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अब कौन भरोसे के लायक, अपने बेगाने लगते हैं।
सब अपने धुन में मस्त हुए, घर-घर मैखाने लगते हैं।।
चेहरों की खूब सजावट में, छिप जाते हैं असली चेहरे।
इस भरी भीड़ में भी देखो, ये शहर विराने लगते हैं।।
सामान भरे घर में ताले, फिर भी व्याकुल घर भरने को।
रिश्वत खाने वाले सारे, जाने-पहचाने लगते हैं।।
रिश्तों में बस ससुराल बचा, बाकी चुभने वाले रिश्ते।
भाई-भाई गर साथ रहे, सब आग लगाने लगते हैं।।
जिनका है धर्म दिखावे का, उनके चोले रंगीन हुए।
जो लोग पढ़े कम मजहब को,ज्यादा चिल्लाने लगते हैं।।
अंधेरों में परछाईं भी, कब साथ निभाती है बोलो।
अच्छे दिन आते ही देखो, मेहमान भी आने लगते हैं।।
K
हम मेहनत करने वालों को, बस काम चाहिए जी लेंगे।
पूछो कि अवसर कब दोगे, मजहब दिखलाने लगते हैं।।
दुनिया देखेगी अच्छाकर, आने जाने की चाह नहीं।
चोरों की तरह चुनावों में, आकर फुसलाने लगते हैं।।
तुम कद्र करो उन लोगों की,जिन लोगो ने पाला तुमको।
मर जाने पर दिखलाने को, जी जान लगाने लगते हैं।।
...*"अनंग"*
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