बनारस की प्राचीन रामलीला का अपना महत्व है। इसे मेघा भगत ने शुरू किया था। यदि राम की प्रतिमूर्ति के पैर धोकर पीते हुए आप यहां के लोगों को देखेंगे तो आश्चर्य चकित अवश्य होंगे। क्या हुआ! सन् 1838 के क्वार के महीने में बनारस के अंग्रेज कलक्टर मिस्टर वाक्सलवरेन्ट और उनके साथी भी रामलीला देखकर भौंचक्के रह गए। चौकाघाट पर समुंद्र लंघन की लीला चल रही थी। निकट की वरूणा नदी का जल बाढ़ के कारण लीला भूमि तक तैर रहा था। घूमते-फिरते अंग्रेज कलक्टर और पादरी लीला भूमि तक पहुंचे और रामलीला के दृश्यों को देखर अट्टाहास करते हुए कहा-‘रामायण के हनुमान तो समुंद्र लांघ गए थे, आप इस बढ़ी हुई नदी का यह पाट लांघ जाएं, तो समझा जाए कि रामलीला आयोजित करने का कोई सामाजिक-धार्मिक महत्व है। चमत्कार हुआ कि रामलीला के हनुमान जय बजरंग बली उद्घोष के साथ एक छलांग में नदी के बढ़े हुये जल को लांघ गए और उलटकर देख इंसानी एहसास होने पर वह स्वर्गवासी हो गए। रामलीला के हनुमानजी के स्मारक के रूप में वहां एक मंदिर स्थापित है। अंग्रेज कलक्टर बहुत प्रभावित हुए और तब से राजकीय स्तर पर रामलीला को आर्थिक सहायता एवं संरक्षण प्राप्त है, जिसका निर्वाह वर्तमान सरकार भी करती आ रही है। ....
बनारस के कुछ तथ्य
उस बनारस की जो गंगा के किनारे-किनारे, कुछ-कुछ इन्द्रधनुष जैसा ही दक्षिण से उतर तक पसरा हआ है। कहा तो यह भी जाता हैं कि गंगा के किनारे शहर नहीं बसा है। शहर के किनारे गंगा बसी हुई है। व्याकरण के पण्डित ..
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