Wednesday, September 17, 2014

क्यों है विश्व में इकलौता देव का ऐतिहासिक सूर्य मंदिर




प्रस्तुति-- प्रेम तिवारी, धीरज पा


औरंगाबाद. बिहार के औरंगाबाद जिले के देव मंदिर स्थित ऐतिहासिक, धार्मिक, सांस्कृतिक एवं पर्यटन के दृष्टिकोण से विश्व प्रसिद्ध है।  त्रेतायुगीन इस मंदिर में पर्यटकों और श्रद्धालु की अटूट आस्था है। इस मंदिर को दुनिया का इकलौता पश्चिमाभिमुख सूर्यमंदिर होने का गौरव हासिल है। आमतोर पर तमाम मंदिरो का प्रवेश द्वार पूर्वे में होता है ,मगर सूर्य मंदिर होने के बावजूद इसका मुख पश्चिममें होना ही अनोखा आकर्षण का केंद्र है।

इसे अभूतपूर्व स्थापत्य कला, शिल्प एवं कलात्मक भव्यता का अद्भूत नमूना कहा जाता है। माना जाता है कि इस मंदिर को कोई साधारण शिल्पी ने नहीं बल्कि इसका निर्माण खुद देव शिल्पी भगवान विश्वकर्मा ने अपने हाथों से किया है। काले और भूरे पत्थरों की अति सुंदर कृति जिस तरह ओड़िसा के पूरी के जगन्नाथ मंदिर और कोणार्क के सूर्यमंदिर का है, ठीक उसी से मिलता-जुलता शिल्प इस मंदिर का भी है।

कहा जाता है कि यह मंदिर अति प्राचीन है जिसका इलापुत्र राजा ऐल ने त्रेतायुग के 12 लाख 16 हजार वर्ष बीत जाने के बाद निर्माण आरंभ कराया था। इस मंदिर में 7 रथों से सूर्य की उत्कीर्ण प्रस्तर मूर्तियां अपने तीनों रूपों उदयाचल-प्रातः सूर्य, मध्याचल-मध्य सूर्य और अस्ताचल सूर्याअस्त सूर्य के रूप में विद्यमान हैं। मंदिर के भीतर लगे शिलालेख और पत्थरों पर अंकित अक्षरों से तो यह मंदिर अति प्राचीन। पूरी दुनिया में देव का ही सूर्यमंदिर एकमात्र ऐसा सूर्य मंदिर है, जो पूर्वाभिमुख न होकर पश्चिमाभिमुख  है। इसके लोकप्रियता का मपख कारण भी यही पश्चिमाभिमुख है।

आगे पढ़िए छठ पूजा के दौरान यहां दर्शन-पूजन की अपनी एक विशिष्ट धार्मिक महता...

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