उत्तर प्रदेश चुनाव नज़दीक है, सो मुस्लिम आरक्षण के बहाने राजनीतिक दलों ने अपने-अपने वोट बैंक की जांच-परख शुरू कर दी है. अपना वोट बैंक बढ़ाने और दूसरों का घटाने का खेल भी शुरू हो गया है, लेकिन इस खेल में रंगनाथ मिश्र आयोग की रिपोर्ट शामिल नहीं है. आख़िर क्यों?दरअसल, कांग्रेस की नज़र उत्तर प्रदेश के मुस्लिम मतदाताओं पर है, जिनकी संख्या अच्छी-खासी है. वहां क़रीब 19 फीसदी मुस्लिम वोट हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में वहां 13 मुस्लिम पार्टियां मैदान में उतरी थीं. मुस्लिम मतदाता किसी एक पार्टी को ही अपना वोट देंगे या किस पार्टी के साथ जाएंगे, यह स्पष्ट नहीं है. नतीजतन, सभी राजनीतिक दल मुस्लिम मतदाताओं को लुभाने में लगे हैं. मुलायम सिंह यादव भी आरक्षण की मांग कर चुके हैं और अभी भी कर रहे हैं. साथ ही वह कांग्रेस की पहल को दिखावा बता रहे हैं. सरकार मुसलमानों को आरक्षण देने के मसले को अपने राजनीतिक फायदे के लिए एक अवसर के तौर पर देख रही है, लेकिन कांग्रेस के इस फैसले का विरोध होगा. भारतीय जनता पार्टी इसे मुद्दा बनाकर सरकार को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश करेगी और उसे उन सभी पार्टियों का समर्थन मिलेगा, जो ओबीसी वर्ग से आती हैं या उस वर्ग के समर्थन के सहारे ही जिनकी राजनीतिक दुकान चलती है.
मुस्लिम आरक्षण से जुड़ा एक और अहम मुद्दा है. केंद्र सरकार मुसलमानों को शेड्यूल कास्ट (एससी) का दर्जा देने से बच रही है. जबकि सच्चर कमेटी और रंगनाथ मिश्र आयोग की रिपोर्ट साफ-साफ बताती है कि सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक तौर पर देश के मुसलमानों की हालत दयनीय है. रंगनाथ मिश्र आयोग ने तो अपनी रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र किया है कि मुस्लिम अल्पसंख्यकों में से ज़्यादातर लोगों की हालत हिंदू दलितों से भी बदतर है. आयोग ने संविधान से पैरा 3 हटाने की भी सिफारिश की है. दरअसल, संविधान के पैरा 3 में राष्ट्रपति के आदेश 1950 का उल्लेख है, जिसके मुताबिक़ हिंदू धर्म के अलावा किसी और धर्म को मानने वाले व्यक्ति को अनुसूचित जाति का दर्जा नहीं दिया जा सकता है. बाद में बौद्धों और सिक्खों को भी एससी का दर्जा दिया गया, लेकिन मुस्लिम, ईसाई, जैन और पारसी धर्म के लोगों को अनुसूचित जाति (एससी) का दर्जा नहीं मिल सकता. एससी का दर्जा मिलते ही पिछड़े मुसलमानों को अपने आप विधानसभाओं और संसद में भी आरक्षण मिल जाएगा. इसलिए उनकी मुख्य मांग है कि 1950 का प्रेसिडेंसियल ऑर्डर वापस लिया जाए.
मुस्लिम आरक्षण का मसला केंद्र सरकार के लिए गले की हड्डी बन चुका है. रंगनाथ मिश्र आयोग की सिफारिशों के मुताबिक़, 15 फीसदी आरक्षण देने के लिए संविधान में संशोधन करना होगा, क्योंकि 50 फीसदी आरक्षण की सीमा पार करना पड़ेगा. दूसरी ओर ओबीसी कोटे में से आरक्षण देने की बात न तो कई राजनीतिक दल मानेंगे और न इस देश की सबसे बड़ी आबादी यानी ओबीसी. सबसे बड़ा सवाल यह है कि इन तमाम पेंचों के बाद भी मुस्लिम अल्पसंख्यकों के विकास की चिंता किसे है? ऐसा नहीं है कि रंगनाथ मिश्र आयोग की रिपोर्ट में स़िर्फ मुस्लिमों सहित अन्य अल्पसंख्यक समुदायों (बौद्ध एवं सिक्ख) के पिछड़े लोगों को आरक्षण देने की वकालत की गई है, बल्कि आयोग ने अल्पसंख्यकों की भलाई के लिए कई अन्य रास्ते भी बताए हैं. मसलन, उनके लिए ऋण, व्यापार एवं शिक्षा आदि की समुचित व्यवस्था कैसे की जा सकती है, इस संदर्भ में विशेष उपाय भी इस रिपोर्ट में बताए गए हैं, लेकिन इस सबकी चिंता किसी को नहीं है, सिवाय मुस्लिम आरक्षण के नाम पर राजनीति करने के. सभी राजनीतिक दलों को इस मुद्दे की गंभीरता और इसके क्रियान्वयन के रास्ते में आने वाली समस्याओं का अंदाजा है. फिर भी असल मुद्दे अल्पसंख्यकों के विकास से उनका कोई लेना-देना नहीं है.
म श्री एडम्स केविन, Aiico बीमा ऋण ऋण कम्पनी को एक प्रतिनिधि हुँ तपाईं व्यापार को लागि व्यक्तिगत ऋण चाहिन्छ? तुरुन्तै आफ्नो ऋण स्थानान्तरण दस्तावेज संग अगाडी बढन adams.credi@gmail.com: हामी तपाईं रुचि हो भने यो इमेल मा हामीलाई सम्पर्क, 3% ब्याज दर मा ऋण दिन
ReplyDelete