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मानत नहीं मन मोरा साधो |
मानत नहीं मन मोरा
रे || टेक||
बार बार मै मन समझाउं,
जग जीवन थोड़ा
रे ||1||
या देही का गरव न कीजे,
क्या सांवर क्या गोरा
रे, ||2||
बिना भक्ति तन काम न आवे,
कोटि सुगंध चमोरा
रे ||3||
या माया का गरव न कीजे,
क्या हाथी क्या घोड़ा
रे ||4||
जोड जोड धन बहुत बिगूचे,
लाखन कोट करोडा
रे ||5||
दुविधा दुरमति और चतुराई,
जनम गयो नर बोरा
रे ||6||
अजहुँ आन मिलो सतसंगत,
सतगुरु मान निहोरा
रे ||7||
लेत उठाय पडत भुई गिर गिर,
जयो बालक बिन
कोरा रे ||8||
कहैं कबीर चरन चित राखो,
जैसे सूई बिच डोरा
रे ||9||
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