से आगे:- (18-831-मंगल)- महात्मा गांधी ने गोलमेज कांफ्रेंस के लिये लंड़न जाने से इंकार कर दिया। चारों तरफ चेमीगोइयां (कानाफूसी ) हो रही है ज्यादातर लोग नाखुश (अप्रसन्न ) मालूम होते हैं मगर रायआम्मा (जनता का मत) का ज्यादा एतबार (विश्वास ) नहीं है। उसे बदलते कुछ देर नहीं लगती इसके अलावा अभी एक और जहाज़ है जिस पर सवार होने से महात्मा गांधी अब भी वक्त से लंडन पहुंच सकते हैं और कोशिश की जा रही है कि आप और वायसराय में समझौता जाये। यह तो जाहिर है कि कांफ्रेन्स से इंडिया के कुछ ज्यादा तो हाथ पल्ले पड़ेगा नहीं क्योंकि जो मेम्बरान इस मरतबा मुन्तखब (चुने) हुए हैं उनके मुतफ़क़ुलराय (सहयत) होने की कम ही उम्मीद है और बिला उनके मुतफ़कुल हुए पार्लियामेन्ट क्या देवाल (देने वाली ) है? इसलिये महात्मा गांधी के लिये आराम इसी में है कि कांफ्रेन्स से अलग रहें। अलावाबरी (इसके अतिरिक्त ) जो कुछ भी लंडन में फ़ैसला होगा अगर वह वहां मौजूद रहते तो उसके मुतअल्लिक (संबंध में) उन्हें अपनी पोजीशन फ़ौरन साफ़ करनी पड़ती। अब फ़ैसला होने के बाद जब उनसे राय तलब (मांगी जायगी) होगी तो फुरसत से सोच समझकर और अपने मोतमदों (विश्वस्तों) से मशवरा (परामर्श) करके अपनी राय कायम करेंगे और जवाब देंगे। जब तक अहले-हिन्द (भारतवासी ) अंग्रेज़ों से बढ़कर संगठन और होशियारी न दिखलावेंगे उस वक़्त तक उनका पल्ला हल्का ही रहेगा। क्रमशः---------
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