*रा धा स्व आ मी!
12-12-22-आज शाम सतसंग में पढ़ा गया बचन
-कल से आगे:-(21-2-31-सनीचर)-
आज चीफ़ इन्जीनियर साहब मय अपनी अहलेखाना(पत्नी) तशरीफ़ लाये कारखाना का मुलाहजा किया गया नीज़ आपने बहुत सी अशिया खरीद की। आपके हमराह राय बहादुर पंडित सूरज प्रसाद वाजपेयी भी थे।ट्यूबवेल चलाया गया। पानी खूब निकला लेकिन रेत मिला हुआ है। अभी बहुत सफ़ाई की जरूरत मालूम होती है।दिन भर बूँदा बाँदी होती रही। मौसम निहायत खुशगवार हो गया है। सड़के साफ़ है । दरख़्त हरे भरे नज़ृ आते हैं। रात के सतसंग में मिस सुशीला ने सवाल किया कि यह बड़ा अंधेर है कि हालाँकि इन्सान बेचारा सृष्टि नियमों से नावाक़िफ़ है लेकिन फिर उसे उनके ख़िलाफ़ वरजी करने पर सजा दी जाती है दुनिया में कोई माँ अपने नादान बच्चे को ऐसी हरकत के लिये जिसकी माहीयत' वह समझता न हो कभी सजा नहीं देती। फिर मालिक अपने नादान बच्चों को क्यों सज़ा देता है?
जवाब में बतलाया गया जबकि यह तस्लीम किया जाता है कि मालिक प्रेम व दया का सिंध है तो यह ख़याल कैसे जायज हो सकता है कि ऐसे सिंध से प्रेम व दया के ख़िलाफ़' या बर अक्स कोई बात निकल सकती है? जबकि दूध के घड़े से दूध ही निकलता है तो दया व प्रेम के सिंध से दया व प्रेम ही निकलेगा इसलिये मालिक की हर एक कार्रवाई से और उसके हर एक नियम से दया व प्रेम ही की उम्मीद रखनी चाहिये। इसके अलावा गौर करो कि अगर यह मान लिया जावे कि सजा सिर्फ सृष्टि नियमों से वाक़िफ़ ही को मिलनी चाहिये तो इसके यह मानी होंगे कि आइन्दा आग किसी ऐसे बच्चे को जो आग के मुतअल्लिक़ सृष्टि नियमों से नावाक़िफ़ है न जलावे और चूँकि जब तक किसी बच्चे को जलने का तजरबा नहीं हो लेता उसे यह समझ ही में नहीं आ सकता कि जलना क्या होता है। इसलिये नतीजा यह होगा कि रफ्ता रफ्ता आग से जलने का अमल' ही छूट जावेगा यानी सभी बच्चे शुरु में आग की इस सिफ़त से नावाक़िफ़ होते हैं और बगैर जलने का तजरबा हासिल किये उन्हें कभी समझ ही में न आवेगा कि जलना 6क्या होता है इसलिये आग के लिये लाजिमी होगा कि उन्हें कभी न जलावे और होते होते ये बच्चे दुनिया की इन्सानी आबादी जलने से महफ़ूज रखनी होगी और ऐसे ही दुनिया का तमाम जड़ मसाला भी सृष्टि नियमों से नावाकिफ होने के बाइस(कारण) जलने से महफ़ूज रखना होगा तो गोया दुनिया से जलने का अमल ही उठ जायेगा। इसी तरह और सब क़ुदरत के काम भी बंद करने होंगे जो कि महज लगो है। इसके ख़िलाफ़ मौजूदा सूरत यह है कि सृष्टि नियम अपना काम करते हैं। जो उनसे वाक़िफ़ होकर उनसे काम लेता है वह उसकी पूरी तौर से ख़िदमत बजा लाते हैं। और जो दानिस्ता' या ना दानिस्ता उनकी ख़िलाफ़ वर्जी करता है वह उसे बिला किसी रुओरिआयत के नुकसान पहुँचाते हैं उनको न किसी से मोहब्बत है और न नफ़रत सबके साथ यकसाँ बर्ताव करते हैं। और हमेशा अटल रहते हैं। उनके इस सुभाव ही की वजह से वह नियम कहलाने के मुस्तहक़ हैं और इस सुभाव ही की वजह से दुनिया के तमाम उलूम क़ायम हैं। और नीज़ दुनिया का वजूद' क़ायम है। अगर जमीन की कशिशे-सिफ़्ल' सिर्फ उन लोगों पर असर करे जो कशिशे-सिफ़्ल से आशना हों तो खयाल किया जा सकता है कि दुनिया का क्या हाल होगा। मालिक ने इन्सान को अक़्ल इनायत की है। इन्सान को चाहिये उस अक़्ल को जगावे और उसकी मदद से सृष्टि नियमों से वाक़िफ़ियत हासिल करे और दानिस्ता किसी नियम की खिलाफ़ वर्जी न करे और उनसे मुताबिक़त" करके सुख व कामयाबी हासिल करे। इसके अलावा माँ की मिसाल से सृष्टि नियमों के मुतअल्लिक़ नतीजा निकालना भी नादुरुस्त है। माँ की यह कार्रवाई महज खुद गर्जी की वजह से होती है। हरेक माँ को अपने बच्चे से गहरी मोहब्बत होती है इसलिये उसके कुसूरों को वह नजरअंदाज करती है। अगर ऐसा न होता तो गैर बच्चों के नादानी से सख्त नुक़सान पहुँचाने पर भी माँएँ खुश या मुतमईन नज़र आया करतीं । मतलब यह है कि सृष्टि नियम सृष्टि का कारखाना चलाने और इन्सान की अक़्ल जगाने और इस्तेमाल किये जाने पर इन्सान की मदद करने के लिये बनाए गये हैं। अगर ख़िलाफ़ वर्ज़ी करने पर वह सज़ा न दें तो यह सब मतलब फ़ौत(समाप्त) हो जाते हैं। 🙏🏻रा धा स्व आ मी🙏🏻
रोजाना वाकिआत-परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज!*
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