मगही के कुछ और कविताएं हमें भेजे । हम जरूर लगाना पसंद करेंगे। शंकर दयाल जी के कवि सम्मेलनों में आपको देखने का भी मौका मिला है, पर ये बाते इतनी पुरानी हो गई है कि अब नए संदर्भ में ही बात करे। गया में हमारे मित्रों में प्रवीण परिमल को तो शायद आप जानते भी होंगे। और बकलोल के बकलोल ..... कविता भी शायद आपकी ही है?
अनामी शरण बबल
asb.deo@gmail.com
09868568501
011- 22615150
swami Dayal posted in Magadh
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की हम्मर मोछ निहार ह?
यह कविता मगही की सबसे लोकप्रिय कविताआें में से एक है। १९६७ से अभी तक एक हजार से अधिक मंचों पर यह कविता पढ़ी जा चुकी है पर इसकी मांग आज भी उतनी ही है। आम लोगों में आशुकवि डा. योगेश्वर प्रसाद सिंह योगेश की पहचान मगही के प्रथम महाकाव्य ..गौतम.. की रचना के लिए उतनी नहीं है जितनी इस कविता के लिए है। की हम्मर मोछ निहार ह? मोछ पर सान हल भारत के हल मोछ सहारा आरत के जहिना से मोछ कटा गेलो ई लच्छन भेलो गारत के जब मोछ हलो तब जय भेलो अब मोछ कटल तब हार ह।।की हम्मर.. ई मोछ मरद केचिन्हा हे दुस्मन खातिर छरबिन्हा हे मोछे कटवा के राजपूत अब सिंह से बनलन सिन्हा हे जब मोछे नय तब झूठ मूठ की उलटे सान बघार ह।। की हम्मर.. पमही से रेख उठानी हे मोछे से सरस जुआनी हे बिनु मोछ निपनिया कहलइब मोछेसे मुंह के पानी हे तूं मोछ कटा मेहरी बनल अब बैठल मच्छी मार ह।। की हम्मर... हल मोछ भीम अउ अरजुन के कांपल दुस्मन बोली सुन के पृथ्वीराज के मोछ देख भागल गोरी अंखिया मुन के हे सगरो झगड़ा मोछे के तूं बिना मोछ ललकार ह।। की हम्मर.. ऊ वीर शिवाजी, राना के ऊ वीर कुंवर मरदाना के मोछे से दुस्मन मात भेल तात्या टोपे अउ नाना के तूं मोछ कटा फिल्मी दुनियां में जाके दांत चियाड़ ह।। की हम्मर.. हल वीर भगत के मोछे पर आजादी के मतवालापन वीरे रस के कविता कइलन मोछेवाला ऊ कवि भूषण तूं मोछ कटा के मउगी भिर चुपके से लत्ती झार ह।। की हम्मर... मोछे तो भेद बताव हे ई मरद अउर मेहरारू के बाहर के धूरी गरदा ल ई काम कर% हे झारू के फरसाकट की फ्रेंचकट के भी तू नय भार सम्हार ह।। की हम्मर... (रचना काल : २५ दिसंबर १९६७) |
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