स्वयं की जागृति ही सच्चे अर्थों में नवरात्र है / विजय केसरी
नौ दिनों तक माता के नौ रूपों की आराधना महा नवमी के दिन पूर्णाहुति के बाद नवरात्र संपन्न हो जाता है। माता के नौ रूपों का दर्शन,नौ नूतन संकल्प, नौ व्याधियों से मुक्ति और दसों दिशाओं में सुख, समृद्धि की कामना नवरात्र का उद्देश्य है। देवी पुराण के कथन अनुसार, 'स्वयं की जागृति व स्व जागरण ही सच्चे अर्थों में नवरात्र है। आज की बदली परिस्थिति में इस जागृति को समझने की जरूरत है। बाहरी तौर पर नवरात्र पर हम सब जो कर रहे हैं, यह इसका बाह्य स्वरूप है, इसका आध्यात्मिक स्वरूप है, स्वयं का जागरण । यह आलेख समर्पित है, स्वयं को जागृत करने के संदर्भ में। दुर्गा पूजा नौ दिनों तक चलने वाला एक लोकप्रिय पर्व के रूप में भारत सहित विश्व के कई देशों में बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। दुर्गा पूजा पर घर परिवार के लोग एक साथ जुटते हैं। वे परिवार के साथ समूह में दुर्गा पूजा पर्व मनाते हैं । इस अवसर पर कई दुर्गा भक्तों के यहां नवरात्र का अनुष्ठान होता है। भक्तगण बहुत ही विधि विधान के साथ नौ दिनों तक मां के नौ रूपों की पूजा करते हैं। नौ दिनों तक चलने वाले इस पूजा कार्यक्रम के क्या मायने है ? इस पर विचार करने की जरूरत है। आखिर नौ दिनों तक यह पूजा क्यों की जाती है ? इस पूजा के पीछे क्या गुढ़ रहस्य है ? यह जानना बहुत ही जरूरी है।
यह पर्व असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है। महिषासुर नामक राक्षस के आतंक से संपूर्ण ब्रह्मांड त्राहिमाम त्राहिमाम कर रहा था। महिषासुर स्वयं को ईश्वर ही समझ बैठा था। महिषासुर इतना ताकतवर बन गया था कि उसे पराजित करने में अलग-अलग ब्रह्मा, विष्णु, महेश त्रिदेव भी अक्षम हो गए थे। ब्रह्मा, विष्णु, महेश सहित सभी देवताओं की आराधना पर माता दुर्गा का प्रकटीकरण हुआ था। मां दुर्गा चाहती तो पलक झपकते ही महिषासुर का सर्वनाश कर सकती थी, लेकिन मां दुर्गा ऐसा ना कर, क्या संदेश देना चाहती हैं ? इस भीषण युद्ध और रक्तपात में करोड़ों जाने चली गई थीं। युद्ध के दौरान महिषासुर का कई बार दुर्गा मां से सामना भी हुआ था। इसके बावजूद महिषासुर के अंदर के ज्ञान की लौ ना जल सकी थी।
अब इस बात को हम सब स्वयं के जीवन के साथ जोड़ कर देखें। समस्त योनियों में मनुष्य की योनी ही सर्वश्रेष्ठ है। हम सब अनंत काल से इस धरा पर जन्म ले रहे हैं और मृत्यु को प्राप्त कर रहे हैं ।इस बात को हमारे धर्म ग्रंथों ने भी माना है । अब प्रश्न यह उठता है कि हमारा जन्म बार-बार क्यों इस धरा पर होता रहता है ? इसका उत्तर, हमारे वेद और पुराणों में वर्णित है कि मनुष्य, मोक्ष प्राप्ति के लिए बार-बार मरता है और जन्म लेता है। यह क्रम अनंत काल से चला आ रहा है और अनंत काल तक चलता रहेगा। जिसने स्वयं को जागृत कर लिया, माया के बंधन से स्वयं को मुक्त कर लिया, वह ईश्वर के अंश में समाहित हो गया । अब उसका ना बार-बार जन्म होगा और ना मृत्यु को प्राप्त करेगा । नवरात्र स्वयं को जागृत करने का एक महान पर्व है। एक साल में तीन सौ पैंसठ दिन होते हैं।
शारदीय नवरात्र हम लोगों को एक अवसर प्रदान करता है । इन नौ दिनों में अपने अंदर छुपे असत्य को जाने । सत्य से साक्षात्कार करें । जिस बाह्य दुनिया को हम सबों ने अपना मान लिया है , वास्तव में यह बाह्य दुनिया हम सबों. का है ही नहीं । यहां हम सब जो भी यश, बल ,शक्ति, वैभव अर्जित करते हैं, कुछ समय के बाद ये सभी विस्मृत कर दिए जाएंगे। लेकिन हम सबों का इस धरा पर आना और जाना लगातार बना रहेगा। नवरात्र सच्चे अर्थों में स्वयं को जगाने का ही पर्व है।
नवरात्र पर हम सभी बाहर बिखरी उर्जा को स्वयं में समाहित करने का एक अवसर प्रदान करता है। हम सब माया के बंधन में इस तरह जकड़ चुके हैं कि स्वयं के सच को जान कर भी अंजान बने हुए हैं। अर्थात स्वयं के ज्ञान पर अज्ञानता की बहुत बड़ी पट्टी बंधी हुई है। जिस दौलत के पीछे हम सब भाग रहे हैं। क्या उस दौलत की फूटी कौड़ी भी हम ले जा सकते हैं ? तब फिर यह भागम भाग क्यों ? पूरा जीवन जिस धन को कमाने के पीछे लगा देते हैं ,अंत में उस अर्जित धन का रति भर भी हम ले नहीं जा सकते हैं । तब फिर इसके पीछे पागल क्यों है ? यह हमारे अंदर जो अज्ञान है, मुझे अज्ञानी बनाकर जन्मो जन्म से रखे हुए हैं। जिस दिन हमारे अंदर छुपा ज्ञान जागृत हो जाएगा, यह सारी दुनिया, धन दौलत सब बेमानी लगने लगेगी। महिषासुर अपार शक्तिशाली होकर भी अज्ञानी था। हम सब स्वयं को ज्ञानी जरूर कहते है, लेकिन क्या वास्तव में हम सब ज्ञानी हैं ? जिसने ज्ञान को प्राप्त कर लिया, उसके लिए यह संसार नश्वर के समान हो गया। उसके लिए दुनिया की दौलत भी मिट्टी के समान हो जाती है।
भगवान महावीर, जिनका जन्म एक राजघराने में हुआ था। जिस पल उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी, उन्होंने अपने महल का त्याग कर दिया था। वे ज्ञान की प्राप्ति के लिए जंगलों की ओर दौड़ पड़े थे। महावीर ने खुद को जागरण कर भगवान बना दिया था । उन्होंने अंधकार में पड़े लाखों लोगों को ज्ञान की रोशनी दिया था। सिर्फ एक के जागरण से संसार जग सकता है। तब संसार के जगने से संसार का क्या हाल होगा ? सुखद आनन्द का अनुभव कर मन परम आनंद में डूब जाता है । भगवान बुद्ध, जिन्हें राजमहल से निकलने की अनुमति नहीं थी । जब भगवान बुद्ध में ज्ञान का जागरण हुआ था, तब महल और राजघराने के सभी सदस्य उन्हें रोक पाए थे ? नहीं । उन्होंने दुनिया में इतिहास ही रच दिया था। स्वयं के जागरण में दुनिया की समस्त ऊर्जा और शक्तियां निहित होती है। संसार का वैभव और संसार की सारी दौलत भी इस जागरण को पराजित नहीं कर सकता है। नवरात्र,अपनी बिखरी बाहरी शक्ति व ऊर्जा को पहचानने का पर्व है। नौ दिनों तक स्वयं के महिषासुर से लड़ने की जरूरत है । हमारे अंदर विद्यमान काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह, ये पंच विकार, जिससे आजीवन लड़ते रहते हैं,लेकिन इन पंच विकारों से मुक्त नहीं हो पाते हैं। उसके पीछे सबसे बड़ा कारण है, हम सब ने बाह्य दुनिया को ही सब कुछ मान लिया है। हम सबों ने बाहर रोशनी जरूर कर दिया है , किन्तु अंदर अंधेरा ही अंधेरा है।
अंदर के प्रकाश को जगाने का पर्व नवरात्र है । इन नौ दिनों में स्वयं के अंदर की आसुरी शक्तियों को नाश करने का पर्व है। सत्य को अनुभव करने का पर्व है । सत्य से साक्षात्कार करने का पर्व है । हम सब नौ दिनों तक नवरात्र का अनुष्ठान जरूर करते हैं। दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं। यह अनुष्ठान क्यों है ? यह दुर्गा सप्तशती का पाठ क्यों ? इस मर्म को जब हम जान जाएंगे, तब मन मस्तिष्क में एक विशेष आनंद की अनुभूति होगी। यह आनंद की प्राप्ति ही सच्चे अर्थों में नवरात्र है। आज पूरी दुनिया यश, धन, वैभव और बल के पीछे भाग रही है । जबकि ये यश,शक्ति बल, और वैभव शाश्वत रहने वाला नहीं है । नवरात्र स्वयं को पहचानने का पर्व है । स्वयं को जानने का पर्व है। स्वयं से साक्षात्कार करने का पर्व है।
यह शरीर पांच तत्वों के मेल से बना हुआ है । अंत में पांच तत्व अपने-अपने तत्वों में मिल जाते हैं। एक तत्व, आत्मा तत्व, अजर अमर अविनाशी है। पूरा जीवन हम सब इस आत्म शक्ति के साथ जीते हैं। लेकिन इस आत्म शक्ति को जानने की कभी कोशिश करते नहीं है। श्रीमद्भागवत गीता में भगवान कृष्ण ने रणभूमि में अर्जुन को इसी आत्म साक्षात्कार का ज्ञान दिया था। सच्चे अर्थों में नवरात्र महाभारत की तरह ही रणभूमि के रूप में हमारे सामने हैं । हम सब अर्जुन की भूमिका में हैं। मां जगदंबा कृष्ण के रूप में हम सबों को आत्म ज्ञान देने के लिए अवतरित होती है । बस जरूरत है, नवरात्र के इस उद्देश को समझने की।
जन्मो जन्म से बैठे स्वयं के महिषासुर को परास्त करने का पर्व नवरात्र है। हम सब के ज्ञान रूपी आंखों पर अज्ञानता की जो पट्टी बंधी हुई है, उसे खोलने की जरूरत है । जिस पल इस अंधकार की पट्टी को खोलने का मन बना लिया, समझ लीजिए, स्वयं के अंदर नवरात्र का अनुष्ठान जागृत हो गया । इसके लिए कहीं बाहर भाग दौड़ करने की जरूरत नहीं है, बल्कि स्वयं के अंदर विद्यमान नवरात्र की शक्ति को जगाने की जरूरत है। स्वामी विवेकानंद ने गुरु परमहंस से ज्ञान प्राप्त कर जो परचम लहराया था, वह क्या था ? सच्चे अर्थों में नवरात्र का जागरण ही था। उनका नवरात्र ऐसा जगा था कि जब तक दुनिया कायम रहेगी, स्वामी विवेकानंद के विचार लोगों को प्रेरित करता रहेगा। नवरात्र बाहर बिखरी ऊर्जा को स्वयं में आत्मसात करने का काल है । आंतरिक उर्जा से बड़ी कोई शक्ति नहीं है। इन नौ दिन रात की अवधि में स्वयं को पहचानने का अवसर मिलता है। जिसने स्वयं को जान लिया ,स्वयं को जागृत कर लिया, नवरात्र हो गया।
विजय केसरी,
( कथाकार स्तंभकार )
पंच मंदिर चौक, हजारीबाग - 825 301,
मोबाइल नंबर :- 92347 99550
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