*06-09-23 - आज शाम सतसंग में पढ़ा गया बचन - कल से आगे :-*
*(06-10-31-मंगल का दूसरा भाग)*
*रात के सतसंग में दान के मजमून (विषय) पर बातचीत हुई। जमाना-ऐ- सल्फ़ (पुराने जमाने) के लोग दान को बड़ी अहमियत (महत्व) देते थे और राजा महाराजा तलाश करके सच्चे ब्राह्मनों को दान पेश करते थे और उसके मंजूर होने पर अपना भाग सराहते थे। और सच्चे ब्राह्मन भी अपनी लंगोटी में मगन रहते थे और बिला अशद (अत्यधिक आवश्यकता ) जरूरत के किसी के सामने हाथ न फैलाते थे। और ग़रीबी में दिन काटकर अपने ब्रह्म ज्ञान का रस लेते थे। और चूंकि वह ज़्यादातर गुरबत (निर्धनता ) की हालत में दिन काटते थे इसलिये होते होते गरीबों को दान देने की महिमा क़ायम हो गई हत्ता कि लंगड़ों लूलों कोढ़ियों को बढ़िया खाने खिलाना और उन (को) बस्त्र देना निहायत बढ़ कर दान समझा जाने लगा। और चूंकि सच्चे ब्राह्मन 'नाद' (लुत्फ) होते गये इसलिये अपाहिजों की खिदमत का आम रवाज हो गया। करीबन 30 बरस हुए शिमाली' (उत्तरी हिन्द) में साधुओं व फुकरों की मंडलियां चक्कर लगाती थीं। लोग अपाहिजों के बजाय ऐसे लोगों को दान देकर व खाना खिलाकर निहायत खुश होते थे। उसके बाद आर्य समाज ने कालेज के लिये आम चन्दा मांगने का सिलसिला कायम किया। रुपये की सख्त जरूरत होने से लफ़्ज दान का इस्तेमाल होने लगा। आर्य समाज की कामयाबी देखकर हर एक सोसायटी दान मांगने पर उतर आई और कांग्रेस कमेटियों के क़ायम होने पर दान मांगना दाल रोटी हो गई। इसमें शक नहीं कि ज्यादातर लोगों ने चन्दों से वसुलशुदा(प्राप्त की हुई) रकमों का निहायत अच्छा इस्तेमाल किया है और उसके प्रताप से उस रुपये का एक हिस्सा जो पण्डों व पुजारियों के शिकर्म(पेट में) में जाता था, मुफीद (लाभप्रद) संस्थाओं पर सर्फ़ होने लगा है। लेकिन यह अफसोस से कहा जाता है कि लोगों के दिल से दान की श्रद्धा जाती रही है। जब किसी के घर हर रोज कोई न कोई चन्दा मांगने के लिये आ जाये तो उसके दिल में श्रद्धा क्योंकर रह सकती है? लोगों ने दान की पवित्र संस्था का नामुनासिब इस्तेमाल करके उसको बदनाम कर दिया और लोगों के दिलों से उसके मुतअल्लिक़ उल्टे खयालात कायम कर दिये। लोग चन्दा वसूल करते वक़्त न यह देखते हैं कि उस शख़्स की कमाई किस तरह की है, और न यह कि उसके दिल में हमारे काम के लिये श्रद्धा भी है या नहीं है। उन्हें रुपया वसूल करने से मतलब है । देने वाले के खयालात पर क्या असर पड़ता है और ख़राब के कमाये ढंग से उनके काम पर क्या असर पड़ता है, इन बातों से उन्हें मुतलक(तनिक भी)' वास्ता(सम्बन्ध) नहीं है।*
No comments:
Post a Comment