प्रस्तुति- उषा रानी/ राजेन्द्र प्रसाद सिन्हा
आगरा। वृंदावन की कुंज गलियों से निकले राधा-कृष्ण के बोल तो सबको निहाल करते हैं। परंतु आगरा की ऐसी गली के बारे में कुछ ही लोगों ने सुना है। यह है प्राचीन पन्नी गली। सबसे पहले यहीं से झंकृत हुई थी राधास्वामी मत की ध्वनि, जो आज पूरे विश्व में गुंजायमान है। देश-विदेश में इसके कई करोड़ अनुयायी सत्संगी हैं।
कश्मीरी बाजार की इस गली में प्रवेश करने के बाद कुछ दूरी पर दायीं ओर यह सत्संग भवन है। इसके ऊपरी कक्ष में राधास्वामी मत के संस्थापक कुल मालिक परम पुरुष पूरन धनी स्वामीजी महाराज [शिवदयालजी महाराज] का जन्म 24 अगस्त 1818 को हुआ। बचपन से ही उनका मन सुरत साधना योग में लगने लगा। वह इस भवन में सत्संग करने लगे। इस सत्संग को उन्होंने राधास्वामी नाम दिया। इसी दौरान उनके कुछ शिष्य बन गए। इनमें से उनके चयनित शिष्य यहां नियमित आते। उन्हें प्रेम, शांति और सद्भावना का संदेश दिया जाता।
धीरे-धीरे इस मत के अनुयायियों की संख्या बढ़ने लगी। आखिर इस मत के द्वितीय गुरु परम पुरुष पूरन धनी हजूर महाराज [राय बहादुर सालिगराम महाराज] की विशेष प्रार्थना पर स्वामीजी महाराज ने इसी भवन के आंगन में 15 फरवरी 1861 में इस मत को आम जनता के लिए शुरू किया। बाद में स्वामीजी महाराज ने इसी भवन में सन् 1878 ई. में अपना चोला छोड़ दिया। इनकी समाधि स्वामी बाग में है, जहां भव्य स्मारक निर्माणाधीन है। जबकि हुजूर महाराज की पवित्र समाधि पीपलमंडी के हुजूरी भवन में है। वहां वर्तमान गुरु दादाजी महाराज [डॉ.अगम प्रसाद माथुर] द्वारा जगत कल्याण के लिए नियमित प्रवचन दिए जाते हैं।
प्रतिदिन होता है सत्संग
पन्नी गली के इस सत्संग भवन के सेवादार नत्थी प्रसाद और लाल बहादुर ने बताया कि यहां प्रतिदिन प्रात: सत्संग होता है। इसके अलावा प्रत्येक गुरुवार को बड़ा सत्संग होता है। स्वामीजी महाराज के जन्म दिवस जन्माष्टमी पर भव्य एवं विशाल सत्संग यहां किया जाता है, जिसमें देश-विदेश से सत्संगी आते हैं।
प्राचीनता की झलक
जिस कक्ष में स्वामीजी महाराज का जन्म हुआ था, वहां उनका चित्र रखा हुआ है। ऊपरी मंजिल पर सत्संग भवन है, वहां स्वामीजी महाराज की चरण पादुकाएं रखी हुई हैं। जहां नियमित सत्संग होता है। भवन की देखरेख अचल सरन सेठ और प्रीतम बाबू के निर्देशन में होती है। इस भवन में व्यवस्था दुरुस्त है, लेकिन इसकी प्राचीनता को ज्यों का त्यों रखा गया है।
तीव्र गति से बढ़ा मत
स्थापना के बाद इस मत का तेजी से विस्तार हुआ। इसकी शाखाएं बढ़ती गईं। सबसे अधिक मजबूत और विस्तृत है राधास्वामी व्यास शाखा, जिसके 500 से अधिक सत्संग केंद्र हैं। इसके 50 लाख से ज्यादा अनुयायी देश-विदेश में हैं। आदि केंद्र हजूरी भवन, पीपलमंडी के लाखों अनुयाई देश-विदेश में हैं। स्वामी बाग में प्रतिदिन सत्संग होता है, इनके भी बेशुमार अनुयायी हैं। राधास्वामी सत्संग सभा, दयालबाग का अपना अलग अस्तित्व है। इसके गुरु, प्रो. पीएस सत्संगी शैक्षिक और आध्यात्मिक संदेश देते हैं। इसके अलावा अन्य शाखाएं भी हो गयी हैं। जितनी भी शाखाएं इस मत की हैं, सभी का केंद्र बिंदु पन्नी गली का यह सत्संग और हजूरी भवन है।
क्या है मत का आधार
इस मत का मुख्य आधार सुरत शब्द योग है, जो एक आंतरिक साधना या अभ्यास है। यह संत मत और आध्यात्मिक परंपरा में अपनाई जाने वाली योग पद्धति है। संस्कृत में सुरत का अर्थ आत्मा, शब्द का अर्थ ध्वनि और योग का अर्थ जुड़ना है। इसी शब्द को ध्वनि की धारा या श्रव्य जीवन धारा कहते हैं। इसके आधार पर सत्संगियों को सुरत शब्द का संदेश दिया जाता है।
कश्मीरी बाजार की इस गली में प्रवेश करने के बाद कुछ दूरी पर दायीं ओर यह सत्संग भवन है। इसके ऊपरी कक्ष में राधास्वामी मत के संस्थापक कुल मालिक परम पुरुष पूरन धनी स्वामीजी महाराज [शिवदयालजी महाराज] का जन्म 24 अगस्त 1818 को हुआ। बचपन से ही उनका मन सुरत साधना योग में लगने लगा। वह इस भवन में सत्संग करने लगे। इस सत्संग को उन्होंने राधास्वामी नाम दिया। इसी दौरान उनके कुछ शिष्य बन गए। इनमें से उनके चयनित शिष्य यहां नियमित आते। उन्हें प्रेम, शांति और सद्भावना का संदेश दिया जाता।
धीरे-धीरे इस मत के अनुयायियों की संख्या बढ़ने लगी। आखिर इस मत के द्वितीय गुरु परम पुरुष पूरन धनी हजूर महाराज [राय बहादुर सालिगराम महाराज] की विशेष प्रार्थना पर स्वामीजी महाराज ने इसी भवन के आंगन में 15 फरवरी 1861 में इस मत को आम जनता के लिए शुरू किया। बाद में स्वामीजी महाराज ने इसी भवन में सन् 1878 ई. में अपना चोला छोड़ दिया। इनकी समाधि स्वामी बाग में है, जहां भव्य स्मारक निर्माणाधीन है। जबकि हुजूर महाराज की पवित्र समाधि पीपलमंडी के हुजूरी भवन में है। वहां वर्तमान गुरु दादाजी महाराज [डॉ.अगम प्रसाद माथुर] द्वारा जगत कल्याण के लिए नियमित प्रवचन दिए जाते हैं।
प्रतिदिन होता है सत्संग
पन्नी गली के इस सत्संग भवन के सेवादार नत्थी प्रसाद और लाल बहादुर ने बताया कि यहां प्रतिदिन प्रात: सत्संग होता है। इसके अलावा प्रत्येक गुरुवार को बड़ा सत्संग होता है। स्वामीजी महाराज के जन्म दिवस जन्माष्टमी पर भव्य एवं विशाल सत्संग यहां किया जाता है, जिसमें देश-विदेश से सत्संगी आते हैं।
प्राचीनता की झलक
जिस कक्ष में स्वामीजी महाराज का जन्म हुआ था, वहां उनका चित्र रखा हुआ है। ऊपरी मंजिल पर सत्संग भवन है, वहां स्वामीजी महाराज की चरण पादुकाएं रखी हुई हैं। जहां नियमित सत्संग होता है। भवन की देखरेख अचल सरन सेठ और प्रीतम बाबू के निर्देशन में होती है। इस भवन में व्यवस्था दुरुस्त है, लेकिन इसकी प्राचीनता को ज्यों का त्यों रखा गया है।
तीव्र गति से बढ़ा मत
स्थापना के बाद इस मत का तेजी से विस्तार हुआ। इसकी शाखाएं बढ़ती गईं। सबसे अधिक मजबूत और विस्तृत है राधास्वामी व्यास शाखा, जिसके 500 से अधिक सत्संग केंद्र हैं। इसके 50 लाख से ज्यादा अनुयायी देश-विदेश में हैं। आदि केंद्र हजूरी भवन, पीपलमंडी के लाखों अनुयाई देश-विदेश में हैं। स्वामी बाग में प्रतिदिन सत्संग होता है, इनके भी बेशुमार अनुयायी हैं। राधास्वामी सत्संग सभा, दयालबाग का अपना अलग अस्तित्व है। इसके गुरु, प्रो. पीएस सत्संगी शैक्षिक और आध्यात्मिक संदेश देते हैं। इसके अलावा अन्य शाखाएं भी हो गयी हैं। जितनी भी शाखाएं इस मत की हैं, सभी का केंद्र बिंदु पन्नी गली का यह सत्संग और हजूरी भवन है।
क्या है मत का आधार
इस मत का मुख्य आधार सुरत शब्द योग है, जो एक आंतरिक साधना या अभ्यास है। यह संत मत और आध्यात्मिक परंपरा में अपनाई जाने वाली योग पद्धति है। संस्कृत में सुरत का अर्थ आत्मा, शब्द का अर्थ ध्वनि और योग का अर्थ जुड़ना है। इसी शब्द को ध्वनि की धारा या श्रव्य जीवन धारा कहते हैं। इसके आधार पर सत्संगियों को सुरत शब्द का संदेश दिया जाता है।
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