Wednesday, September 27, 2023

लगे रहो और हिम्मत ना हार

 *घास और बाँस*


प्रस्तुति - उषा रानी / राजेंद्र प्रसाद सिन्हा 


ये कहानी एक ऐसे व्यक्ति की है जो एक व्यापारी था लेकिन उसका व्यापार डूब गया और वो पूरी तरह निराश हो गया। अपनी जिंदगी से बुरी तरह थक चुका था। अपनी जिंदगी से तंग आ चुका था।


एक दिन परेशान होकर वो जंगल में गया और जंगल में काफी देर अकेले बैठा रहा। कुछ सोचकर भगवान से बोला – *मैं हार चुका हूँ, मुझे कोई एक वजह बताइये कि मैं क्यों ना हताश होऊं, मेरा सब कुछ खत्म हो चुका है।*


*मैं क्यों ना व्यथित होऊं?"*


*भगवान मेरी सहायता किजिए"*


भगवान का जवाब


*तुम जंगल में इस घास और बांस के पेड़ को देखो- जब मैंने घास और इस बांस के बीज को लगाया। मैंने इन दोनों की ही बहुत अच्छे से देखभाल की। इनको बराबर पानी दिया, बराबर रोशनी दी।*


*घास बहुत जल्दी बड़ी होने लगी और इसने धरती को हरा भरा कर दिया लेकिन बांस का बीज बड़ा नहीं हुआ। लेकिन मैंने बांस के लिए अपनी हिम्मत नहीं हारी।*


*दूसरी साल, घास और घनी हो गयी उसपर झाड़ियाँ भी आने लगी लेकिन बांस के बीज में कोई वृद्धि नहीं हुई। लेकिन मैंने फिर भी बांस के बीज के लिए हिम्मत नहीं हारी।*


*तीसरी साल भी बांस के बीज में कोई वृद्धि नहीं हुई, लेकिन मित्र मैंने फिर भी हिम्मत नहीं हारी।*


*चौथे साल भी बांस के बीज में कोई वृद्धि नहीं हुई लेकिन मैं फिर भी लगा रहा।*


*पांच साल बाद, उस बांस के बीज से एक छोटा सा पौधा अंकुरित हुआ……….. घास की तुलना में ये बहुत छोटा था और कमजोर था लेकिन केवल 6 महीने बाद ये छोटा सा पौधा 100 फ़ीट लम्बा हो गया। मैंने इस बांस की जड़ को वृद्धि करने के लिए पांच साल का समय लगाया। इन पांच सालों में इसकी जड़ इतनी मजबूत हो गयी कि 100 फिट से ऊँचे बांस को संभाल सके।*


*जब भी तुम्हें जिंदगी में संघर्ष करना पड़े तो समझिए कि आपकी जड़ मजबूत हो रही है। आपका संघर्ष आपको मजबूत बना रहा है जिससे कि आप आने वाले  कल को सबसे बेहतरीन बना सको।*


*मैंने बांस पर हार नहीं मानी, मैं तुम पर भी हार नहीं मानूंगा, किसी दूसरे से अपनी तुलना(comparison) मत करो घास और बांस दोनों के बड़े होने का time अलग अलग है दोनों का उद्देश्य अलग अलग है।*


*तुम्हारा भी समय आएगा। तुम भी एक दिन बांस के पेड़ की तरह आसमान छुओगे। मैंने हिम्मत नहीं हारी, तुम भी मत हारो !अपनी जिंदगी में संघर्ष से मत घबराओ, यही संघर्ष हमारी सफलता की जड़ों को मजबूत करेगा।*


*लगे रहिये, आज नहीं तो कल आपका भी दिन आएगा।*


*शुभ प्रभात। आज का दिन आपके लिए शुभ एवं मंगलकारी हो।*



दयालबाग़ का सच / 2709 2023


1915 से तिनका तिनका जोड़ मालिक की दया व मेहर से सत्संगियों ने मेहनत से जोड़े ज़मीन के टुकड़े, जिन बंजर ज़मीनों पर दिन रात पाटा चलाके उसे उपजाऊ बनाया और मानव सेवा, शिक्षा और पर्यावरण के संतुलन की उद्ग़म दृष्टि सालों पहले ही सोच कर नित नवीन शोध के चलते दयालबाग़ की स्थापना हुई जिसमे आज शिक्षण संसथान, अस्पताल और इंडस्ट्रीज सब शामिल है।

 राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के "सेल्फ रेलिएन्ट" भारत के स्वप्न को जिस संस्था ने अपने बल पर बिना किसी बाहरी वित्त सहायता से साकार किया।

 इस पवित्र भूमि पर इंडिया के तत्कालीन वाइसराय, सरोजिनी नायडू, पूर्व भारतीय राष्ट्रपति श्री वी वी गिरी जी व राकेट मैन ऑफ़ इंडिया श्री डॉ एपीजे अब्दुल कलाम जी ने यहाँ आकर इस पवित्र भूमि व दयालबाग़ के सामजिक, वैज्ञानिक व आर्थिक अवधारणा को वंदन कर देश के लिए मिसाल बताया। यहाँ खेतों की हरियाली ने दयालबाग़ छेत्र को "ग्रीन बेल्ट ऑफ़ आगरा" की संज्ञा दिलाई जिसके चलते यहाँ का तापमान आगरा के मुक़ाबले तीन से चार डिग्री काम रहता है।

 श्री सैम पित्रोदा जी, जो वर्तमान समय में किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं, उनका यह रिकार्डेड कथन है- "भारत में हर जगह हों दयालबाग़ जैसी यूनिवर्सिटीज", उन्होंने यहाँ की संपूर्ण  मानव विकास की शिक्षा नीति को सराहा और विद्यार्थियों का भविष्य सुरक्षित हाथों में है इस बात की अपने भाषण में पुष्टि की।

आज समाज में कहीं कहीं भेद भाव और जाति प्रथा के चलते समाज में विघटन देखने को मिलता है, किन्तु दयालबाग़ में खेतों और अन्य सेवाओं में निस्वार्थ भाव से सेवा होती है जहाँ मेहनती मज़दूर और एक काबिल अफसर साथ साथ हाथ बटाते हुए सेवा करते है। 

यहाँ 2 रुपए में अस्पताल में इलाज, 18000 में विवाह जो कि जाति मुक्त है, छह रूपए में भण्डार घर का भोजन उपलब्ध है। उन सभी गुणीजनों से यह प्रश्न है की जो संस्था सादा जीवन शैली, कम लागत में उच्च कोटि के कार्य करने में दिन रात अपनी लगन लगाती है , आज अचानक उसे ज़मीन हथियाने की क्या आवश्यकता आ पड़ी?

 जो उन्ही ग्रामीण वासियों को मुफ्त मेडिकल कैंप की सुविधा, ग्रामीण बच्चों को कंप्यूटर व जनरल शिक्षा और डी इ आई द्वारा सोलर एनर्जी की बिजली उन तक मुफ्त पहुँचता है।  क्या यह नीयत "भू माफियों" की होती होगी? जैसा कि दयालबाग़ को कहकर  समाचार पत्र, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया व विद्यार्थी प्रचार कर रहे है।

जिस तरह प्रशासन ने २३ व २४ को अपनी ज़मीन पर सेवा कर रहे बच्चों, महिलाओं और वृद्धों पर लाठी चार्ज और पथराव किया, बार बार सत्संग समुदाय के वाईस प्रेजिडेंट जो की स्वयं एक रिटायर्ड रेलवे पुलिस आई जी हैं, की मिन्नतों के बावजूद , प्रशासन लगातार न्याय जो शर्मसार करता रहा।

 अंत में संपूर्ण सत्संग सभा व सत्संग जगत को माननीय न्यायालय पे भरोसा है, सम्मान है की वह उचित समाधान के साथ अपना निर्णय देंगे। राधास्वामी सत्संग किसी विशेष  धर्म का नहीं अपितु "मानव धर्म" है। Please share the true information 🙏

Tuesday, September 26, 2023

पुत्री का विवाह🎈🙏*/ कृष्णा मेहता


  *🙏🎈



*बनारस की वो गलियाँ जहाँ हर मोड़ पे आपको एक छोटा-मोटा मंदिर मिल जाएगा। शायद यही बनारस की खूबसूरती का एक राज है।*


*हर पल उस छोटे बड़े मंदिर से आती घंटियों की आवाज़ें मन को कितना सुकून देती हैं।*


*बनारस के इन्हीं गलियों में एक राम जानकी मंदिर है, जिसकी देख रेख मंदिर के पुजारी पंडित रामनारायण मिश्र के हाथों थी। मिश्रजी भी अपनी पूरी जिंदगी इस राम जानकी मंदिर को समर्पित कर चुके थे।*


*संपत्ति के नाम पर उनके पास एक छोटा सा 2 कमरे का मकान और परिवार में उनकी पत्नी और विवाह योग्य बेटी कमला ।* 


*मन्दिर में जो भी दान आता वही पंडित जी और उनके परिवार के गुजारे का साधन था। बेटी विवाह योग्य हो गयी थी और पंडित जी ने हर मुकम्मल कोशिश की जो शायद हर बेटी का पिता करता। पर वही दान दहेज़ पे आकर बात रुक जाती।* 


*पंडित जी अब निराश हो चुके थे। सारे प्रयास कर के हार चुके थे।*

          

*एक दिन मंदिर में दोपहर के समय जब भीड़ न के बराबर होती है उसी समय चुपचाप राम सीता की प्रतिमा के सामने आँखें बंद किये अपनी बेटी के भविष्य के बारे में सोचते हुए उनकी आँखों से आँसू बहे जा रहे थे।*


 *तभी उनकी कानों में एक आवाज आई, "नमस्कार, पंडित जी!"*


*झटके में आँखें खोलीं तो देखा सामने एक बुजुर्ग दंपत्ति हाथ जोड़े खड़े थे। पंडित जी ने बैठने का आग्रह किया। पंडित जी ने गौर किया कि वो वृद्ध दंपत्ति देखने में किसी अच्छे घर के लगते थे। दोनों के चेहरे पर एक सुन्दर सी आभा झलक रही थी।*


*"पंडित जी आपसे एक जरूरी बात करनी है।" वृद्ध पुरूष की आवाज़ सुनकर पंडित जी की तंत्रा टूटी।*


*"हाँ हाँ कहिये श्रीमान।" पंडित जी ने कहा।*

 

*उस वृद्ध आदमी ने कहा, "पंडित जी, मेरा नाम विशम्भर नाथ है, हम गुजरात से काशी दर्शन को आये हैं, हम निःसंतान हैं, बहुत जगह मन्नतें माँगी पर हमारे भाग्य में पुत्र/पुत्री सुख तो जैसे लिखा ही नहीं था।"*


*"बहुत सालों से हमनें एक मन्नत माँगी हुई है, एक गरीब कन्या का विवाह कराना है, कन्यादान करना है हम दोनों को, तभी इस जीवन को कोई सार्थक पड़ाव मिलेगा।"*


*वृद्ध दंपत्ति की बातों को सुनकर पंडित जी मन ही मन इतना खुश हुए जा रहे थे जैसे स्वयं भगवान ने उनकी इच्छा पूरी करने किसी को भेज दिया हो।*


*"आप किसी कन्या को जानते हैं पंडित जी जो विवाह योग्य हो पर उसका विवाह न हो पा रहा हो। हम हर तरह से दान दहेज देंगे उसके लिए और एक सुयोग्य वर भी है।" वृद्ध महिला ने कहा।*


*पंडित जी ने बिना एक पल गंवाए अपनी बेटी के बारे में सब विस्तार से बता दिया। वृद्ध दम्पत्ति बहुत खुश हुए, बोले, "आज से आपकी बेटी हमारी हुई, बस अब आपको उसकी चिंता करने की कोई जरूरत नहीं, उसका विवाह हम करेंगे।"*


*पंडित जी की खुशी का कोई ठिकाना न रहा। उनकी मनचाही इच्छा जैसे पूरी हो गयी हो।*


*विशम्भर नाथ ने उन्हें एक विजिटिंग कार्ड दिया और बोला, "बनारस में ही ये लड़का है, ये उसके पिता के आफिस का पता है, आप जाइये। ये मेरे रिश्ते में मेरे साढ़ू लगते हैं।*


*बस आप जाइये और मेरे बारे में कुछ न बताइयेगा। मैं बीच में नहीं आना चाहता। आप जाइये, खुद से बात करिये।*


*पंडित जी घबराए और बोले, "मैं कैसे बात करूँ, न जान न पहचान, कहीं उन्होंने मना कर दिया इस रिश्ते के लिए तो..??"*


*वृद्ध दंपत्ति ने मुस्कुराते हुए आश्वासन दिया कि, "आप जाइये तो सही। लड़के के पिता का स्वभाव बहुत अच्छा है, वो आपको मना नहीं करेंगे।"* 


*इतना कह कर वृद्ध दंपत्ति ने उनको अपना मोबाइल नंबर दिया और चले गए। पंडित जी ने बिना समय गंवाए लड़के के पिता के आफिस का रुख किया।*


*मानो जैसे कोई चमत्कार सा हो गया। 'ऑफिस में लड़के के पिता से मिलने के बाद लड़के के पिता की हाँ कर दी', 'तुरंत शादी की डेट फाइनल हो गयी', पंडित जी जब जब उस दंपत्ति को फोन करते तब तब शादी विवाह की जरूरत का दान दहेज उनके घर पहुँच जाता।*


*सारी बुकिंग, हर तरह का सहयोग बस पंडित जी के फोन कॉल करते ही उन तक पहुँचने लगते।* 


*अंततः धूमधाम से विवाह संपन्न हुआ। पंडित जी की लड़की कमला विदा होकर अपने ससुराल चली गयी।*


*पंडित जी ने राहत की साँस ली। पंडित जी अगले दिन मंदिर में बैठे उस वृद्ध दम्पत्ति के बारे में सोच रहे थे कि कौन थे वो दम्पत्ति जिन्होंने मेरी बेटी को अपना समझा, बस एक ही बार मुझसे मिले और मेरी सारी परेशानी हर लिए।*


*यही सोचते-सोचते पंडित जी ने उनको फोन मिलाया। उनका फोन स्विच ऑफ बता रहा था। पंडित जी का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा।* 


*उन्होंने मन ही मन तय किया कि एक दो दिन और फोन करूँगा नहीं बात होने पर अपने समधी जी से पूछूँगा जरूर विशम्भर नाथ जी के बारे में।*


*अंततः लगातार 3 दिन फ़ोन करने के बाद भी विशम्भर नाथ जी का फ़ोन नहीं लगा तो उन्होंने तुरंत अपने समधी जी को फ़ोन मिलाया।*


*ये क्या….*


*फ़ोन पे बात करने के बाद पंडित जी की आँखों से झर झर आँसू बहने लगे। पंडित जी के समधी जी का दूर दूर तक विशम्भर नाथ नाम का न कोई सगा संबंधी, न ही कोई मित्र था।*


*पंडित जी आँखों में आँसू लिए मंदिर में प्रभु श्रीराम के सामने हाथ जोड़कर खड़े हो गए। और रोते हुए बोले,*


*"मुझे अब पता चला प्रभु, वो विशम्भर नाथ और कोई नहीं आप ही थे,*

 

*वो वृद्धा जानकी माता थीं, आपसे मेरा और मेरी बेटी का कष्ट देखा नहीं गया न?*


*दुनिया इस बात को माने या न माने पर आप ही आकर मुझसे बातें कर के मेरे दुःख को हरे प्रभु।"*


*राम जानकी की प्रतिमा जैसे मुस्कुराते हुए अपने भक्त पंडित जी को देखे जा रही थी।*



     *🕉️ 🔱 जय महादेव 🔱🕉️*

दयालबाग़ आगरा 282005

 दयालबाग, एक  ऐसा  स्थान  ज़िस  मे  खुशबू  बसती  हैं  अध्यातम , धर्म , शिक्षा , जन  कल्याण  और  सर्व  धर्म सम्भाव की, परम  पूज्ये  गुरुओ  की  महान  शिक्षा  की  | 


सन 1915 मे  उस  समय  के  आचार्य  साहब  जी  महाराज  ने  इस  आश्रम  की  नीव  रखी थी , जमीन  विधिवत  अधिग्रहीत  करी गई  थी तथा  उस  समय  यहां  ऊबड  खाबड  भूमि  को  जो  कि  किसी  भी  प्रकार  से  उपयोग  की  स्थिती  मे  नहीं  थी , उस  का  सुधार   कई  सालों  के  कठिन  परिश्रम  के  बल  पर  सत्संगी  लोगो  द्वारा  किया  गया , यह  ही  नहीं  साहब  जी  महाराज  ने  स्वदेशी  की  महत्ता  को बहुत  पहले   समझ  कर  यहां  कई  रोजाना इस्तेमाल  की  वस्तुओ  के  निर्माण  हेतु  कारखाने स्थापित  किये , ज़िस में  न  सिर्फ  इस  मत  के  अनुयायी  बल्कि अन्य  कई  non satsangi लोगो  को  भी  रोजगार  मिला , यह  बात  हैं सन  1915 से 1937 तक के  बीच  की , जब  देश  अंग्रेजो  के  राज  मे  था  और  देश  मे  तमाम  संकट  थे , उस  वक्त  उन्होने  हिंदुस्तानी  जनता  की  भलाई  हेतु  REI नामक  intermediate तक का  स्कूल  खोला  और  इस  स्कूल  के  छात्र  जो  कि आज  भी  90% से  अधिक  non satsangi  परिवारो  से  आते  हैं  उन्होने  देश  विदेश  मे  बड़ा  नाम  कमाया, यही  नहीं  सरन  आश्रम अस्पताल  की  भी  स्थापना  करी  जो  आज  भी  पूरे शहर  के  लोगो  को  बेहतरीन  इलाज  फ्री  मे  प्रदान  करता हैं , यहां  सिर्फ  2 रूपये  का  पर्चा  बनता  हैं  जो  1 साल  तक  चलता  हैं , गरीब  को  इस  से  अच्छा, फ्री  और  आसानी  से  उपलब्ध  इलाज  कहीं  और  मिलता हो तो जाने , यहां  के  DEI विश्वविध्यालय  का  नाम  पूरे  देश विदेश  मे  हैं , जहां  हजारो  बच्चे  पढ़  कर  अपना  भविष्य  उज्जव  करते  हैं , यहां  भी  शिक्षक  और  students  non satsangi भी हैं , students तो  अधिकतर  non satsangi ही  हैं |


पूरे  आगरा  मे  अगर  कहीं  concrete जंगल  नहीं  बना  हैं  तो  वो  जगह  दयालबाग  ही  हैं , वरना  builders और भूमाफीआ  यहां  भी  बड़ी  बड़ी  बिल्डिंग  तान  देते  और  शहर  का  eco-सिस्टम खराब  कर  चुके  होते , दयालबाग  को आगरा  का  environment park भी  कह  सकते हैं  जो  पूरे  शहर  को  fresh oxigen  देने  का  काम  करता हैं , यहां  कई  प्रजाती  के  पौधे  लगाये  ज़ाते  हैं  और  उन  की  चिकित्सा  मे  उपयोग  पर  शोध  भी  हो  रहा  हैं | 


दयालबाग  का  योगदान  समाज  मे केवल  यही  नहीं हैं , यहां  हिन्दु  धर्म  मे  व्याप्त  कई  कुरीतिया  जैसे जात  पात ,

ऊँच  नीच  आदि  को  भी अपने  समाज  मे  पनपने  का  मौका नहीं  दिया  गया  हैं , किसी  भी  जात  का  व्यक्ति  यहां  समान  अधिकार और  सम्मान पाता  हैं  जो  किसी  और  को  प्राप्त हो , यहां विवाह , रिश्ते  जात  देख कर  नहीं  किये  ज़ाते  वरन  जो  योग्य हैं  उस  को प्राथमिकता  मिलती  हैं |


दयालबाग , अध्यातम , सुरत  शब्द  अभ्यास  द्वारा  साधना  कर  के  उस  परम  पिता  परमात्मा  से  मिलने  का  द्वार  हैं, यहां  नियमित  तौर  पर  धर्म , चेतना  तथा  व्यक्तिक  विकास  पर  गहन शोध  तथा  conferences होती  रहती  हैं , यहां  की  university की  distence education की  branches पूरे  देश  मे  कई  शहरो  मे  हैं  जहां  बच्चे पढ़  कर अपना  जीवन  सुधारते हैं | 


यहां समाज  के  बच्चो  को  superman बनने  की  शिक्षा  बचपन  से  मिलती  हैं , उन  के  चरित्रनिर्माण  तथा  शारीरिक  तथा  मानसिक  विकास  और  मजबूती  पर  बल  दिया  जाता  हैं , क्यो  किया  जाता  हैं  तो यह  बताना भी  ज़रूरी  हैं , देश  और  विदेश  मे  राजनीतिक  और  समाजिक  उठा  पटक सदा  से  चली  आई  हैं  इस  लिये  हमें  आने  वाले  कल  के  लिये  इस  समाज से   volunteers तैयार  करने  हैं  जो  उस  मुशकिल  वक्त  मे  जन  कल्यान  के  हेतु  तत्पर  रहे , यह  कोई  फौज  नहीं  बन रही पर  यह  volunteers की  फौज  आने  वाले  समय  मे  जनता  और  निरीहजन  के  सहयोग  के लिए  बनाई  जा  रही  हैं | 


कुछ  समय  से  दयालबाग  और  सत्संगी  लोगो  पर  निराधार  आरोप समाचार पत्रो  तथा  social media पर लगाये 

जा  रहे  हैं , जो  वास्तविकता  से  कोसो  परे  हैं , न  तो  वो  varified हैं  और  न  ही किसी  भी  रूप  मे  स्वीकार  करने  योग्य| 


दयालबाग  की  भूमि  किसी 1 व्यक्ति  की  मालकियत  नहीं हैं , यह  विधिवत  अधिग्रहित  की  गई  हैं , इस  से  सम्बंधी  सभी  दस्तावेज  राधास्वामी  सत्संग  सभा  के  पास  सुरक्षित  हैं  तथा  प्रशासन या  उस  का वकील  जब  चाहे  उन  का अवलोकन  करें  परंतु  इस  प्रकार  की  कार्येवाही  ज़िस  मे  निर्दोष  लोगो  को  मारा  पीटा  गया , छोटे  बच्चो  तक  को बक्शा  नहीं  गया  वो सभ्य  समाज मे  घोर  निन्दनीय  हैं  और  और  वर्तमान  जनकल्यान  की  नीति  पर  चलने  वाली  B J P सरकार  के  शासन  काल  मे  तो  इस  प्रकार  की  बर्बारिक  अत्याचार  की तो  कोई  उम्मीद  भी  नहीं  कर  सकता | 


सरकार  से  आशा  हैं  कि  वो  न्याय  करेगी  और जनता  से भी  यह  उम्मीद  हैं  कि  वो  पीत  पत्रकारिता  से  प्रभावित  हुये  बिना  अपनी  विवेक  बुद्धि  का  इस्तेमाल  करेगे  किसी  पर  भी  बेबुनियाद  आरोप  लगाने  से पहले  सोचे , सत्संगी  जन  भी  समाज  का  हिस्सा  हैं  और  उन  को  भी  अपनी  बात  सरकार  और  समाज  मे  रखने  का  पूरा  अधिकार  हैं , कोई  जंगलराज  नहीं  चल  रहा  कि  सोशल  media पर  किसी  का  भी  चरित्रहनन कर दिया  जाये और उस  को प्रताडित  किया  जाये |


जो  कुछ  भी  सत्य  होगा  वो  समय  आने  पर खुद  ब  खुद  सामने  आयेगा, पहले  भी  आया  था  और  अब भी  आयेगा  और  वो  समय  आँख  खोलने  वाला  होगा | 

जय  हिन्द/ रा धा / ध

स्व आ मी 

🙏🙏🙏🙏

Monday, September 25, 2023

एक सत्संगी भाई का पत्र प्रधानमंत्री के नाम

 प्रति,


श्रीमान नरेंद्र दामोदरदास मोदी

माननीय प्रधानमंत्री भारत सरकार


प्रतिलिपि:-

श्री योगी आदित्यनाथ

 माननीय मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश


सम्माननीय प्रधानमंत्री श्रीमान नरेंद्र मोदी जी


सादर रा धा/ध: स्व आ मी !


महोदय,


आपको पूरे सम्मान और आदर के साथ अवगत करा रहा हूं कि, क्योंकि राधास्वामी सत्संग सभा दयालबाग आगरा में आगरा जिला प्रशासन ने शनिवार और रविवार को जो कुछ भी किया, उसके बावजूद मुझे अब भी यह भरोसा, उम्मीद और विश्वास है कि आप न्याय करेंगे। रविवार से लेकर सोमवार तक दयालबाग आगरा में कोई भी सतसंगी सोया नहीं पर, उसने धर्म और समाज के प्रति अपना फर्ज नहीं छोड़ा भी नहीं। जिसकी जो सेवा निर्धारित थी या निश्चित है, उसने पूरे मनोयोग से उस कार्य को निभाया और निभा रहा है। क्योंकि हम धर्म और कर्म में विश्वास करते हैं, राजनीति में नहीं। यह बात अलग है कि कल हुए पुलिस के बर्बर लाठीचार्ज में अनेकानेक सतसंगी घायल हुआ, फिर भी उसने अपने चोट की परवाह नहीं की और समाज सेवा में जुटा हुआ है। उसे इलाज तक नहीं मिला, जिला अस्पताल में पुलिस ने उनका इलाज नहीं होने दिया, मेडिकल नहीं होने दिया। जब तक वह इलाज के लिए जिला अस्पताल में मिन्नतें करते रहे भारी पुलिस बल वहां मौजूद रहा, पुलिस ने ना तो उनकी रिपोर्ट लिखी ना ही उनका इलाज होने दिया और ना ही उनका मेडिकल। जिला अस्पताल प्रशासन भी इसमें पुलिस के सहयोग में ही रहा। मुख्य चिकित्सा अधिकारी आगरा और चिकित्सा अधीक्षक जिला अस्पताल दोनों अपने कर्तव्यों से विमुख रहे।

यह सब इसलिए क्योंकि सतसंगी सौ वर्षों से अधिक समय से उसके आचार्यों की पावन-पवित्र भूमि पर निस्वार्थ भाव से सेवा करता आ रहा है। अब आगरा जिला प्रशासन बिल्डर लॉबी को लाभ पहुंचाने के लिए बिना उनके कागजात की जांच किए, जबरन उक्त जमीन को अपनी बताने में लगा है। ताकि बिल्डर लाॅबी को उनके महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट के लिए रास्ता दिला सके, और आर्थिक लाभ कमा सके। यह पावन भूमि ब्रितानी सरकार के जमाने से राधास्वामी सत्संग सभा की है। राधास्वामी सतसंग सभा कभी दान नहीं लेती है, वह अपने श्रम से अर्जित व्यवस्था से चलती है। यह सब सिर्फ हमारा कहना नहीं है, पूर्व में यहां का दौरा कर चुके राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख आदरणीय मोहन भागवत जी ने भी इस संस्था की इस तरह की व्यवस्था की तारीफ की थी, यहां की व्यवस्था और समस्त सतसंगी जगत, सतसंगियों की सेवा भावना की सराहना की थी।

ऐसी पावन और पवित्र भूमि पर निगाह गड़ाई बिल्डर लॉबी साम-दाम-दंड-भेद विफल रहने पर अब आगरा जिला प्रशासन के जरिए अपनी कुत्सित भावनाओं की पूर्ति में लगी है। इसी कड़ी में रविवार को पुलिस ने सतसंगी माँ, बहन, बेटियों और बच्चों पर बेरहमी से लाठीचार्ज किया, उनके रक्त से इस पावन भूमि को लाल कर दिया। हमारे परम प्रिय गुरु महाराज डा. एमबी लाल साहब के समाधि स्थल को खंडित कर दिया है। इससे देश-विदेश में रह रहे करोड़ों सतसंगियों का हृदय चित्कार कर उठा, उनकी तड़प का सहज अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। उनमें सरकारी व्यवस्था और आगरा जिला प्रशासन के खिलाफ गुस्सा है, आक्रोश है। प्रशासन अब कागजों की जांच की बात कह रहा है, इसके लिए उसने सात दिन के समय दिया है। तो उसने पहले यह काम क्यों नहीं किया, जबकि राधास्वामी सत्संग सभा और उसके पदाधिकारी लगातार यह मांग कर रहे थे कि वह हमारे कागजों को देखें उनकी जांच करें और उस आधार पर आगे की कार्रवाई करें। प्रशासन को जब यह बात आज सही लग रही है तो कार्रवाई से पहले क्यों नहीं लगी और उसने यह अराजकता क्यों फैलाई?


वह भी तब जब उसे अच्छी तरह से मालूम है की राधास्वामी सत्संग सभा के वर्तमान आचार्य परम श्रद्धेय, परम वंदनीय श्रीमान प्रेम सरन सत्संगी साहब जैविक खेती को प्रोत्साहन देने के लिए एग्रो इकोलॉजी का अभियान चलाए हुए हैं। ‌ सभी सतसंगी की जान से इस सेवा में लगे हैं, आगरा ही नहीं, पूरे भारत में वरन पूरे विश्व में। सतसंग की सीख है, सादा जीवन उच्च विचार और शुद्ध जीवनशैली। हम प्राणी मात्र की सेवा के संकल्प के साथ आगे बढ़ते हैं और बढ़ रहे हैं।

इसी संकल्प का हिस्सा है आगरा पोइया घाट पर यमुना तीरे बैकुंठ धाम। जहां सतसंग सभा के वर्तमान आचार्य परम श्रद्धेय परम वंदनीय श्रीमान प्रेम सरन सत्संगी साहब की प्रेरणा और नेतृत्व में सत्संगी भाई बहनों, बच्चों और बुजुर्गों ने अपने निस्वार्थ श्रम से यमुना के तट को वहां  से लाखों टन कूड़ा साफ कर निर्मल कर दिया। वहां पर औषधिगुण युक्त हजारों पौधों की अनुपम वाटिका तैयार कर दी। वह भी अपनी जमीन पर, बिना किसी सरकारी सहायता और दान के। यह सब किया गया जीव जगत के सुरक्षित भविष्य के लिए। और ऐसे पावन और पवित्र लोगों के विरुद्ध आपका प्रशासन क्या और किस तरह की कार्रवाई कर रहा है, हमें नहीं लगता कि आप इसको सहन कर पाएंगे। यह प्रशासनिक षड्यंत्र का हिस्सा है या कुछ और। मैं नहीं जानता पर, प्रशासन लगातार पावन और पवित्र संस्था राधास्वामी सत्संग सभा दयालबाग आगरा की नेक छवि को बिगड़ने के लिए लगातार अनर्गल बयानबाजी भी कर व करा रहा है। संस्था शैक्षिक, स्वास्थ्य व रोजगार सृजन सहित सभी सामाजिक सरोकारों में न सिर्फ बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रही है, बल्कि सेवा भाव से लगातार कार्य भी कर रही है। फिर भी हम और हमारे जैसे लोगों के साथ यह सब हो रहा है, किया और कराया जा रहा है।


ऐसी पवित्र पावन संस्था और उसके लोगों के खिलाफ ढाई हजार पुलिस और पीएसी कर्मियों के साथ, दमकल और बुलडोजर लेकर कार्रवाई करना, बच्चों, बुजुर्गों और महिलाओं पर लाठी चलाना ये कहाँ का न्याय है ?

लोकतंत्र में लोक की कोई अहमियत नहीं, यह लाठी चलाने वाले लोग अपने को लोक सेवक कहते हैं पर, काम इन्होंने अंग्रेजी सरकार की मानसिकता का किया है।

सतसंग सभा और सतसंगियों ने देश की आजादी के लिए भी भरपूर सहयोग, बलिदान और कार्य किया। स्वदेशी आंदोलन को मजबूती देने के लिए अपने यहां सभी सामानों का निर्माण करना शुरू किया और पूरे देश में इसका फैलाव किया। बाद के वर्षों में जब-जब देश और समाज को आवश्यकता पड़ी सतसंग सभा और सतसंगी डटकर देश और देश के लोगों के साथ खड़ा रहा। कोरोना काल में जब लॉकडाउन था लोग अपने घरों में बंद थे, तब भी सतसंगी कृषि कार्य को करने से पीछे नहीं हटा। क्योंकि लोगों के जीवनयापन के लिए भोजन की आवश्यकता में कहीं कोई कमी ना पड़े, इसलिए उसने अपनी सेवा भाव को नहीं छोड़ा। सतसंग सभा द्वारा संचालित सरन आश्रम अस्पताल में सत्संगी पूरे सेवाभाव और मनयोग से अपनी जान की परवाह न करते हुए डटा रहा।

सनातन संन्यास धर्म की तरह ही हम राधास्वामी मत के अनुयायी गुरु-शिष्य परंपरा में अटूट विश्वास और श्रद्धा रखते हैं। हम किसी को अपना शत्रु नहीं मानते, सभी का हम आदर और पूरा सम्मान करते हैं।

धर्म के साथ-साथ राष्ट्र हित भी हमारे लिए सर्वोपरि है। संपूर्ण प्राणी जगत और राष्ट्र सेवा के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं और निरंतर कार्य कर रहे हैं।

अब आरोप लग‌ए और लगवाए जा रहे हैं, भ्रमित किया जा रहा हैं कि हमने बहनों और बच्चों को आगे किया, पथराव कराया, जबकि सभी को यह पता है कि सर्दी, गर्मी और बरसात तीनों मौसम में बिना नागा, प्रतिदिन सभी सतसंगी क्या बच्चे, क्या बुजुर्ग और क्या महिलाएं  पिछले सौ वर्षों से निरंतर खेतों में सेवा के लिए सुबह और दोपहर 3:00 बजे से खेतों में चले जाते हैं। वहां श्रमदान करते हैं, वहीं पर सतसंग करते हैं और वहीं पर शारीरिक व्यायाम भी करते हैं। इस दौरान आसपास के गांव के ग्रामीण व उनके बच्चों के लिए शिक्षा का श्रमदान, स्वास्थ्य का श्रमदान और शारीरिक व्यायाम का श्रमदान भी किया जाता है। उन्हें निश्शुल्क चिकित्सी परामर्श के साथ-साथ निश्शुल्क दवा भी वितरित की जाती है।

महिलाओं और युवतियों को अपनी आत्मरक्षा के लिए वहीं पर शारीरिक सुरक्षा-आत्मरक्षा हेतु ट्रेनिंग भी दी जाती है। इसमें लाठी-पीटी भी शामिल है। हमारे गुरु महाराज भी हम सभी के साथ इस सेवा में बराबर से हिस्सेदारी करते हैं, भाग लेते हैं, खेतों की सेवा करते हैं, श्रमदान करते हैं। इस दौरान सतसंग सभा की ओर से सभी को पौष्टिक गुणवत्ता वाली खाद्य पदार्थ मुहैया कराए जाते हैं। सभी को यह मालूम है, फिर भी भ्रम फैलाया जा रहा है। यह कौन कर रहा है और क्यों कर रहा है, किस उद्देश्य से कर रहा है, सरकार और जिला प्रशासन का फर्ज बनता है कि इसका पता लगाए और उनको बेनकाब करते हुए उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई करें। जोकि नहीं किया जा रहा। अधिकांश मीडिया भी अपना धर्म और फर्ज भूल कर पीत पत्रकारिता में जुटा हुआ है। होंगे उनके कोई निजी स्वार्थ। पर, सरकार का क्या स्वार्थ है, प्रशासन का क्या स्वार्थ है।

राष्ट्र निर्माण और समस्त जीवों की रक्षा व सेवा को समर्पित हम सतसंगी व्याकुल है और न्याय की आशा रखते हैं।

आपसे सादर आग्रह और अनुरोध है कि आप यथाशीघ्र इस मामले को देखें और दोषियों पर कड़ी कार्रवाई करते हुए हम सतसंगियों के साथ न्याय करें।


आदर सहित

प्रेमी भाई अनूप कुमार सिंह

दयालबाग़  आगरा -282005

25 सितम्बर 2023

Saturday, September 23, 2023

अटल-अडिग और अविनाशी राधास्वामी सतसंग सभा

 


-एक दीवार और चंद गेट तोड़े जाने से नहीं टूटने वाली सतसंग सभा, अटल और अविनाशी है राधास्वामी सतसंग सभा



शनिवार को दयालबाग आगरा में राधास्वामी सतसंग सभा के स्वामित्व वाली भूमि पर लगे गेट और बनी दीवारों को प्रशासन के बुलडोजरों के तोड़ते समय जो लोग खुशी से नारे लग रहे थे, नाच और गा रहे थे, उन्हें शायद यह नहीं मालूम कि चंद गेट और एक दीवार टूटने से राधास्वामी सतसंग सभा नहीं टूटने वाली, वह तो अटल-अडिग और अविनाशी है। ऐसे न जाने कितने झंझावात आए और गए, कोई उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाया। क्योंकि जिस तरह सत्य हमेशा अपराजेय है, बिलकुल उसी तरह राधास्वामी सतसंग सभा दयालबाग आगरा भी अपराजेय। उसका ना तो कोई आदि है और ना ही कोई अंत, वह तो अनंत है। *रा धा/ध: स्व आ मी* शब्द की गूंज पूरे ब्रह्मांड में गुंजायमान है। ऐसे में यह अनैतिक और अवैध प्रशासनिक कार्रवाई उसका क्या बिगाड़ लेगी, उसका क्या बिगाड़ सकती। यह कार्रवाई कोई मायने नहीं रखती।

*छत्रपति शिवाजी महाराज ने विदेशी आक्रांताओं द्वारा तुलजा भवानी का मंदिर तोड़े जाने पर कहा था, मंदिर टूटने से देवी तुलजा भवानी नहीं टूटा करती। इतिहास गवाह है कि उनके कहे में कितनी सच्चाई थी। शिवाजी महाराज की कही इस बात को समय ने साबित किया।* कुल मलिक राधास्वामी दयाल के रचित इस खेल में भी आने वाले कल का वह भविष्य छुपा हुआ है, जिसकी कल्पना कर पाना भी असंभव। बिना उनकी मर्जी के पत्ता भी नहीं हिलता तो आज प्रशासन इतनी बड़ी कार्रवाई कैसे कर पाया। जाहिर सी बात है, कहीं ना कहीं जगत के कल्याण के लिए इसमें भी उनकी मर्जी शामिल थी, उनका कोई संदेश जरूर छुपा हुआ है इसके पीछे, जो आने वाला भविष्य तय करेगा। क्योंकि देश-दुनिया में फैले लाखों-करोड़ों सतसंगियों के दिलों पर आज जो गुजरी है, उनके मन में इस कार्रवाई को लेकर आक्रोश है, उसका प्रतिकार कहीं तो निकलेगा। सतसंगियों का यही आक्रोश आने वाले कल के भविष्य का और तमाम के भाग्य का फैसला करेगा।

और आज जो इस कार्रवाई को लेकर खुश हो रहे हैं, जश्न मना रहे हैं, उन्हें आने वाला वक्त बताएगा हकीकत क्या है, सच क्या था और झूठ क्या है। दीवारों और गेट का क्या है, वह तो बनते-बिगड़ते रहते हैं। सुबह तोड़े गए, शाम को लग गए, हो सकता आगे भी तोड़े जाएं, तो क्या हुआ, फिर लग जाएंगे। यह तो सतत् प्रक्रिया है, इसे कौन रोक सकता है‌। और कौन रोक सका है,  जिस किसी ने भी इसे रोकने की कोशिश की, वह मुंह की खाया है। आज नहीं तो कल। इतिहास गवाह है, पहले भी तमाम इसे रोकने-तोड़ने आए, वक्त ने उन्हें जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया था। उन्होंने और उनके घर परिवार वालों ने नाक रगड़कर माफी मांगी, दया की अर्चना की, जीवो के कल्याण के लिए धरती पर अवतरित हुए राधास्वामी दयाल ने उन पर भी रहम किया। पर, व्यक्ति को अपने कर्मों का हिसाब इसी जन्म में देना होता है, इसलिए हिसाब तो देना ही पड़ेगा।

आज से पहले भी प्रशासनिक शह पर कई तरह की कोशिशें की गईं पर, हर बार समाज के दुश्मनों ने मुंह की खायी। और राधास्वामी सतसंग सभा पहले से और अधिक मजबूत हुई । *सतसंग पर हमला हमें कमजोर नहीं मजबूत बनाता, हमारे संकल्प को दृढ़ करता है, हमारी सेवा भावना को उग्र करता है और क्रोध को शांत कर हृदय को निर्मल करता है ‌*

यही वजह है  कि शासन-सत्ता के घमंड में चूर शनिवार को दयालबाग आगरा में जिला प्रशासन ने मनमानेपन का जो तांडव किया, राधास्वामी सतसंग के अनुयायियों ने सक्षम होते हुए भी उसका कोई प्रतिकार नहीं किया‌। शांत भाव से सब कुछ होता हुआ देखते रहे। छोटी-छोटी झोपड़ पत्तियों को हटाने में प्रशासन के पसीने छूट जाते हैं चंद लोगों के सामने उनके बुलडोजर खड़े-खड़े रह जाते हैं। ऐसे में हजारों सतसंगियों यह रहते क्या कार्रवाई इतनी आसानी से और शांति से कर पाता। बिल्कुल भी नहीं, वह सिर्फ इसलिए कर पाया कि राधास्वामी सत्संग के आचार्य ने हमें संयम, धैर्य और शांत रहना सिखाया है। हमें सच्चा मार्ग दिखाया है, सन्मार्ग दिखाया है, हमें मालूम है कि सच एक दिन सामने आएगा और दुनिया को रोशनी दिखाएगा। तब हम सिर्फ हम होंगे।

पर, आज की अनैतिक और अवैध प्रशासनिक कार्रवाई की  गूंज दूर तलक जाएगी और लंबे समय तक रहेगी। उसकी धमक दोषियों अपना कोजवाब खुद देगी और बाखूबी देगी। आने वाला वक्त इसका गवाह बनेगा, जिन्होंने भी इस षड्यंत्र की नींव रखी है, साथ दिया है, उन्हें भी इसका जवाब देना होगा, अवश्य देना होगा। यहां नहीं तो वहां पर, देना जरूर पड़ेगा। क्योंकि उसके घर में देर है पर, अंधेर नहीं।

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करोड़ों सतसंगियों के हृदय में शूल की तरह चुभा, डा. एमबी लाल साहब की समाधि का तोड़ा जाना


थम नहीं रहा देश दुनिया में फैले करोड़ों सतसंगियों का आक्रोश, प्रशासन का सभा की निजी भूमि पर बनी‌ राधास्वामी धाम गमन कर चुके आचार्य की समाधि का बुलडोजर चला तोड़ा


शासन और सत्ता के नशे में चूर आगरा जिला प्रशासन के अधिकारियों ने अपने मनमानेपन में राधास्वामी सतसंग सभा के अनुयायियों की धार्मिक भावनाओं का भी ख्याल नहीं किया। अनैतिक और अवैध तरीके से राधास्वामी सतसंग सभा की निजी स्वामित्व की भूमि पर राधास्वामी धाम गमन कर चुके आचार्य डा. एमबी लाल साहब की समाधि कि ना सिर्फ बेकद्री की बल्कि बुलडोजर चलाकर उसे तोड़ भी दिया। जबकि समाधि निजी भूमि पर एक तरफ किनारे स्थापित थी। ना तो वह किसी का रास्ता रोक रही थी, नई उसकी वजह से कहीं कोई अड़चन थी। उसे लेकर कहीं कोई आपत्ति भी दर्ज नहीं थी, फिर भी प्रशासन ने जानबूझकर ऐसा किया। क्योंकि प्रशासन का उद्देश्य अतिक्रमण या अवैध निर्माण तोड़ना नहीं था। वह तो अपनी भेजो कार्रवाई से सतसंगियों को उकसाना चाह रहा था, ताकि उसे बल प्रयोग करने का मौका मिल सके और कुछ प्रशासनिक अधिकारियों और न्यायालय के सामने अपनी सफाई में कह सके कि वहां पर स्थितियां खराब थी। पर, सतसंगियों ने अपने गुरु की भी शिक्षाओं का पूरा-पूरा मान रखा और कहीं कोई आक्रोश प्रदर्शित नहीं किया, शांत खड़े रहे। जबकि समाधि तोड़े जाने पर उनके दिलों में गुस्से का लावा धड़क रहा था। दिलों में जल रही है आग, कहीं तो निकलेगी, आज का बुझाना भी जरूरी है। पर, सरकार और सरकार के लोगों को यह समझ में नहीं आ रहा है।

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सतसंगियों को भड़काने की, की गई भरपूर कोशिश

अनैतिक और अवैध प्रशासनिक कार्रवाई के बीच सतसंगियों को भड़काने की भी कोशिश लगातार की जाती रही। प्रशासन के लोगों ने उन्हें उनके घरों को जाने से रोका उनके शैक्षिक संस्थानों में जाने से रोका, उन्हें उनके प्रैक्टिकल और परीक्षा देने से रोका। पूरे समय भय और आतंक का माहौल बनाकर रखा। क्षेत्र को छावनी बना दिया, जैसे किसी बड़े गैंगस्टर और आतंकवादी के मुकाबले को उतरी हो जिला प्रशासन की टीम। निहत्थे, शांत और धार्मिक प्रवृत्ति के सतसंगियों के सामने पूरे समय हिंसक वातावरण को स्थापित किया गया। पर, जब इससे भी बात नहीं बनी तो बिल्डर लॉबी एक चापलूस ग्रामीणों को आगे कर उनसे बुलडोजर के जरिए सतसंग सभा के दीवारों को तोड़ने का काम कराया गया ताकि सत्संगी भड़क उठे और प्रशासनिक अधिकारी अपनी कुत्सित मानसिकता को पूरा कर सके। पर, सतसंगियों मैं पूरे संयम का परिचय दिया और पूरे समय संविधान अधिकारों और कानून का सम्मान किया। यह बात अलग है कि जिस प्रशासन पर कानून के पालन का दायित्व है, उसने हर जगह कानून को तोड़ा धूल-धूसरित किया।


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Thursday, September 21, 2023

एक महान पुरा शास्त्री थे प्रो. बी बी लाल

 

. बी बी लाल एक अद्भुत शोध परक खोजी व्यक्तित्व :

 Vikram Verma


भारत के एक महान पुराशास्त्री और इतिहासकार "प्रो.बी बी लाल" का हाल ही 10 सितंबर  रात्रि को नई दिल्ली में निधन हो गया। पर अफसोस  मीडिया में कहीं भी जिक्र नहीं। उनका जन्म 02 मई 1921 को झांसी में हुआ था। मृत्यु के समय उनकी मृत्यु १०० वर्ष से अधिक आयु में हुई। पर इस बारे में मीडिया अर्थात टीवी चैनल्स अथवा दूसरे संचार साधनों में कोई खबर नहीं थी।


रामायण, महाभारत, वेद उपनिषद आदि को स्कूली किताबों में एक मायथोलोजी बताया गया, राम कृष्ण को काल्पनिक बताया गया, इन सभी को प्रो. बी बी लाल ने झूठा साबित किया था। राम मंदिर, जो अभी अयोध्या में बन रहा है, उसका मूल कारण बी बी लाल थे, जिन्होने ये साबित किया था कि राम मंदिर नामक देवालय वहीं था, जिसे बाबर ने तोड़ दिया था।


प्रो. बी बी लाल के कारण ही भारत के हिंदुओं को पता चला है कि रामायण महाभारत कोई काल्पनिक बात नहीं है। सच में घटित हुई घटना थी। बीबी लाल ने ही द्वारिका नगरी पर शोध किया था। उन्होंने ही समुद्र में द्वारि का की शोध करके उसपर रिसर्च की थी। भारत के रामायण और महाभारत काल के अवशेषों को खोज कर के उन्होंने ढेरों रिसर्च की थी।  


उनकी इस सेवा के कारण ही आज हम लोग उन अंग्रेजी और मुगलों के गुलाम लेफ्टिस्ट हिंदूओ के मुंह बन्द करवा पाए हैं, जो राम को काल्पनिक साबित करना चाहते थे।  

'आर्य लोग बाहर से आए थे' इस थ्योरी को भी झूठा साबित कर दिया था। एक भी मिडिया या न्यूज पेपर में उनके निधन का कोई समाचार नहीं दिखाई दिया।  जबकि सब के सब ब्रिटेन की रानी के पीछे पड़े थे।


प्रो. बी बी लाल की एक पुस्तक है- "इंद्रप्रस्थ : द बेकिंग टाइम ऑफ दिल्ली"और एक है- "टाइम्स ऑफ ऋग्वेद एरा पीपल्स" (ऋग्वेद के समय के लोग और व्यवस्था) और कई सारी पुस्तकें हैं जिन्हें पढ़ना अपने आप में एक बहुत बड़ी बात है। इतनी अच्छे तरीके से उसमे साक्ष्य दिए गए हैं कि पुस्तक को बार बार पढ़ने का मन हो ही जाएगा।


ऐसे अविस्मरणीय व्यक्तित्व को सादर प्रणाम और विनम्र श्रद्धांजलि।


प्रस्तुति - रीना शरण-संत शरण 

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प्रो. बी बी लाल एक अद्भुत शोध परक खोजी व्यक्तित्व :

 Vikram Verma भारत के एक महान पुराशास्त्री और इतिहासकार "प्रो.बी बी लाल" का हाल ही 10 सितंबर  रात्रि को नई दिल्ली में निधन हो गया।...

Tuesday, September 19, 2023

श्री कोचेश्वर महादेव मंदिर .

 


कोंच, टिकारी, गया 


यह मंदिर गया जिले के मुख्यालय से 31 किलो मीटर उतर-पश्चिम पर स्थित है.


कोचेश्वर नाथ मंदिर अद्वितीय है. मगध क्षेत्र में विराजमान, यह मंदिर राष्ट्रीय धरोहर है.


श्री कोचेश्वर नाथ सांस्कृतिक विरासत के रूप में ऐतिहासिक शैव तीर्थ मंदिर है. मगध की सांस्कृतिक, धार्मिक और ऐतिहासिक परम्परा के लिए कोंच के कोचेश्वर महादेव मंदिर का अपना अलग स्थान है.


इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत इसकी निर्माण पद्धति है, जो प्राचीन ईंटों से बना प्राचीन भारत के पुराने व सही सलामत मंदिरों में एक है. इसका निर्माण उड़ीसा शैली के मंदिरों की तरह है और इसकी रचना उड़ीसा राज्य के भुवनेश्वर में बने लिंगराज मंदिर से मिलता है.


जगत गुरु आदि शंकराचार्य ने यहां ढाई-फीट का विशाल शिवलिंग वैदिक मंत्रोधार के साथ स्थापित किया था. जिसे आज भी देखा जा सकता है. 


इस मंदिर का निर्माण औरंगाबाद के उमगा राज के राजा भैरवेंद्र ने सन 1420 ई. के आस-पास कराया था. उनके शासनकाल में कोंच में 52 मंदिर और 52 तालाब थे, जिसमें सिद्धि लिंग के रूप में कोचेश्वर महादेव मंदिर काफी प्रसिद्ध था.  


उमगा राज के बारें में ---


उमगा राज औरंगाबाद के देव से 8 मील पूर्व और मदनपुर के नजदीक था. उमगा राज को मुनगा नाम से भी जाना जाता था. उमगा के पहाड़ पर बहुत से मंदिर और एक बहुत बड़ा जलाशय था. उमगा के राजा भैरवेंद्र का गया और औरंगाबाद के बहुत बड़ा भाग पर राज था. उनके दरबार में एक पंडित थे, उनका नाम पंडित जनार्दन था. जो उमगा के छोटे से गाँव पुरनाडीह में रहते थे. पंडित जनार्दन इस मंदिर के शिलालेख रचयिता भी थे. जो प्राकृत भाषा में लिखा हुआ है. उमगा राज कुछ दिनों बाद में नया बने देव राज के अंतर्गत आ गया था.  


टिकारी राज  


सर्वप्रथम लावगढ़ विजय की खुशी में टिकारी राज के प्रथम राजा वीर सिंह उर्फ़ धीर सिंह ने इस ऐतिहासिक मंदिर का पुनरुद्धार कर नया रूप दे कर साज-श्रृंगार कराये थे.


विदेशी पुरातत्ववेत्ता का मंदिर भ्रमण 


इस मंदिर की प्रसिद्धि सम्पूर्ण देश में तब हुई सन 1812 में स्कॉटलैंड के मि. फ्रांसिस बुचनन हैमिलटन- भूगोलिक, जीव विज्ञानी और वनस्पति-विज्ञानिक ने अपनी यात्रा क्रम में न सिर्फ कोंच के अलावा आस-पास के पुरातत्व स्थलों का भी दौरा किया और साथ ही साथ कोंच के कोचेश्वर शिव मंदिर को मुख्य देवालय में एक माना था.


सन 1846 में ब्रिटन सेना के कैप्टेन एम. किट्टो ने भी इस स्थल का भ्रमण कर इसे प्राचीन मंदिर बताया था.


सन 1861 में ब्रिटिश इतिहासकार थॉमस फ्रेज़र पेपे ने यहाँ आ कर अपनी रिपोर्ट में बताया है की मंदिर को सबसे पहले बनाने में मिटटी युक्त ईंट का प्रयोग करते हुए इसके ऊपर अधिरचना किया गया था. बाद में मंदिर को पुनरुद्धार कर इसे सही आकार में लाया गया. मंदिर के आतंरिक रचना को रंग रोगन किया गया था.    


सन 1872 में अमेरिकन-भारतीय इंजिनियर, पुरातत्ववेत्ता, फोटोग्राफर मि. जोसेफ डेविड बेलगर, सर्वेक्षण करने के लिए मंदिर आये. उन्होंने अपने कैमरा में इस मंदिर का ऐतिहासिक चित्र खीचा था.


सन 1892 में ब्रिटन सेना के इंजिनीयर मेजर जनरल सर अलेक्जेण्डर कनिधंम ने यहां की यात्रा कर इसे भरपूर संभावना वाला ऐतिहासिक स्थल बताया. 


सन 1902 में डेनमार्क के पुरातत्ववेत्ता, फोटोग्राफर, गया जिला के सर्वेक्षणकर्ता  मि. थिओडोर बलोच इस मंदिर को देखने और सर्वे के लिए आ चुके है. थिओडोर ने भी इस जगह को बहुत बड़ा आस्था और धार्मिक का केंद्र माना है. यहां के कितने ही अनसुलझे तथ्यों को उन्होंने स्पष्ट किया था.


मंदिर की बनावट 


टिकारी शहर से 8.5 किलोमीटर सड़क मार्ग से जा कर मंदिर व तालाब की नगरी कोंच के  कोंचदीह में बने इस मंदिर का दर्शन किया जा सकता है. जो छः फीट ऊंचे बने प्लेटफार्म के उपर बना 99 फीट ऊंचा शिव मंदिर है. इसके बगल में 32 फीट का विशाल सभा भवन है. 


इस मंदिर में शंकर , गणेश, कार्तिकेय, बुध, कुबेर, विष्णु, भैरव, सप्तमातृका यानि सात माताएँ या शक्तियाँ जिनका पूजन विवाह आदि शुभ अवसरों के पहले होता हैं, तथा अन्य मूर्तियाँ देखीं जा सकती हैं.  


इस मंदिर के निर्माण में तीन तरह की ईंट के इस्तेमाल होने का प्रमाण हैं कि इसका मतलब इस मंदिर को कम से कम तीन बार पुनरुद्धार किया गया. मंदिर भिन्न आकारों की जली हुई ईंटों से निर्मित है.


मंदिर का प्रवेश द्वार एक बड़ा दरवाज़ा है. मीनार के सामने की ओर खुलने वाला. प्रवेश द्वार को निचले आयताकार के पार एक पत्थर द्वारा दो भागों में विभाजित किया गया है. मंदिर के अन्दर के भाग गर्भगृह है. 


कोंच में इस मंदिर के ठीक सामने ही एक विशाल सरोवर है. मंदिर जाने के मार्ग में श्री विष्णु भगवान मंदिर, पीछे के स्थान में विशालगढ़, सहस्र शिव मंदिर, देवी स्थान, ब्रह्म स्थान व अकबरी महादेव के दर्शन से स्पष्ट होता है कि किसी जमाने में यह स्थल सम्पूर्ण क्षेत्र का आस्था का विशिष्ट केंद्र रहा है.


पुरातत्व विभाग द्वारा अधिग्रहित 


आजादी के बाद भारत सरकार के पुरातत्व विभाग के द्वारा इसका अधिग्रहण कर, इसे हर संभव सुरक्षा व संरक्षा प्रदान की गयी. 


भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा 16 अप्रैल 1996 को इसका अधिग्रहण कर लिया गया है. इसके बाद यह मंदिर को राष्ट्रीय स्मारक की सूचि में शामिल कर लिया गया है. पुरातत्व विभाग ने 22 अप्रैल 1996 में मंदिर का जीर्णोद्वार का कार्य प्रारंभ किया.  


काल सर्प योग 


कोंचेश्वर शिव मंदिर भारत में ऐसी मंदिर है जहां पर कालसर्प योग यज्ञ के लिए उपयुक्त माना गया है.


महाशिवरात्रि पर्व 


सिद्धि शिवलिंग के रूप में प्रसिधी के कारण महाशिवरात्रि के दिन मंदिर परिसर में विशाल मेला लगता है और हजारों श्रधालुगण दर्शन करने लिए इस मंदिर आते है. सम्पूर्ण मंदिर परिसर शिव भक्तों से भक्तिमय हो जाता है. सम्पूर्ण मंदिर परिसर में शिव की जय जय कार की गूंज होती रहती है.


सावन के महिना में 


सावन मास इस मंदिर में सुबह चार बजे से ही श्रद्धालुओं की भीड़ जुटने लगती है. मंदिर परिसर बोल बम व हर-हर महादेव के नारों से गुंजायमान हो जाता है. मंदिर परिसर में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं गण आकर बेल पत्र, पुष्प, दूध व जल कोचेश्वर महादेव को अर्पण कर पूजा अर्चना करते है. सावन मास के प्रत्येक सोमवार को काफी संख्या में भक्तजन यहाँ पहुचते है. मंदिर के चारो ओर का क्षेत्र भक्तिमय हो जाता है.


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रजनीश वाजपेयी

वाजपेयी भवन

बहेलिया बिगहा

टिकारी, गया

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 बाबा कोटेश्वर नाथ शिव मंदिर 


मेन, बेला, गया


यह अति प्राचीन शिव मन्दिर मोरहर-दरधा नदी के संगम के किनारे मेन - मंझार गाँव, बेला, गया  में स्थित है.


मंदिर की लोक कथा -


कहा जाता है की राक्षस राज बाणासुर की बेटी उषा भगवान श्रीकृष्ण के पोते अनिरुद्ध से प्रेम कर बैठी थी. बाणासुर भगवान श्री कृष्ण को अपना शत्रु मानता था. 


उषा ने इस मंदिर का निर्माण कराया था. उषा अनिरुद्ध से विवाह करने के लिए प्रत्येक दिन इस शिव मंदिर में पूजा करने के लिए आया करती थी. उषा की सहेली चित्रलेखा ने अनिरुद्ध का अपहरण किया और उषा का अनिरुद्ध से गांधर्व विवाह हो गया. 


उषा की विवाह अनिरुद्ध के साथ होने की सुचना मिलने पर बाणासुर काफी क्रोधित हुआ और उसने अनिरुद्ध को बंदी बना लिया था. अनिरुद्ध को बंदी बना लिए जाने पर भगवान कृष्ण बाणासुर से युद्ध करने के लिए आये. 


यह देख कर भगवान् शिव बाणासुर को बचाने के लिए श्री कृष्ण भगवान् के सुदर्शन के आगे खड़े हो गए. शिव ने योग बल से अपना और विष्णु का एकत्व जाना. अत: पृथ्वी पर विष्णु से युद्ध करने का निश्चय कर लिया. 


असुर राज बाणासुर तथा भगवान कृष्ण के बीच युद्ध शुरू होने वाला था. बाणासुर को बचाने के लिए पार्वती दोनों के मध्य जा खड़ी हुईं. वे मात्र कृष्ण को नग्न रूप में दीख पड़ रही थीं, शेष सबके लिए अदृश्य थीं. कृष्ण ने आंखेंं मूंद लीं. देवी की प्रार्थना पर कृष्ण ने बाणासुर को जीवित रहने दिया, किंतु उसके मद को नष्ट करने के लिए एक सहस्र हाथों में से दो को छोड़कर शेष काट डाले और बाणासुर मृत्युदंड से बच गया.


बाणासुर ने अपने अहंकार के लिए भगवान् से क्षमा मांगी और भविष्य में किसी पर अत्याचार नहीं करने की कसम खाया.


बाणासुर के बारें में -

 

बाणासुर वह शोणितपुर पर राज्य करता था. वह राजा बलि के सौ पुत्रों में से एक था. वह सबसे बड़ा, वीर तथा पराक्रमी था. उसके एक सहस्र बाहें थीं. 


उसकी अनौपम्या नाम की पत्नी थी. बाणासुर को  नारद ने एक मंत्र दिया था, जिससे यह सबको प्रसन्न कर सकता था. उसने घोर तपस्या के फलस्वरूप  प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसे अपने पुत्र के रूप में स्वीकार किया था और उसे युद्ध में कभी पराजित नहीं होने का वरदान दिया था. अत: वह गर्वोन्मत्त हो उठा था. 


शिव के आशीर्वाद से उसकी शक्तियां बहुत बढ़ गई थी और वह बहुत ही अहंकारी और अत्याचारी हो गया. बाणासुर लोगों पर अत्याचार करने लगा और बिना कारण सबसे युद्ध करने लगा. उसका अहंकार इतना बढ़ गया था कि वह भगवान कृष्ण का भी अपमान करता था और खुद को उनसे श्रेष्ठ बताता था.


मंदिर की बनावट -


बाबा कोटेश्वरनाथ मंदिर पत्थरों से बना है यह प्राचीन मंदिर हैं और उसके कलात्मक नक्काशी देख कर लोग दंग रह जाते हैं. बाबा कोटेश्वरनाथ मंदिर का शिवलिंग 1008 लिंगों वाला सहस्रलिंगी शिवलिंग है. इस एक शिवलिंग में 1008 शिवलिंग समाए हुए हैं. ऐसे पौराणिक शिवलिंग दुर्लभ नहीं, बल्कि अति दुर्लभ माने जाते हैं. 


यह मंदिर पौराणिक भारतीय स्थापत्यकला का अनूठा उदाहरण है. यह पूरा मंदिर पत्थरों से बना हुआ है. मंदिर में पत्थरों पर बहुत ही सुंदर नक्काशी देखने को बनती है. आश्चर्यजनक यह है की मंदिर की दिवार, छत और दरवाज़ा पत्थरों से बनी हुयी है. मंदिर मुख्य रूप से ग्रेनाइट पत्थर से बनाया गया है, 


पुरातात्विक दृष्टि से मंदिर -


भारतीय पुरातत्व विभाग के रिपोर्ट के अनुसार बाबा कोटेश्वरनाथ धाम का शिव मंदिर ६ शताब्दी का बनी शिव मंदिर है. ६ सदी में नाथ परंपरा के ३५वे सहजयानी सिद्ध बाबा कुचिया नाथ द्वारा स्थापित मठ है.इसलिए इसे कोचामठ या बुढवा महादेव भी कहते है. 


मंदिर से सटे मेन गाँव में अनेक पुरातत्व अवशेष छिपे पड़े है, जिमें रुखड़ा महादेव, खेतेश्वर महादेव, एकमुखी शिवलिंग आदि प्रमुख है.मंदिर से सटे एक विशाल और प्राचीन पीपल का पेड़ है जिसकी शाखाए ज़मीन से सटे हुए दिन पर दिन लम्बी होती जा रही है.


पर्यटन की दृष्टि से -


बाबा कोटेश्वर नाथ धाम धार्मिक आस्था का केन्द्र है. सहस्त्रलिंगी महादेव कोटेश्वर नाथ और प्राचीन पीपल वृक्ष अपनी महिमा और ख्याति से काफी प्रसिद्ध हो गया है और यह श्रद्धालुओं और पर्यटकों को अपने यहां खींच रहा है.


मंदिर में दर्शनार्थी -


इस मंदिर में प्रतिदिन भक्तगण आते आते रहते है, और बाबा के पूजा अर्चना करते रहते है. सावन के महीना में बाबा के दर्शन और पूजा करने के लिए दर्शनार्थी भक्तगण की भीड़ काफी लग जाती है. 


हिंदी वर्ष के फाल्गुन महीने के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तिथि के महाशिवरात्रि पर्व के दिन मंदिर परिसर में पूजा-अर्चना करने के लिए काफी संख्या में भक्तगण आते है, इस दिन यहाँ बहुत बड़ा मेला लगता है और सम्पूर्ण मंदिर परिसर का वातावरण भक्तिमय हो जाता है.


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रजनीश वाजपेयी 

टिकारी, गया

9430437950

जन्म कथा / कृष्ण मेहता


*भगवान गणेश जी के जन्म की कथा*



करुणासिन्धु, बन्धु जन-जनके, सिद्धि-सदन, सेवक-सुखदायक।।

कृष्णस्वरूप, अनूप-रूप अति, विघ्न-बिदारण, बोध-विधायक।

सिद्धि-बुद्धि-सेवित, सुषमानिधि, नीति-प्रीति-पालक, वरदायक।।


गणेश जी का जन्म और उनके प्रादुर्भाव से जुड़ी अनेक कथाएं वर्णित हैं, वह किन परिस्थितियों में जन्मे और किन परिस्थितियों में उन्हें गज का सिर धारण करना पड़ा, इसके संबंध में बहुत सी कहानियां हैं। आज हम आपको ब्रह्मवैवर्त पुराण की श्रीगणेश जन्म से जुड़ी प्रसिद्ध कथा के बारे में बताएंगे।


मंगलमूर्ति श्रीगणेश की पूजा केवल पंचदेवों में ही सबसे पहले नहीं होती बल्कि तैतीसकोटि देवों के अर्चन में भी श्रीगणेश अग्रपूज्य हैं। श्रीगणेश की अग्रपूजा हो भी क्यों नहीं; माता पार्वती के ‘पुण्यक व्रत’ के कारण साक्षात् गोलोकनाथ भगवान श्रीकृष्ण ही पार्वती के पुत्र के रूप में अवतीर्ण हुए थे। अत: श्रीकृष्ण और गणेश–दोनों एक ही तत्त्व हैं। परब्रह्म परमात्मा श्रीकृष्ण के अतिरिक्त संसार में किसी वस्तु का अस्तित्व नहीं है। भगवान ने स्वयं कहा है–‘मेरे सिवा जगत में किसी भी वस्तु की सत्ता नहीं है। सूत में गुंथी हुई माला के मणियों की तरह सभी वस्तुएं मुझमें गुंथी हुईं है।’ गीता (७।७)


‘मनुष्य अपनी श्रद्धा के अनुसार मेरे जिस-जिस स्वरूप की उपासना करता है, उसी-उसी स्वरूप में उसकी श्रद्धा को मैं बढ़ा देता हूँ और वह अपनी श्रद्धा के अनुसार मेरे द्वारा विहित फल को प्राप्त करता है।’ (गीता ७।२१-२२)


भगवान श्रीकृष्ण ही गणेश के रूप में आविर्भूत हुए हैं, इस सम्बन्ध में ब्रह्मवैवर्तपुराण के गणपतिखण्ड में एक सुन्दर कथा है। जैसे भगवान श्रीकृष्ण अनादि हैं; वैसे ही जगन्माता दुर्गा प्रकृतिस्वरूपा है। पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में प्रकट होने के कारण इनका नाम ‘पार्वती’ हुआ। पर्वतराज हिमालय ने अपनी पुत्री का दाम्पत्य-सम्बन्ध परब्रह्म के अंशरूप भगवान शंकर के साथ स्थापित किया। विवाह के बहुत दिन बीत जाने पर भी पार्वतीजी को जब कोई संतान नहीं हुई तो उन्होंने भगवान शंकर को अपना दु:ख बतलाया।


भगवान शंकर द्वारा पार्वतीजी को ‘पुण्यक-व्रत’ के लिए प्रेरित करना

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भगवान शंकर ने पार्वतीजी से कहा– ‘मैं तुमको एक उपाय बतलाता हूँ क्योंकि तीनों लोकों में उपाय से ही कार्य में सफलता प्राप्त होती है। भगवान श्रीकृष्ण की आराधना करके ‘पुण्यक’ नामक व्रत का एक वर्ष तक पालन करो। यद्यपि भगवान गोपांगनेश्वर श्रीकृष्ण सब प्राणियों के अधीश्वर हैं, फिर भी वे इस व्रत से प्रसन्न होकर तुमको पुत्ररूप में प्राप्त होंगे।’


शंकरजी की बात मानकर पार्वतीजी ने विधिपूर्वक ‘पुण्यक व्रत’ किया। व्रत की समाप्ति पर उत्सव मनाया गया। इस महोत्सव में ब्रह्मा, लक्ष्मीजी सहित विष्णु, समस्त देवता, ऋषि-मुनि, यक्ष, गन्धर्व, किन्नर व सभी पर्वतराज पधारे। भगवान शशांकशेखर और सर्वदारिद्रदमनी जगज्जननी के सुप्रबन्ध का क्या कहना ! जहां शचीपति इन्द्र दानाध्यक्ष, कुबेर कोषाध्यक्ष, भगवान सूर्य सबको आदेश देने वाले और वरुण परोसने का कार्य कर रहे थे।


भगवान विष्णु का व्रत के महात्म्य तथा गणेश की उत्पत्ति का वर्णन करना


भगवान विष्णु ने शंकरजी से कहा–’आपकी पत्नी ने संतान-प्राप्ति के लिए जिस पुण्यक-व्रत को किया है, वह सभी व्रतों का साररूप है। सूर्य, शिव, नारायण आदि की दीर्घकाल तक उपासना करने के बाद ही मनुष्य कृष्णभक्ति को पाता है। कृष्णव्रत और कृष्णमन्त्र सम्पूर्ण कामनाओं के फल के प्रदाता हैं। चिरकाल तक श्रीकृष्ण की सेवा करने से भक्त श्रीकृष्ण-तुल्य हो जाता है। पुण्यक-व्रत के प्रभाव से स्वयं परब्रह्म गोलोकनाथ श्रीकृष्ण पार्वती के अंक में क्रीड़ा करेंगे। वे स्वयं समस्त देवगणों के ईश्वर हैं, इसलिए त्रिलोकी में ‘गणेश’ नाम से जाने जाएंगे। चूंकि पुण्यक-व्रत में उन्हें तरह-तरह के पकवान समर्पित किए जायेंगे, जिन्हें खाकर उनका उदर लम्बा हो जाएगा; अत: वे ‘लम्बोदर’ कहलायेंगे। इनके स्मरणमात्र से जगत के विघ्नों का नाश हो जाता है, इस कारण इनका नाम ‘विघ्ननिघ्न’ भी होगा। शनि की दृष्टि पड़ने से सिर कट जाने से पुन: हाथी का सिर जोड़ा जायेगा, इस कारण उन्हें ‘गजानन’ कहा जायेगा। परशुराम के फरसे से जब इनका एक दांत टूट जायेगा, तब ये ‘एकदन्त’ कहलायेंगे। ये जगत के पूज्य होंगे और मेरे वरदान से उनकी सबसे पहले पूजा होगी।’


भगवान विष्णु की बात सुनकर पार्वतीजी ने पूरे विधान के साथ उस व्रत को पूर्ण किया और ब्राह्मणों को खूब दक्षिणा दी। अंत में पार्वतीजी ने पुरोहित सनत्कुमारजी से कहा–’मैं आपको मुंहमांगी दक्षिणा दूंगी।’ सनत्कुमार ने पार्वतीजी से कहा–’मैं दक्षिणा में भगवान शंकर को चाहता हूँ, कृपया आप मुझे उन्हें दीजिए। अन्य विनाशी पदार्थों को लेकर मैं क्या करुंगा।’  भगवान श्रीकृष्ण की योगमाया से पार्वतीजी की बुद्धि मोहित हो गयी और यह ऐसी निष्ठुर वाणी सुनकर वह मूर्च्छित होकर गिर गईं।


भगवान विष्णु ने पार्वतीजी को समझाते हुए कहा–दक्षिणा देने से धर्म-कर्म का फल और यश मिलता है। दक्षिणा रहित देवकार्य, पितृकार्य व नित्य-नियम आदि निष्फल हो जाते हैं। ब्राह्मणों को संकल्प की हुई दक्षिणा उसी समय नहीं देने से वह बढ़कर कई गुनी हो जाती है। अत: तुम पुरोहित की मांगी हुई दक्षिणा दे दो।हम लोगों के यहां रहते तुम्हारा अकल्याण संभव नहीं।


पार्वतीजी ने कहा–‘जिस कर्म में पति की ही दक्षिणा दी जाती है, उस कर्म से मुझे क्या लाभ? पतिव्रताओं के लिए पति सौ पुत्रों के समान होता है। यदि व्रत में पति को ही दे देना है, तो उस व्रत के फलस्वरूप पुत्र से क्या सिद्ध होगा? मानाकि पुत्र पति का वंश होता है, किन्तु उसका एकमात्र मूल तो पति ही है। यदि मूलधन ही नष्ट हो जाए तो सारा व्यापार ही निष्फल हो जाएगा।’


भगवान विष्णु ने कहा–’शिवे ! तुम शिव को दक्षिणारूप में देकर अपना व्रत पूर्ण करो। फिर उचित मूल्य देकर अपने पति को वापस कर लेना।’


पार्वतीजी ने हवन की पूर्णाहुति करके अपने जीवनधन भगवान शिव को दक्षिणारूप में सनत्कुमार को दे दिया। पुरोहित सनत्कुमार जैसे ही महादेवजी को लेकर चलने लगे, पार्वतीजी को बहुत दु:ख हुआ।


भगवान नारायण के समझाने पर पार्वतीजी ने सनत्कुमार से कहा–’एक गौ का मूल्य मेरे स्वामी के समान है। मैं आपको एक लाख गौएं देती हूँ। कृपया मेरे पति को लौटाकर आप एक लाख गायों को ग्रहण कीजिए।’ परन्तु पुरोहित सनत्कुमार ने कहा–’आपने मुझे अमूल्य रत्न दक्षिणा में दिया है, फिर मैं उसके बदले एक लाख गौ कैसे ले सकता हूँ? इन गायों को लेकर तो मैं और भी झंझट में फंस जाऊंगा।’


पार्वतीजी सोचने लगीं–‘मैंने यह कैसी मूर्खता की, पुत्र के लिए एक वर्ष तक पुण्यक व्रत करने में इतना कष्ट भोगा पर फल क्या मिला? पुत्र तो मिला ही नहीं, पति को भी खो बैठी। अब पति के बिना पुत्र कैसे होगा?’


इसी बीच सभी देवताओं व पार्वतीजी ने आकाश से उतरते हुए एक तेज:पुंज को देखा। उस तेज:पुंज को देखकर सभी की आंखें मुंद गयीं। किन्तु पार्वतीजी ने उस तेज:पुंज में पीताम्बरधारी भगवान श्रीकृष्ण को देखा।


प्रेमविह्वल होकर पार्वतीजी उनकी स्तुति करने लगीं–


’हे कृष्ण ! आप तो मुझको जानते हैं; परन्तु मैं आपको जानने में समर्थ नहीं हूँ। केवल मैं ही नहीं, बल्कि वेद को जानने वाले, अथवा स्वयं वेद भी अथवा वेद के निर्माता भी आपको जानने में समर्थ नहीं हैं। मैं पुत्र के अभाव से दु:खी हूँ, अत: आपके समान ही पुत्र चाहती हूँ। इस व्रत में अपने ही पति की दक्षिणा दी जाती है, अत: यह सब समझकर आप मुझ पर दया करें।’


पार्वतीजी की स्तुति सुनकर श्रीकृष्ण ने उनको अपने स्वरूप के दर्शन कराए। नवीन मेघ के समान श्याम शरीर पर अद्भुत पीताम्बर, रत्नाभूषणों से अलंकृत, करकमलों में मुरली, ललाट पर चंदन की खौर और मस्तक पर मन को मोहित करने वाला सुन्दर मयूरपिच्छ। इस अनुपम सौन्दर्य की कहीं तुलना नहीं थी।


द्विभुजं कमनीयं च किशोरं श्यामसुन्दरम्।

शान्तं गोपांगनाकान्तं रत्नभूषणभूषितम्।।

एवं तेजस्विनं भक्ता: सेवन्ते सततं मुदा।

ध्यायन्ति योगिनो यत् यत् कुतस्तेजस्विनं विना।।


भगवान श्रीकृष्ण पार्वतीजी को अभीष्ट सिद्धि का वरदान देकर अन्तर्ध्यान हो गए।


भगवान शंकर और पार्वतीजी अपने आश्रम पर विश्राम कर रहे थे, उसी समय किसी ने उनका द्वार खटखटाया और पुकारा–’जगत्पिता महादेव ! जगन्माता पार्वती ! उठिए, मैंने सात रात्रि का उपवास किया है, इसलिए मैं बहुत भूखा हूँ। मुझे भोजन देकर मेरी रक्षा कीजिए।’ पार्वतीजी ने देखा एक अत्यन्त वृद्ध, दुर्बल ब्राह्मण, फटे व मैले कपड़े पहने उनसे कह रहा है–


’मैं सात रात तक चलने वाले व्रत के कारण भूख से व्याकुल हूँ। आपने पुण्यक-व्रत के महोत्सव में बहुत तरह के दुर्लभ पकवान ब्राह्मणों को खिलाए हैं; मुझे आप दूध, रबड़ी, तिल-गुड़ के लड्डू, पूड़ी-पुआ मेवा मिष्ठान्न, अगहनी का भात व खूब सारे ऋतु अनुकूल फल व ताम्बूल–इतना खिलाओ जिससे यह पीठ से सटा मेरा पेट बाहर निकल आए, मेरी सुन्दर तोंद हो जाए, और मैं लम्बोदर हो जाऊं। समस्त कर्मों का फल प्रदान करने वाली माता! आप नित्यस्वरूपा होकर भी लोकशिक्षा के लिए पूजा और तप करती हैं। प्रत्येक कल्प में गोलोकवासी श्रीकृष्ण गणेश के रूप में आपकी गोद में क्रीड़ा करेंगे।’


ऐसा कहकर वह ब्राह्मण अन्तर्ध्यान हो गये और आकाशवाणी हुई–’हे पार्वति ! जिसको तुम खोज रही हो, वह तुम्हारे घर में आ गया है। गणेशरूप में श्रीकृष्ण प्रत्येक कल्प में आपके पुत्र बनकर आते हैं। आप शीघ्र अन्दर जाकर देखिए।’ भगवान श्रीकृष्ण इतना कहकर बालकरूप में आश्रम के अंदर बिछी शय्या पर जाकर लेट गए और शय्या पर पड़े हुए शिवजी के तेज में लिप्त हो गए और जन्मे हुए बालक की भांति घर की छत को देखने लगे।


पार्वतीजी ने अत्यन्त सुन्दर बालक को शय्या पर हाथ-पैर पटककर खेलते हुए देखा और भूख से ‘उमा’ ऐसा शब्द करके रोते देखा, तो प्रेम से उसे गोद में उठा लिया और बोली–


’जैसे दरिद्र का मन उत्तम धन पाकर संतुष्ट हो जाता है, उसी तरह तुझ सनातन अमूल्य रत्न की प्राप्ति से मेरा मनोरथ पूर्ण हो गया।’


मायारूपा पार्वती का यह व्रत लोकशिक्षा के लिए है, क्योंकि त्रिलोकी में व्रतों और तपस्याओं का फल देने वाली तो ये स्वयं ही है। इस कथानक का यही संदेश है कि कठिन लक्ष्य को भी मनुष्य अपनी अथक साधना और निष्ठा से प्राप्त कर सकता है।

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