बाबा कोटेश्वर नाथ शिव मंदिर
मेन, बेला, गया
यह अति प्राचीन शिव मन्दिर मोरहर-दरधा नदी के संगम के किनारे मेन - मंझार गाँव, बेला, गया में स्थित है.
मंदिर की लोक कथा -
कहा जाता है की राक्षस राज बाणासुर की बेटी उषा भगवान श्रीकृष्ण के पोते अनिरुद्ध से प्रेम कर बैठी थी. बाणासुर भगवान श्री कृष्ण को अपना शत्रु मानता था.
उषा ने इस मंदिर का निर्माण कराया था. उषा अनिरुद्ध से विवाह करने के लिए प्रत्येक दिन इस शिव मंदिर में पूजा करने के लिए आया करती थी. उषा की सहेली चित्रलेखा ने अनिरुद्ध का अपहरण किया और उषा का अनिरुद्ध से गांधर्व विवाह हो गया.
उषा की विवाह अनिरुद्ध के साथ होने की सुचना मिलने पर बाणासुर काफी क्रोधित हुआ और उसने अनिरुद्ध को बंदी बना लिया था. अनिरुद्ध को बंदी बना लिए जाने पर भगवान कृष्ण बाणासुर से युद्ध करने के लिए आये.
यह देख कर भगवान् शिव बाणासुर को बचाने के लिए श्री कृष्ण भगवान् के सुदर्शन के आगे खड़े हो गए. शिव ने योग बल से अपना और विष्णु का एकत्व जाना. अत: पृथ्वी पर विष्णु से युद्ध करने का निश्चय कर लिया.
असुर राज बाणासुर तथा भगवान कृष्ण के बीच युद्ध शुरू होने वाला था. बाणासुर को बचाने के लिए पार्वती दोनों के मध्य जा खड़ी हुईं. वे मात्र कृष्ण को नग्न रूप में दीख पड़ रही थीं, शेष सबके लिए अदृश्य थीं. कृष्ण ने आंखेंं मूंद लीं. देवी की प्रार्थना पर कृष्ण ने बाणासुर को जीवित रहने दिया, किंतु उसके मद को नष्ट करने के लिए एक सहस्र हाथों में से दो को छोड़कर शेष काट डाले और बाणासुर मृत्युदंड से बच गया.
बाणासुर ने अपने अहंकार के लिए भगवान् से क्षमा मांगी और भविष्य में किसी पर अत्याचार नहीं करने की कसम खाया.
बाणासुर के बारें में -
बाणासुर वह शोणितपुर पर राज्य करता था. वह राजा बलि के सौ पुत्रों में से एक था. वह सबसे बड़ा, वीर तथा पराक्रमी था. उसके एक सहस्र बाहें थीं.
उसकी अनौपम्या नाम की पत्नी थी. बाणासुर को नारद ने एक मंत्र दिया था, जिससे यह सबको प्रसन्न कर सकता था. उसने घोर तपस्या के फलस्वरूप प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसे अपने पुत्र के रूप में स्वीकार किया था और उसे युद्ध में कभी पराजित नहीं होने का वरदान दिया था. अत: वह गर्वोन्मत्त हो उठा था.
शिव के आशीर्वाद से उसकी शक्तियां बहुत बढ़ गई थी और वह बहुत ही अहंकारी और अत्याचारी हो गया. बाणासुर लोगों पर अत्याचार करने लगा और बिना कारण सबसे युद्ध करने लगा. उसका अहंकार इतना बढ़ गया था कि वह भगवान कृष्ण का भी अपमान करता था और खुद को उनसे श्रेष्ठ बताता था.
मंदिर की बनावट -
बाबा कोटेश्वरनाथ मंदिर पत्थरों से बना है यह प्राचीन मंदिर हैं और उसके कलात्मक नक्काशी देख कर लोग दंग रह जाते हैं. बाबा कोटेश्वरनाथ मंदिर का शिवलिंग 1008 लिंगों वाला सहस्रलिंगी शिवलिंग है. इस एक शिवलिंग में 1008 शिवलिंग समाए हुए हैं. ऐसे पौराणिक शिवलिंग दुर्लभ नहीं, बल्कि अति दुर्लभ माने जाते हैं.
यह मंदिर पौराणिक भारतीय स्थापत्यकला का अनूठा उदाहरण है. यह पूरा मंदिर पत्थरों से बना हुआ है. मंदिर में पत्थरों पर बहुत ही सुंदर नक्काशी देखने को बनती है. आश्चर्यजनक यह है की मंदिर की दिवार, छत और दरवाज़ा पत्थरों से बनी हुयी है. मंदिर मुख्य रूप से ग्रेनाइट पत्थर से बनाया गया है,
पुरातात्विक दृष्टि से मंदिर -
भारतीय पुरातत्व विभाग के रिपोर्ट के अनुसार बाबा कोटेश्वरनाथ धाम का शिव मंदिर ६ शताब्दी का बनी शिव मंदिर है. ६ सदी में नाथ परंपरा के ३५वे सहजयानी सिद्ध बाबा कुचिया नाथ द्वारा स्थापित मठ है.इसलिए इसे कोचामठ या बुढवा महादेव भी कहते है.
मंदिर से सटे मेन गाँव में अनेक पुरातत्व अवशेष छिपे पड़े है, जिमें रुखड़ा महादेव, खेतेश्वर महादेव, एकमुखी शिवलिंग आदि प्रमुख है.मंदिर से सटे एक विशाल और प्राचीन पीपल का पेड़ है जिसकी शाखाए ज़मीन से सटे हुए दिन पर दिन लम्बी होती जा रही है.
पर्यटन की दृष्टि से -
बाबा कोटेश्वर नाथ धाम धार्मिक आस्था का केन्द्र है. सहस्त्रलिंगी महादेव कोटेश्वर नाथ और प्राचीन पीपल वृक्ष अपनी महिमा और ख्याति से काफी प्रसिद्ध हो गया है और यह श्रद्धालुओं और पर्यटकों को अपने यहां खींच रहा है.
मंदिर में दर्शनार्थी -
इस मंदिर में प्रतिदिन भक्तगण आते आते रहते है, और बाबा के पूजा अर्चना करते रहते है. सावन के महीना में बाबा के दर्शन और पूजा करने के लिए दर्शनार्थी भक्तगण की भीड़ काफी लग जाती है.
हिंदी वर्ष के फाल्गुन महीने के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तिथि के महाशिवरात्रि पर्व के दिन मंदिर परिसर में पूजा-अर्चना करने के लिए काफी संख्या में भक्तगण आते है, इस दिन यहाँ बहुत बड़ा मेला लगता है और सम्पूर्ण मंदिर परिसर का वातावरण भक्तिमय हो जाता है.
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रजनीश वाजपेयी
टिकारी, गया
9430437950
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