Saturday, October 8, 2011

प्रेस क्लब / अनामी शरण बबल -11






राहुल की ताजपोशी की तैयारी शुरू

कांग्रेस सुप्रीमों सोनिया गांधी की कैंसर के आपरेशन के साथ ही अपने ईमानदार पीएम (?) मन्नू जी के विदाई की तैयारी शुरू हो गई है। पार्टी के लिए कैंसर बन गए मनमोहन को अब सत्ता सुख से वंचित करने की पटकथा लिखी जा रही है। यूपीए मुखिया सोनिया गांधी के पास मनमोहन को विदा करने के सिवा अब और कोई चारा ही नहीं रह गया है। मनमोहन की दक्षता कार्यशैली और योग्यता से पूरा देश कायल (कम, घायल ज्यादा) है। उधर संगठन-संगठन-संगठन का राग अलाप रहे (अधेड़) युवराज से भी पर्दे के पीछे ज्यादातर लोग नाराज ( सामने की तो हिम्मत नहीं) है। ज्यादातरों का मानना है कि 2014 तक मन्नू साहब  पार्टी और संगठन को इस लायक छोड़ेंगे ही नहीं कि उसको फिर से सत्ता के लायक देखा जा सके। विश्वस्तों के लगातार बढ़ते प्रेशर से अब मैडम भी मानने लगी है कि राहुल की ताजपोशी के सिवा और कोई रास्ता नहीं बचा है। संगठन के लोगों की माने तो बस्स रास्ता साफ करने की कवायद चालू है, और मन्नू के सिर पर (शासन में) कुछ चट्टान और पहाड़ को तोड़कर बाबू (बाबा) युवराज को कमसे कम 27-28 महीने के लिए पीएम की खानदानी कुर्सी (सीट) पर सुशोभित किया जा सके।

बेआबरू होकर मैडम के घर से......


ईमानदारी के लंबे चौड़े कसीदों के साथ देश के पीएम (बने नहीं) बनाए गए मन साहब को भी यह उम्मीद नहीं थी कि उनका साढ़े सात साला शासन काल इतना स्मार्ट और शानदार रहेगा। पूरा देश पानी पानी मांग रहा है और पार्टी को रोजाना अपनी नानी की याद (कम सता ज्यादा) रही है, विश्वस्तरीय अर्थशास्त्री होने की कलई इस तरह खुली की  गरीबों के साथ रहने वाली पंजा पार्टी की लंगोटी ही खुल गई। पूरे देश को यह समझ में नहीं आ रहा है कि मन्नू साहब देश के पीएम हैं या चोरों की बारात के दुल्हा? लोगों ने तो मन्नू सरदार को 40 चोरों के सरदार अलीबाबा भी कहना चालू कर दिया है। मन्नू सरदार के बेअसरदार(?) होने के बाद भी सत्ता में सुरक्षित रखने पर देश वासियों को गुस्सा अब कांग्रेस सुप्रीमों पर आ रहा है कि एक विदेशी महिला देश को चलाना चाह रही है या रसातल में ले जा रही है ? बहरहाल पूरे देश के साथ पंजा पार्टी में भी 23 साल के बाद गांधी खानदान के चिराग राज के लिए लालयित है। जिसके लिए स्टेज को सजाने और संवारने का पूरा जिम्मा बंगाली बाबू प्रणव दा संभाल रहे है। राहुल के पक्ष में बयान देकर प्रणव दा ने मन्नू दा को दीपावली के बाद आगाह भी कर रहे है। सचमुच 1991 में दक्षिण दिल्ली से लोकसभा चुनाव लड़ने के लिेए अपने परम राईटर मित्र खुशवंत सिंह के सामने हाथ पसार कर दो लाख रूपए उधार लेने वाले अपने मनजी की माली हालात इन 20 सालों में अब पांच करोड़ की हो गई है। क्या आपको अब भी सरदार जी कि ईमानदारी  पर कोई शक सुबह है क्या ?

और इस बार दीदी भी थामेंगी कमान

और इस बार पूरी राजनीति और रणनीति के साथ देश की खानदानी सत्ता में भैय्या और दीदी को लाने, जमाने और दुनियां को दिखाने की हिट फिल्म की कहानी अमर अकबर अहमद एंथोंनी समेत ओम जय जगदीश और जॅान जॅानी जर्नादन द्वारा लिखी जा रही है। राहुल बाबा के मददगार के रूप में पूरी संभावना है कि वाचाल तेज सतर्क और हवा के रूख को भांपने और खानदानी शहादत के नाम पर देश वासियों को मोहित कम (मूर्ख बनाने में) माहिर प्रियंका वाड्रा गांधी को भी मैदान में उतारा जाएगा. बतौर डिप्टी पीएम (जिसे उप प्रधानमंत्री भी कहा जाता है) के रूप में। यानी सता पर भले ही भैय्या का साम्राज्य दिखे मगर बहुत सारे फैसलों पर दीदी का भी कंट्रोल बना रहे। वे अपने भाई को जरा तेज स्मार्ट और चालू भी बनाएंगी, ताकि निकटस्थ लोग राहुल बाबा को पिता राजीव गांधी की तरह नया और बमभोला के रूप में ना देखे, माने और कहें। पार्टी की दुर्गा माता के रूप में सुशोभित सोनिया जी भी अपनी सेहत का हवाला देकर अपने संतानों को मैच्योर करके पार्टी की मुखिया का दायित्व अपनी बेटी को देकर सत्ता से दूर रहकर भी मास्टर माइंट या पावक कंट्रोलर बनकर अपने संतानों की कार्यकुशलता को निरखती परखती रहेंगी। हालांकि देश के इमोशन को अपने हाथ में लेने के लिए, यदि 2014 में लोकसभा चुनाव हुए तो उससे कुछ पहले वरूण गांधी को भी अपनी टोली में भी लाया जा सकता हैं। यानी राहुल को लेकर देश भर में इस हवा को शांत करने के लिए कि यदि राहुल पीएम अभी नहीं बने तो फिर कभी नहीं की आशंका को खत्म किया जा सके। और बाकी बचे ढाई साल में इन भाई बहनों की धुआंधार देश व्यापी दौरों से देश के मिजाज पर अन्ना समेत हाथी कमल के असर को कमजोर करके काबू में किया जा सके।


मोंटेक की भी विदाई की तैयारी


 दो सरदारों (MMS & MSA)  के इकोनामिक ज्ञान से पूरे देश को चौंकाने से ज्यादा स्तब्ध कर देने वाले मोंटेक सिंह अहलूवालिया एंड कंपनी पर भी तलवार लटक रही है। जिस अचंभे से पूरे देश को चाह कर भी जो काम गांधी और नेहरू नहीं कर सके, वो काम मनमोहन (योजना आयोग के अध्यक्ष है, लिहाजा वे यह कहकर बच नहीं सकते कि मुझे इसकी जानकारी नहीं थी) ने मोंटेक मंतर से कर दिखाया। महंगाई भले ही आसमान पर हो, फिर भी दोनों सरदारों ने 32 रूपए और 26 रूपए में अमीरी गरीबी को परिभाषित करके बहुत पुरानी फिल्म अमीर गरीब (के इस गाने की याद ताजी कर दी कि सोनी और मोनी की है जोड़ी अजीब, सोनी गरीब ..मोनी अमीर) को एक ही तराजू में तौल दिया। इस पर पार्टी समेत योजना विभाग की वो छिछा लेदर हो रही है कि अब पूरे देश के साथ मुझे भी यकीन होने लगा है कि ये दोनों इकोनामिक्स स्कूल आफ लंदन के स्टूडेंट रहे है या किसी मेरठ या मगध यूनीवसिर्टी में पढ़ते हुए कुंजियों के सहारे डिग्री और पदवी तो नहीं प्राप्त की है?


कमल छाप गदर


कांग्रेस के लिेए यह एक बड़ी राहत और खुशखबरी है कि करप्शन में फंसी कांग्रेस पर लोटा पानी लेकर सवार बीजेपी एकाएक अपने आप में ही इस कदर उलझ गयी कि पंजा कि उखड़ती सांसे अब फिर से काबू में आती दिख रही है। मोदी की मिशन सदभावना एकाएक मिशन पीएम में तब्दील हो गया। एक तरफ कमल के सबसे बुजुर्ग फूल ने 11 अक्टूबर से लोकनायक जयप्रकाश नारायण को याद करते हुए (जेपी की जन्मदिवस के मौके पर) बिहार के उनके गांव सिताब दियारा से रथयात्रा के बहाने अपनी दावेदारी जता रहे है। इसके लिए बिहारी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हरी झंडी दिखाएंगे। उधर इस रथयात्रा से परेशान मोदी ने पार्टी में अघोषित कलह (विद्रोह) मचा दिया है। मीडिया मैनेज के गुरू मोदी अपने समर्थन में उतरे ठाकरे गिरोह को ले आए है। एनडीए के कई समर्थर्को से भी मोदी अपनी राह आसान करना चाह रहे है। वैसे मोदी के 10 साला सत्ता सुख पर एक बार फिर ज्यादातर बड़े नेताओं ने मोदी को बेस्ट माना और कहा है,। मगर एक दूसरे के दुश्मन बन चुके मोदी को अब भी पार्टी पर पूरा भरोसा नहीं रहा और पार्टी को भी मोदी के गदर से होने वाले नुकसान का अंदाजा है। एक तरफ सुषमा स्वराज और भी कई लोग अपने सपने को साकार करने में अलग गोटी बिठा रहे है। किसी को आडवाणी की रथयात्रा मंजूर नहीं है , मगर पार्टी की आचार संहिता और अनुसासन की लकीर के सामने आग उबलने की बजाय लोग भीतर ही भीतर सुलग रहे है। देखना है कि यूपीए को नेस्तनाबूद करने के फिराक में कहीं आपसी कलह और फूट से कमल ही ना मुर्छा जाए ?


चुनावी माहौल का पूर्वाभ्यास

यूपी समेत पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव में भले ही अभी कुछ समय बाकी हो, मगर चुनावी तापमान को बनाने और गरमाने में सभी सवार बाहर निकल गए हैं। छह माह के अंदर इंटरनेशनल लेबल पर लोकप्रिय हुए अन्ना हजारे और लाल कृष्ण आडवाणी अगले सप्ताह से अलग अलग रथयात्रा चालू कर रहे है। कांग्रेस के युवराज के दौरों की गाड़ी हमेशा चलायमान ही रहती है। गुजरात के हर जिले में जाकर नरेन्द्र मोदी अलग अलख जगाने की कार्रवाई शुरू कर दी है। अपने सुपुत्र को साथ लेकर मुलायम भैय्या भी यूपी को लांघने का खेल जारी रखा है। यूपी और उत्तरांचल में उमा भारती रोजाना सवारी कर रही है। कल्याम सिंह से लेकर राजनाथ सिंह कमल लाओ हाथी भगाओ की डफली बजा रहे है। यानी देश के कई राज्यों में चुनावी बिगुल बजने से पहले ही माहौल को हाथ में लेने के लिए हाथ,हाथी, साइकिल और कमल के खिलाफ रणभेरी बज गई है। मगर सबों के लिए अन्ना रोचक और रोमाचंक बने हुए है कि गांधी बाबा की टोपी पहनकर यह बंदा क्या कमाल या धमाल करता है।


(ब्लैकमेलर) अन्ना की नीयत और निगाह


गांधीवादी टोपी पहनकर जैसे कोई गांधी नहीं हो जाता ठीक वैसे ही गांधीगिरी का नकल करके कोई अन्ना हजारे गांधी की मूरत नही हो जाते। हालांकि देश भर में कांग्रेस के खिलाफ अलख जगा रहे महाराष्ट्र के अन्ना हजारे इस बार होने वाले विधानसभा चुनाव के सबसे बड़े नायक (रामदेव दूसरे नंबर पर हो सकते हैं)  बनकर उभरे हैं। पीएम अन्ना यानी पब्लिक मैन अन्ना भले ही पीएम ना बन सकते हैं ,मगर पावर मैन जरूर बन चुके है। चुनाव से ठीक पहले कहीं अनशन करके या दौरा करके या एंटी कांग्रेस वोट का फरमान जारी करके अपने अन्ना यह जताना और दिखाना चाहते हैं कि उनकी क्या ताकत है ? अन्ना लगातार स्वच्छ और बेहतर लोगों को चुनाव में खड़ा होने का अपील कर रहे है, जिसके समर्थन में जाकर चुनावी रैली या प्रचार करने का भी दावा कर रहे है। यानी लोकसभा चुनाव (यदि 2014 में ही हुए तो) से पहले तक वे पूरी टोली तैयार कर रहे है। उधर पहली बार शिवसेना सुप्रीमों बाल ठाकरे पर पलटवार करते हुए खुद 74 साल के अन्ना ने ठाकरे को उम्र का तकाजा देकर सठियाने की घोषणा कर दी। जिस पर ठाकरे ने अन्ना को पंगा नहीं लेने की चेतावनी तक दे डाली। फिर भी अपनी ताकत के बूते अन्ना सभी दलों पर अपना दबदबा दिखाने और जताने की मंशा पाल रहे है। हालांकि गैर राजनीतिक जनांदोलन का दावा कर रहे अन्ना के दावे पर पानी फेरते हुए संघ प्रमुख मोहन भागवत ने साफ कर दिया कि अन्ना के पीछे संघ और बीजेपी है। और इसके पीछे विपक्षी मतो के आधार पर 2012 में होने वाले रायसिना हिल्स निवास पर भी अन्ना की नजर लगी है। सूत्रों की माने तो कांग्रेस भी वाचाल अन्ना सुनामी को यह पदवी देकर चूहा बनाने में भरपूर साथ देने के लिए राजी हो सकती है। यानी सत्ता में सीधे ना सही, मगर बैकडोर से इंट्री के लिेए मंदिर निवासी अन्ना का मन डोल रहा है।

 कांग्रेस, करप्शन, लोकायुक्त, और शीला

कांग्रेस चाहे लाख दलील दे, मगर करप्शन से इसे ना कोई परहेज है और नाही कोई दिक्कत है। लोकायुक्त की रपट पर कर्नाटक के बीजेपी  मुख्यमंत्री को अपनी गद्दी गंवानी पड़ी। आमतौर पर सरकारी आदेशों को अपने ठोकर पर ऱखने के लिए कुख्यात यूपी सीएम बसपा सुप्रीमों बहम मायावती ने भी अपने दो दो मंत्रियों की लाल गाड़ी छीनकर सड़क पर ला दिया। लोकायुक्त की सिफारिश मानकर माया ने कानून के प्रति सम्मान दर्शाया है। हालांकि दो मंत्रियों के खिलाफ लोकायुक्त की जांच चल रही है और माया मंडल से लगता है कि दो और मंत्रियों की नौकरी बस्स जाने ही वाली है। माया दीदी का ऐन चुनाव से पहले अपने करप्ट मित्रों से पल्ला झाडने का यह कानूनी दांव औरों के लिए चेतावनी भी है कि जो माया से टकराएगा.......। मगर दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित इस मामले में सबों को परास्त कर दिया। अपने परम सहयोगी और सबसे निकटस्थ मंत्री राजकुमार चौहान के खिलाफ दिल्ली के लोकायुक्त ने सीधे राष्ट्रपति के पास सिफारिश भेजी। मगर काफी दिनों तक रायसिना हिल्स में धूल फांकने के बाद जब शीला के पास लोकायुक्त की सिफारिश पहुंची तो वे बड़ी चालाकी से अपने मंत्री के खिलाफ एक्शन लेने की बजाय लोकायुक्त के पत्र को सोनिया गांधी के पास भेज कर उन्हें अलग राम कहानी सुना दी। और लोकायुक्त की सिफारिश को कूडेदान में पार्टी सुप्ारीमों को फेंकना पड़ा। कुछ मामलो में दिल्ली की सीएम काफी होशियार और स्मार्ट है। कामन वेल्थ गेम करप्शन में शुंगलू जांच समिति द्वारा सीएम को आरोपित किेए जाने के बाद भी पीएम, एफएम, एचएम और पार्टी चेयरपर्सन को रामकहानी सुनाकर दोबारा साफ निकल गई। यानी इस बार मुख्यमंत्री बनने के लिए उतावला हो रहे एक केंद्रीय मंत्री को फिर और हर बार की तरह इस बार भी मुंह खानी पड़ी।  और तमाम करप्शन के आरोपों के बाद भी 13 सालों से शीला दिल्ली की महारानी बनी हुई है।

फिर मंदी की आहट या ...साजिश

दो साल पहले ग्लोबल मंदी से पूरा संसार अभी तक ठीक से उबर भी नहीं पाया था कि एक बार फिर मंदी की आहट या साजिश तेज हो गई है। और इस बार मंदी की स्क्रिप्ट क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडीज लिख रही है। चार दिन पहले ही भारतीय स्टेट बैंक आफ इंडिया की रेटिंग में गिरावट करके बैक समेत इसके लाखो निवेशकों को एक ही झटके में अरबों रूपए की चपत लगा दी। भारतीय बाजार अभी इससे उबर भी नहीं पाया था कि मूडीज ने ब्रिटेन के करीब दर्जन भर बैंकों की रेटिंग को गिराकर पूरे यूरोप में हंगामा मचा दिया है। अमरीका के दर्जन भर बैंक पहले से ही दीवालियेपन की कगार पर खड़े है। एशिया और अन्य देशों केसैकड़ों बैंको की पतली हालात किसी से छिपी नहीं है। यानी मूडीज ने रेटिंग कार्ड से पूरे ग्लोबल को हिला दिया है। मंदी की आशंका को  तेज कर दिया है। यानी कारोबारियों की फिर से पौ बारह और कर्मचारियों की फिर से नौकरी संकट से दो चार होना होगा। अपना भारत भी मूडीज के मूड से आशंकित है, क्योंकि गरीबों का जीवन और कठिनतम (सरल कब था) हो जाएगा।


रामलीला में राम पीछे और लीला बहुत बहुत आगे


रामलीलाओं की चमक दमक देखकर किसी भी आदमी का होश खराब हो सकता है। मगर, होश अपने नेताओं की मस्त हो जाती है। अगर रामजी भी कहीं से इन लीलाओं को देख रहे होंगे तो उनका दिल भी अपने पीएम मनमोहन जी की तरह ही रो रहा होगा। रामलीला के नाम पर लीला का ऐसा मंचन कि करोड़ो रुपए स्वाहा करने का बाद भी आयोजकों का मन नहीं भरता। तंत्र मंत्र से लेकर यांत्रिक उपकरणों, हेलीकाप्टरों की मदद से एक एक सेट और सीन को प्रभावशाली बनाने दिखाने और दूसरे आयोजकों पर अपनी दादागिरी जताने के लिए रामलीला एक बड़ा मंच बन जाता है। अपने प्रभाव को दर्शाने के लिेए तो आयोजकों द्वारा उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और कांग्रेस सुप्रीमों सोनिया गांधी को भी बुलाकर तीर धनुष से रावण दहन का शुभ कार्य कराया जाता है। जनता के मूड पर कब्जा जमाये रखने के लिेए हमारे नेतागण भी इस मौके पर जाने से खुद को रोक नहीं पाते। इससे लीला में और इजाफा ही हो जाता है।


 लालू और ममता से कंगाल हुआ रेल 

किराया बढ़ाने की बजाय और घटाने की सनक पाले  बिहार को बदहाल करने वाले लालू भैय्या और तुनक मिजाजी के लिए कुख्यात ममता दीदी ने अपने सात साल के रेल मंत्री वाले कार्यकाल में रेलवे की ऐसी तैसी कर दी। अपने बूते चलने वाला आत्मनिर्भर रेल मंत्रालय देश की रीढ़ माना जाता था। रोजाना करीब दो करोड लोगों को ढोने वाला रेल इस समय घनघोर संकट में है। लालू और ममता की ऐसी नजर लगी कि आज वो एक एक पैसों के लिए मोहताज हो गया है। नए रेलमंत्री दिनेश त्रिवेदी को कुछ सूझ भी नहीं रहा है। ममता उनकी नेता हैं, लिहाजा वो किसी को कोई दोष भी नहीं दे सकते। रेल किराया बढ़ने की पूरी तैयारी हो चुकी है, मगर संकटग्रस्त मनमोहन की यूपीए सरकार में फिलहाल इतना दम कहां कि पार्टी और अपनी लंगड़ी सरकार से बाहर जाकर देश हित पर कुछ विचार करे। फिलहाल टल रहा है रेलवे का भाड़ामें बढ़ोतरी, क्योंकि वो बीजेपी को फिर हल्ला बोलने का मौका देना नहीं चाहती।

और कंगाली में महाराज.......

सालों से कंगाली में चल रहे एयर इंडिया की कंगाली भी मनमोहनजी के अर्थशास्त्रीय ज्ञान का एक नायाब उदाहरण है। तमाम निजी विमान कंपनियां लाभ कमा रही है, मगर सरकारी महाराज की कंगाली अब इस कदर परवान पर चढ़ गयी है कि इसको संभालना मोंटेक बाबू के हाथ में नहीं है। महाराज की कंगाली को दूर करने के लिेए मंत्रालय ने 20 हजार करोड रूपए की डिमांड की है। यानी एक बार फिर महाराज के नाम पर नेता नौकरशाहों और दलालों की कंगाली दूर होगी और महाराज पर कुछ दिनों तक अमीरी और सेहत में सुधार का आक्सीजन लगाकर बेहतर दिखाया जाएगा। जय हो महाराज कि तेरे नाम पर फिर होगी करप्ट लोगों की फिर से सोना चांदी। वैसे हालात को ज्यादा गमगीन दिखाने के लिे हवाई नौकरशाहों ने फिलहाल नाईट फ्लाईट बंद कर दिया है ताकि मैडम समेत मन्नूजी और मोंटेक को पतली हालत का अंदाजा लग सके, और हालात को सुधारने के नाम पर पैसों की बारिश जल्दी से की जा सके।


पाक सीमा पर चीनी खतरा

प्रधानमंत्री कार्यालय के नौकरशाहों द्वारा पीएम मनमोहन सिंह को दिखाएं बगैर ही दर्जनों फाईलों पर सहमति की मुहर लगाकर से दूसरे मंत्रालय में भेजने की खबर ही हमारे पीएम को किसी विवाद उठने पर पता चलता है। तब बड़ी मासूमियत से अपने मन साहब यह कहने में संकोच नहीं करते कि इस फाईल को तो उन्होनें देखा ही नही था। अखबारों और खुफिया रपटों के लीक होने पर भी अपने ऐसे कर्मठ होनहार प्रभावशाली और दबंग पीएम को तो शायद यह भी नहीं पता होगा कि उनका अपना देश जिसे भारत (सॅारी मन साहब आपको तो हिन्दी पसंद नही है ना, इसलिए इंडिया)  और पाक सीमा पर पाक सैनिकों के साथ करीब चार हजार से भी अधिक चीनी सेना ( भारत और चीनी भाई भाई) अपने इंडिया के खिलाफ साजिश कर रहे है। हमे चारो तरफ से घेरा जा रहा है। और हमारी सरकार अपनी लंगोटी बचाने में लगी है। देश के ब्लैक अंग्रेजों (शासकों) अपने स्वार्थ और लालच को छोड़कर कुछ तो देश का ख्याल करो बेशर्मो।


(डीम्ड यूनिवसिर्टी का दर्जा वापस ले लो


आज एजूकेशन के अरबों खरबों के बिजनेस में में डीम्ड यूनिवसिर्टी का दर्जा पाना शान की बात हो गई है। मानव संसाधन मंत्रालय में इसे कौड़ियों के भाव (टेबुल के नीचे करोड़ों देने पर ही) बिक रहा है। देश के दर्जनों जगह पर सैकड़ों एकड़ लैंड में अपना साम्राज्य फैलाकर एक नहीं दर्जनों डीम्ड यूनिवसिर्टी आज शिक्षा के नाम पर करोड़ों और अरबों रूपे की फसल काट रहे है। देश भर में डीम्ड यूनिवसिर्टी के इतना डिमांड होने पर भी छह साल से डीम्ड यूनिवसिर्टी का दर्जा पाने के बाद अब नेशनल स्कूल आफ ड्रामा के प्रंबधको ने  नेशनल स्कूल आफ ड्रामा के डीम्ड यूनिवसिर्टी का दर्जा वापस करने की गुहार लगाई है। उनका मानना है कि इससे उनकी गुणवत्ता और स्वायत्तता पर असर पड़ रहा है और एनएसडी अपने लक्ष्य से भटकता जा रहा है। कमाल है सिव्वल साहब को इस स्कूल पर की गई मेहरबानी के ऐसे मोल की तो सपनों में भी उम्मीद नहीं थी।

इस क्रिकेट को बचाओ

हॅाकी भले ही हमारा नेशनल गेम हो , मगर सारे लोग जानते हैं कि क्रिकेट हमारे देश की धड़कन है। क्रिकेट से देश की सांसे चलती और थमती है। बेशुमार पैसों की खनक से लगभग पगला से गए हमारे क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के अधिकारियों ने देश को विकलांग और खिलाड़ियों की चैन हराम करके नोटों की बारिश करके अंधा बना दिया है। लालच बुरी बला कहावत को चरितार्थ करते हुए हमारे बोर्ड के स्वार्थी नौकरशाहों ने क्रिकेट को साल भर का खेल बना दिया। पैसों की चमक दमक में खो गए हमारे खिलाड़ी भी बहती गंगा मे हाथ धोने का ऐसा जुनून पाल रखा है कि खेल के सिवा अब उन्हें और कुछ सूझ ही नही रहा है। चैंपियन लीग में चेन्नई सुपरकिंग की हार के बाद चेन्नई  के कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी निराशा प्रकट करने की बजाय यह कहकर राहत की सांस ली कि चलो एक सप्ताह का तो आराम मिलेगा। धोनी की यह टिप्पणी दर्शाता है कि टीम किस बुरी तरह थक गई है। फिर भी हमारे लालची अधिकारी खिलाड़ियों को झोके जा रहे है। इस साल विश्व कप और इसके एक ही सप्ताह के बाद आईपीएल का थकाऊ खेल। आईपीएल खत्म हुआ नहीं कि एक पखवारे के भीतर ही वेस्टइंडीज का दौरा । वहां से नाक कटाने से बस्स किसी तरह बचकर टीम को भारत आए एक सप्ताह भी नही गुजरा कि टायर्ड धोनी एंड कंपनी को फिर इंग्लैंड जाना पड़ा। वहां ऐसी करारी हार मिली कि पूरा इंड़िया शर्मसार हो गया। और वहां से खिलाड़ी ठीक से लौटे भी नहीं थे कि चैंपियन लीग मे कई देशों के खिलाड़ी 20-20 के लिए भारत में आ चुके थे। और क्रिकेट के पैंटी संस्करण 20-20 लीग खत्म हुआ भी नही है कि इंग्लैंड की टीम हैदराबाद में आकर एक बार फिर इंडिया को नेस्तनाबूद करने की रणनीति बना रही है। और अपने धुरंधर थके हुए शेर फिर से ढेर होने के लिेए तैयार है। इनसे निपटने की देर है कि एक बार फिर टीम इंडिया कंगारूओं के देश में संभावित हार के लिए तैयार होकर रवाना होगी।  वलर्ड कप जीतने वाली टीम छह माह के अंदर टेस्ट और वनडे में अपनी रैंकिंग गंवा चुकी है। क्या दीवाली , दशहरा क्या पर्व त्यौहार, क्या परीक्षा और शादी विवाह के मौसमों की परवाह किए बगैर केवल क्रिकेट और केवल क्रिकेट खेल से खिलाड़ियों को विकलांग और देश को निकम्मा बनाने की साजिश हो रही है। हालांकि सरकार का इस पर जोर नहीं है मगर देश,समाज, खिलाड़ियों और क्रिकेट को बचाने के लिए सरकार को एक मानक बनाना ही होगा ताकि लालची और बेलगाम अधिकारियों में मोदी श्रीनिवासन, राजीव शुक्ला आदि से देश को बचाया जा सके, जिन्हें क्रिकेट के सिवा कुछ और ना दिख रहा हा और ना ही चांदी की खनक में कुछ सूझ रहा है।


तुस्सी ग्रेट हो बिज्जी,.वेरी वेरी वेरी ग्रेट हो बिज्जी......

राजस्थान के बोरूंदा गांव में आज से 86 साल पहले लगभग एक निरक्षर परिवार में पैदा हुए विजयदान देथा उर्फ बिज्जी को भले ही साहित्य का नोबल पुरस्कार नहीं मिला हो, मगर बिज्जी ने यह साबित कर दिखाया कि काम और लेखन की खुश्बू को फैलने से कोई रोक नहीं सकताहै। हिन्दी के चंद मठाधीशों द्वारा अपने चमच्चों को ही साहित्य का पुरोधा साबित करने के इस गंदे खेल का ही नतीजा है कि बिज्जी को कभी ज्ञानपीठ पुरस्कार के लायक भी नहीं समझा गया, उसी बिज्जी को नोबल समिति ने साहित्य के नोबल के लिेए नामांकित करके ही एक तरह से नोबल प्रदान कर दिया। लोककथा को एक कथा (आधुनिक संदर्भ) की तरह विकसित करके पाठकों लोगों (आलोचकों को नहीं) और पुस्तक प्रेमियों को मुग्ध करके हमेशा के लिए अपना मुरीद बना देने वाले बिज्जी की दर्जन भर कहानियों पर रिकार्डतोड़ सफल फिल्में बन चुकी है। लगभग एक हजार (लोककथाओं को) कहानी की तरह लिखने वाले बिज्जी से ज्यादा मोहक लेखक शायद अभी दूसरा नहीं है। हजारों लाखों को मुग्ध करने वाले बिज्जी को कभी ज्ञानपीठ पुरस्कार या और कोई सम्मानित पुरस्कार के लायक माना ही नहीं गया। हमेशा उनके लेखन की मौलिकता पर हमारे आलोचकों ने कभी गौर नहीं फरमाया। मेरे साथ एक इंटरव्यू में बिज्जी ने माफियाओं पर जोरदार हमला किया। तब राष्ट्रीय सहारा के दफ्तर में संचेतना के लेखक महीप सिंह मुझे खोजते हुए आए और बिज्जी के इंटरव्यू को आधार बनाकर दो किस्तों में (क्य साहित्य में माफिया सरगरम है? ) दर्जनों साहित्यकारों की टिप्पणी छापी। तब बिज्जी ने मुझे बताया कि संचेतना के बाद इनकी चेतना को खराब करने के लिए कितनों ने फोन पर बिज्जी को धमकाया। मेरे एक पत्र को ही अपनी एक किताब की भूमिका बना देने वाले बिज्जी की सबसे बड़ी ताकत उनका अपने पाठकों का प्यार और आत्मीयता है। बिज्जी की बेटी द्वारा दर्जनों कहानियों को कूड़ा जानकर जलाने की घटना भी काफी रोचक है। पूछे जाने पर बड़ी मासूमियत से बेटी ने कहा बप्पा एक भी पन्ना कोरा नहीं था सब भरे थे सो जला दी। इस घटना को याद करके आज भी अपना सिर धुनने वाले बिज्जी को भले ही नोबल ना मिला हो, मगर नोबल पुरस्कार के लिए नामांकित किया जाना ही नोबल मिलने से ज्यादा बड़ा सम्मान है, क्योंकि हमारे तथाकथित महान आलोचक और समीक्षक शायद अब बिज्जी को बेभाव नहीं कर पाएंगे। रियली बिज्जी दा तुस्सी रियली ग्रेट हो।



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