कारिता के आदि पुरूष देवर्षि नारद
मृत्युंजय दीक्षित
सृष्टिकर्ता
प्रजापति ब्रह्मा के मानस पुत्र नारद। त्रिकालदर्शी पुरूष नारद देव, दानव
और मानव सभी के कार्यों में सहायक देवर्षि नारद। देवर्षि नारद एक ऐसे महान
व्यक्तित्व के स्वामी व सांसारिक घटनाओं के ज्ञाता थे कि उनके परिणामों तक
से भी वे भली भांति परिचित होते थे। वे शत्रु तथा मित्र दोनों में ही
लोकप्रिय थे। आनन्द, भक्ति, विनम्रता, ज्ञान, कौशल के कारण उन्हें देवर्षि
की पद्वि प्राप्त थी। ईश्वर भक्ति की स्थापना तथा प्रचार-प्रसार के लिए ही
नारद जी का अवतार हुआ। देवर्षि नारद व्यास वाल्मीकि और शुकदेव जी के गुरू
रहे। श्रीमद्भागवत एवं रामायण जैसे अत्यंत पवित्र व अदभुत ग्रन्थ हमें नारद
जी की कृपा से ही प्राप्त हुए हैं। प्रहलाद, ध्रुव और राजा अम्बरीश जैसे
महान व्यक्तित्वों को नारद जी ने ही भक्ति मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी।
देव नारद ब्रहमा, शंकर, सनत कुमार, महर्षि कपिल, स्वायम्भुव मनु आदि 12
आचार्यों में अन्यतम हैं। वराह पुराण में देवर्षि नारद को पूर्व जन्म में
सारस्वत् नामक एक ब्राह्मण बताया गया है। जिन्होंने ‘ओं नमो नारायणाय’ इस
मंत्र के जप से भगवान नारायण का साक्षात्कार किया और पुनः ब्रह्मा जी के 10
मानस पुत्रों के रूप में अवतरित हुए। देवर्षि नारद तीनों लोको में बिना
बाधा के विचरण करने वाले परम तपस्वी तथा ब्रह्म तेज से संपन्न हैं। उन्हें
धर्म बल से परात्पर परमात्मा का ज्ञान है। उनका वर्ण गौर शिर पर सुंदर शिखा
सुशोभित है। उनके शरीर में एक प्रकार की दिव्य क्रांति उज्जवल ज्योति
निकलती रहती है। वे देवराज इंद्र द्वारा प्राप्त श्वेत, महीन तथा दो दिव्य
वस्त्रों को धारण किये रहते हैं। ईश्वरीय प्रेरणा से लगातार कार्य किये
रहते हैं। वे संपूर्ण वेदान्त शास्त्र के ज्ञाता परम तेजस्वी तपस्वी और
ब्रह्म तेज से सम्पन्न हैं। वे आनुशांगिक धर्मों के भी ज्ञाता हैं। उनके
हृदय में संशय लेशमात्र भी नहीं है। वे धर्म निपुण तथा नाना धर्मों के
विशेषज्ञ हैं। लोप, आगम धर्म तथा वृत्ति संक्रमण के द्वारा प्रयोग में आए
हुए एक शब्द की अनेक अर्थों में विवेचना करते में सक्षम हैं। कृष्ण युग में
वे गोपियों के सबसे बड़े हित साधक बने। नारद जी ने ही कृष्ण युग में
गोपियों का वर्चस्व स्थापित किया। प्रथम पूज्य देव गणेश जी को नारद जी का
ही मार्ग दर्शन प्राप्त हुआ था।देवर्षि नारद भारतीय जीवन दर्शन में अत्यंत श्रेष्ठ हैं। उन्हें हनुमान जी का मन कहा गया है अर्थात् उन्हें इस बात का पता रहता था कि लोगों के मन में क्या चल रहा है। वे आदि संवाहक और आदि पत्रकार थे। देश के प्रथम समाचार-पत्र ‘उदन्त मार्तण्ड’ के प्रथम पृष्ठ पर भी नारद जी का उल्लेख हुआ है। सत्य नारायण जी की कथा के प्रथम श्लोक से पता चलता है कि देवर्षि नारद का सब कुछ समाज के लिए अर्पित था। देवर्षि नारद जी के द्वारा रचित अनेक ग्रन्थों का उल्लेख मिलता है ः- जिसमें प्रमुख हैं नारद पंचरात्र, नारद महापुराण, वृहन्नारदीय उपपुराण, नारद स्मृति ,नारद भक्ति सूत्र, नारद परिव्राजकोपनिषद् आदि।
उनके समय में संचार के इतने साधन नहीं थे फिर भी उन्हें हर घटना के विषय में जानकारी रहती थी तथा वे हर घटना को कल्याणकारी मार्ग पर ले जाते थे। देवर्षि नारद जिसे प्रेरणा लेकर आज के पत्रकार भी नये आयाम स्थापित कर सकते हैं।
* लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।
आपका यह लेख गाँधी परिवार पर केन्द्रित ब्लॉग मैं भी प्रकाशित किया गया है. पढने के लिए कृपया क्लिक करें.
ReplyDeletehttp://gandhi4indian.blogspot.com/