Saturday, January 27, 2024

रा धा ध : स्व आ मी अर्थ


 *रा धा/ध: स्व आ मी!         

प्रस्तुति,- उषा  रानी  / राजेंद्र प्रसाद सिन्हा


                            

  27-01-24- आज शाम सतसंग में पढ़ा गया बचन- कल से आगे: (9.रानी 1रानी .32- सनीचर)- आर्य समाजी भाई अक्सर यह कटाक्ष करते हैं कि रा धा/ध: स्व आ मी मत में शब्द की बड़ी महिमा है हालांकि (यद्धपि ) शब्द आकाश का गुन है और बहगान है। आज इतिफाक स्व(संयोग) से वैशेषिक दर्शन हाथ लग गया। उसमे और ही कुछ देखा। उसमे शब्द को आकाश का गुन जरूर बतलाया है लेकिन यह भी फरमाया है कि "कान से ग्रहन किया जाना जो अर्थ है बह शब्द है"।

 यानी जो शब्द आकाश का गुन है वह यह शब्द है जो कान से सुना जाता है (2-2-21)। और रा धा/ध: स्व आ मी मत में जिस शब्द का अभ्यास किया जाता है वह मनुष्य की अवन इन्द्री का विषय नहीं है। यह शब्द चेतन शक्ति का इजहार (प्रकटन) है। यानी जब चेतन शक्ति गुप्त या अव्यक्त अवस्था से प्रकट रूप में आती है तो सुरत की श्रवन शक्ति से उसका अनुभव करने पर जो ज्ञान प्राप्त होता है उसी को शब्द कहते हैं। या यूँ कहो कि वैशेषिक दर्शन में जिस शब्द का जिक्र है वह स्थूल आकाश का गुन है लेकिन रा धा/ध: स्व आ मी मत में जिस चेतन या सार शब्द का उपदेश है वह परम आकाश या चेतन आकाश का गुन है।

चुनांचे (अंत:) उपनिषदों में ब्रह्म को कई जगह परम आकाश (परमे व्योमन) अल्फाज (शब्दों)  से बयान किया है। और भूत आकाश को नाशमान कहा है मगर परम आकाश को नाशमान नहीं बतलाया गया। तफ़सील (स्पष्टता ) के लिए वेदान्त सूत्र के पहले अध्याय के दूसरे पाद के सूत्र नम्बर 22 की व्याख्या मुलाहजा (अवलोकित ) हो।


 इस बयान से साफ़ जाहिर है कि इन भाइयों का कटाक्ष महज गलतफ़हमी (भ्रामक)  की बुनियाद (आधार) पर कायम है।                                                              

🙏🏻रा धा/ध: स्व आ मी🙏🏻 रोजाना वाकिआत- परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज!*


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