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Friday, December 19, 2008
बिहार-रत्न भिखारी का साक्षात्कार
समय को पहचानने का एक माध्यम लोकरंग की विविध रंगों को समझना भी है। २०वीं
शताब्दी के बिहार और उसके आसपास के भारत का मन टटोलना हो तो भिखारी ठाकुर
का लोकसाहित्य बहुत उपयोगी है। पौष मास के कृष्ण पक्ष की पंचमी को इसी महान
कलाकार का जन्म हुआ था। आपने हिन्द-युग्म के आवाज़ पर इनका संक्षिप्त परिचय, इनकी आवाज़ में काव्यपाठ, इनका लिखा लोकगीत 'हँसी, हँसी पनवा खियौलस बेइमनवा' कल ही पढ़-सुन चुके हैं। हम चाहते हैं कि इंटरनेट का हर पाठक भी इस बिहार-रत्न से रुबरू हो। इसलिए हम 'बिदेसिया डॉट को डॉट इन'
से साभार इनका एक दुर्लभ साक्षात्कार प्रकाशित कर रहे हैं। जस का तस।
फ्लैश से यूनिकोड में बदलने में हमे सहयोग दिया है फैज़ाबाद से आशीष दुबे
ने।
एक जनवरी 1965 के दिन के एक बजे लोक कलाकार भिखारी ठाकुर की 77वीं वर्षगांठ के शुभ अवसर पर धापा (कोलकाता के पूर्वी सीमांत) स्थित श्री सत्यनारायण भवन परिसर में भव्य अभिनंदन समारोह का आयोजन हुआ था। अभिनंदन के समापन समारोह के उपरांत संत जेवियर कालेज, रांची के हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. रामसुहाग सिंह ने भिखारी ठाकुर का साक्षात्कार किया। प्रो. सिंह द्वारा किये गये इस साक्षात्कार को काफी वर्षों बाद रांची से प्रकाशित होने वाली अश्विनी कुमार पंकज की पत्रिका विदेशिया में 1987 में प्रकाशित किया गया था.
लोकरंग की दुनिया में इसे एक दुर्लभ साक्षात्कार भी कह सकते हैं। इस साक्षात्कार को पढ़ने के बाद भिखारी ठाकुर के व्यक्तित्व के बारे में कई बातें स्वत: ही सामने आ जायेंगी। कैसे बुलंदियों के दिन में भी भिखारी अपने बारे में कुछ बढ़ा-चढ़ाकर नहीं बताना चाहते थे. भिखारी को शायद तब ही इस बात का अहसास था कि आनेवाले दिनों में तमाशाई संस्कृति लोकरंग को निगल लेगी, तभी तो एक सवाल के जवाब में वे कहते हैं कि अगले जनम में वे यही करना चाहेंगे, अभी से नहीं कह सकते। भिखारी अपने निजी व सार्वजनिक जीवन में कोई रहस्य का पर्दा नहीं डालना चाहते थे, इसीलिये जब उनसे नाच का उद्देश्य पूछा गया तो उन्होंने धनार्जन को भी स्वीकारा।
यहां हम विदेशिया से साभार उसी साक्षात्कार को प्रस्तुत कर रहे हैं-
प्रो.सिंह:- भिखारी ठाकुर जी आपकी जन्म तिथि क्या है?
भिखारी ठाकुर- सिंह साहब, 1295 सा ल पौष मास शुक्ल पक्ष, पंचमी, सोमवार, 12 बजे दिन।
प्रो.सिंह:- आपका जन्म स्थान कहां है?
भिखारी ठाकुर-कुतुबपुर दियर, कोढ़वापटी, रामपुर,सारण
प्रो.सिंह:- आपके पिताजी का क्या नाम है?
भिखारी ठाकुर-दलसिंगार ठाकुर।
प्रो.सिंह:- आपके दादाजी का नाम क्या है?
भिखारी ठाकुर- गुमान ठाकुर।
प्रो.सिंह:-क्या आपके पिताजी पढ़े-लिखे थे?
भिखारी ठाकुर- वे अशिक्षित थे.
प्रो.सिंह:- आपकी शिक्षा किस श्रेणी तक हुई?
भिखारी ठाकुर- स्कूल में केवल ककहरा तक, मैंने एक वर्ष तक पढ़ा, लेकिन कुछ नहीं आया। भगवान नामक लड़के ने मुझे पढ़ाया।
प्रो.सिंह:-आपके पिताजी की आर्थिक स्थिति कैसी थी?
भिखारी ठाकुर-जमीन तथा अन्य संपत्ति बहुत ही कम थी, गरीब थे।
प्रो.सिंह:-आपके जमींदार कौन थे?
भिखारी ठाकुर-मेरे जमींदार आरा के शिवसाह कलवार थे।
प्रो.सिंह:-आपके साथ उनका व्यवहार कैसा था?
भिखारी ठाकुर-उनका व्यवहार अच्छा था।
प्रो.सिंह:-क्या लड़कपन से ही नाच-गान में आपकी अभिरुचि है?
भिखारी ठाकुर-मैं तीस वर्षों तक हजामत करता रहा।
प्रो.सिंह:-कैसे नाच-गान और कविता की ओर आपकी अभिरुचि हुई?
भिखारी ठाकुर-मैं कुछ गाना जानता था। नेक नाम टोला के एक हजाम रामसेवक ठाकुर ने मेरा गाना सुनकर कहा कि ठीक है। उन्होंने यह बताया कि मात्रा की गणना इस प्रकार होती है। बाबू हरिनंदन सिंह ने मुझे सर्वप्रथम रामगीत का पाठ पढ़ाया। वे अपने गांव के थे।
प्रो.सिंह:-आपके गुरुजी का नाम क्या था?
भिखारी ठाकुर- स्कूल के गुरुजी का नाम याद नहीं है।
प्रो.सिंह:-आपने अपना पेशा कब तक किया?
भिखारी ठाकुर-तीस वर्ष की उम्र तक।
प्रो.सिंह:-क्या अपने पेशे के समय भी आप नाच-गान का काम करते थे?
भिखारी ठाकुर-तीस वर्ष के बाद से नाच-गान का काम कभी नहीं रुका।
प्रो.सिंह:-सबसे पहले आपने कौन कविता बनायी?
भिखारी ठाकुर- बिरहा-बहार पुस्तक।
प्रो.सिंह:-सबसे पहले आपने कौन नाटक बनाया?
भिखारी ठाकुर-बिरहा-बहार ही नाटक के रूप में खेला गया।
प्रो.सिंह:-सबसे पहले बिरहा-बहार नाटक कहां खेला गया?
भिखारी ठाकुर- सबसे पहले बिरहा-बहार नाटक सर्वसमस्तपुर ग्राम में लगन के समय खेला गया।
प्रो.सिंह:-क्या आपके पहले भी इस तरह का नाटक होता था?
भिखारी ठाकुर-मैंने विदेशिया नाम सुना था, परदेशी की बात आदि के आधार पर मैंने बिरहा-बहार बनाया।
प्रो.सिंह:-इस तरह के नाम की प्रेरणा आपको कहां से मिली?
भिखारी ठाकुर- कोई पुस्तक मिली थी, नाम याद नहीं है।
प्रो.सिंह:- क्या आप छंद-शास्त्र के नियमों के अनुसार कविता बनाते हैं?
भिखारी ठाकुर-मैं मात्रा आदि जानता हूं, रामायण के ढंग पर कविता बनाता हूं।
प्रो.सिंह:- आपकी लिखी हुई कौन-कौन पुस्तकें हैं?
भिखारी ठाकुर-बिरहा-बहार, विदेशिया, कलियुग बहार, हरिकीर्तन, बहरा-बहार, गंगा-स्नान, भाई-विरोधी, बेटी-वियोग, नाई बहार, श्रीनाम रत्न, रामनाम माला आदि।
प्रो.सिंह:- सबसे हाल की रचना कौन है?
भिखारी ठाकुर-नर नव अवतार।
प्रो.सिंह:- आपकी अधिकांश पुस्तकें कहां-कहां से प्रकाशित हैं?
भिखारी ठाकुर- पुस्तकों से मालूम होगा.
प्रो.सिंह:- आपके विचार में सबसे अच्छी रचना कौन है?
भिखारी ठाकुर- भिखारी हरिकीर्तन और भिखारी शंका समाधान.
प्रो.सिंह:- आप जब कोई पुस्तक लिखते हैं तो क्या दूसरों से भी दिखाते हैं?
भिखारी ठाकुर- मानकी साहक्गांव के ही हैं। वे अभी जीवित हैं। वे सिर्फ साफ-साफ लिख देते हैं। उन्हें शुद्ध-अशुद्ध का ज्ञान नहीं है। रामायण का सत्संग बाबू रामानंद सिंह के द्वारा हुआ। श्लोक का ज्ञान दयालचक के साधु गोसाईं बाबा से हुआ।
प्रो.सिंह:- रायबहादुर की उपाधि आपको कब मिली?
भिखारी ठाकुर-रायबहादुर आदि की जो मुझे उपाधियां मिलीं उन्हें मैं नहीं जानता हूं। कब क्या उपाधियां मिलीं मुझे कुछ मालूम नहीं है।
प्रो.सिंह:- क्या आपको आशा है कि आपका कोई उत्तराधिकारी होगा?
भिखारी ठाकुर- मेरे भतीजा गौरीशंकर ठाकुर मेरी रचनाओं के आधार पर काम कर रहे हैं।
प्रो.सिंह:- आपकी संतानें कितनी हैं? आपके लड़के क्या करते हैं?
भिखारी ठाकुर- एक लड़का है शिलानाथ ठाकुर। वह घर-गृहस्थी का काम करता है। उसे नाच आदि से कोई संबंध नहीं है।
प्रो.सिंह:- क्या आप विश्रामपूर्ण जीवन बिताना चाहते हैं?
भिखारी ठाकुर- मैं इस काम से अलग रहकर जीवित नहीं रह सकता।
प्रो.सिंह:- आप तो जनता के कवि हैं, इस लिये स्वतंत्रता के पहले और बाद में क्या अंतर पाते हैं?
भिखारी ठाकुर- मैं कुछ कहना नहीं चाहता।
प्रो.सिंह:- वर्तमान शासन से क्या आप खुश हैं?
भिखारी ठाकुर- उत्तर देना संभव नहीं।
प्रो.सिंह:- अभी तक कितने पुरस्कार-पदक मिले हैं?
भिखारी ठाकुर- याद नहीं है।
प्रो.सिंह:- हाल में आपको क्या कोई उपाधि मिली है?
भिखारी ठाकुर-हां, बिहार रत्न की।
प्रो.सिंह:- बिहार के बाहर आप अपना नाच दिखाने कहां-कहां गये हैं?
भिखारी ठाकुर- आसाम, बनारस, कलकत्ता और बम्बई सिनेमा में एक गीत देने के लिये।
प्रो.सिंह:- कैसे आप समझते हैं कि आपके नाच से लोग प्रसन्न हो रहे हैं?
भिखारी ठाकुर- कोई उत्तर नहीं।
प्रो.सिंह:- क्या आप पूजा-पाठ, संध्या वंदना भी करते हैं? किन देवताओं की पूजा करते हैं?
भिखारी ठाकुर-सिर्फ राम-नाम जपता हूं।
प्रो.सिंह:- जिंदगी को आप सुखमय या दुखमय समझते हैं. हिंदी छोड़कर और कोई भाषा जानते हैं?
भिखारी ठाकुर- मौन।
प्रो.सिंह:- आपके आधार पर अभी कौन-कौन नाच हैं?
भिखारी ठाकुर- अनेक नाच इसी आधार पर हो गये हैं।
प्रो.सिंह:- क्या कुछ दिनों तक सिनेमा में भी आप थे? सिनेमा का जीवन आपको कैसा मालूम हुआ था?
भिखारी ठाकुर-नहीं।
प्रो.सिंह:- आप अपने दल के लोगों का क्या खुद अभ्यास करवाते हैं?
भिखारी ठाकुर-उस्ताद से सिखवाते हैं।
प्रो.सिंह:- आप जो नाटक दिखाते हैं उसका लक्ष्य धनोपार्जन के अतिरिक्त और क्या समझते हैं?
भिखारी ठाकुर-उपदेश और धनोपार्जन।
प्रो.सिंह:- स्वास्थ्य कैसा रहता है?
भिखारी ठाकुर- अब तक सिर्फ तीन दांत टूटे हैं।
प्रो.सिंह:- नाटक के बाद की थकावट कैसे दूर होती है?
भिखारी ठाकुर- मौन।
प्रो.सिंह:- आप क्या राजनीति में भाग लेना चाहते हैं?
भिखारी ठाकुर- मौन।
प्रो.सिंह:- पुन: आपका जन्म इसी देश में हुआ तो क्यया आप यही कार्य करना चाहते हैं?
भिखारी ठाकुर- कोई निश्चित नहीं।
प्रो.सिंह:- कविता लिखने या नाटक करने के लिये क्या आपको तैयारी करनी पड़ती है?
भिखारी ठाकुर- पहले तैयारी करनी पड़ती थी पर अब नहीं।
प्रो.सिंह:- अपने नाटकों के कथानक आप कहां से लेते हैं?
भिखारी ठाकुर- समाज से।
प्रो.सिंह:- इस समय आपके अनन्य मित्र कौन-कौन हैं?
भिखारी ठाकुर- अब कोई नहीं है। पहले बाबू रामानंद सिंह थे।
प्रो.सिंह:- क्या आपकी कोई स्थायी नाट्यशाला है?
भिखारी ठाकुर- कोई स्थायी जगह नहीं है।
प्रो.सिंह:- अच्छे नाटक या कविता के आप क्या लक्षण समझते हैं?
भिखारी ठाकुर- जनता की भीड़ से।
प्रो.सिंह:- क्या आपको मालूम है कि इस समय आपका उच्च कोटी के कलाकारों में स्थान है?
भिखारी ठाकुर-जो प्राप्त हुआ है वही मेरे लिये पर्याप्त है।
प्रो.सिंह:- भूतपूर्व राष्ट्रपति देशरत्न डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद से सबसे पहले और अंत में भेंट कब हुई?
भिखारी ठाकुर- मुझे याद नहीं।
प्रो.सिंह:- क्या आप वर्तमान राष्ट्रपति डॉ॰ राधाकृष्ण्न और वर्तमान प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री से मिले हैं?
भिखारी ठाकुर- कभी नहीं।
प्रो.सिंह:- पंडित जवाहर लाल नेहरू जी ने कभी आपका नाटक देखा?
भिखारी ठाकुर-कभी नहीं।
प्रो.सिंह:- गांधीजी ने आपका नाटक देखा या कभी भेंट हुई थी?
भिखारी ठाकुर- निकट से साक्षात्कार नहीं हुआ।
प्रो.सिंह:- आपकी ससुराल कहां है?
भिखारी ठाकुर- मेरा प्रथम विवाह मानपुरा, आरा के स्वर्गीय देवशरण ठाकुर की लड़की से हुआ। उसके निधन के बाद दूसरा विवाह आमडाढ़ी, छपरा में हुआ. उसका गंगालाभ होने के बाद तीसरा विवाह हुआ, उसकी भी मृत्यु...
प्रस्तुति:- निराला
एक जनवरी 1965 के दिन के एक बजे लोक कलाकार भिखारी ठाकुर की 77वीं वर्षगांठ के शुभ अवसर पर धापा (कोलकाता के पूर्वी सीमांत) स्थित श्री सत्यनारायण भवन परिसर में भव्य अभिनंदन समारोह का आयोजन हुआ था। अभिनंदन के समापन समारोह के उपरांत संत जेवियर कालेज, रांची के हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. रामसुहाग सिंह ने भिखारी ठाकुर का साक्षात्कार किया। प्रो. सिंह द्वारा किये गये इस साक्षात्कार को काफी वर्षों बाद रांची से प्रकाशित होने वाली अश्विनी कुमार पंकज की पत्रिका विदेशिया में 1987 में प्रकाशित किया गया था.
लोकरंग की दुनिया में इसे एक दुर्लभ साक्षात्कार भी कह सकते हैं। इस साक्षात्कार को पढ़ने के बाद भिखारी ठाकुर के व्यक्तित्व के बारे में कई बातें स्वत: ही सामने आ जायेंगी। कैसे बुलंदियों के दिन में भी भिखारी अपने बारे में कुछ बढ़ा-चढ़ाकर नहीं बताना चाहते थे. भिखारी को शायद तब ही इस बात का अहसास था कि आनेवाले दिनों में तमाशाई संस्कृति लोकरंग को निगल लेगी, तभी तो एक सवाल के जवाब में वे कहते हैं कि अगले जनम में वे यही करना चाहेंगे, अभी से नहीं कह सकते। भिखारी अपने निजी व सार्वजनिक जीवन में कोई रहस्य का पर्दा नहीं डालना चाहते थे, इसीलिये जब उनसे नाच का उद्देश्य पूछा गया तो उन्होंने धनार्जन को भी स्वीकारा।
यहां हम विदेशिया से साभार उसी साक्षात्कार को प्रस्तुत कर रहे हैं-
प्रो.सिंह:- भिखारी ठाकुर जी आपकी जन्म तिथि क्या है?
भिखारी ठाकुर- सिंह साहब, 1295 सा ल पौष मास शुक्ल पक्ष, पंचमी, सोमवार, 12 बजे दिन।
प्रो.सिंह:- आपका जन्म स्थान कहां है?
भिखारी ठाकुर-कुतुबपुर दियर, कोढ़वापटी, रामपुर,सारण
प्रो.सिंह:- आपके पिताजी का क्या नाम है?
भिखारी ठाकुर-दलसिंगार ठाकुर।
प्रो.सिंह:- आपके दादाजी का नाम क्या है?
भिखारी ठाकुर- गुमान ठाकुर।
प्रो.सिंह:-क्या आपके पिताजी पढ़े-लिखे थे?
भिखारी ठाकुर- वे अशिक्षित थे.
प्रो.सिंह:- आपकी शिक्षा किस श्रेणी तक हुई?
भिखारी ठाकुर- स्कूल में केवल ककहरा तक, मैंने एक वर्ष तक पढ़ा, लेकिन कुछ नहीं आया। भगवान नामक लड़के ने मुझे पढ़ाया।
प्रो.सिंह:-आपके पिताजी की आर्थिक स्थिति कैसी थी?
भिखारी ठाकुर-जमीन तथा अन्य संपत्ति बहुत ही कम थी, गरीब थे।
प्रो.सिंह:-आपके जमींदार कौन थे?
भिखारी ठाकुर-मेरे जमींदार आरा के शिवसाह कलवार थे।
प्रो.सिंह:-आपके साथ उनका व्यवहार कैसा था?
भिखारी ठाकुर-उनका व्यवहार अच्छा था।
प्रो.सिंह:-क्या लड़कपन से ही नाच-गान में आपकी अभिरुचि है?
भिखारी ठाकुर-मैं तीस वर्षों तक हजामत करता रहा।
प्रो.सिंह:-कैसे नाच-गान और कविता की ओर आपकी अभिरुचि हुई?
भिखारी ठाकुर-मैं कुछ गाना जानता था। नेक नाम टोला के एक हजाम रामसेवक ठाकुर ने मेरा गाना सुनकर कहा कि ठीक है। उन्होंने यह बताया कि मात्रा की गणना इस प्रकार होती है। बाबू हरिनंदन सिंह ने मुझे सर्वप्रथम रामगीत का पाठ पढ़ाया। वे अपने गांव के थे।
प्रो.सिंह:-आपके गुरुजी का नाम क्या था?
भिखारी ठाकुर- स्कूल के गुरुजी का नाम याद नहीं है।
प्रो.सिंह:-आपने अपना पेशा कब तक किया?
भिखारी ठाकुर-तीस वर्ष की उम्र तक।
प्रो.सिंह:-क्या अपने पेशे के समय भी आप नाच-गान का काम करते थे?
भिखारी ठाकुर-तीस वर्ष के बाद से नाच-गान का काम कभी नहीं रुका।
प्रो.सिंह:-सबसे पहले आपने कौन कविता बनायी?
भिखारी ठाकुर- बिरहा-बहार पुस्तक।
प्रो.सिंह:-सबसे पहले आपने कौन नाटक बनाया?
भिखारी ठाकुर-बिरहा-बहार ही नाटक के रूप में खेला गया।
प्रो.सिंह:-सबसे पहले बिरहा-बहार नाटक कहां खेला गया?
भिखारी ठाकुर- सबसे पहले बिरहा-बहार नाटक सर्वसमस्तपुर ग्राम में लगन के समय खेला गया।
प्रो.सिंह:-क्या आपके पहले भी इस तरह का नाटक होता था?
भिखारी ठाकुर-मैंने विदेशिया नाम सुना था, परदेशी की बात आदि के आधार पर मैंने बिरहा-बहार बनाया।
प्रो.सिंह:-इस तरह के नाम की प्रेरणा आपको कहां से मिली?
भिखारी ठाकुर- कोई पुस्तक मिली थी, नाम याद नहीं है।
प्रो.सिंह:- क्या आप छंद-शास्त्र के नियमों के अनुसार कविता बनाते हैं?
भिखारी ठाकुर-मैं मात्रा आदि जानता हूं, रामायण के ढंग पर कविता बनाता हूं।
प्रो.सिंह:- आपकी लिखी हुई कौन-कौन पुस्तकें हैं?
भिखारी ठाकुर-बिरहा-बहार, विदेशिया, कलियुग बहार, हरिकीर्तन, बहरा-बहार, गंगा-स्नान, भाई-विरोधी, बेटी-वियोग, नाई बहार, श्रीनाम रत्न, रामनाम माला आदि।
प्रो.सिंह:- सबसे हाल की रचना कौन है?
भिखारी ठाकुर-नर नव अवतार।
प्रो.सिंह:- आपकी अधिकांश पुस्तकें कहां-कहां से प्रकाशित हैं?
भिखारी ठाकुर- पुस्तकों से मालूम होगा.
प्रो.सिंह:- आपके विचार में सबसे अच्छी रचना कौन है?
भिखारी ठाकुर- भिखारी हरिकीर्तन और भिखारी शंका समाधान.
प्रो.सिंह:- आप जब कोई पुस्तक लिखते हैं तो क्या दूसरों से भी दिखाते हैं?
भिखारी ठाकुर- मानकी साहक्गांव के ही हैं। वे अभी जीवित हैं। वे सिर्फ साफ-साफ लिख देते हैं। उन्हें शुद्ध-अशुद्ध का ज्ञान नहीं है। रामायण का सत्संग बाबू रामानंद सिंह के द्वारा हुआ। श्लोक का ज्ञान दयालचक के साधु गोसाईं बाबा से हुआ।
प्रो.सिंह:- रायबहादुर की उपाधि आपको कब मिली?
भिखारी ठाकुर-रायबहादुर आदि की जो मुझे उपाधियां मिलीं उन्हें मैं नहीं जानता हूं। कब क्या उपाधियां मिलीं मुझे कुछ मालूम नहीं है।
प्रो.सिंह:- क्या आपको आशा है कि आपका कोई उत्तराधिकारी होगा?
भिखारी ठाकुर- मेरे भतीजा गौरीशंकर ठाकुर मेरी रचनाओं के आधार पर काम कर रहे हैं।
प्रो.सिंह:- आपकी संतानें कितनी हैं? आपके लड़के क्या करते हैं?
भिखारी ठाकुर- एक लड़का है शिलानाथ ठाकुर। वह घर-गृहस्थी का काम करता है। उसे नाच आदि से कोई संबंध नहीं है।
प्रो.सिंह:- क्या आप विश्रामपूर्ण जीवन बिताना चाहते हैं?
भिखारी ठाकुर- मैं इस काम से अलग रहकर जीवित नहीं रह सकता।
प्रो.सिंह:- आप तो जनता के कवि हैं, इस लिये स्वतंत्रता के पहले और बाद में क्या अंतर पाते हैं?
भिखारी ठाकुर- मैं कुछ कहना नहीं चाहता।
प्रो.सिंह:- वर्तमान शासन से क्या आप खुश हैं?
भिखारी ठाकुर- उत्तर देना संभव नहीं।
प्रो.सिंह:- अभी तक कितने पुरस्कार-पदक मिले हैं?
भिखारी ठाकुर- याद नहीं है।
प्रो.सिंह:- हाल में आपको क्या कोई उपाधि मिली है?
भिखारी ठाकुर-हां, बिहार रत्न की।
प्रो.सिंह:- बिहार के बाहर आप अपना नाच दिखाने कहां-कहां गये हैं?
भिखारी ठाकुर- आसाम, बनारस, कलकत्ता और बम्बई सिनेमा में एक गीत देने के लिये।
प्रो.सिंह:- कैसे आप समझते हैं कि आपके नाच से लोग प्रसन्न हो रहे हैं?
भिखारी ठाकुर- कोई उत्तर नहीं।
प्रो.सिंह:- क्या आप पूजा-पाठ, संध्या वंदना भी करते हैं? किन देवताओं की पूजा करते हैं?
भिखारी ठाकुर-सिर्फ राम-नाम जपता हूं।
प्रो.सिंह:- जिंदगी को आप सुखमय या दुखमय समझते हैं. हिंदी छोड़कर और कोई भाषा जानते हैं?
भिखारी ठाकुर- मौन।
प्रो.सिंह:- आपके आधार पर अभी कौन-कौन नाच हैं?
भिखारी ठाकुर- अनेक नाच इसी आधार पर हो गये हैं।
प्रो.सिंह:- क्या कुछ दिनों तक सिनेमा में भी आप थे? सिनेमा का जीवन आपको कैसा मालूम हुआ था?
भिखारी ठाकुर-नहीं।
प्रो.सिंह:- आप अपने दल के लोगों का क्या खुद अभ्यास करवाते हैं?
भिखारी ठाकुर-उस्ताद से सिखवाते हैं।
प्रो.सिंह:- आप जो नाटक दिखाते हैं उसका लक्ष्य धनोपार्जन के अतिरिक्त और क्या समझते हैं?
भिखारी ठाकुर-उपदेश और धनोपार्जन।
प्रो.सिंह:- स्वास्थ्य कैसा रहता है?
भिखारी ठाकुर- अब तक सिर्फ तीन दांत टूटे हैं।
प्रो.सिंह:- नाटक के बाद की थकावट कैसे दूर होती है?
भिखारी ठाकुर- मौन।
प्रो.सिंह:- आप क्या राजनीति में भाग लेना चाहते हैं?
भिखारी ठाकुर- मौन।
प्रो.सिंह:- पुन: आपका जन्म इसी देश में हुआ तो क्यया आप यही कार्य करना चाहते हैं?
भिखारी ठाकुर- कोई निश्चित नहीं।
प्रो.सिंह:- कविता लिखने या नाटक करने के लिये क्या आपको तैयारी करनी पड़ती है?
भिखारी ठाकुर- पहले तैयारी करनी पड़ती थी पर अब नहीं।
प्रो.सिंह:- अपने नाटकों के कथानक आप कहां से लेते हैं?
भिखारी ठाकुर- समाज से।
प्रो.सिंह:- इस समय आपके अनन्य मित्र कौन-कौन हैं?
भिखारी ठाकुर- अब कोई नहीं है। पहले बाबू रामानंद सिंह थे।
प्रो.सिंह:- क्या आपकी कोई स्थायी नाट्यशाला है?
भिखारी ठाकुर- कोई स्थायी जगह नहीं है।
प्रो.सिंह:- अच्छे नाटक या कविता के आप क्या लक्षण समझते हैं?
भिखारी ठाकुर- जनता की भीड़ से।
प्रो.सिंह:- क्या आपको मालूम है कि इस समय आपका उच्च कोटी के कलाकारों में स्थान है?
भिखारी ठाकुर-जो प्राप्त हुआ है वही मेरे लिये पर्याप्त है।
प्रो.सिंह:- भूतपूर्व राष्ट्रपति देशरत्न डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद से सबसे पहले और अंत में भेंट कब हुई?
भिखारी ठाकुर- मुझे याद नहीं।
प्रो.सिंह:- क्या आप वर्तमान राष्ट्रपति डॉ॰ राधाकृष्ण्न और वर्तमान प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री से मिले हैं?
भिखारी ठाकुर- कभी नहीं।
प्रो.सिंह:- पंडित जवाहर लाल नेहरू जी ने कभी आपका नाटक देखा?
भिखारी ठाकुर-कभी नहीं।
प्रो.सिंह:- गांधीजी ने आपका नाटक देखा या कभी भेंट हुई थी?
भिखारी ठाकुर- निकट से साक्षात्कार नहीं हुआ।
प्रो.सिंह:- आपकी ससुराल कहां है?
भिखारी ठाकुर- मेरा प्रथम विवाह मानपुरा, आरा के स्वर्गीय देवशरण ठाकुर की लड़की से हुआ। उसके निधन के बाद दूसरा विवाह आमडाढ़ी, छपरा में हुआ. उसका गंगालाभ होने के बाद तीसरा विवाह हुआ, उसकी भी मृत्यु...
प्रस्तुति:- निराला
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- 25 सालों से भोपाल जाग रहा है ?
- स्टिंग कैमरा, मीडिया और धोखा..
- मुंह में रखकर घास कहिए देश क्या आज़ाद है !!
- मदरसों में कुरान के साथ कंप्यूटर भी ज़रूरी है
- आज की ताज़ा खबर
- हमारे आधुनिक जंगल मुंबई में आपका "हार्दिक" स्वागत है....
- असली भारत की असली झांकी और सीधा प्रसारण
- कृपया ये अश्लील कविताएं न पढ़ी जाएं....
- तुलसी और राम के बीच कई आडवाणी आ गये हैं : निदा फ़ाज़ली
- दिल्ली की दोपहर में चार घंटे हिंदी के नाम....
प्रेमचंद सहजवाला
- ऐ शहीदे मुल्को-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार
- आशिकों का आज जमघट कूच-ए-कातिल में है
- क्या तमन्ना-ऐ- शहादत भी किसी के दिल में है (1)
- क्या तमन्ना-ऐ- शहादत भी किसी के दिल में है (2)
- देखना है ज़ोर कितना बाज़ू ए कातिल में है...
- सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है...
- हम अभी से क्या बताएं क्या हमारे दिल में है...
- रहबरे राहे मुहब्बत रह न जाना राह में...
- लज्ज़ते सहरा-नवर्दी दूरिये - मंजिल में है
- अब न अहले-वलवले हैं और न अरमानों की भीड़
- बिन बरसे मत जाना रे बादल- कन्हैया लाल नंदन को प्रेमचंद सहजवाला की श्रद्धाँजलि
- टीवी धारावाहिकों की नई उम्मीद 'चांद छुपा बादल में'
- कुछ मर्दों की निगाह में लेखिकाएं 'छिनार’ हो गई हैं?
- क्या ‘बालिका वधु’ धारावाहिक सचमुच बाल-विवाह के विरुद्ध है?
- महिला आरक्षण बिल – एक लंबे सफर की शुरूआत (3)
- महिला आरक्षण बिल – एक लंबे सफर की शुरूआत (2)
- महिला आरक्षण बिल - एक लंबे सफर की शुरूआत
- कैसे न मनाएं होली
- राजेन्द्र अवस्थी – एक जाँबाज़ साहित्यकार
- प्रभाष जोशी- एक प्रकाश-पुंज अस्त हो गया (श्रद्धाँजलि)
- प्रथम बार वोट देने वालों का सरोकार काम से - एक चुनाव झलकी
- सन् 84 का दर्द और सिक्ख मत-दाता
- भाजपा प्रचार जानी पहचानी लीक पर
- आज़ादी से पहले और बाद के जूता-काण्ड
- अजय माकन को अपनी तथा मनमोहन सिंह दोनों की छवियों का दोहरा लाभ
- जनता ने भर दी है हामी, एम एल ए होंगे गोस्वामी
- एक मर मिटने की हसरत ही दिले-बिस्मिल में है
- फिर भी कुंवारे रह गये अटलजी...
- खींच लाई है सभी को कत्ल होने की उम्मीद ....
- अब न अहले-वलवले हैं और न अरमानों की भीड़
मनु बे-तखल्लुस
- महिला आरक्षण के सख्त विरोध में
- दिल्ली की हिन्दी अकादमी में उपाध्यक्ष !
- फार्मूलों से न जिंदगी चलती है न राजनीति
- झूठ से शुरुआत...
- मुसलमान बेआवाज़ क्यों
- आधी रात, ट्रेन में टीटी, राजकिशोर का धैर्य....
- ....सबको ये फिक्र है कि सरदार कौन हो ??
- इंटरनेट की पटरी पर आडवाणी की पीएम यात्रा...
- पुरुषों के विरुद्ध एक अविश्वास प्रस्ताव...
- रस ही जीवन, जीवन रस है.....
- खुशी चाहिए या प्रसन्नता....
- क्या आप सुन पाए संसद में सिसकी....
- बूँद भर सफलता, सागर भर खुशी...
- हिंदी में बुद्धिजीवी होना भी कम दुखदायी नहीं.....
- हमारी पीढ़ी की ग़ुलामी
- आतंकवाद का गांधीवादी जवाब
- बैंकिंग उद्योग के लिए एक प्रस्ताव
- मीडिया को नियंत्रित कैसे करें
- बारिश बहा ले गई कपास और दलहन के दुख...
- मौसम की मार से छोटी इलायची के बड़े भाव
- अब तेरा क्या होगा चीनी?
- सात समंदर पार फैली भारतीय मसालों की खुशबू
- चालीस रुपए की चीनी क्या मीठी लगेगी 'सरकार' ?
- डेयरी उद्योग पर भी सूखे की मार
- छोटी इलायची के बड़े भाव
- सोना हुआ रे बड़ा महंगा....
- चीनी के भाव रोकना सरकार के बस का नहीं...
- सावन में सूखा, रामा हो रामा....
- दाल रोटी खाओ प्रभु के गुण गाओ, लेकिन कैसे खाएं दाल?
- बजट पर बहस : आम आदमी के लिए क्या?
- प्रणब दा चले गांव की ओर लेकिन.......
- गन्ने की राजनीति
- पिछड़ी खरीफ फसलों की बुआई, फिर महंगाई की आशंका
- गोदाम अनाज से फिर हुए लबालब
- कपास की खपत में होगा सुधार लेकिन भाव कम
- चीनी नहीं हो रही हजम!
- काली मिर्च रहेगी तेज
- गेहूं निर्यात नहीं है संभव
- बढ़ता खाद्य तेल आयात घातक
- किसानों के साथ भेदभाव
- चीनी: राजनीति का शिकार- बिकेगी 30 रुपए
- चाय की चुस्की होगी अब और महँगी
- गेहूं सिर दर्द बनी सरकार के लिए
सुनील डोगरा ज़ालिम
विशेष
लोकसभा चुनाव 2009
ब्लू फिल्म (गौरव सोलंकी
भगत सिंहः कुछ और पन्ने
- मुसलमान बेआवाज़ क्यों
- भारत का आम आदमी कब महान होगा ?
- एक वेबसाइट ऐसी भी.....
- ....सबको ये फिक्र है कि सरदार कौन हो ??
- लोकतंत्र से ज़्यादा अहम आईपीएल ???
- इंटरनेट की पटरी पर आडवाणी की पीएम यात्रा...
- क्या आप सुन पाए संसद में सिसकी....
- चुनाव नाम की लूट है लुटा सके तो लुटा
- राहुल, मनमोहन या आडवाणी: युवा कौन?
- आज़ादी से पहले और बाद के जूता-काण्ड
- अजय माकन को अपनी तथा मनमोहन सिंह दोनों की छवियों का दोहरा लाभ
- जनता ने भर दी है हामी, एम एल ए होंगे गोस्वामी
- फिर भी कुंवारे रह गये अटलजी...
- 15वीं लोकसभा चुनाव को याद रखने के कई कारण
- चुनाव से पहले इम्तिहान देंगे नेता तब वोट करेगी जनता
- भाजपा प्रचार जानी पहचानी लीक पर
- यथा-राजा तथा-प्रजा
- गिरता मतदान- लोकतंत्र या अल्पतंत्र
- कार्टून- क्या करें मज़बूरी भी कोई चीज है
भगत सिंहः कुछ और पन्ने
शहीद भगत सिंह की 102वीं जयंती पर उनके जीवन दर्शन, संघर्ष और गाँधी-दर्शन से मतांतर पर हमने आलेखों की एक शृंखला प्रकाशित की है॰॰॰
- 1. ऐ शहीदे मुल्को-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार
- 2. आशिकों का आज जमघट कूच-ए-कातिल में है
- 3. क्या तमन्ना-ऐ- शहादत भी किसी के दिल में है (1)
- 4. क्या तमन्ना-ऐ- शहादत भी किसी के दिल में है (2)
- 5. देखना है ज़ोर कितना बाज़ू ए कातिल में है...
- 6. सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है...
- 7. हम अभी से क्या बताएं क्या हमारे दिल में है...
- 8. रहबरे राहे मुहब्बत रह न जाना राह में...
- 9. लज्ज़ते सहरा-नवर्दी दूरिये - मंजिल में है
- 10. अब न अहले-वलवले हैं और न अरमानों की भीड़
- 11. खींच लाई है सभी को कत्ल होने की उम्मीद ....
- 12. एक मर मिटने की हसरत ही दिले-बिस्मिल में है
- 13. अहिंसा परमो-धर्मः
सिनेमाघर जाने से पहले
सप्ताह की बड़ी रीलिज पर पढ़िए फिल्म-समीक्षक प्रशेन की राय--
चांस पे डांस : नाच ना जाने, आँगन टेढ़ा
3 इडियट्स : गांधीगीरी से इडियटगीरी तक ... आल इज वेल
रॉकेट सिंह : आकाश की उंचाईयों में
पा : एक चमत्कार, एक जादू !
रेडियो : फटा हुआ ट्रांजिस्टर
तुम मिले : पर गुल नहीं खिले
जेल- सच ज्यादा नाटकीय
अजब प्रेम की गजब कहानी : हँसी के गुब्बारे
अलाद्दीन : मजेदार मनोरंजन मैजिक
बाल गणेश 2 : बचकानी और बोरियत भरी
ब्लू : प्लास्टिकी किरदार और कहानी
ऑल द बेस्ट : संजू "बाबा" का चमत्कार
"आसिड फॅक्टरी": एक मिला जुला अनुभव
3 इडियट्स : गांधीगीरी से इडियटगीरी तक ... आल इज वेल
रॉकेट सिंह : आकाश की उंचाईयों में
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रेडियो : फटा हुआ ट्रांजिस्टर
तुम मिले : पर गुल नहीं खिले
जेल- सच ज्यादा नाटकीय
अजब प्रेम की गजब कहानी : हँसी के गुब्बारे
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बाल गणेश 2 : बचकानी और बोरियत भरी
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3 बैठकबाजों का कहना है :
एसा साकछ्त्कार कम ही मिलता है ..
इतनी सादगी के साथ इतनी बड़ी हस्ती ....कमाल है
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