Friday, October 18, 2024

भगवान का रूप

 

*भगवान*


*भगवान कहाँ हैं ? कौन हैं ? किसने देखा है ?*



मैं कईं दिनों से बेरोजगार था, एक एक रूपये की कीमत जैसे करोड़ो लग रही थी, इस उठापटक में था कि कहीं नौकरी लग जाए।

आज एक इंटरव्यू था, पर दूसरे शहर और जाने के लिए जेब में सिर्फ दस रूपये थे। मुझे कम से कम पांच सौ की जरूरत थी।

अपने एकलौते इन्टरव्यू वाले कपड़े रात में धो पड़ोसी की प्रेस मांग के तैयार कर पहन अपने योग्यताओं की मोटी फाइल बगल में दबा दो बिस्कुट खा के निकलाl

लिफ्ट ले, पैदल जैसे तैसे चिलचिलाती धूप में तरबतर बस स्टेंड शायद कोई पहचान वाला मिल जाए।

काफी देर खड़े रहने के बाद भी कोई न दिखा।

मन में घबराहट और मायूसी थी, क्या करूंगा अब कैसे पहचुंगा।

पास के मंदिर पर जा पहुंचा, दर्शन कर सीढ़ियों पर बैठा था पास में ही एक फकीर बैठा था l

उसके कटोरे में मेरी जेब और बैंक एकाउंट से भी ज्यादा पैसे पड़े थेl

मेरी नजरे और हालत समझ के बोला, "कुछ मदद कर सकता हूं क्या?"

मैं मुस्कुराता बोला, "आप क्या मदद करोगे?"

"चाहो तो मेरे पूरे पैसे रख लो ।" वो मुस्कुराता बोला।

मैं चौंक गया । उसे कैसे पता मेरी जरूरत । 

मैने कहा "क्यों ...?"

"शायद आप को जरूरत है" वो गंभीरता से बोला।

"हां है तो पर तुम्हारा क्या तुम तो दिन भर मांग के कमाते हो ।" मैने उस का पक्ष रखते बोला।

वो हँसता हुआ बोला, "मैं नहीं मांगता साहब लोग डाल जाते है मेरे कटोरे में पुण्य कमानें l

मैं तो फकीर हूं मुझे इनका कोई मोह नहीं, मुझे सिर्फ भुख लगती है, वो भी एक टाईम और कुछ दवाईंया बस l

मैं तो खुद ये सारे पैसे मंदिर की पेटी में डाल देता हूं ।" वो सहज था कहते कहते।

मैनें हैरानी से पूछा, "फिर यहां बैठते क्यों हो..?"

"आप जैसो की मदद करनें ।" वो फिर मंद मंद मुस्कुरा रहा था।

मै उसका मुंह देखता रह गया, उसने पांच सौ मेरे हाथ पर रख दिए और बोला, "जब हो तो लौटा देना।"


मैं शुक्रिया जताता वहां से अपने गंतव्य तक पहुचा, मेरा इंटरव्यू हुआ, और सिलेक्शन भी ।

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मैं खुशी खुशी वापस आया सोचा उस फकीर को धन्यवाद दूं,

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मंदिर पहुचां 

बाहर सीढ़़ियों पर भीड़ थी, 

मैं घुस के अंदर पहुचा देखा 


वही फकीर मरा पड़ा था l

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मैं भौंचक्का रह गया।, मैने दूसरो से पूछा कैसे हुआ l

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पता चला, वो किसी बिमारी से परेशान था, सिर्फ दवाईयों पर जिन्दा था आज उसके पास दवाईंया नहीं थी और न उन्हैं खरीदने या अस्पताल जाने के पैसे ।

मै आवाक सा उस फकीर को देख रहा था। अपनी दवाईयों के पैसे वो मुझे दे गया था।

जिन पैसों पे उसकी जिंदगी का दारोमदार था, उन पैसों से मेरी ज़िंदगी बना दी थी....

भीड़ में से कोई बोला, अच्छा हुआ मर गया ये भिखारी भी साले बोझ होते है कोई काम के नहीं।...........

मेरी आँखें डबडबा आयी।

 वो भिखारी कहां था, वो तो मेरे लिए भगवान ही था




 श्रीभूषण शर्मा * 

*सेवक :-

 गोरी गिरधर गौशाला* *(वृन्दावन )*

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