15-01-24-आज शाम सतसंग में पढ़ा गया बचन- [रोजाना वाक़िआत-1 जनवरी सन् 1932 ई० से 2 अप्रैल सन् 1933 ई० तक]
{भाग-2}- (1.1.32 शुक्र)- आज अंग्रजों का नया दिन है और रा धा/ध: स्व आ मी एजूकेशनल इंस्टीट्यूट का जन्मदिन है। यकुम जनवरी सन् 1917 ई० को इंस्टीट्यूट कायम(स्थापित) की गई थी। इसलिए आज के दिन तुलबा (विद्यार्थीगण) खूब खुशियां मनाते हैं। 2½ बजे से खेलें शुरू हुई और 5 बजे तक होती रहीं। और सुबह के वक्त 8 बजे से 11:30 बजे तक छोटे बच्चों की नुमाइश हुई।
कामयाब तुलबा व बच्चो को इनामात तकसीम (वितरित) किये गये। दो इनाम तुकबन्दी के लिए थे। मैंने यह तुक पेश की "क्यों सोच करे मन भाई" एक बच्चे ने दूसरा मिसरा यह बनाया- "तेरे हित की कहूँ बुझाई" - उसे अव्वल इनाम दिया गया। एक लड़की ने अपनी तरफ़ से यह तुकें बनाई
"मैंने देखा गधा एक मोटा ताजा बना फिरता था जंगल का वह राजा" उसे दोयम इनाम दिया गया। सतसंगियों से सवाल किया गया "सतसंग का सबसे बड़ा दुश्मन कौन है?" एक भाई ने जवाब दिया- "मन" उसे फ़ाउण्टेनपेन इनाम दिया गया। रात के सतसंग में तुलबा की तरफ से परशाद तकसीम हुआ। छोटे बच्चों को खूबसूरती, सेहत, सफाई, चुस्ती वगैरा के लिए इनामात दिये गये। छोटे बच्चों के इम्तिहानात का इंतजाम मिस ब्रूस के जिम्मे था। और बड़े बच्चों का प्रिंसिपल साहब इंस्टीट्यूट के जिम्मे।
हिसाब देखने से मालूम हुआ कि गुजिश्ता (गत) नौ माह में जनरल भेंट 90 हजार के क़रीब हुई जो उम्मीद से बहुत बढ़कर है लेकिन डेरी भेंट सिर्फ 28 हजार के करीब हुई जो बहुत कम है। लेकिन साल के अभी 3 माह बाकी हैं।
🙏🏻रा धा/ध: स्व आ मी🙏🏻 रोजाना वाकिआत-परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज!*
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