Friday, September 16, 2011

खड़ा होने में लगा बै भारत का न्यू मीडिया



 भड़ास4मीडिया - वेब-सिनेमा
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: जनोक्ति डॉट कॉम की दूसरी वर्षगांठ मनाई गई : हिन्दी के वैकल्पिक मीडिया पोर्टल जनोक्ति.कॉम के दूसरे वर्षगांठ पर आयोजित कार्यक्रम “संवाद के दो साल“ के दौरान “न्यू मीडिया के प्रभाव और जनांदोलन“ विषय पर परिचर्चा में वरिष्ठ टेलीविजन पत्रकार अनुरंजन झा, अरब न्यूज के संपादक सैयद फैज़ल अली, वरिष्ठ पत्रकार व चिंतक अवधेष कुमार ने अपने विचार रखे।

न्यू मीडिया की ताकत को समझना और उसका उपयोग दोनों दो पक्ष हैं। भारतीय परिप्रेक्ष्य में बात की जाए तो अब हमलोग इंटरनेट के इस माध्यम की क्षमता से अवगत हो गए हैं। जहां तक उपयोगिता का सवाल है तो उस मामले में भारत के लोग अभी खड़े होने की कोशिश में हैं। न्यू मीडिया जनांदोलनों का प्रेरक हो न हो लेकिन सहायक जरूर है, यह कहना था वरिष्ठ टेलीविजन पत्रकार अनुरंजन झा का। मीडिया सरकार के जरिए न्यू मीडिया में भी अपनी दखल रखने वाले श्री झा मीडिया के इस नवीनतम साधन को लेकर आशान्वित नजर आए।

जेदाह से आए अरब न्यूज के संपादक सैयद फैज़ल अली ने अरब देशों के जनांदोलन में न्यू मीडिया के प्रभाव की चर्चा की। उन्होंने कहा कि अरब देशों की क्रांति में अगर न्यू मीडिया को निकाल दिया जाए तो किसी एक के सर पर क्रांति का सेहरा नहीं बांधा जा सकता है। ट्यूनेशिया से लेकर इजिप्ट से होते हुए पाकिस्तान के एबटाबाद तक न्यू मीडिया ने अपनी हैसियत न केवल बनाई है बल्कि उसका प्रदर्शन भी किया है। अरब देशों में जहां मुख्यधारा की मीडिया दबाव के कारण खबरों से भटक रही थी वहां न्यू मीडिया के कारण खबरों का दौर लौटा है। अरब देशों की क्रांति सही मायने में न्यू मीडिया की क्रांति है।

अध्यक्षीय भाषण करते हुए चिंतक पत्रकार अवधेश कुमार ने न्यू मीडिया को जनांदोलन का प्रेरक मानने से इनकार किया। श्री कुमार का कहना था कि यह मीडिया वास्तव में अपने मूलस्वरूप में एक विशालकाय दैत्य है जो पूरी दुनिया के लिए खतरा है। भारत के परिप्रेक्ष्य में न्यू मीडिया उस बूढ़ी घोड़ी के सरीखे है जिसकी जवानी पश्चिम के देशों में बीती और बुढ़ापे में उसकी लाल लगाम भारत के लोग पकड़ने की कोशिश कर रहे हैं। कार्यक्रम के दौरान जनोक्ति के संस्थापक संपादक जयराम विप्लव ने दो साल की संघर्षणपूर्ण यात्रा के बारे में विस्तारपूर्वक बताया। उन्होंने कहा कि जनोक्ति एक जुनून है इसे अनथक अविरल चलना है। दो साल पूरे हुए इसमें जनोक्ति के पाठक वर्ग और लेखक समूह की भूमिका अहम है।

कार्यक्रम का संचालन कर रहे जनोक्ति के विचार संपादक अमिताभ भूषण ने कहा कि जयराम और जनोक्ति गांधी के उस पत्रकारिता के वाहक हैं जो सेवा का माध्यम और साधना का उपक्रम है। मुख्यधारा की मीडिया ने पेशेगत दबाव में खबरों को जहां डस्टबीन में डाल दिया है। वहीं जनोक्ति सरीखे नवीनतम मीडिया माध्यमों ने खबरों का एक नया दौर शुरू कर दिया है। यह माध्यम नवीनतम है और कवि अज्ञेय के उस नए औजार का परिचायक है जिसकी कल्पना वे क्रांति के लिए करते थे। इस अवसर पर डीएवीपी के सहायक निदेशक गोपाल राय, गांधी शांति प्रतिष्ठान के सचिव सुरेंद्र कुमार, पत्रकार सैयद असदर अली, आरटीआई एक्टिविस्ट डीएन श्रीवास्तव, तहलका के पत्रकार रविशंकर, सहारा समय के पत्रकार मुकुंद बिहारी, जीन्यूज के अमित कुमार, दृष्टि क्रिएटिव के निदेशक कुंदन झा, रिड्ज पब्लिकेशन के देवेश, फिल्मकार भवेश नंदन, अबीर बाजपेयी, प्रवीर पाठक, अजय झा और जनोक्ति के सलाहकार संपादक दीनबंधु सिंह, सह संपादक दिपाली पांडेय, कार्यकारी संपादक विशाल तिवारी, ब्लॉग प्रहरी के कनिष्क कश्‍यप सहित 200 लोग उपस्थित थे। प्रेस रिलीज</strike></b>

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