ति है..!"*


*जीवन में प्रथम बार किसी ने रावण को ब्राह्मण माना है और आचार्य बनने योग्य जाना है.! क्या रावण इतना अधिक मूर्ख कहलाना चाहेगा कि वह भारतवर्ष के प्रथम प्रशंसित महर्षि पुलस्त्य के सगे भाई महर्षि वशिष्ठ के यजमान का आमंत्रण और अपने आराध्य की स्थापना हेतु आचार्य पद अस्वीकार कर दे..?*


*रावण ने अपने आपको संभाल कर कहा –"आप पधारें.! यजमान उचित अधिकारी है.! उसे अपने दूत को संरक्षण देना आता है.! राम से कहिएगा कि मैंने उसका आचार्यत्व स्वीकार किया.!"*


*जामवन्त को विदा करने के तत्काल उपरान्त लंकेश ने सेवकों को आवश्यक सामग्री संग्रह करने हेतु आदेश दिया और स्वयं अशोक वाटिका पहुँचे, जो आवश्यक उपकरण यजमान उपलब्ध न कर सके जुटाना आचार्य का परम कर्त्तव्य होता है.! रावण जानता है कि वनवासी राम के पास क्या है और क्या होना चाहिए.!*


*अशोक उद्यान पहुँचते ही रावण ने सीता से कहा कि राम लंका विजय की कामना से समुद्रतट पर महेश्वर लिंग विग्रह की स्थापना करने जा रहे हैं और रावण को आचार्य वरण किया है..!*


*"यजमान का अनुष्ठान पूर्ण हो यह दायित्व आचार्य का भी होता है.! तुम्हें विदित है कि अर्द्धांगिनी के बिना गृहस्थ के सभी अनुष्ठान अपूर्ण रहते हैं.! विमान आ रहा है, उस पर बैठ जाना.! ध्यान रहे कि तुम वहाँ भी रावण के अधीन ही रहोगी.! अनुष्ठान समापन उपरान्त यहाँ आने के लिए विमान पर पुनः बैठ जाना.!"*


*स्वामी का आचार्य अर्थात स्वयं का आचार्य.!*

 *यह जान, जानकी जी ने दोनों हाथ जोड़कर मस्तक झुका दिया.!*

 *स्वस्थ कण्ठ से "सौभाग्यवती भव" कहते रावण ने दोनों हाथ उठाकर भरपूर आशीर्वाद दिया.!*


*सीता और अन्य आवश्यक उपकरण सहित रावण आकाश मार्ग से समुद्र तट पर उतरे.!*


*" आदेश मिलने पर आना"* *कहकर सीता को उन्होंने  विमान में ही छोड़ा और स्वयं राम के सम्मुख पहुँचे.!*


*जामवन्त से संदेश पाकर भाई, मित्र और सेना सहित श्रीराम स्वागत सत्कार हेतु पहले से ही तत्पर थे.! सम्मुख होते ही वनवासी राम आचार्य दशग्रीव को हाथ जोड़कर प्रणाम किया.!*


*" दीर्घायु भव.! लंका विजयी भव.!"*


*दशग्रीव के आशीर्वचन के शब्द ने सबको चौंका दिया.!*

 

*सुग्रीव ही नहीं विभीषण की भी उन्होंने उपेक्षा कर दी.! जैसे वे वहाँ हों ही नहीं.!*


 *भूमि शोधन के उपरान्त रावणाचार्य ने कहा..!*


*"यजमान.! अर्द्धांगिनी कहाँ है.? उन्हें यथास्थान आसन दें.!"*


 *श्रीराम ने मस्तक झुकाते हुए हाथ जोड़कर अत्यन्त विनम्र स्वर से प्रार्थना की, कि यदि यजमान असमर्थ हो तो योग्याचार्य सर्वोत्कृष्ट विकल्प के अभाव में अन्य समकक्ष विकल्प से भी तो अनुष्ठान सम्पादन कर सकते हैं..!*


 *"अवश्य-अवश्य, किन्तु अन्य विकल्प के अभाव में ऐसा संभव है, प्रमुख विकल्प के अभाव में नहीं.! यदि तुम अविवाहित, विधुर अथवा परित्यक्त होते तो संभव था.! इन सबके अतिरिक्त तुम संन्यासी भी नहीं हो और पत्नीहीन वानप्रस्थ का भी तुमने व्रत नहीं लिया है.! इन परिस्थितियों में पत्नीरहित अनुष्ठान तुम कैसे कर सकते हो.?"*


*" कोई उपाय आचार्य.?"*


                            

 *"आचार्य आवश्यक साधन, उपकरण अनुष्ठान उपरान्त वापस ले जाते हैं.! स्वीकार हो तो किसी को भेज दो, सागर सन्निकट पुष्पक विमान में यजमान पत्नी विराजमान हैं.!"*


*श्रीराम ने हाथ जोड़कर मस्तक झुकाते हुए मौन भाव से इस सर्वश्रेष्ठ युक्ति को स्वीकार किया.! श्री रामादेश के परिपालन में, विभीषण मंत्रियों सहित पुष्पक विमान तक गए और सीता सहित लौटे.!*

            

  *"अर्द्ध यजमान के पार्श्व में बैठो अर्द्ध यजमान .."*


*आचार्य के इस आदेश का वैदेही ने पालन किया.!*

*गणपति पूजन, कलश स्थापना और नवग्रह पूजन उपरान्त आचार्य ने पूछा - लिंग विग्रह.?*


*यजमान ने निवेदन किया कि उसे लेने गत रात्रि के प्रथम प्रहर से पवनपुत्र कैलाश गए हुए हैं.! अभी तक लौटे नहीं हैं.! आते ही होंगे.!*


*आचार्य ने आदेश दे दिया - " विलम्ब नहीं किया जा सकता.! उत्तम मुहूर्त उपस्थित है.! इसलिए अविलम्ब यजमान-पत्नी बालू का लिंग-विग्रह स्वयं बना ले.!"*


                      

 *जनक नंदिनी ने स्वयं के कर-कमलों से समुद्र तट की आर्द्र रेणुकाओं से आचार्य के निर्देशानुसार यथेष्ट लिंग-विग्रह निर्मित किया.!*


     *यजमान द्वारा रेणुकाओं का आधार पीठ बनाया गया.! श्री सीताराम ने वही महेश्वर लिंग-विग्रह स्थापित किया.!*


 *आचार्य ने परिपूर्ण विधि-विधान के साथ अनुष्ठान सम्पन्न कराया.!*


*अब आती है बारी आचार्य की दक्षिणा की..!*


     *श्रीराम ने पूछा - "आपकी दक्षिणा.?"*


*पुनः एक बार सभी को चौंकाया ... आचार्य के शब्दों ने..*


 *"घबराओ नहीं यजमान.! स्वर्णपुरी के स्वामी की दक्षिणा सम्पत्ति नहीं हो सकती.! आचार्य जानते हैं कि उनका यजमान वर्तमान में वनवासी है.."*


 *"लेकिन फिर भी राम अपने आचार्य की जो भी माँग हो उसे पूर्ण करने की प्रतिज्ञा करता है.!"*


*"आचार्य जब मृत्यु शैय्या ग्रहण करे तब यजमान सम्मुख उपस्थित रहे ....." आचार्य ने अपनी दक्षिणा मांगी.!*

          


*"ऐसा ही होगा आचार्य.!"* *यजमान ने वचन दिया और समय आने पर निभाया भी-----*

          

       *" रघुकुल रीति सदा चली आई.!*

       *" प्राण जाई पर वचन न जाई.!!"*

                       

*यह दृश्य वार्ता देख सुनकर उपस्थित समस्त जन समुदाय के नयनाभिराम प्रेमाश्रुजल से भर गए.! सभी ने एक साथ एक स्वर से सच्ची श्रद्धा के साथ इस अद्भुत आचार्य को प्रणाम किया.!*

                  

*रावण जैसे भविष्यदृष्टा ने जो दक्षिणा माँगी, उससे बड़ी दक्षिणा क्या हो सकती थी.? जो रावण यज्ञ-कार्य पूरा करने हेतु राम की बंदी पत्नी को शत्रु के समक्ष प्रस्तुत कर सकता है, वह राम से लौट जाने की दक्षिणा कैसे मांग सकता है.?*

*( रामेश्वरम् देवस्थान में लिखा हुआ है कि इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना श्रीराम ने रावण द्वारा करवाई थी )ii

          *!! यह है रावण का एक ब्राह्मण स्वरुप जो सम्माननीय है!!*

दया से अमृत बचन / 10. 10. 2022


दया से अमृत बचन 


*ग्रेशस हुज़ूर ने सेवा पश्चात उठने से पहले दया कर फरमाया :*


*"जिन जिन माना बचन समझ के,*

*तिनको पार लगाए।"*


  🙏 *रा धा स्व आ मी* 🙏

Saturday, October 8, 2022

राधास्वामी मत की खास बातें

 

रा धा स्व आ मी!                                      


  09-10-22-आज सुबह आरती के सतसंग में पढ़ा गया बचन

-कल से आगे

 


सांय काल से आगे:-(28-12-30-आदित्य )-


रात के सतसंग में रा धा स्व आ मी -मत का असली उपदेश जेहननशीन कराने और रा धा स्व आ मी -मत की खास बात की तरफ लोगों की तवज्जुह मबजूल कराने की कोशिश की गई। असली उपदेश यह है कि बिला सन्त सद्गुरू की मदद के जीव का पूरा उद्धार नहीं हो सकता और ख़ास बात यह है कि जब तक कुल जीवों का उद्धार न हो जावेगा रा धा स्व आ मी दयाल की चरणधार जरूर संसार में विराजमान रहेगी। इस सिल्सिले में सतसंग के दुश्मनों की बेमसरफ़ कोशिशों का भी जिक्र किया गया। उम्मीद है कि हर सतसंगी मर्द व औरत हाज़िरुलवक़्त के दिल पर यह नक़्श हो गया कि रा धा स्व आ मी -मत एक जिन्दा मजहब है और रा धा स्व आ मी दयाल रक्षक व सहाई हम सब के अंगसंग हैं। अखीर में यह प्रार्थना की गई की रा धा स्व आ मी दयाल हमारे उन भाइयों को, जिन्होंने जहालत में गिरफ्तार होकर अपनी आँखें खो दी हैं और अपने पाँव काट डाले हैं, नई आँखें और नई टाँगें इनायत फ़रमायें ताकि वे रास्ता देख कर और अपने पाँव से चल कर दयालबाग में आवें और सतसंग के लाभ से बहराअन्दोज हों।रात की गुफ्तगू बड़ी तवील (लम्बी) हो गई थी। मैंने कहा कि ज़रा खयाल तो करो कि जीव कैसा बेतरह संसार में फँसा है। खुद पृथ्वी और पृथ्वी का हर एक सामान हमारी सुरत को अपने अन्दर जज्ब किया चाहता है। पृथ्वी की मदद के लिये सूरज, जो निज़ाम शम्सी (अपने मंडल) का मरकज़ (केन्द्र) है, दिन रात जोर लगा रहा है और सूरज की मदद चन्द्रलोक का धनी, ब्रह्म, परब्रह्म वगैरह कर रहे हैं और सबकी कोशिश यही है कि कोई सुरत ब्रह्माण्ड के पार जाने न पावे इसलिये सच्ची मुक्ति हासिल करने यानी ब्रह्माण्ड से बाहर निकलने के लिये लाज़िमी है कि ब्रह्माण्ड से बाहर की कोई शक्ति, जो पिण्ड और ब्रह्माण्ड की शक्तियों से ज्यादह जबरदस्त हो, हमारी मदद करे वर्ना जीव के लिये उनके नर्गे (जाल ) से बाहर निकलना नामुमकिन है। ब्रह्माण्ड के परे निर्मल चेतन यानी सत्य देश है और सन्त सद्गुरू सत्य देश की धार ही को कहते हैं। इसीलिये रा धा स्व आ मी मत का यह ख़ास या मरकज़ी उपदेश है कि बिला सन्त सद्गुरू की मदद के कोई सुरत सच्ची मुक्ति हासिल नहीं कर सकती।                                                                                                  

🙏🏻रा धा स्व आ मी🙏🏻 

 रोजाना वाकिआत

-परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज!


प्रतिफल


प्रतिफल  


 जब कर्ण के रथ का पहिया जमीन में फंस गया तो वह रथ से उतरकर उसे ठीक करने लगा। वह उस समय बिना हथियार के थे... भगवान कृष्ण ने तुरंत अर्जुन को बाण से कर्ण को मारने का आदेश दिया।


अर्जुन ने भगवान के आदेश को मान कर कर्ण को निशाना बनाया और एक के बाद एक बाण चलाए। जो कर्ण को बुरी तरह चुभता हुआ निकल गया और कर्ण जमीन पर गिर पड़े।


कर्ण, जो अपनी मृत्यु से पहले जमीन पर गिर गया था, उसने भगवान कृष्ण से पूछा, "क्या यह तुम हो, भगवान? क्या आप दयालु हैं? क्या यह आपका न्यायसंगत निर्णय है! एक बिना हथियार के व्यक्ति को मारने का आदेश?


 सच्चिदानंदमय भगवान श्रीकृष्ण मुस्कुराए और उत्तर दिया, "अर्जुन का पुत्र अभिमन्यु भी चक्रव्यूह में निहत्था हो गया था, जब उन सभी ने मिलकर उसे बेरहमी से मार डाला था, आप भी उसमें थे। तब कर्ण तुम्हारा ज्ञान कहाँ था? यह कर्मों का प्रतिफल है. यह मेरा न्याय है।"


 सोच समझकर काम करें। अगर आज आप किसी को चोट पहुँचाते हैं, उनका तिरस्कार करते हैं, किसी की कमजोरी का फायदा उठाते हैं। भविष्य में वही कर्म आपकी प्रतीक्षा कर रहा होगा और शायद वह स्वयं आपको प्रतिफल देगा।



ऐसा मंदिर जहां भूख से दुबले हो जाते हैं श्रीकृष्ण।*

 *ऐसा मंदिर जहां भूख से दुबले हो जाते हैं श्रीकृष्ण।* / कृष्ण मेहता 

प्रस्तुति - रेणु दत्ता / आशा सिन्हा 


यह विश्व का ऐसा अनोखा मंदिर है जो 24 घंटे में मात्र दो मिनट के लिए बंद होता है। यहां तक कि ग्रहण काल में भी मंदिर बंद नहीं किया जाता है। कारण यह कि यहां विराजमान भगवान कृष्ण को हमेशा तीव्र भूख लगती है। भोग नहीं लगाया जाए तो उनका शरीर सूख जाता है। अतः उन्हें हमेशा भोग लगाया जाता है, ताकि उन्हें निरंतर भोजन मिलता रहे। साथ ही यहां आने वाले हर भक्त को भी प्रसादम् (प्रसाद) दिया जाता है। बिना प्रसाद लिये भक्त को यहां से जाने की अनुमति नहीं है। 


मान्यता है कि जो व्यक्ति इसका प्रसाद जीभ पर रख लेता है, उसे जीवन भर भूखा नहीं रहना पड़ता है। श्रीकृष्ण हमेशा उसकी देखरेख करते हैं।


केरल के कोट्टायम जिले के तिरुवरप्पु में यह प्राचीन मंदिर स्थित है। लोक मान्यता के अनुसार कंस वध के बाद भगवान श्रीकृष्ण बुरी तरह से थक गए थे। भूख भी बहुत अधिक लगी हुई थी। उनका वही विग्रह इस मंदिर में है। इसलिए मंदिर साल भर हर दिन खुला रहता है। मंदिर बंद करने का समय दिन में 11.58 बजे है। उसे दो मिनट बाद ही ठीक 12 बजे खोल दिया जाता है। 


पुजारी को मंदिर के ताले की चाबी के साथ कुल्हाड़ी भी दी गई है। उसे निर्देश है कि ताला खुलने में विलंब हो तो उसे कुल्हाड़ी से तोड़ दिया जाए। ताकि भगवान को भोग लगने में तनिक भी विलंब न हो। चूंकि यहां मौजूद भगवान के विग्रह को भूख बर्दाश्त नहीं है इसलिए उनके भोग की विशेष व्यवस्था की गई है। उनको 10 बार नैवेद्यम (प्रसाद) अर्पित किया जाता है।


*मंदिर खोले रखने की व्यवस्था आदि शंकराचार्य की है।* 


ऐसा मंदिर जहां श्रीकृष्ण से भूख बर्दाश्त नहीं होता है। पहले यह आम मंदिरों की तरह बंद होता था। विशेष रूप से ग्रहण काल में इसे बंद रखा जाता था। तब ग्रहण खत्म होते-होते भूख से उनका विग्रह रूप पूरी तरह सूख जाता था। कमर की पट्टी नीचे खिसक जाती थी। एक बार उसी दौरान आदि शंकराचार्य मंदिर आए। उन्होंने भी यह स्थिति देखी। तब उन्होंने व्यवस्था दी कि ग्रहण काल में भी मंदिर को बंद नहीं किया जाए। तब से मंदिर बंद करने की परंपरा समाप्त हो गई। 


भूख और भगवान के विग्रह के संबंध को हर दिन अभिषेकम के दौरान देखा जा सकता है। अभिषेकम में थोड़ा समय लगता है। उस दौरान उन्हें नैवेद्य नहीं चढ़ाया जा सकता है। अतः नित्य उस समय विग्रह का पहले सिर और फिर पूरा शरीर सूख जाता है। यह दृश्य अद्भुत और अकल्पनीय सा प्रतीत होता है लेकिन है पूर्णतः सत्य।


*प्रसादम् लेने वाले के भोजन की श्रीकृष्ण करते हैं चिंता।*


इस मंदिर के साथ एक और मान्यता जुड़ी हुई है कि जो भक्त यहां पर प्रसादम चख लेता है, फिर जीवन भर श्रीकृष्ण उसके भोजन की चिंता करते हैं। यही नहीं, उसकी अन्य आवश्यकताओं का भी ध्यान रखते हैं। 


प्राचीन शैली के इस मंदिर के बंद होने से ठीक पहले 11.57 बजे प्रसादम् के लिए पुजारी जोर से आवाज लगाते हैं। इसका कारण मात्र यही है कि यहां आने वाला कोई भक्त प्रसाद से वंचित न हो जाए। 


यह अत्यंत रोचक है कि भूख से विह्वल भगवान अपने भक्तों के भोजन की जीवन भर चिंता करते हैं। उनके अपनी भूख की यह हालत है कि उसे देखते हुए मंदिर को नित्य सिर्फ दो मिनट बंद रखा जाता है। इसका कारण भगवान को सोने का समय देना है। अर्थात इस मंदिर में वे मात्र दो मिनट सोते हैं। 


जय श्री कृष्ण 🙏🙏🌹🌹

महाकाल लोक : आस्था और आध्यात्म का नवीन प्रकल्प / मनोज कुमार

 

महाकाल लोक : आस्था और आध्यात्म का नवीन प्रकल्प

मनोज कुमार




महाकाल को साक्षी बनाकर, उनके समक्ष नतमस्तक होकर सरकार जब खड़ी होती है तो महाकाल का आशीष बरसने लगता है. राज्य के विकास के विकास के रास्ते खुद ब खुद खुलने लगते हैं. महाकाल लोक भी महाकाल के आशीष से आरंभ हो रहा है. बोलचाल में जब हम एक और एक ग्यारह बोलते हैं तो यह गणित का एक अंक होता है लेकिन जब इसी एक और एक होते ग्यारह तारीख को देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी महाकाल लोक के कपाट खोलने का उपक्रम करेंगे तो एक और एक मिलकर इस ग्यारह को सच करेंगे. राज्य और केन्द्र के इस संयुक्त प्रयासों से दुनिया का सबसे आधुनिकतम धर्म, आध्यात्म और आस्था का महाकाल लोक विहंगम स्वरूप में खड़ा होगा. वैश्विक बैरामीटर में दुनिया के आठ अजूबे गिने गए हैं और सच में वे अजूबे ही हैं क्योंकि वे व्यक्तिगत निष्ठा के प्रतीक चिन्ह हैं। लेकिन महाकाल लोक अजूबा नहीं है क्योंकि यह लोक मंगल का वह शिवालय है, देवालय है जो सबका कल्याण चाहता है. यह पावन नगरी उज्जैन की थाती है जिसके बारे में कहा जाता है कि संसार की रचना उस दिन हुई जिस दिन उज्जैन ने आकार ग्रहण किया था. इसे हम हिन्दू पंचाग के रूप प्रतिपदा से मानते हैं.

आस्था और आध्यात्म की नगरी उज्जैन में बिराजे महाकाल अनादिकाल से भारतीय समाज के लिए लोक मंगल के प्रतीक हैं. महाकाल का दरबार अर्थात मोक्ष का द्वार. समय के साथ-साथ महाकाल के प्रति आमजन की आस्था और बढ़ती गई क्योंकि लोभ, लालच और स्वार्थ ने मनुष्य की सोच को छोटा कर दिया था और ऐसे में महाकाल की शरण में जाने के अलावा और कोई रास्ता इस कलयुग में शेष नहीं बचा. इहलोक से परलोक का रास्ता महाकाल की शरण से होकर ही जाता है. इहलोक से समाज परिचित है लेकिन परलोक अमूर्त है और महाकाल लोक एक मूर्त स्वरूप ले रहा है. महाकाल लोक की अवधारणा निश्चित रूप से एक व्यापक सोच और पहल है जिसका स्वागत किया जाना चाहिए क्योंकि जिस दौर में हम जी रहे हैं, उस दौर में आस्था का यह लोक एक नवीन अनुभूति प्रदान करेगा. लोक से लोक तक यात्रा अभी अपने प्रारंभिक अवस्था में है लेकिन सफर जैसे-जैसे आगे बढ़ेगा, यह लोक ही नहीं बल्कि आलौकिक अनुभव देगा. आनंद से जीवन भर देगा क्योंकि महाकाल के दरबार में चमत्कार नहीं है बल्कि अनुभूति है आस्था, आध्यात्म और लोकमंगल की कामना का. मध्यप्रदेश का यह भाग्य है, सौभाग्य है कि देश के 12 ज्योर्तिलिंगों में दो भाव-भूमि पर स्थापित है. यही नहीं, उज्जैन के बाबा महाकाल की उपस्थिति इसलिये मायने रखती है कि वे दक्षिणमुखी हैं और शास्त्र बताते हैं कि यह विरल है. ऐसे में महाकाल लोक की कल्पना को यर्थाथ की धरती पर उतारने का जो महाप्रयास हो रहा है, वह वंदनीय है.

महाकाल लोक की अवधारणा सुविचारित है. यह लोकप्रियता के लिए नहीं है बल्कि महाकाल लोक उस परम्परा का निर्वाह करेगा जिसे हम भारतीय आध्यात्म परम्परा के रूप में जानते हैं. महाकाल लोक में आने वाले लोगों को अब 12 वर्षों का इंतजार नहीं करना होगा. सिंहस्थ उज्जैन का प्रमुख आकर्षण रहा है तो महाकाल लोक प्रतिदिन इस सुखद अनुभूति का साक्षी बनेगा. अब तक की सरकारों ने उज्जैन को सिंहस्थ का केन्द्र बिन्दु बनाकर रखा था और सिंहस्थ की पूर्णता के पश्चात 12 वर्षों की प्रतीक्षा रहती थी. यह संयोग नहीं है बल्कि उस तमाम मिथक टूटे हैं जिसे लेकर भ्रम का संसार रचा गया था. कहा जाता था कि जिस सरकार ने सिंहस्थ कराया, उसकी सरकार चली जाती है लेकिन यह मिथक टूट गया है. कहना ना होगा कि महाकाल के अनन्य उपासक शिवराजसिंह ने नये मानक गढ़े हैं. महाकाल लोक उस आध्यात्म का अद्भुत स्थल होगा जहां से इंसान और ईश्वर का स्वरूप एकाकार होता है. जहां से दुनियादारी से मुक्त होकर व्यक्ति स्वयं के व्यक्तित्व को पहचान पाता है. महाकाल लोक एक स्थान का नाम नहीं होगा बल्कि यह आस्था के उस केन्द्र का विस्तार है जहां सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय को परिभाषित किया जाएगा. महाकाल लोक में जाति ना पूछे साधु की, को भारतीयता की दृष्टि से नये स्वरूप में परिभाषित किया जाएगा.

महाकाल लोक के लिए आंकड़ों की बात की जाए तो कोई आठ सौ करोड़ का बजट प्रावधान किया गया है जो उज्जैन को नया स्वरूप प्रदान करेगा. मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान कहते हैं कि ‘महाकाल मंदिर परिसर का विस्तार योजना के माध्यम से उज्जैन आने वाले श्रद्धालुओं को ऐसा नया उज्जैन देखने को मिलेगा, जो देश की धार्मिक और आध्यात्मिक चेतना का प्रतीक होगा।’ महाकाल लोक धार्मिक पर्यटन के रूप में एक नवीन तीर्थ स्थान के स्वरूप में विकसित हो रहा है. महाकाल लोक परम्परा और आधुनिकता के नए स्वरूप के साथ हर आयु वर्ग के लोगों के लिए तीर्थाटन के साथ भारतीय परम्परा और संस्कृति से परिचय का एक केन्द्र होगा. अनादिकाल से जिस महाकाल को हम अपना आराध्य मानकर पूजते चले आये हैं, उनके देवालय को नया स्वरूप देने की जो जवाबदारी सरकार ने उठायी है, वह अभिनंदनीय है.


शाहदरा ब्रांच के सत्संगियो के सूचनार्थ


शाहदरा ब्रांच के सत्संगियो के सूचनार्थ 


 *राधास्वामी* 


शाहदरा ब्रांच महिला एसोसिएशन की सभी बहने जो बुनाई की सेवा करती हैं, *ऊन का बना हुआ सामान रविवार को शाहदरा ब्रांच में  सतसंग में दौरान , आकर Pbn भावना कुमारी को जमा करा दे*

 ये सामान Pb आशुतोष सोनी जी को भी दे सकते है।


*Secy. MA Shahdara*

[10/8, 12:28] BD Bhupesh Dixit: SPHEEHA will conduct 17th Annual Global Drawing & Painting competition on the 30th October 2022 in collaboration with DEI.

Like previous years Shahdara Branch will be Organizing the Drawing & Painting competition in the branch on 30th October’22 (Sunday) 

For Participation – Please fill the Google form and also share your names with branch coordinator before 15th Oct’22. 

Google form link for enrolment is given below for your reference and immediate action.


https://docs.google.com/forms/d/e/1FAIpQLSeOfhhXk_vg3GSnHJh1rdadhPgYoRdBFDkj5eB8MdJg5Az8Zg/viewform?vc=0&c=0&w=1&flr=0

Looking forward to your usual cooperation and support to make the event a grand success.

Please feel free to contact us for any clarification.

*Anurag Satsangi*

*(9811813337)*

*Spheeha coordinator*



_*Ra-Dha-Sva-Aah-Mi*_


 🪷_*Bhandara of Param Guru Maharaj Sahab*_🪷


Please note tomorrow(Sunday) ie *9th October, 2022* 


*Morning & Evening e-Satsang (Aarti & Bhandara)*


_*Morning*_ 

Login Time : 3:15 am

*e-Satsang {Aarti}: 3:45 am*

&

_*Evening*_ 

Login Time : *3:15pm*

*Eve. e-Satsang & Bhandara* : *As per Norms*

or

*as per the DB timings* 


🪷🌺🪷


*रा धा स्व आ मी*


इस रविवार 9/10/22 शाम को ब्रांच में निर्मित वस्त्रों की सेल की जाएगी | 


शाहदरा ब्रांच महिला एसोसिएशन की पूरी तरह से यही कोशिश है कि हम आप सबको दयालबाग के बने वस्त्र अधिक से अधिक बनाकर दें  | हमारे पास दयालबाग का कपड़ा है  जिस बहन के पास दयालबाग के कपड़ो के बने वस्त्र नहीं है वह चाहें तो आकर अपना नाप देकर महिला एसोसिएशन के द्वारा वस्त्र सिलवा सकती हैं |


महिला एसोसिएशन

शाहदरा ब्रांच

राधा स्व आ मी सतसंग आस्था प्रसंग


🙏🍁RADHASOAMI 🍁🙏

राधा स्व आ मी  सतसंग आस्था प्रसंग 


प्रस्तुति - नवल किशोर प्रसाद / कुसुम सिन्हा 


साँचा मीत न कोई देखा, भाई बन्धु क्या घर के खेश,  अपने ही सुख को  सब चाहत,  अपस्वारथ नित राखत पेश

🙏🍁RADHASOAMI 🍁🙏



🙏🍁RADHASOAMI🍁🙏


मैं जिद्द दम दम हठ करती, मौज हुकम में चित नहिं धरती, दया करो राधास्वामी प्यारे,  औगुन बख्शो लेवो उबारे 


🙏🍁RADHASOAMI🍁🙏





🙏🍁RADHASOAMI 🍁🙏


हुई धनवन्त चरन गुरू पाए, मगन रहूँ नित गुरू गुण गाए 🙏


🍁 RADHASOAMI 🍁🙏



*चरन गुरू हीरदे धार रही।

🌹🙏🏻गुरू बिन कौन सम्हारे मन को। 

सुरत उम्ँग अब शब्द गही।।

🌹 कोटिन जन्म भरमते बीते।

काहू मेरी आन न बाँह गही।।

🌹 नौका पार चली अब गुरु बल। 

अगम पदारथ लीन गही।।🌹🙏🏻*


🙏🍁RADHASOAMI राधास्वामी  🍁🙏


हुए परसन गुरू दीनदयाल, लिया मोहि अपनी गोद बिठाल,

 भाग मेरा जागा आज अपार, मिले राधास्वामी निज दिलदार

 

🙏🍁RADHASOAMI राधास्वामी  🍁🙏


🙏🌹राधास्वामी 🌹🙏


जिन्होंने मार मन डाला उन्हीं को सूरमा कहना।

बड़ा बैरी ये मन घट में इसी का जीतना कठिना ।।


🙏🌹राधास्वामी 🌹🙏



🙏🍁RADHASOAMI 🍁🙏


समय फिर ऐसा नहिं पावो, खोवो मत नहिं फिर पछतावो; 

सरन से गुरू की काज बन आय, 

मेहर कर राधास्वामी कहें समझाय 



🙏🍁RADHASOAMI 🍁🙏



माटी चुन चुन महल बनाया, 

लोग कहें घर मेरा, ना घर तेरा,

 ना घर मेरा, चिड़िया रैन बसेरा!

 कौड़ी कौड़ी माया जोड़ी, 

जोड़ भरेला थैला, 

कहत कबीर सुनो भाई साधो, संग चले ना धेला!!


 उड़ जाएगा हंस अकेला!!!


🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

🌷🌷🌷🌷🌷



Friday, October 7, 2022

💐💐ईश्वर की नजर💐💐

🌳प्रस्तुति - नवल किशोर प्रसाद / कुसुम  सिन्हा 






एक दिन सुबह-सुबह दरवाजे की घंटी बजी । दरवाजा खोला तो देखा एक आकर्षक कद- काठी का व्यक्ति चेहरे पे प्यारी सी मुस्कान लिए खड़ा है ।


मैंने कहा, "जी कहिए.."


तो उसने कहा,अच्छा जी, आप तो  रोज़ हमारी ही गुहार लगाते थे?


मैंने  कहा


"माफ कीजिये, भाई साहब ! मैंने पहचाना नहीं आपको..."


तो वह कहने लगे,


"भाई साहब, मैं वह हूँ, जिसने तुम्हें साहेब बनाया है... अरे ईश्वर हूँ.., ईश्वर.. तुम हमेशा कहते थे न कि नज़र में बसे हो पर नज़र नहीं आते... लो आ गया..! अब आज पूरे दिन तुम्हारे साथ ही रहूँगा।"


मैंने चिढ़ते हुए कहा,"ये क्या मज़ाक है?"


"अरे मज़ाक नहीं है, सच है। सिर्फ़ तुम्हें ही नज़र आऊंगा। तुम्हारे सिवा कोई देख-सुन नही पाएगा मुझे।"


कुछ कहता इसके पहले पीछे से माँ आ गयी.. "अकेला ख़ड़ा-खड़ा  क्या कर रहा है यहाँ, चाय तैयार है, चल आजा अंदर.."


अब उनकी बातों पे थोड़ा बहुत यकीन होने लगा था, और मन में थोड़ा सा डर भी था.. मैं जाकर सोफे पर बैठा ही था कि बगल में वह आकर बैठ गए। चाय आते ही जैसे ही पहला घूँट पीया कि मैं गुस्से से चिल्लाया,


"अरे मॉं, ये हर रोज इतनी  चीनी ?"


इतना कहते ही ध्यान आया कि अगर ये सचमुच में ईश्वर है तो इन्हें कतई पसंद नहीं आयेगा कि कोई अपनी माँ पर गुस्सा करे। अपने मन को शांत किया और समझा भी  दिया कि 'भई, तुम नज़र में हो आज... ज़रा ध्यान से!'


बस फिर मैं जहाँ-जहाँ... वह मेरे पीछे-पीछे पूरे घर में... थोड़ी देर बाद नहाने के लिये जैसे ही मैं बाथरूम की तरफ चला, तो उन्होंने भी कदम बढ़ा दिए..


मैंने कहा,

"प्रभु, यहाँ तो बख्श दो..."


खैर, नहाकर, तैयार होकर मैं पूजा घर में गया, यकीनन पहली बार तन्मयता से प्रभु वंदन किया, क्योंकि आज अपनी ईमानदारी जो साबित करनी थी.. फिर आफिस के लिए निकला, अपनी कार में बैठा, तो देखा बगल में  महाशय पहले से ही बैठे हुए हैं। सफ़र शुरू हुआ तभी एक फ़ोन आया, और फ़ोन उठाने ही वाला था कि ध्यान आया, 'तुम नज़र में हो।'


कार को साइड में रोका, फ़ोन पर बात की और बात करते-करते कहने ही वाला था कि 'इस काम के ऊपर के पैसे लगेंगे' ...पर ये  तो गलत था, : पाप था, तो प्रभु के सामने ही कैसे कहता तो एकाएक ही मुँह से निकल गया,"आप आ जाइये। आपका काम हो  जाएगा।"


फिर उस दिन आफिस में ना स्टॉफ पर गुस्सा किया, ना किसी कर्मचारी से बहस की 25-50 गालियाँ तो रोज़ अनावश्यक निकल ही जातीं थीं मुँह से, पर उस दिन सारी गालियाँ, 'कोई बात नहीं, इट्स ओके...'में तब्दील हो गयीं।

   

वह पहला दिन था जब क्रोध, घमंड, किसी की बुराई, लालच, अपशब्द, बेईमानी, झूंठ- ये सब मेरी दिनचर्या का हिस्सा नहीं बने।


शाम को ऑफिस से निकला, कार में बैठा, तो बगल में बैठे ईश्वर को बोल ही दिया...


"प्रभु सीट बेल्ट लगा लें, कुछ नियम तो आप भी निभाएं... उनके चेहरे पर संतोष भरी मुस्कान थी..."


घर पर रात्रि-भोजन जब परोसा गया तब शायद पहली बार मेरे मुख से निकला,


"प्रभु, पहले आप लीजिये।"


और उन्होंने भी मुस्कुराते हुए निवाला मुँह मे रखा। भोजन के बाद माँ बोली, 


"पहली बार खाने में कोई कमी नहीं निकाली आज तूने। क्या बात है ? सूरज पश्चिम से निकला है क्या, आज?"


मैंने कहा,


"माँ आज सूर्योदय मन में हुआ है... रोज़ मैं महज खाना खाता था, आज प्रसाद ग्रहण किया है माँ, और प्रसाद में कोई कमी नहीं होती।"


थोड़ी देर टहलने के बाद अपने कमरे मे गया, शांत मन और शांत दिमाग  के साथ तकिये पर अपना सिर रखा तो ईश्वर ने प्यार से सिर पर हाथ फिराया और कहा,


"आज तुम्हें नींद के लिए किसी संगीत, किसी दवा और किसी किताब के सहारे की ज़रुरत नहीं है।"

गहरी नींद गालों पे थपकी से उठी...


"कब तक सोयेगा .., जाग जा अब।"


माँ की आवाज़ थी... सपना था शायद... हाँ, सपना ही था पर नीँद से जगा गया... अब समझ में आ गया उसका इशारा...


"तुम मेरी नज़र में हो...।"


जिस दिन ये समझ गए कि "वो" देख रहा है, सब कुछ ठीक हो जाएगा। सपने में आया एक विचार भी आँखें खोल सकता है..!


सदैव प्रसन्न रहिये।

जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।


🙏🙏🙏🙏🌳🌳🌳🙏🙏🙏🙏🙏

Thursday, October 6, 2022

मानव मस्तिष्क के रहस्य को जानने की जाने की पहल

 आगरा। मानव मस्तिष्क की रहस्य भरी दुनिया को जानने में जुटे वैज्ञानिकों का जमावड़ा लग चुका है। दयालबाग शिक्षण संस्थान डीईआई में रविवार से ‘चेतनता विज्ञान की ओर 2013’ में वैज्ञानिक दृष्टि से मस्तिष्क को पढ़ने की कोशिश शुरू की गई और संभावनाओं पर भी चर्चा हुई।

डीईआई के सेंटर फॉर कान्शसनेस स्टडीज और एरीजोना यूनिवर्सिटी, अमेरिका के सेंटर फॉर कान्शसनेस स्टडीज के सहयोग से इस ‘चेतनता विज्ञान की ओर’ अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में पहले दिन मानव मस्तिष्क की संरचना पर चर्चा की गई। बेसिक न्यूरो एंड काग्नीटिव साइंस के तहत मस्तिष्क के जटिल न्यूरल स्ट्रक्चर और उसकी पारस्परिक समन्वय प्रणाली पर विशेषज्ञों ने विचार रखे। साथ ही अध्यात्मिक चेतनता प्राप्ति की संभावनाओं पर चर्चा की।

इसके साथ ही म्यूजिक इनरिचमेंट प्रोग्राम, कान्शसनेस एंड विजुअल प्रोसेस, इन्ट्यूटिव कान्शसनेस, म्यूजिक हायर एजूकेशन, एथिकल एजूकेशन, टीचर्स स्प्रिुच्युअल इंटेलीजेंस, इफेक्ट ऑफ मेडिटेशन पर शोध पत्र प्रस्तुत किये गये। संगोष्ठी के संयोजक डॉ. विशाल साहनी ने बताया कि सम्मेलन में अमेरिका, यूरोप, जापान एवं भारत के करीब 25 अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त विशेषज्ञ मानव चेतनता विज्ञान पर विचार रखेंगे। प्रोफेसर स्टुअर्ट हेमरॉफ, प्रोफेसर जेम्स बैरेल, प्रोफेसर पीटर रो, प्रोफेसर जैक सुजुन्सकी प्रोफेसर पीटर कालिंग आदि ने चेतनता पर चल रहे शोध कार्य की जानकारी दी।

बनेगा सुपर कंप्यूटर
मानव मस्तिष्क के रहस्यों को सुलझाने में वैज्ञानिक जुटे हुए हैं। इसमें सफलता मिलने पर सुपर कंप्यूटर बनाया जाएगा। विशेषज्ञों का मानना है कि मानव मस्तिष्क में संभावनाओं की कमी नहीं है। कुछ ऐसा हो रहा है है जिससे रिजल्ट कम आ रहे हैं।
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भगवान का घर🏡*

 *

❤️  प्रस्तुति -  नवल किशोर प्रसाद 


एक बुजुर्ग के यहां जाने पर उन्होंने बातचीत के दौरान बताया, "इस *'भगवान के घर'* में हम दोनों पति-पत्नी ही रहते हैं! हमारे बच्चे तो विदेश में रहते हैं।" 

मैंने जब उन्हें *भगवान के घर* के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि "हमारे परिवार में *भगवान का घर* कहने की पुरानी परंपरा है! इसके पीछे की भावना हैं कि यह घर भगवान का है और हम तो उस घर में रहते हैं! *जबकि लोग कहते हैं कि "घर हमारा है और भगवान हमारे घर में रहते है!*"

मैंने विचार किया कि दोनों कथनों में कितना अंतर है! तदुपरांत वह बोले...

*"भगवान का घर"* बोला तो अपने से कोई *"नकारात्मक कार्य नहीं होते और हमेशा सदविचारों से ओत प्रेत रहते हैं।"*

बाद में मजाकिया लहजे में बोले ...

*"लोग मृत्यु उपरान्त भगवान के घर जाते हैं परन्तु हम तो जीते जी ही भगवान के घर का आनंद ले रहे हैं!"*

यह वाक्य भी जैसे भगवान ने दिया कोई *प्रसाद* ही है!

भगवान ने ही मुझे उनको घर छोड़ने की प्रेरणा दी!

     "घर *भगवान का* और हम उनके घर में रहते हैं।"

*यह वाक्य बहुत दिनों तक मेरे दिमाग में घूमता रहा, सही में कितने अलग विचार थे!*

सतसंग में पढ़ा गया बचन

 *रा धा स्व आ मी!*                                                                   

06-10-22-आज शाम सतसंग में पढ़ा गया बचन

-कल से आगे:


प्रस्तुति - नवल किशोर प्रसाद 


-(26-12-30-शुक्र-का तीसरा व अंतिJम भाग)-*  


*रात के सतसंग में बयान हुआ कि बाज सतसंगी उपदेश लेने के बाद उम्मीद करने लगते हैं कि अब उन्हें कोई दुख व क्लेश व्यापना नहीं चाहिये और दुनिया का हर काम उनकी मर्जी के मुवाफिक होना चाहिये और अपनी इस समझ की हिमायत में- " कल कलेश सब नाश सुख पावे सब दुख हरे" वगैरह कड़ियाँ पेश करते हैं लेकिन वे गलती पर हैं । 

रा धा स्व आ मी मत का उपदेश यह है कि सद्गुरू की शरण लेने पर जीव को अब्बल तो यह समझ आ जाती है कि हर बात के कर्ता धर्त्ता हुजूर रा धा स्व आ मी दयाल हैं और जो कुछ हालत दुख या सुख की उसके सिर पर आती है वह उन दयाल ही की मौज से आती है और जो कुछ वे परम दयाल पिता उसके लिये रवा फ़रमाते हैं वह जरूर उसकी बेहतरी के लिये होगा । पिता अपने पुत्र का बिगाड़ कभी नहीं कर सकता । दूसरे सद्गुरु की शरण वही लेता है जिसने दुनिया व दुनिया के सामान से किसीक़दर मुँह मोड़ लिया है यानी जिसे दुनिया व दुनिया के सामान तुच्छ दिखलाई पड़ते हैं । ऐसी सूरत में ज़िन्दगी की नीच ऊँच हालतें आने पर उसका मन डाँवाडोल नहीं होता और सहज में उसकी अनेक कलह व क्लेश से रक्षा हो जाती है । इसके अलावा यह भी है कि जिसे शरण प्राप्त हो जाती है रा धा स्व आ मी दयाल जरूर उसकी मुनासिब रक्षा व मदद फरमाते हैं लेकिध इसके ये मानी नहीं हैं कि दुनिया का कुल कारखाना आयन्दा उसके हस्बमर्जी चलने लगे।*                                                                *जो लोग मज़कूराबाला गलत समझोती लेते हैं वे अपनी मर्जी के खिलाफ सूरतें नमूदार (प्रकट) होने पर ज़ईफ़ुल्ऐतक़ाद(ढिलमिल-यकीन) हो जाते हैं और स्वार्थ व प्रमार्थ दोनों के लुत्फ़ से महरूम (खाली) रहते हुए दिन काटते हैं। इसके बाद मैंने कहा कि अक्सर सतसंगी  अब तक तो रा धा स्व आ मी मत पर ऐतक़ाद पुस्तकों में लिखे हुए उपदेश पढ़कर या जबानी फ़रमाये हुए उपदेश सुनकर लाये हैं लेकिन अब उन्हें चाहिये कि पढ़ी सुनी हुई बातों की बुनियाद के बजाय जाती तजरुबे की बुनियाद व नीज़ उपदेश करने वाले के ऐतबार पर कायम करें और कम अज कम एक साल तक सच्चा व गहरा विश्वास इस बात का दिल में रखकर कि रा धा स्व आ मी दयाल जरूर हैं और वे हमारे सच्चे रक्षक व मेहरबान हैं , अपनी जिन्दगी बसर करें और सख्त मुश्किल या मुसीबत सिर पर आने पर मदद माँगें और देखें कि जिन्दगी के लुत्फ़ में कुछ इज़ाफ़ा होता है या नहीं । हर किसी को इख़्तियार है कि साल भर के तजरुबे के बाद अगर कोई बेहतरी न हो तो अपनी साबिक़ा ( पिछली ) ढिलमिल - यक़ीनी की हालत में लौट जाय । इस उपदेश का जाहिरा हाज़िरीन बड़ा असर पड़ा । मेरा यक़ीन है । कि अगर लोगों ने ऐसा किया तो ज़रूर ज़रूर वे ख़ास दया के भागी होंगे । हुज़ूर रा धा स्व आ मी दयाल की दया के बादल घुमड़ रहे हैं । हमारे पात्र मैले हैं इसलिये वर्षा में देरी है ।  जहाँ हम लोगों ने अपने दिलों को उनके पवित्र चरणों से Harmonise किया , वर्षा शुरू हो जायगी।                                                                🙏🏻 रा धा स्व आ मी🙏🏻  क्रमशःरोजाना वाकिआत-परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज!*

Wednesday, October 5, 2022

विजयादशमी - विजय का पर्व

 


विजयादशमी - विजय का पर्व


भगवान श्री कृष्ण श्रीमद्भगवद्गीता में कहते हैं -


" द्वौ भूतसर्गौ लोकेऽस्मिन्दैव आसुर एव च।"अर्थात् इस लोक में भूतों की सृष्टि यानी मनुष्य समुदाय दो ही प्रकार का है - एक तो दैवी प्रकृति वाला और दूसरा आसुरी प्रकृति वाला। 

हम दैवी - शक्ति के उपासक हैं। दैवी - शक्ति की आसुरी शक्ति पर विजय को हम हिंदू हर्ष - उल्लास के साथ आज भी मनाते आ रहे हैं। दैवी - शक्ति के आसुरी - शक्ति पर विजय का प्रतीक है - विजयादशमी।


आश्विन शुक्ल दशमी को सायं काल में तारा उदय होने के समय  "विजय " नामक काल होता है। वह सभी कार्यों को सिद्ध करने वाला होता है। 

प्रभु श्री राम ने इसी  "विजय " काल में रावण पर विजय पाई थी , अतः यह दिन विजयादशमी के रूप में मनाया जाता है।

हिंदू परंपरा में आश्विन शुक्ल दशमी अक्षय स्फूर्ति , शक्ति - उपासना एवं विजय - प्राप्ति का दिवस है। किसी भी शुभ एवं सांस्कृतिक कार्य को प्रारंभ करने के लिए यह तिथि सर्वोत्तम माना जाता है।


विजयादशमी को निम्नलिखित कार्य हुए थे : ---

१. सत्ययुग में भगवती दुर्गा के रूप में दैवी शक्ति ने महिषासुर का वध किया था । दुर्गम नामक असुर का वध करने के कारण मां भगवती " दुर्गा " कहलाई।


२. त्रेता युग में प्रभु श्री राम ने वानरों (वनवासियों) का सहयोग लेकर अत्याचारी रावण की आसुरी शक्ति का विनाश विजयादशमी के दिन किया था।


३. द्वापर युग में १२ वर्ष के वनवास तथा १ वर्ष के अज्ञातवास के पश्चात् पांडवों ने अपने अस्त्र - शस्त्रों का पूजन इसी दिन किया था । अतः इस तिथि को आज भी शस्त्र - पूजन अपने समाज में मनाया जाता है।


४. कलियुग के अंतर्गत प्रतिकूल परिस्थितियों में भी हिंदुत्व का स्वाभिमान लेकर हिंदू - पद - पादशाही (हिंदवी स्वराज) की स्थापना करने वाली छत्रपति शिवाजी ने " सीमोल्लंघन " की परंपरा का प्रारंभ इसी दिन किया था।


५. अपने राष्ट्र में प्रत्येक भारतवासी के अंतःकरण में देशभक्ति का भाव जगा कर , उन्हें स्नेह एवं अनुशासन के सूत्र में पिरो कर एक प्रबल संगठित - शक्ति का निर्माण करने के लिए डॉ० केशव हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना १९२५ में विजयादशमी के दिन की थी। यह विश्व का वृहत्तम स्वायत्त संस्था है।


६. मातृशक्ति (नारी शक्ति) को संगठित करने के लिए राष्ट्र सेविका समिति का प्रादुर्भाव भी १९३६ में विजयादशमी के दिन ही हुआ था।


हिंदू समाज की अवनति के कई कारणों में से एक प्रमुख कारण रहा है - हिंदुओं में विजिगीषु वृत्ति का अभाव। अर्थात जिस दिन से हम आगे बढ़ना भूल गए एवं संकुचित विचारों में कैद हो गए , तभी से हम पर बाह्य - आक्रमण प्रारंभ हुए।


अपने हृदय में महान भारत को पुनः विश्व - गुरु के पद पर आसीन करने का संकल्प लेकर , भुजाओं में सभी हिंदुओं को समेट कर तथा पैरों में युग परिवर्तन की गति लेकर मां भगवती दुर्गा से प्रार्थना करें -

दैवी - शक्ति की विजय हो तथा आसुरी - शक्ति का संपूर्ण विनाश हो।

आप सभी को विजयादशमी - पर्व पर बधाई।

Tuesday, October 4, 2022

आंवला मुरब्बा

 *GH has Desired that amla murabba should be made in large quantities. He has also mentioned that amla is very good for health.*


*Accordingly, all three branches of Agra and SRC have been requested to take immediate action to present murabba as soon as possible.*


*Branches of regions near Dayalbagh, who wish to participate in this Sewa may please let us know the quantity of amla required by them and when they would be picking from Dayalbagh. Please consider at least 100 kg quantity for pick up per branch.*


*Department of* *Agroecology and* *Precision Farming*

*Dayalbagh*


*ग्रेशस हुज़ूर की इच्छा है कि आंवला मुरब्बा अधिक मात्रा में बनाया जाए। उन्होंने यह भी उल्लेख किया है कि "आंवला स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा है"।*


*तदनुसार आगरा एवं एसआरसी की तीनों शाखाओं से अनुरोध किया गया है कि जल्द से जल्द मुरब्बा पेश करने के लिए तत्काल कार्रवाई करें.*


*दयालबाग के पास के रीजन्स की शाखाएं, जो इस सेवा में भाग लेना चाहते हैं, कृपया हमें बताएं कि उन्हें आंवला की कितनी मात्रा की आवश्यकता है, और वे दयालबाग से कब उठाएंगे। कृपया प्रति शाखा पिकअप के लिए कम से कम 100 किलो मात्रा पर विचार करें।*


*कृषि पारिस्थितिकी विभाग और सटीक खेती*

*दयालबाग*


Sunday, October 2, 2022

भगवान कृष्ण का महा प्रस्थान


भगवान कृष्ण का महा प्रस्थान 



 भगवान् कृष्ण ने जब देह छोड़ा तो उनका अंतिम संस्कार किया गया , उनका सारा शरीर तो पांच तत्त्व में मिल गया लेकिन उनका हृदय बिलकुल सामान्य एक जिन्दा आदमी की तरह धड़क रहा था और वो बिलकुल सुरक्षित था , उनका हृदय आज तक सुरक्षित है जो भगवान् जगन्नाथ की काठ की मूर्ति के अंदर रहता है और उसी तरह धड़कता है , ये बात बहुत कम लोगो को पता है


महाप्रभु का महा रहस्य

सोने की झाड़ू से होती है सफाई......


महाप्रभु जगन्नाथ(श्री कृष्ण) को कलियुग का भगवान भी कहते है.... पुरी(उड़ीसा) में जग्गनाथ स्वामी अपनी बहन सुभद्रा और भाई बलराम के साथ निवास करते है... मगर रहस्य ऐसे है कि आजतक कोई न जान पाया


हर 12 साल में महाप्रभु की मूर्ती को बदला जाता है,उस समय पूरे पुरी शहर में ब्लैकआउट किया जाता है यानी पूरे शहर की लाइट बंद की जाती है। लाइट बंद होने के बाद मंदिर परिसर को crpf की सेना चारो तरफ से घेर लेती है...उस समय कोई भी मंदिर में नही जा सकता...


मंदिर के अंदर घना अंधेरा रहता है...पुजारी की आँखों मे पट्टी बंधी होती है...पुजारी के हाथ मे दस्ताने होते है..वो पुरानी मूर्ती से "ब्रह्म पदार्थ" निकालता है और नई मूर्ती में डाल देता है...ये ब्रह्म पदार्थ क्या है आजतक किसी को नही पता...इसे आजतक किसी ने नही देखा. ..हज़ारो सालो से ये एक मूर्ती से दूसरी मूर्ती में ट्रांसफर किया जा रहा है...


ये एक अलौकिक पदार्थ है जिसको छूने मात्र से किसी इंसान के जिस्म के चिथड़े उड़ जाए... इस ब्रह्म पदार्थ का संबंध भगवान श्री कृष्ण से है...मगर ये क्या है ,कोई नही जानता... ये पूरी प्रक्रिया हर 12 साल में एक बार होती है...उस समय सुरक्षा बहुत ज्यादा होती है... 


मगर आजतक कोई भी पुजारी ये नही बता पाया की महाप्रभु जगन्नाथ की मूर्ती में आखिर ऐसा क्या है ??? 


कुछ पुजारियों का कहना है कि जब हमने उसे हाथ मे  लिया तो खरगोश जैसा उछल रहा था...आंखों में पट्टी थी...हाथ मे दस्ताने थे तो हम सिर्फ महसूस कर पाए...


आज भी हर साल जगन्नाथ यात्रा के उपलक्ष्य में सोने की झाड़ू से पुरी के राजा खुद झाड़ू लगाने आते है...


भगवान जगन्नाथ मंदिर के सिंहद्वार से पहला कदम अंदर रखते ही समुद्र की लहरों की आवाज अंदर सुनाई नहीं देती, जबकि आश्चर्य में डाल देने वाली बात यह है कि जैसे ही आप मंदिर से एक कदम बाहर रखेंगे, वैसे ही समुद्र की आवाज सुनाई देंगी


आपने ज्यादातर मंदिरों के शिखर पर पक्षी बैठे-उड़ते देखे होंगे, लेकिन जगन्नाथ मंदिर के ऊपर से कोई पक्षी नहीं गुजरता। 


झंडा हमेशा हवा की उल्टी दिशामे लहराता है


दिन में किसी भी समय भगवान जगन्नाथ मंदिर के मुख्य शिखर की परछाई नहीं बनती।


भगवान जगन्नाथ मंदिर के 45 मंजिला शिखर पर स्थित झंडे को रोज बदला जाता है, ऐसी मान्यता है कि अगर एक दिन भी झंडा नहीं बदला गया तो मंदिर 18 सालों के लिए बंद हो जाएगा


इसी तरह भगवान जगन्नाथ मंदिर के शिखर पर एक सुदर्शन चक्र भी है, जो हर दिशा से देखने पर आपके मुंह आपकी तरफ दीखता है।


भगवान जगन्नाथ मंदिर की रसोई में प्रसाद पकाने के लिए मिट्टी के 7 बर्तन एक-दूसरे के ऊपर रखे जाते हैं, जिसे लकड़ी की आग से ही पकाया जाता है, इस दौरान सबसे ऊपर रखे बर्तन का पकवान पहले पकता है।


भगवान जगन्नाथ मंदिर में हर दिन बनने वाला प्रसाद भक्तों के लिए कभी कम नहीं पड़ता, लेकिन हैरान करने वाली बात ये है कि जैसे ही मंदिर के पट बंद होते हैं वैसे ही प्रसाद भी खत्म हो जाता है।


ये सब बड़े आश्चर्य की बात हैं..

     🚩 जय श्री जगन्नाथ 🚩                                      🙏🙏

हमारे धर्म का रहस्य...

 


क्या हमारे ऋषि मुनि पागल थे?


जो कौवों के लिए खीर बनाने को कहते थे?

और कहते थे कि कौवों को खिलाएंगे तो हमारे पूर्वजों को मिल जाएगा?

नहीं, हमारे ऋषि मुनि क्रांतिकारी विचारों के थे।

*यह है सही कारण।*


तुमने किसी भी दिन पीपल और बरगद के पौधे लगाए हैं?

या किसी को लगाते हुए देखा है?

क्या पीपल या बड़ के बीज मिलते हैं?

इसका जवाब है ना.. नहीं....

बरगद या पीपल की कलम जितनी चाहे उतनी रोपने की कोशिश करो परंतु नहीं लगेगी।

कारण प्रकृति/कुदरत ने यह दोनों उपयोगी वृक्षों को लगाने के लिए अलग ही व्यवस्था कर रखी है।

यह दोनों वृक्षों के टेटे कौवे खाते हैं और उनके पेट में ही बीज की प्रोसेसीग होती है और तब जाकर बीज उगने लायक होते हैं। उसके पश्चात

कौवे जहां-जहां बीट करते हैं, वहां वहां पर यह दोनों वृक्ष उगते हैं।

पीपल जगत का एकमात्र ऐसा वृक्ष है जो round-the-clock ऑक्सीजन O2  छोड़ता है और बरगद के औषधि गुण अपरम्पार है।

देखो अगर यह दोनों वृक्षों को उगाना है तो बिना कौवे की मदद से संभव नहीं है इसलिए कौवे को बचाना पड़ेगा।

और यह होगा कैसे?

मादा कौआ भादो महीने में अंडा देती है और नवजात बच्चा पैदा होता है। 

तो इस नयी पीढ़ी के उपयोगी पक्षी को पौष्टिक और भरपूर आहार मिलना जरूरी है इसलिए ऋषि मुनियों ने

कौवों के नवजात बच्चों के लिए हर छत पर श्राघ्द के रूप मे पौष्टिक आहार की व्यवस्था कर दी।

जिससे कि कौवों की नई जनरेशन का पालन पोषण हो जाये......


इसलिए दिमाग को दौड़ाए बिना श्राघ्द करना प्रकृति के रक्षण के लिए नितांत आवश्यक है।

घ्यान रखना जब भी बरगद और पीपल के पेड़ को देखो तो अपने पूर्वज तो याद आएंगे ही क्योंकि उन्होंने श्राद्ध दिया था इसीलिए यह दोनों उपयोगी पेड़ हम देख रहे हैं।

🙏सनातन धर्म पे उंगली उठाने वालों, पहले सनातन धर्म को जानो फिर उस पर ऊँगली उठाओ।जब आपके विज्ञान का वि भी नही था हमारे सनातन धर्म को पता था कि किस बीमारी का इलाज क्या है, कौन सी चीज खाने लायक है कौBन सी नहीं...? अथाह ज्ञान का भंडार है हमारा सनातन धर्म और उनके नियम, मैकाले के शिक्षा पद्धति में पढ़ के केवल अपने पूर्वजों, ऋषि मुनियों के नियमों पर ऊँगली उठाने के बजाय , उसकी गहराई को जानिये🙏

सूर्य को जल चढ़ाने का अर्थ

  प्रस्तुति - रामरूप यादव  सूर्य को सभी ग्रहों में श्रेष्ठ माना जाता है क्योंकि सभी ग्रह सूर्य के ही चक्कर लगाते है इसलिए सभी ग्रहो में सूर्...