पाकिस्तान में हिंदी दिवस मनाया जाए या नहीं, पर वह चीन को हिंदी पढ़ा रहा है। चीनियों को कम से कम हिंदी का कामचलाऊ ज्ञान सिखा रही है पाकिस्तान की नेशनल यूनिवर्सिटी आफ मॉडर्न लैंगवेज्ज (एनयूएमएल)। ये इस्लामाबाद में है। इधर बहुत सी विदेशी भाषाएं पढ़ाई-सिखाई जाती हैं। दक्षिण एशिया की भाषाओं के विभाग में हिन्दी के साथ-साथ बांग्ला भी पढ़ाई जाती है।इधर हिन्दी विभाग 1973 से चल रहा है।
पाकिस्तान से मुख्य रूप से चीनी और पाकिस्तानी डिप्लोमेट हिंदी सीखते हैं। दोनों देश मानते हैं कि चूंकि हिंदी भारत की राजभाषा है, इसलिए इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती। इसे सीखना जरूरी है। इसे जाने बिना बगैर भारत को समझना कठिन है। इधर से संयुक्त अरब अमीरत के सरकारी अफसर भी हिंदी सीखते हैं।
एनयूएमयू में हिन्दी का डिप्लोमा और सर्टिफिकेट कोर्स करवाता था। यहां से एम.फिल और पीएचडी की डिग्री भी ली जा सकती है। एनयूएमयू से पहली एम.फिल की डिग्री शाहीन जफर ने ली थी। यह 2015 की बात है। उनका थीसिस का विषय था ' हिंदी उपन्यासों में नारी चित्रण (1947-2000)'। जफर के गाइड प्रो. इफ्तिखार हुसैन आरिफ थे।
कुछ समय पहले तक हिन्दी विभाग की प्रमुख डा. नसीमा खातून थीं। उन्होंने नेपाल के त्रिभुवन विश्वविद्लाय से हिन्दी साहित्य में पी.एचडी की है। उनके प्रोफाइल से साफ है कि वह आगरा से संबंध रखती हैं। वह आगरा विश्वविद्लाय में भी पढ़ी हैं। आजकल हिन्दी विभाग की अध्यक्ष शाहीन जफर हैं। उन्होंने ही यहां से एम.फिल किया है। यहां नसीम रियाज भी है। वह पटना विश्वविद्लाय से इतिहास में एमए हैं। जुबैदा हसन भी इधर पढ़ा रही है! यहां की फैक्लटी को देखकर समझ आ रहा है कि हिन्दी वह पढ़ा रही हैं जो निकाह के बाद पाकिस्तान गईं हैं।
पर चूंकि दोनों देशों के संबंध लगातार खराब होते जा रहे हैं इसलिए सरहद के आरपार विवाह भी नहीं हो रहे या बहुत कम हो रहे हैं। इसका असर यहां के हिन्दी विभाग पर हो सकता है। आखिर उसे अध्यापक तो भारत से जाकर बसे ही लोगों में से मिल रहे थे।
अगर बात नेशनल यूनिवर्सिटी आफ मॉडर्न लैंगवेज्ज (एनयूएमएल) से हटकर करें तो पाकिस्तान की पंजाब यूनिवर्सिटी (लाहौर) में भी हिन्दी विभाग है। ये 1983 से चल रहा है। यहां 1947 तक तो हिन्दी विभाग था ही। वह खत्म कर दिया था। यहां से भी हिन्दी डिप्लोमा, बीए और एमए की डिग्री ली जा सकती है। यहां पर डॉ. मोहम्मद सलीम मजहर हिन्दी विभाग के डीन हैं और शबनम रियाज अस्सिटेंट प्रोफेसर हैं।
शबनम रियाज भी मूल रूप से भारतीय ही लग रही हैं। उन्होंने हिन्दी में एमए पटियाला की पंजाबी यूनिवर्सिटी से किया है। तो यही लगता है कि वह भी निकाह के बाद पाकिस्तान चली गईं। डॉ सलीम ने एमए पंजाब यूनिवर्सिटी से ही किया है।
हिन्दी बोलते पाकिस्तानी
हालांकि पाकिस्तान में हिन्दी को पढ़ने-पढ़ाने के लगभग सारे रास्ते बंद कर दिए गए, पर वह फिर भी अपने लिए जगह बना रही है। हिन्दी फिल्मों और भारतीय टीवी सीरियलों के चलते दर्जनों हिन्दी के शब्द आम पाकिस्तानियों की आम बोल-चाल में शामिल हो गए हैं। अब पाकिस्तानियों की जुबान में आप ‘जन्मतिथि’ ‘भूमि’ ‘विवाद’, ‘अटूट’, ‘विश्वास’, ‘आशीर्वाद’, ‘ चर्चा’, ‘पत्नी’, ‘ शांति’ जैसे अनेक शब्द सुन सकते हैं। इसकी एक वजह ये भी समझ आ रही कि खाड़ी के देशों में लाखों भारतीय-पाकिस्तानी एक साथ काम कर रहे हैं। दोनों के आपसी सौहार्दपूर्ण रिश्तों के चलते दोनों एक-दूसरे की जुबान सीख रहे हैं। दुबई,अबूधाबू, रियाद, शारजहां जैसे शहरों में हजारों पाकिस्तानी काम कर रहे हैं भारतीय कारोबारियों की कंपनियों, होटलों, रेस्तरां वगैरह में। इसके चलते वे हिन्दी के अनेक शब्द सीख लेते हैं।इस बीच, पाकिस्तानियों की हिन्दी को सीखने की एक वजह भारतीय़ समाज और संस्कृति को और अधिक गहनता से जानने की इच्छा भी है। ये इंटरनेट के माध्यम से हिन्दी सीख रहे हैं। और खुद पाकिस्तान के भीतर भी हिन्दी को जानने-समझने-सीखने की प्यास तेजी से बढ़ रही है।
क्यों सिंध के हिन्दू सीखते हिन्दी
उधर, पाकिस्तान के सिंध हिन्दी को जानने –समझने को लेकर वहां के हिन्दुओं में गहरी दिलचस्पी पैदा हो रही है। ये हिन्दी सीखने को लेकर खासे उत्साहित हैं। ये अपने बड़े-बुजुर्गों से हिन्दी सीख रहे हैं। इनकी चाहत है कि ये कम से कम इतनी हिन्दी तो जान लें ताकि ये हिन्दू धर्म की धार्मिक पुस्तकों को पढ़ सकें।
कराची में रहने वाले चंदर कुमार एमबीए हैं। पाकिस्तान की वित्तीय राजधानी में एक एनजीओ से जुड़े हैं। वे बता रहे थे कि सिंध के स्कूलों या कॉलेजों में हिन्दी को पढ़ने-पढ़ाने की किसी तरह की व्यवस्था नहीं है। लेकिन देश के विभाजन के बाद भी जो लोग रह गए थे हिन्दी जानने वाले, वे ही आगे की पीढ़ियों को हिन्दी पढ़ाते रहे। जिन्होंने उनसे हिन्दी जानी, वे आगे की पीढ़ियों को हिन्दी पढ़ाते रहे। चंदर कुमार हिन्दी सिंधी भाषा के माध्यम से जानी। सिंध में लाखों हिन्दू रहते हैं। कुछ हिन्दू गूगल साफ्टवेयर से भी हिन्दी सीख रहे हैं।
कौ न पढ़ाता हिन्दी
मुहाजिर कौमी मूवमेंट के सदर अल्ताफ हुसैन ने इस लेखक को सन 2004 में राजधानी दिल्ली में बताया था कि सिंध में उत्तर प्रदेश और बिहार से जाकर बसे लोग भी हिन्दी हिन्दुओं को पढ़ा देते हैं। उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों ने तो हिन्दी सीखी ही थी। सिंध सूबे में उत्तर प्रदेश और बिहार के लाखों लोग रहते हैं। ये हाल के सालों तक वहां पर जाकर बसते रहे हैं।
चंदर कुमार ने बताया कि पाकिस्तान में कम से कम मिडिल क्लास से संबंध रखने वाले हिन्दू तो हिन्दी सीखते ही हैं। हालांकि पाकिस्तान के हिन्दुओं की मातृभाषा हिन्दी नहीं है, पर वे हिन्दी से भावनात्मक रूप से जुड़ते हैं।
Haribhoomi
चित्र 1. हिंदी विभाग. 2. शाहीन जी
लेख साभार Vivek Shukla sir.