देवशिल्पी विश्वकर्मा ने किया है इस सूर्यमंदिर का निर्माण
देव स्थित भगवान भास्कर का विशाल मंदिर अपने अप्रतिम सौंदर्य और शिल्प के कारण सदियों से श्रद्धालुओं, वैज्ञानिकों, मूर्तिचोरों, तस्करों एवं आमजनों के लिए आकर्षण का केंद्र है। काले और भूरे पत्थरों की अति सुंदर कृति जिस तरह उड़ीसा प्रदेश के पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर का शिल्प है, ठीक उसी से मिलता-जुलता शिल्प देव के प्राचीन सूर्य मंदिर का भी है।
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मंदिर के निर्माणकाल के संबंध में उसके बाहर ब्राही लिपि में लिखित और संस्कृत में अनुवादित एक श्लोक जड़ा है, जिसके अनुसार 12 लाख 16 हजार वर्ष त्रेता युग के बीत जाने के बाद इलापुत्र पुरूरवा ऐल ने देव सूर्य मंदिर का निर्माण आरंभ करवाया। शिलालेख से पता चलता है कि सन् 2017 ईस्वी में इस पौराणिक मंदिर के निर्माण काल का एक लाख पचास हजार सत्रह वर्ष पूरा हो गया है।
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देव मंदिर में सात रथों से सूर्य की उत्कीर्ण प्रस्तर मूर्तियां अपने तीनों रूपों- उदयाचल-प्रातः सूर्य, मध्याचल- मध्य सूर्य और अस्ताचल -अस्त सूर्य के रूप में विद्यमान है। पूरे देश में देव का मंदिर ही एकमात्र ऐसा सूर्य मंदिर है जो पूर्वाभिमुख न होकर पश्चिमाभिमुख है। करीब एक सौ फीट ऊंचा यह सूर्य मंदिर स्थापत्य और वास्तुकला का अदभूत उदाहरण है। बिना सीमेंट अथवा चूना-गारा का प्रयोग किए आयताकार, वर्गाकार, अर्द्धवृत्ताकार, गोलाकार, त्रिभुजाकार आदि कई रूपों और आकारों में काटे गए पत्थरों को जोड़कर बनाया गया यह मंदिर अत्यंत आकर्षक व विस्मयकारी
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