केन्द्र सरकार ने देश भर में पॉच हजार ग्राम न्यायालय शुरू करने की योजना बनाई है । गॉधी जयंती के मौके पर दो अक्टूबर को इस संबंध में अधिसूचना जारी की जाएगी । लंबित मुकदमों के जल्द निपटारे के लिए विधि-मंत्रालय ने यह फैसला लिया है । देश के ग्रामीण अंचलों में रहनेवाले ग्रामीणों के छोटे-मोटे विवादों का गॉव के स्तर पर ही समाधान की केन्द्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना के तहत ग्रामीण न्यायालयों की स्थापना दो अक्टूबर से अस्तित्व में आ जाएँगे । ग्रामीण न्यायालयों की स्थापना पर केन्द्र सरकार करीब ३२५ करोड़ रूपए सालाना खर्च करेगी । ग्रामीण न्यायालयों में विवादों का निपटारा करने के लिए प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट नियुक्त किए जा रहे हैं । इन न्यायिक मजिस्ट्रेट को न्याय अधिकारी के नाम से संबोधित किया जाएगा । केंद्र सरकार द्वारा विभिन्न राज्यों में स्थापना संबंधी कानून लागू करने के लिए अधिसूचना जारी की जा रही है । दरवाजे पर ही न्याय सुलभ कराने की इस अतिमहत्वपूर्ण योजना को मूर्त्त रूप देने में २३ साल लग गए हैं । ग्रामीण स्तर पर ही विवादों के निपटारे के लिए ग्राम न्यायालय स्थापित करने की सिफारिश सबसे पहले १९८६ में विधि आयोग ने अपनी ११४ वीं रिपोर्ट में की थी ।
विधि मंत्रालय के सचिव के अनुसार ये अदालतें पंचायत स्तर पर शुरू की जाएगी । अधिसूचना जारी होते ही राज्य सरकारें इस दिशा में पहल करेंगी । केंद्रीय विधि मंत्रालय के सचिव ने बताया कि इस प्रक्रिया में थोड़ा समय लगेगा । इस परियोजना पर होने वाले खर्च की वजह से राज्य सरकारों ने पहले रूचि नहीं दिखाई थी । प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पिछले महीने संपन्न एक राष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान राज्य सरकारों से इस दिशा में तुरंत जरूरी कदम उठाने को कहा था । पूरे देश में ३.११ करोड़ मामले लंबित हैं । इनमें २.७१ करोड़ मामलों को निचली अदालतों में निपटाया जा सकता है । ग्राम न्यायालयों की मदद से मुकदमों के निपटारे में तेजी आने और इससे आम लोगों को राहत मिलने की उम्मीद है । केन्द्र सरकार ने अगले वित्तीय वर्ष के दौरान २०० ग्राम अदालतें शुरू करने की योजना बनाई है । तीन साल के दौरान इनकी संख्या पाँच हजार करने की है । ग्राम न्यायालय अधिनियम २००८ के तहत प्रथम श्रेणी के न्यायाधीश को ऐसे मामलों की सुनवाई करनी है । इन न्यायाधीशों की न्याय अधिकारी कहा जाएगा तथा इनक पद एवं वेतन में किसी भी तरह का परिवर्त्तन नहीं किया जाएगा । जिला मुख्यालयों और तालुक में स्थापित की जानेवाली अदालतों की पूँजी खाते की पूरी लागत केंद्र वहन करेगा । अदालतें बस या जीप में गाँव जाएँगे और वहाँ मुकदमों का निस्तारण करेंगी । ऐसी अदालतों में मुकदमे का खर्च मुकदमा करनेवाले पक्षों को नहीं बल्कि राज्यों को वहन करना पड़ेगा ।
( गोपाल प्रसाद )
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