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नयी दिल्ली आज बनी थी राजधानी, 100वां जन्मदिन मुबारक हो |
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12 दिसंबर 1911 को भारत के तत्कालीन शासक जॉर्ज पंचम ने कोलकाता के बजाय नयी दिल्ली को ब्रिटिश काल की राजधानी घोषित किया था.
सदियों से कई राजाओं की राजनीतिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र रही नयी दिल्ली भारत की राजधानी के तौर पर अपने उदय के कल सौ साल पूरे करने जा रही है. इस अवसर पर वह अपने गौरवमय इतिहास में कई और रोचक पन्ने जोड़ेगी.
12 दिसंबर 1911 को भारत के तत्कालीन शासक जॉर्ज पंचम ने कोलकाता के बजाय नयी दिल्ली को ब्रिटिश काल की राजधानी घोषित किया और इस शहर का प्राचीन वैभव वापस लौटा.
नयी दिल्ली की स्थापना के सौ साल पूरे होने पर दिल्ली सरकार और भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (आईसीसीआर) जैसी अन्य सांस्कृतिक एजेंसियों ने साल भर तक विभिन्न आयोजन करने की योजना बनाई है.
सौ साल की हुई नई दिल्ली
100 साल पहले, अंग्रेज शासकों ने भारत की राजधानी को कोलकाता से दिल्ली लाने का फैसला लिया और नई दिल्ली बनाई. लेकिन दिल्ली का अपना इतिहास 3000 साल पुराना है. माना जाता है कि पांडवों ने इंद्रप्रस्थ का किला यमुना किनारे बनाया था, लगभग उसी जगह जहां आज मुगल जमाने में बना पुराना किला खड़ा है.
हर शासक ने दिल्ली को अपनी राजधानी के तौर पर एक अलग पहचान दी, वहीं सैंकड़ों बार दिल्ली पर हमले भी हुए. शासन के बदलने के साथ साथ, हर सुल्तान ने इलाके के एक हिस्से पर अपना किला बनाया और उसे एक नाम दिया.
माना जाता है कि मेहरौली के पास लाल कोट में आठवीं शताब्दी में तोमर खानदान ने अपना राज्य स्थापित किया था लेकिन 10वीं शताब्दी में राजपूत राजा पृथ्वीराज चौहान ने किला राय पिथौड़ा के साथ पहली बार दिल्ली को एक पहचान दी.
दिल्ली को जन्मदिन मुबारक: फोटो देखें
13वीं शताब्दी में गुलाम वंश के कुतुबुद्दीन ऐबक और उसके बाद इल्तुतमिश ने कुतुब मीनार बनाया जो आज भी दिल्ली के सबसे बड़े आकर्षणों में से है. कुतुब मीनार को संयुक्त राष्ट्र ने विश्व के सांस्कृतिक धरोहर के रूप में भी घोषित किया है.
गुलाम वंश के बाद दिल्ली में एक के बाद एक तुर्की, मध्य एशियाई और अफगान वंशों ने शहर पर नियंत्रण पाने की कोशिश की. खिलजी, तुगलक, सैयद और लोधी वंश के सुल्तानों ने दिल्ली में कई किलों और छोटे शहरों का निर्माण किया. खिलजियों ने सीरी में अपनी राजधानी बसाई और शहर के पास एक किले का निर्माण किया. सीरी किले के निर्माण में आज भी अफगान और तुर्की प्रभाव देखा जा सकता है.
14वीं शताब्दी में गयासुद्दीन तुगलक ने मेहरौली के पास तुगलकाबाद की स्थापना की. किले के पुराने हिस्से और दीवारें आज भी देखी जा सकती हैं. लेकिन तुगलक शासन के चौथे शहंशाह फिरोजशाह कोटला ने तुगलकाबाद से बाहर निकलकर अपना अलग फिरोजशाह कोटला नाम का शहर बनाया. फेरोजशाह कोटला अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम इसी के सामने बनाया गया है.
16वीं से लेकर 19वीं शताब्दी तक दिल्ली की कला और वहां के रहन सहन पर मुगल सल्तनत का प्रभाव रहा. मुगलों के समय में तुर्की, फारसी और भारतीय कलाओं के मिश्रण ने एक नई कला को जन्म दिया. जामा मस्जिद और लाल किला इसी वक्त में बनाए गए थे.
दिल्ली दुनिया के सबसे पुराने शहरों में से एक है. लेकिन 1911 में नई दिल्ली की स्थापना हुई और ब्रिटिश वास्तुकला ने दिल्ली के किलों और महलों के बीच अपनी जगह बना ली.
एड्विन लुटियंस ने इंडिया गेट, राष्ट्रपति भवन सहित नई दिल्ली को एक आधुनिक रूप दिया. दिल्ली कुल आठ शहरों को मिलाकर बनी है. इस सोमवार को नई दिल्ली की स्थापना हुए 100 साल हो जाएंगे.
जन्मदिन की खुशी में चहकेगी दिल्ली, होंगे कई आयोजन
इस अवसर पर विशेष स्मरणपत्र जारी किए जाएंगे और विशेष प्रदर्शनियों का आयोजन होगा. मुख्यमंत्री शीला दीक्षित एक किताब का विमोचन करेंगी. जिसमें दिल्ली के सात बार बसने उजड़ने और वर्तमान शहर के निर्माण का ब्यौरा होगा.
इसके अलावा, शहर के स्मारकों पर एक फोटो प्रदर्शनी आयोजित की जाएगी. हालांकि इस मौके पर कोई आधिकारिक आयोजन नहीं होगा और मुख्यमंत्री शाम को किताब का विमोचन करेंगी.
बुधवार को वह और उप राज्यपाल तेजेन्दर खन्ना ‘दास्तान ए दिल्ली’ नामक प्रदर्शनी का उद्घाटन करेंगे.बरस भर चलने वाले कार्यक्रमों की शुरूआत जनवरी से होगी. शहर की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत पर संस्कृति मंत्रालय कई आयोजन करेगा.
दिल्ली वाले अपने शहर के शताब्दी वर्ष के आयोजनों का आनंद ले रहे हैं और बाबा खड़ग सिंह मार्ग पर फूड फेस्टीवल में उनकी खासी भीड़ उमड़ रही है.‘दिल्ली के पकवान महोत्सव’ में दिल्ली के खानपान की संस्कृति नजर आ रही है. यहां तरह तरह के कबाब, कुल्फी और अन्य स्वदिष्ट पकवान लोगों को अपने स्वाद से दीवाना बना रहे हैं.
15 दिसंबर 1911 को किंग्सवे कैंप के दिल्ली दरबार में किंग जॉर्ज पंचम और क्वीन मैरी ने नए शहर की इमारत की आधारशिला रखी थी और ब्रिटिश वास्तुशिल्पी एडविन लुटियन्स तथा हर्बर्ट बाकर ने वर्तमान नयी दिल्ली की इबारत लिखी.
करीब 3000 साल से दिल्ली पर कई राजाओं और शासकों ने शासन किया और इनमें से प्रत्येक ने दिल्ली की विरासत पर अपनी अमिट छाप छोड़ी.
सदियों से कई राजाओं की राजनीतिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र रही नयी दिल्ली भारत की राजधानी के तौर पर अपने उदय के कल सौ साल पूरे करने जा रही है. इस अवसर पर वह अपने गौरवमय इतिहास में कई और रोचक पन्ने जोड़ेगी.
12 दिसंबर 1911 को भारत के तत्कालीन शासक जॉर्ज पंचम ने कोलकाता के बजाय नयी दिल्ली को ब्रिटिश काल की राजधानी घोषित किया और इस शहर का प्राचीन वैभव वापस लौटा.
नयी दिल्ली की स्थापना के सौ साल पूरे होने पर दिल्ली सरकार और भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (आईसीसीआर) जैसी अन्य सांस्कृतिक एजेंसियों ने साल भर तक विभिन्न आयोजन करने की योजना बनाई है.
सौ साल की हुई नई दिल्ली
100 साल पहले, अंग्रेज शासकों ने भारत की राजधानी को कोलकाता से दिल्ली लाने का फैसला लिया और नई दिल्ली बनाई. लेकिन दिल्ली का अपना इतिहास 3000 साल पुराना है. माना जाता है कि पांडवों ने इंद्रप्रस्थ का किला यमुना किनारे बनाया था, लगभग उसी जगह जहां आज मुगल जमाने में बना पुराना किला खड़ा है.
हर शासक ने दिल्ली को अपनी राजधानी के तौर पर एक अलग पहचान दी, वहीं सैंकड़ों बार दिल्ली पर हमले भी हुए. शासन के बदलने के साथ साथ, हर सुल्तान ने इलाके के एक हिस्से पर अपना किला बनाया और उसे एक नाम दिया.
माना जाता है कि मेहरौली के पास लाल कोट में आठवीं शताब्दी में तोमर खानदान ने अपना राज्य स्थापित किया था लेकिन 10वीं शताब्दी में राजपूत राजा पृथ्वीराज चौहान ने किला राय पिथौड़ा के साथ पहली बार दिल्ली को एक पहचान दी.
दिल्ली को जन्मदिन मुबारक: फोटो देखें
13वीं शताब्दी में गुलाम वंश के कुतुबुद्दीन ऐबक और उसके बाद इल्तुतमिश ने कुतुब मीनार बनाया जो आज भी दिल्ली के सबसे बड़े आकर्षणों में से है. कुतुब मीनार को संयुक्त राष्ट्र ने विश्व के सांस्कृतिक धरोहर के रूप में भी घोषित किया है.
गुलाम वंश के बाद दिल्ली में एक के बाद एक तुर्की, मध्य एशियाई और अफगान वंशों ने शहर पर नियंत्रण पाने की कोशिश की. खिलजी, तुगलक, सैयद और लोधी वंश के सुल्तानों ने दिल्ली में कई किलों और छोटे शहरों का निर्माण किया. खिलजियों ने सीरी में अपनी राजधानी बसाई और शहर के पास एक किले का निर्माण किया. सीरी किले के निर्माण में आज भी अफगान और तुर्की प्रभाव देखा जा सकता है.
14वीं शताब्दी में गयासुद्दीन तुगलक ने मेहरौली के पास तुगलकाबाद की स्थापना की. किले के पुराने हिस्से और दीवारें आज भी देखी जा सकती हैं. लेकिन तुगलक शासन के चौथे शहंशाह फिरोजशाह कोटला ने तुगलकाबाद से बाहर निकलकर अपना अलग फिरोजशाह कोटला नाम का शहर बनाया. फेरोजशाह कोटला अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम इसी के सामने बनाया गया है.
16वीं से लेकर 19वीं शताब्दी तक दिल्ली की कला और वहां के रहन सहन पर मुगल सल्तनत का प्रभाव रहा. मुगलों के समय में तुर्की, फारसी और भारतीय कलाओं के मिश्रण ने एक नई कला को जन्म दिया. जामा मस्जिद और लाल किला इसी वक्त में बनाए गए थे.
दिल्ली दुनिया के सबसे पुराने शहरों में से एक है. लेकिन 1911 में नई दिल्ली की स्थापना हुई और ब्रिटिश वास्तुकला ने दिल्ली के किलों और महलों के बीच अपनी जगह बना ली.
एड्विन लुटियंस ने इंडिया गेट, राष्ट्रपति भवन सहित नई दिल्ली को एक आधुनिक रूप दिया. दिल्ली कुल आठ शहरों को मिलाकर बनी है. इस सोमवार को नई दिल्ली की स्थापना हुए 100 साल हो जाएंगे.
जन्मदिन की खुशी में चहकेगी दिल्ली, होंगे कई आयोजन
इस अवसर पर विशेष स्मरणपत्र जारी किए जाएंगे और विशेष प्रदर्शनियों का आयोजन होगा. मुख्यमंत्री शीला दीक्षित एक किताब का विमोचन करेंगी. जिसमें दिल्ली के सात बार बसने उजड़ने और वर्तमान शहर के निर्माण का ब्यौरा होगा.
इसके अलावा, शहर के स्मारकों पर एक फोटो प्रदर्शनी आयोजित की जाएगी. हालांकि इस मौके पर कोई आधिकारिक आयोजन नहीं होगा और मुख्यमंत्री शाम को किताब का विमोचन करेंगी.
बुधवार को वह और उप राज्यपाल तेजेन्दर खन्ना ‘दास्तान ए दिल्ली’ नामक प्रदर्शनी का उद्घाटन करेंगे.बरस भर चलने वाले कार्यक्रमों की शुरूआत जनवरी से होगी. शहर की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत पर संस्कृति मंत्रालय कई आयोजन करेगा.
दिल्ली वाले अपने शहर के शताब्दी वर्ष के आयोजनों का आनंद ले रहे हैं और बाबा खड़ग सिंह मार्ग पर फूड फेस्टीवल में उनकी खासी भीड़ उमड़ रही है.‘दिल्ली के पकवान महोत्सव’ में दिल्ली के खानपान की संस्कृति नजर आ रही है. यहां तरह तरह के कबाब, कुल्फी और अन्य स्वदिष्ट पकवान लोगों को अपने स्वाद से दीवाना बना रहे हैं.
15 दिसंबर 1911 को किंग्सवे कैंप के दिल्ली दरबार में किंग जॉर्ज पंचम और क्वीन मैरी ने नए शहर की इमारत की आधारशिला रखी थी और ब्रिटिश वास्तुशिल्पी एडविन लुटियन्स तथा हर्बर्ट बाकर ने वर्तमान नयी दिल्ली की इबारत लिखी.
करीब 3000 साल से दिल्ली पर कई राजाओं और शासकों ने शासन किया और इनमें से प्रत्येक ने दिल्ली की विरासत पर अपनी अमिट छाप छोड़ी.
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