'शिक्षक दिवस' पर गुरुवार डॉ० भारत यायावर को विनम्र समर्पित हैं यह संस्मरण
(चंद पंक्तियां )/ विजय केसरी
आप सर ! हर पल याद आते हैं। आपकी कमी हम सबों को बहुत खल रही है। यायावर सर से जीवन जीने की कला सीखी। उनकी रचनाएं आज भी पढ़ कर मन तृप्त हो जाता है । हर रचना कुछ न कुछ नई बात जरूर बताती रहती हैं। उनकी रचनाएं मर्म को स्पर्श करती हैं। संवेदना से ओतप्रोत हैं। उनकी रचनाएं समय के साथ संवाद करती नजर आती हैं। भारत यायावर अपनी कृतियों के माध्यम से सदैव लोगों के दिलों में रहेंगे। शिक्षक दिवस पर उन्हें याद कर आंखों से आंसू छलक पड़े। उनके साथ बिताए पल को कभी भूल नहीं सकता हूं। हर रोज उनका मेरी दुकान पर आना । घंटों साहित्य पर बात करना। इन्हीं स्मृतियों को चंद पंक्तियों में लिखने की एक कोशिश भर है।
भारत यायावर जी ने मुख्य रूप से मुझे और मेरे छोटे भाई राजकुमार केसरी को पढ़ाया था। यायावर जी का हमारे परिवार से ऐसा जुड़ाव हो गया कि हमारे अन्य दोनों छोटे भाई मनोज केसरी और प्रदीप केसरी भी उन्हें अपना गुरु मानते हैं। जब हम चार भाइयों की शादी हो गई। इस दरम्यान भी भारत यायावर जी का मेरे घर में आना जाना जारी रहा था । यायावर जी जब भी मेरे घर आते थे , हम सबों को कुछ ना कुछ नई बात जरूर बताते रहते। हम चारों भाइयों ने उनसे जीवन जीने की कला सीखी ।
भारत यायावर जी को हम सभी भाइयों की पत्नियां भी ऊन्हें अपना गुरु मानने लगीं थीं । आगे चलकर उन्होंने हमारे बच्चों को भी बहुत कुछ सिखाया और बताया था । उनकी सीख का ऐसा प्रभाव हुआ कि सभी बच्चे ऊंचे पदों पर कार्यरत है। वे सभी बच्चे भी उन्हें अपना गुरु मानते हैं। हम भाइयों की अनुपस्थिति में जब भी भारत यायावर जी मेरे आवास पर पहुंचे थे , हम भाइयों की पत्नियां उन्हें बड़े ही आदर भाव के साथ सम्मान करती थीं । वे सब सर से हुई बातचीत को बहुत ही प्रसन्न मन से हम लोगों को सुनाती थीं । यह ईश्वर का परम सौभाग्य है कि ऐसे व्यक्ति हम लोगों को गुरु के रूप में मिले।
आज 'शिक्षक दिवस' है। सभी शिक्षकों को मेरी ओर से ढेर सारी शुभकामनाएं। बचपन से लेकर अब तक सीखता ही चला आ रहा हूं। नित कुछ ना कुछ नए मिलने - जुलने वालों और पुस्तकों के पाठन से भी सीखता रहता हूं। हमेशा सीखने की ललक बनी रहती है। मुझ पर अपनी कृपा रखने और सिखाने वालों से जाने अनजाने में कुछ भूल हुई होगी तो क्षमा करेंगे।
सर्वप्रथम मैंने श्री भारता यायावर का नाम इसलिए दर्ज किया है कि उनके द्वारा दी गई शिक्षा का हमारे जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा है। यह मेरा सौभाग्य है कि बचपन से लेकर एक बर्ष तक उनकी कृपा मुझ पर बनी हुई थी । मैं कभी भी किसी भी परेशानी में रहा, उनकी बहुमूल्य वाणी ने मुझमें एक नई ऊर्जा भरी थी । आज वे स शरीर नहीं हैं, फिर भी उनकी कही बातें कुछ न कुछ सिखाती ही रहती हैं। वे हमेशा मेरे परिवार को आगे फलते फूलते देखना चाहते थे । वे हमेशा हम लोगों का शुभ चाहते थे । पिता के निधन के बाद मुझे परंपरागत खाद्यान्न का व्यवसाय प्राप्त हुआ था। अभी मैं ज्वेलरी के व्यवसाय से जुड़ा हुआ हूं। वे हमारे क्रमवार विकास में हमेशा साथ रहें थे।। उनकी सराहना भरी बातें मुझे हमेशा मार्ग प्रदर्शित करती रहीं।
श्री यायावर जी हमारे परिवार के सदस्यों के साथ ऐसा जुड़ चुके थे कि हम सभी उन्हें गुरु के साथ अपने परिवार का मजबूत स्तंभ मानते रहे थे। ऐसे देखा जाए तो हम चार भाइयों के स्कूल से लेकर कॉलेज तक कई शिक्षक मिले। सबों से हम भाइयों को सीखने का अवसर मिला। लेकिन भारत यायावर जी हम लोगों में ऐसा समाहित हो गए कि वे हमारे अस्तित्व का एक हिस्सा बन गए ।
गुरु का अर्थ है, अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला।
हम भाइयों के क्रमवार विकास में श्री भारत यायावर का न भूलने वाला सहयोग रहा है। बीच के काल खंड में वे हजारीबाग से बोकारो चले गए। इसके बावजूद भी उनसे हम लोगों की दूरियां कम नहीं हुई। हम सब हमेशा उन्हें याद करते रहते। भारत सर भी हम लोगों को याद करते। वे जब भी हजारीबाग आते। हम लोगों से जरूर मिलते थे। हम लोगों को आशीर्वाद देते थे । हम लोगों को आर्थिक रूप से आगे बढ़ते देखकर वे बहुत प्रसन्न होते थे । साथ ही वे यह भी शिक्षा देते कि तुम सब कभी भी नैतिकता का त्याग नहीं करते थे । धन पर कभी भी घमंड मत करो। तुम लोगों से जो भी बन पड़ता है, समाज सेवा के लिए जरूर करो। उनकी ये बातें हम सब हमेशा याद रखतें हैं ।
जब भारत यायावर जी हम दोनों भाइयों को घर में ट्यूशन दिया करते थे। उन्होंने हम दोनों भाइयों को कभी भी नहीं डांटा और ना मारा। हिंदी हो। अंग्रेजी हो। साइंस हो अथवा मैथेमेटिक्स हो,वे सब विषयों को इतनी सहजता से बताते कि बातें बहुत आसानी से मस्तिक में बातें पहुंच जाती । सालाना होने वाले स्कूल की परीक्षाओं में हम दोनों भाइयों को अच्छे अंक प्राप्त होते थे। इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी भारत सर का जो स्वभाव पहले वाला ही था । जब वे हम दोनों भाइयों को पढ़ाते थे। तब भी वे कविताओं की रचना किया करते थे। कभी-कभी कविता हम दोनों भाइयों को भी सुना दिया करते थे । साहित्य के प्रति उनका जो समर्पण उस समय था, इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी उनका वही लगाव बना हुआ था। उन्होंने साहित्य सृजन करते हुए अंतिम सांस ली थी ।
वे सरस्वती माता के सच्चे साधक और उपासक थे। वे साहित्य रचना कर्म के लिए ही पैदा हुए थे। देश के सुप्रसिद्ध प्रख्यात साहित्यकार, कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु की रचनाओं से वे इतने प्रभावित हुए कि देशभर में बिखरे पड़े रेणुजी के साहित्य को संकलित करने में लग गए। उन्होंने अपने जीवन का बहुमूल्य समय रेणु रचनावली को निर्मित करने में लगा दिया था । जिस कालखंड में श्री भारत यायावर जी, रेणु जी की रचनाओं को खोज रहे थे। देशभर का भ्रमण कर रहे थे। यात्रा पर यात्राएं कर रहे थे। एक पुस्तकालय से दूसरे पुस्तकालय की ओर बढ़ते चले जा रहे थे। उस समय वे बिल्कुल युवा थे। जबकि उस उम्र में युवा मौज मस्ती में लगे होते हैं। लेकिन यायावर जी ने एक साधक व तपस्वी के रूप में अपने जीवन का बहुमूल्य समय रेणु रचनावली को निर्मित करने में लगा दिया था । इसके साथ ही उन्होंने हिंदी साहित्य के अलावा कई भाषाओं के साहित्य का विराट अध्ययन किया। था वे निरंतर लिखते रहे और लिखते रहे थे। उन्होंने प्रख्यात साहित्यकार महावीर प्रसाद द्विवेदी रचनावली का 15 खंडों में संपादन कर साहित्य का बड़ा काम किया था ।
इसी दरम्यान वे कॉलेज की सेवा से जुड़े और पढ़ाने में ऐसा रम गए कि विद्यार्थीगण आज भी उन्हें याद करते हैं। उन्होंने कभी भी किताब खोल कर लेक्चर नहीं दिया। उनसे जिस विद्यार्थी ने भी सवाल का उत्तर जानना चाहा। बिना इधर उधर झांके श्री यायावर जी ने उसका तुरंत जवाब दे दिया। उनके यहां नियमित रूप से कॉलेज के छात्र छात्राएं आते रहते थे । हिंदी साहित्य संबंधी जानकारियां लेते रहते थे। भारत यायावर जी ने कभी भी किसी छात्र - छात्रा को निराश नहीं किया। छात्रों ने जो भी जानकारियां मांगी, उन्होंने दिया था।
इसीलिए देश भर के विभिन्न हिंदी के प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में उनकी रचनाएं छपती रहती थी। उनकी रचनाएं आज भी देशभर में पढ़ी जा रही हैं। देश भर से उनकी रचनाओं पर प्रतिक्रियाएं भी विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में छपती रहती हैं। उनकी रचनाएं देशभर में साहित्य की चर्चा के केंद्र में भी बनी रहती हैं। हजारीबाग जैसे छोटे शहर में जन्म लेकर उन्होंने राष्ट्रीय - अंतरराष्ट्रीय स्तर तक अपनी पहुंच बनाई थी । उनकी अब तक साठ से अधिक किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। वे जीवन के अंतिम क्षण तक साहित्य साधना में रत थे। देश की कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं ने उन पर कवर स्टोरी भी प्रकाशित किया था। भारत यायावर के व्यक्तित्व और कृतित्व पर लेखक गण कुछ ना कुछ लिखते ही रहते हैं, जो विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं। यह मेरा सौभाग्य है कि मैं भी उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर कुछ पंक्तियां अर्पित की है। उनका व्यक्तित्व इतना विराट होने के बावजूद मैंने उनमें कभी भी अहम का कोई भाव नहीं देखा। सहजता, सरलता उनके स्वभाव में शामिल था उनके मन में किसी के प्रति कोई भेदभाव नहीं रहता था। वे सभी को आदर करते थे। वे अपनी आलोचनाओं से घबराते नहीं थे । उनके जीवनकाल में उनकी रचनाओं पर नियमित रूप से आलोचनाएं छपती रहती थीं। वे बड़े ध्यान से आलोचनाओं को पढ़ते थे। वे गहन विचार-विमर्श कर ही कुछ पंक्तियां लिखते थे।
संपादन कला में भारत यायावर जी पूरी तरह पारंगत थे,जिस भी पुस्तक का उन्होंने संपादन किया, वह पुस्तक साहित्यिक धरोहर बन जाती हैं। आज भी उनकी पुस्तकें बड़े चाव से पढ़ी जाती हैं। उनकी संपादित पुस्तकों एवं कृतियों पर कई छात्र शोधरत हैं।
झारखंड के हिंदी साहित्य के प्रख्यात कथाकार राधाकृष्ण की भी रचनाओं को खोज कर उन्होंने एक पुस्तक का रूप प्रदान किया था। वे, उनकी रचनाओं की खोज में लगे हुए थे। कथाकार राधा कृष्ण के पुत्र गोपाल जी के साथ उन्होंने देश के देशभर के कई पुस्तकालयों का दौरा भी किया था , लेकिन उनके निधन के बाद उनका यह कार्य अधूरा ही रह गया। नए साहित्यकार, यायावर जी हमेशा संवाद स्थापित कर कुछ न कुछ सीखते ही रहते थे। उनके विराट व्यक्तित्व के भीतर कोमल मन था, जो सभी से प्रेम करता था । प्रकृति को महसूस करता था। लोगों के सुख दुख की बातें भी सुनता था। दूसरों के दुख से दुखी होता था। दूसरे के आनंद में आनंदित होता था।
यायावर जी का हिंदी साहित्य के गद्य और पद्य दोनों विधा पर समान रूप से अधिकार था । उनके लेखों का विश्लेषण बहुत ही सूक्ष्म होता था। उनकी बातें मन को छूती थीं। विचार करने की एक नई दृष्टि प्रदान करती हैं। 'पुरखों के कोठार से ' स्थाई स्तंभ के माध्यम से उन्होंने कई पुरानी साहित्य के दबे हुए इतिहास को फिर से उद्घाटित किया। ऐसा लेख लिखने वाले वे भारत के पहले लेखक बन गए।
देश दुनिया में क्या कुछ हो रहा है? सब पर उनकी निगाह रहती थी। लेकिन वे फालतू के विवाद में नहीं पड़ते थे । वे समाज के हर बदलते रंग का जवाब साहित्य के माध्यम से देते थे । भारत यायावर जी का कहना था कि दुनिया की कोई भी चीज ऐसी नहीं ,जो साहित्य से परे है । साहित्य के अंदर में दुनिया की सारी चीजें समाहित है। जिसने साहित्य को गले लगाया दुनिया के सब ज्ञान को प्राप्त कर लिया। साहित्य में विज्ञान है। अंकगणित है। कला है। अध्यात्म है। आयुर्वेद है। बस! उसे समझने और मनन करने की जरूरत है। उनका साहित्य में गहरी रूचि रहने के कारण वे इस तरह की बातें कह पाते हैं।
मैंने ऊपर दर्ज किया है कि भारत यायावर जी का गद्य और पद्य दोनों विधाओं पर समान रूप से पकड़ थी।
उनकी कविताओं पर मैं विनम्रता पूर्वक कहना चाहता हूं कि उनकी कविताएं जीवन की सच्चाई को बयान करती है। वे समाज में जो देखते थे। जो महसूस करते थे । अपने घर में जो देखते थे। उसको ही, उन्होंने अपनी पंक्तियों में पिरोया था । उनकी पंक्तियां दिल का राग सुनाती हैं। अपना हाल बताती हैं। मेरा हाल पूछती हैं।
उनका 'हाल बेहाल' और 'कविता फिर भी मुस्कुराएगी' कविता संग्रह की कविताएं जीवन के हर पक्षों पर विमर्श करती नजर आती हैं। जीवन की बात बताती हैं। जीवन की राह दिखाती है। एक नई दृष्टि भी प्रदान करती हैं।
उनकी कविताएं जब पढ़ता हूं, तब लगता है ये पंक्तियां मुझसे जुड़ी हुई है। कविताएं मुझसे बातें भी करती हैं। मेरा दुखड़ा सुनती हैं। खुद अपना दुखड़ा भी बताती हैं। कविता की पंक्तियां मात्र कविता नहीं बल्कि हम साथी बनी नजर आती है।
यह मेरा परम सौभाग्य है कि भारत यायावर जैसे शब्द शिल्पी से कुछ सीखने और जानने का अवसर मिला।भारत यायावर जैसे गुरु पाकर जीवन धन्य हुआ।
गुरुवर भारत यायावर अब इस धरा पर नहीं है । फिर भी,..मैं महसूस करता हूं कि उनकी कृपा मुझ पर बनी हुई है । गत दिनों उनकी धर्मपत्नी संध्या सिंह जी ने यायावर जी की कृतियों को हजारीबाग के बिनोवा भावे पुस्तकालय को समर्पित कर दिया।
विजय केसरी ,
(कथाकार /स्तंभकार)
पंच मंदिर चौक, हजारीबाग - 825 301.
मोबाइल नंबर :- 92347 99550.
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