Tuesday, March 8, 2022

अकेलापन और आदमी / ओशो

 आदमी बस अपने जैसा अकेला है, अद्वितीय है। दूसरा उस जैसा न कभी हुआ, न कभी होगा, न हो सकता है। इस महिमा पर ध्यान दो। इस महिमा के लिए धन्यभागी समझो। परमात्मा ने तुम जैसा कभी कोई नहीं बनाया। परमात्मा दोहराता नहीं। तुम अनूठी कृति हो।


लेकिन जब तुम्हारे भीतर फूल खिलना शुरू होगा तो यह विरोधाभास तुम्हें मालूम होगा। तुम्हें यह लगेगा.. .पूछा है : ‘आपको पाने के बाद मुझमें बहुत—बहुत रूपांतरण हुआ। और ऐसा भी लगता है कि कुछ भी नहीं हुआ।’


बिलकुल ठीक हो रहा है; तभी ऐसा लग रहा है। रूपांतरण भी होगा। महाक्रांति भी घटित होगी। तुम बिलकुल नये हो जाओगे। और उस नये होने में ही अचानक तुम पाओगे, ‘ अरे! यह तो मैं सदा से था। यह खजाना मेरा ही है।’ यह सितार तुम्हारे भीतर ही पड़ा था, तुमने इसके तार न छेड़े थे। मैं तुम्हें तार छेड़ना सिखा रहा हूं। जब तुम तार छेड़ोगे तो तुम पाओगे कि कुछ नया घट रहा है संगीत। लेकिन तुम यह भी तो पाओगे कि यह सितार मेरे भीतर ही पड़ा था। यह संगीत मेरे भीतर सोया था। छेड़ने की बात थी, जाग सकता था।


और शायद किन्हीं अनजाने क्षणों में, धुंधले—धुंधले तुमने यह संगीत कभी सुना भी हो। क्योंकि कभी—कभी अंधेरे में भी, अनजाने भी तुम इन तारों से टकरा गए हो और संगीत हुआ है। कभी बिना चेष्टा के भी, अनायास ही तुम्हारे हाथ इन तारों पर घूम गए हैं। हवा का एक झोंका आया है और तार कंप गए हैं और तुम्हारे भीतर संगीत की गज हुई है।


अब तुम अचानक जब तार बजेंगे तब तुम पहचान पाओगे, जन्मों—जन्मों में बहुत बार कभी—कभी सपने में, कभी—कभी प्रेम के किसी क्षण में, कभी सूरज को उगते देख कर, कभी रात चांद को देखकर, कभी किसी की आंखों में झांककर, कभी मंदिर के घंटनाद में, कभी पूजा का थाल सजाए.. .ऐसा कुछ संगीत, नहीं इतना पूरा, लेकिन कुछ ऐसा—ऐसा सुना था। सब यादें ताजी हो जाएंगी। सब स्मृतियां संगृहीत हो जाएंगी।


अचानक तुम पाओगे कि नहीं, नया कुछ भी नहीं हुआ है। जो सदा से हो रहा था, धीमे— धीमे होता था। सचेष्ट नहीं था मैं। जाग्रत नहीं था मैं। जैसे नींद में किसी ने संगीत सुना हो, कोई सोया हो और कोई उस कमरे में गीत गा रहा हो या तार बजा रहा हो, नींद में भनक पड़ती हो, कान में आवाज आती हो। कुछ साफ न होता हो। फिर तुम जाग कर सुनो और पहचान लो कि ठीक, यही मैंने सुना था, नींद में सुना था। तब पहचान न थी, अब पहचान पूरी हो गई।


ऐसा ही होगा। जब तुम्हारे भीतर की स्मृति जागेगी, सुगंध बिखरेगी, तुम्हारे नासापुट तुम्हारी ही सुवास से भरेंगे तो तुम निश्चित पहचानोगे, नया भी हुआ है और पुरातन से पुरातन। नित नूतन और सनातन। शाश्वत घटा है क्षण में।


विरोधाभास जरा भी नहीं है।

ओशो

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