Monday, September 5, 2011

राजीव गांधी के बेटा होना क्या कम है?

कॉंग्रेस पार्टी चमच्चो और दलालों का मेला है जो जितना बड़ा चमचा वह उतना बड़ा नेता । चमचागीरी भी गांधी नेहरूपरिवार की होनी चाहिए, जो गांधी नेहरूपरिवार का गुण गाएगा वह पार्टी और सरकार में हमेशा ऊंचे पद पाएगा । जो इस नियम के खिलाफ जाएगा वो बर्बाद हो जाएगा । इस अलिखित नियम का पालन करने मे अर्जुन सिंह बड़े उस्ताद माने जाते थे इसी उस्तादी के बल पर उन्होने लगभग तीन दशकों तक गांधी नेहरू परिवार की अनुकंपा प्राप्त की । मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री, पंजाब के राज्यपाल, केंद्र में मानव संसाधन विकास मंत्री, प्रधानमंत्री पद के दावेदार और राजीव गांधी के जमाने में कॉंग्रेस का कार्याध्यक्ष बनने में अर्जुन सिंह सफल हुए थे । उन्ही अर्जुन सिंह के चेले है दिग्विजय सिंह । जब से दिग्विजय सिंह केन्द्रीय राजनीति में आए उन्होने पहले राजनीतिक गुरु कोगुरु घंटाल साबित किया । अर्जुन सिंह सोनिया गांधी और उनके बच्चो की सेवा में कॉंग्रेस कोतोड़ने तक पराक्रम कर चुके थे । जब सोनिया गांधी कॉंग्रेस की सत्ता में मलाई मारने आई तो अर्जुन सिंह उनके सबसे विश्वसनीय सलाहकार बन गए थे तब तक दिग्विजय मध्यप्रदेश की राजनीति में उलझे हुए थे और उमा भारती के हाथो मुंह की खा रहे थे जैसे ही वहाँ से थक हारकर केंद्र की राजनीति मे आए उन्होने सोनिया के बजाय रौल विंची का दामन थाम लिया दिग्विजय सिंह रौल विंची के दम पर सोनिया के चमचे अर्जुन सिंह पर बीस पड़ गए ।

अपनी ही सरकार मे शत्रु ?
डॉ। मनमोहन सिंह वरिष्ठता की लड़ाई में अर्जुन सिंह के खिलाफ थे । सो उन्होने भी हर संभव दिग्विजय सिंह की मदद की । अर्जुन सिंह केन्द्रीय मंत्रिमंडल से हकाल दिये गए । पार्टी संगठन में भी उनकी औकात बौनी हो गई । आखिरी दिनो में जब उन्हें पता चला की कॉंग्रेस की कार्यकारिणी से भी उनकी सदस्यता जाती रही, तो अर्जुन सिंह अपने जीवन की आखिरी साँसे गिनकर इस दुनिया से कूच कर गए । अर्जुन सिंह के दिवंगत होते ही दिग्विजय सिंह सेकुलरवाद के उनके जूते को अपने सिर पर लिए हुए टहल रहे है आए दिन वे राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ, भारतीय जनता पार्टी समेत सर्व राष्ट्रवादी संगठनों को आतंकी होने का आरोप मढ़ रहे है, कभी बाबा रामदेव जी के खिलाफ खुराफाती बयान देते है तो कभी अण्णा हज़ारे को बिन मांगी सलाह देते है । उनके ये कारनामे सिर्फ और सिर्फ कोंग्रेसी हाई-कमान कोखुश करने की चाले होती हैं ।
अब डिग्गी ने नया शोशा छोड़ा हैं की “रौल विंची प्रधानमंत्री पद के योग्य हो गए हैं” । पहले दूध पीते थे अब योग्य हो गए हैं” और दिग्विजय विंची जी कोदूल्हे के रूप में देखना चाहते है , दिग्विजय सिंह का यह बयान विंची बाबा के 41 वे जन्मदिन पर बर्थडे गिफ्ट के रूप में आया हैं  दिग्विजय सिंह की आड़ में गांधी घराना डॉ. मनमोहन सिंह और प्रणव मुखर्जी के खिलाफ बीच बीच में व्यंगबाण छोड़ता रहता हैं  चूंकि गांधी घराना इन दिनों सत्ता के संचालन में सीधे सक्रिय होने की बजाय केन्द्रीय सत्ता को10, जनपथ से रिमोट कंट्रोल द्वारा संचालित कर रहा हैं सो डॉ मनमोहन सिंह की सरकार कोंग्रेसी संगठन के लिए “नीमर की बीवी गाँव की भौजाई हैं” । सवाल यह पैदा होता हैं  की पिछले दो वर्षो में रौल विंची जी ने ऐसा क्या कारनामा किया की वे प्रधानमंत्री पर के योग्य हो गए ?  क्या ऐसा तो नहीं की प्रधानमंत्री पद की योग्यता मनमोहन कि योग्यता के मापदंडो के अनुसार आंकी जा रही हैं ? बिलकुल मौन !

कॉंग्रेस मे चमचेबाजी के बिना पद नहीं
2009 के चुनाव में उनको प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाकर क्यों नहीं लड़ा गया ? तब डॉ. मनमोहन सिंह का नाम आगे क्यों किया गया ? क्या कॉंग्रेस और उसके चमचो कोरौल विंची की चुनाव जिताने की चमत्कारी शक्ति पर अविश्वास था ? मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री पद का एक कार्यकाल पूरा कर चुके थे यदि कॉंग्रेस संगठन उनकी बजाय रौल विंची कोप्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर पेश करता तो शायद मनमोहन सिंह इस प्रस्ताव कोचुपचाप स्वीकार कर लेते । लेकिन तब कॉंग्रेस कोसत्ता की पुनर्प्राप्ति के लिए हनादेश की दरकार थी डॉ॰ मनमोहन सिंह की छवि ईमानदार, योग्य एवं पारदर्शी व्यक्ति की थी सोनिया गांधी और उसके चमचे भली भांति जानते थे कि रौल विंची के नेतृत्व में २००७ में उत्तर प्रदेश के विधानसभा के चुनाव के परिणाम कोंग्रेसी भोग चुके थे । कॉंग्रेस के दलाल और कलाल नहीं चाहते थे कि रौल विंची के नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाये और पराजय का ठीकरा रौल विंची के सिर पर फूटने से उनकी भावी योजनाए ध्वस्त हो जाए । इसलिए डॉ मनमोहन सिंह कोएक बार फिर से क्रिकेट के नाइट वोचमेन कि तरह प्रधानमंत्री पद पर बैठाया गया हैं ।
अब कोंग्रेसी भ्रष्टाचार के बवंडर में सरकार कोऐसा फंसा हुआ पा रहे हैं कि उन्हें २०१४ के चुनाव किसी के नेतृत्व में जितना असंभव नजर आ रहा हैं सो गांधी परिवार के करीबी दलाल रौल विंची कोआनन फानन में प्रधानमंत्री के पद पर बैठा देना चाहते हैं दिग्विजय सिंह ने भोपाल से जो ताल छेड़ी हैं उस ताल के पीछे सोनिया गांधी कि मंशा साफ दिखाई दे रही हैं । १९९८ में जब सोनिया गांधी कोकॉंग्रेस कि राजनीति में सक्रिय होना हुआ तो उन्होने अपनीडुगडुगी इन्हीं भरोसेमंद दिग्विजय सिंह के माध्यम से बजवाई थी । दिग्विजय अब रौल विंची कोप्रधानमंत्री के पद पर बैठाकर सत्ता का संचालन अपने हाथ में लेने के लिए बेताब हैं । उनका यह बयान उसी बेताबी से उपजा हैं  । संभवत कि आनेवाले दिनों में डॉ मनमोहन सिंह कि सरकार के खिलाफ कॉंग्रेस में बड़ी मुहिम छिड़े । चमचो और दलालों कोदेशहित कि बजाय, दिग्विजय सिंह कोअधिक योग्य क्यों नहीं नजर आएंगे ? रौल विंची तो तो वैसे भी लगता होगा कोसत्ता का सुख भोगना तो उसका जन्म सिद्ध अधिकार हैं ।
जिस देश में कॉंग्रेसी जैसे कुकर्मियों कि पार्टी सत्ता में हो वहाँ पर किसी वंशवाद कोइस तरह के स्वप्न आने स्वाभाविक हैं । दिग्विजय कि डुगडुगी दलालों और कलालों कि सक्रियता का संकेत हैं

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