Thursday, February 16, 2023

सतसंग में पढ़ा गया बचन-

 *रा धा स्व आ मी!                

                     

 15-02-23-आज शाम सतसंग में पढ़ा गया बचन-

कल से आगे:- (18.4.31 सनीचर)-


आज शाम को स्कूल हॉस्टल्स की जानिब(ओर) से पार्टी थी। लेकिन खाने का इन्तजाम ठीक न था। मालूम होता है कि रसोईघर के मुन्तजिमान(प्रबंधकों)  अपने घर में भी ऐसा ही खाना खाते हैं।                                   

  रात के सतसंग में सवाल पेश(प्रस्तुत) हुआ कि सतगुरु को मत्था टेकने से क्या लाभ होता है। जवाब में बतलाया गया कि यह रोजाना तजरबे(अनुभव) की बात है कि अगर सड़क पर जाते हुए कोई आदमी हमारे पास से गुजरे तो हम कुछ परवा नहीं करते लेकिन अगर मालूम हो जाये कि वह आदमी हमारा अजीज(प्रिय) या बुजुर्ग(बड़ा) है तो हम फ़ौरन(तुरन्त) खास तवज्जुह (ध्यान) के साथ उसकी जानिब मुखातिब(आकृष्ट)  होते हैं और यथा योग्य बरताव करते हैं। अगर वह हमारा बुजुर्ग है तो फ़ौरन मारे अदब व प्यार के झुक जाते हैं। ऐसे ही जब किसी को तलाश करने पर सच्चे सतगुरु मिल जायें और साधन करने और उनकी मेहर होने पर उनकी पूरी पहचान आ जाये तो मारे प्रेम के बेसाख्ता(बेधड़क) प्रेमी जन उसके चरनों में लिपट जाता है। जब तक सतगुरु की पहचान नहीं आती तब तक उसके मन में तरह तरह के सवालात उठते हैं और वह महज दूसरों की देखा देखी सतगुरु के चरन छूने की कोशिश करता है। और जब अपनी कोशिश में कामयाब(सफ़ल) हो जाता है तो सिवाय इसके कि उसने अपने मन को खुश कर लिया दूसरा कोई फ़ायदा नहीं देखता। बरखिलाफ़ (विपरीत) इसके अधिकारी पुरुष सतगुरु के बदन से स्पर्श होने पर वही असर महसूस करता है जो एक प्रेमी अपने प्रीतम से मिलने पर महसूस करता है या लोहे का एक टुकड़ा चुम्बक से स्पर्श करने पर महसूस करता है। उस असर का लफ्जों(शब्दों) में बयान करना नामुमकिन(असम्भव) है।                                                              

 🙏🏻रा धा स्व आ मी🙏🏻 

रोजाना वाकिआत-परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज!*


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