अंतहीन
तू नहीं है मगर ....फिर भी तू साथ है .....
पास हो कोई भी.....तेरी ही बात है .....
तू मेरे अंदर है ....तू ही मेरे बाहर है ......
जब से तुझको जाना है......मैंने अपना माना है ....
मगर आना इस तरह तुम की.......यहाँ से फिर ना जाना......
पास हो कोई भी.....तेरी ही बात है .....
तू मेरे अंदर है ....तू ही मेरे बाहर है ......
जब से तुझको जाना है......मैंने अपना माना है ....
मगर आना इस तरह तुम की.......यहाँ से फिर ना जाना......
गई इस कदर कि बस्स
फिर नहीं,,,,,,
नहीं
आई..................................................।
कविता किसी और की है,मगर .............अपनी सी लगी
अनामी23.03.2011
No comments:
Post a Comment