Tuesday, May 16, 2023

रोजाना वाकिआत-परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज!

 

रा धा स्व आ मी!                                     

  15-05-23-आज शाम सतसंग में पढ़ा गया बचन-कल से आगे:-25-7-31- सनीचर का शेष भाग)-रात के सतसंग में बयान हुआ कि दुनिया का आम तौर से तो यह हाल है कि मालिक की जानिब कोई तवज्जुह(ध्यान) नहीं किया जाती।

 जब कोई मुश्किल या मुसीबत सर पर आती है तो लोग मालिक की तरफ तवज्जुह देते हैं और बतौर भिखारी के मालिक के रूबरू(सामने)दस्त बदुआ(प्रार्थना में हाथ जोड़े) होते हैं। खैर! इसी बहाने से मालिक की तरफ मुखातिब(प्रवृत)हों। नामुखातिब होने से ऐसे ही मुखातिब(प्रवृत) होना अच्छा। लेकिन वाजेह(स्पष्ट) हो कि इस तरह मुखातिब होने पर कभी कभी तो प्रार्थना मंजूर होकर इमदाद(सहायता) मिल जाती है लेकिन हमेशा कामयाबी नहीं होती. 

एक ऐसा भी तरीक़ा है कि जिस पर चलते बिला नागा कामयाबी हो सकती है वह यह है कि बजाय बतौर भिखारी के बतौर बच्चे के मालिक की तरफ रुजू(प्रवृत हो) लाओ। जैसे छोटा बच्चा अपनी मां से अपनी मोहब्बत के जोर पर चीजें मांगता है ऐसे ही तुम भी मोहब्बत के ज़ोर पर मालिक से हमकलाम(बातचीत करना)हो। लेकिन यह हालत तभी होगी जब तुम्हारा दिल बच्चे की तरह मासूम यानी निष्पाप होगा और जब बच्चे की तरह दिन रात मालिक से मोहब्बत करने की आदत डालोगे। जब तुम यह आदत डाल लोगे अव्वल तो तुम्हें किसी चीज के मांगने की जरूरत नहीं रहेगी क्योंकि वह दयाल मालिक खुद ही तुम्हारी हर तरह निगरानी (देखभाल )रखेगा और अगर कभी जरूरत भी पड़ी तो तुम्हारे मांग मांगते ही मांगते मंजूरी के अहकाम(आदेश) सादिर(जारी) हो जायेंगे। 

अगर रा धा स्व आ मी मत व रा धा स्व आ मी दयाल में सच्चा विश्वास है तो इस जुगती का इस्तेमाल करके पूरा फायदा उठाओ।                                                                                               

  🙏🏻रा धा स्व आ मी🙏🏻 

 रोजाना वाकिआत-परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज!


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