भारतीय
महिला क्रिकेट टीम विश्व कप में तीसरे नंबर पर रही. क्रिकेट के दीवानों
को भी भले ही यह पता न हो कि आस्ट्रेलिया में नौंवा महिला विश्व कप क्रिकेट
चल रहा था लेकिन उन्हें यह जानकर हैरानी होगी कि क्रिकेट में विश्व कप
जैसे बड़े टूर्नामेंट की शुरुआत पुरुषों ने नहीं बल्कि महिलाओं ने की थी.
महिलाओं का विश्व कप पुरुषों के विश्व कप से भी पुराना है. इसकी शुरूआत
1973 में इंग्लैंड में हुई थी. इसके दो साल बाद पुरुषों का विश्व कप खेला
गया था. महिला विश्व कप क्रिकेट की कहानी बड़ी रोचक है. इसमें इंग्लैंड की
पूर्व कप्तान और 1999 में एमसीसी में शमिल होने वाली पहली महिला राचेल
फ्लिन्ट और फुटबाल क्लब वोल्वरहमटन वांडर्स के मालिक और 2008 में ब्रिटेन
के धनी व्यक्तियों की सूची में 501 वें स्थान पर काबिज जैक हेवार्ड ने अहम
भूमिका निभाई थी. हेवार्ड ने 1971 में इंग्लैड की महिला टीम के वेस्टइंडीज
दौरे का खर्चा उठाया था और इसलिए जब फ्लिन्ट ने एक शाम बातों-बातों में
उनके सामने विश्व कप जैसा टूर्नांमेंट आयोजित करने का प्रस्ताव रखा तो
उन्होंने इसे तुरंत स्वीकार कर लिया. हेवार्ड ने विश्व कप के लिए तब 40
हजार पौंड की धनराशि दी थी. हेवार्ड के इस कदम की तब कुछ लोगों ने खिल्ली
भी उड़ाई थी. एक बार उनसे किसी ने पूछा था कि वह महिला क्रिकेट पर इतनी अधिक
धनराशि क्यों खर्च कर रहे हैं. इस पर उन्होंने जवाब दिया था कि मैं
महिलाओं को चाहता हूं और इससे बेहतर क्या हो सकता है. फ्लिन्ट और हेवार्ड
के प्रयास से 20 जून में 28 जुलाई 1973 के बीच पहला महिला विश्व कप आयोजित
किया गया. महिला विश्व कप पर इसके बाद कई बार संकट के बादल मंडराए लेकिन
फ्लिन्ट और हेवार्ड का प्रयास पुरुष विश्व कप के लिए प्रेरणा बना जो पहली
बार इसके दो वर्षों बाद 1975 में आयोजित जिसका प्रायोजक प्रूडेंशियल था.
दिलचस्प बात यह है कि महिला विश्व कप का पहला विजेता इंग्लैड पुरुष विश्व
कप में तीन बार फाइनल में पहुंचने के बाद अभी तक चैंपियन नहीं बन पाया
है. कपिल देव की अगुआई में भारतीय टीम ने 1983 में विश्व कप जीतकर इतिहास
रचा था लेकिन भारत की महिला क्रिकेट टीम को एक बार फाइनल और दो बार
सेमीफाइनल में पहुंचने के बावजूद अब भी विश्व चैंपियन बनने का इंतजार है.
अभी तक भारतीय क्रिकेट महिलाओं ने आठ में से छह बार हिस्सा लिया है. भारतीय
महिला क्रिकेट टीम तीन टूर्नांमेंट में सेमीफाइनल तक जरूर पहुंची है.
भारतीय पुरुष टीम सौरव गांगुली की अगुआई में 2003 में खेले गए विश्व कप के
फाइनल में पहुंची थी. इसके दो साल बाद 2005 में मिताली राज के नेतृत्व में
महिला टीम ने भी यह उपलब्धि हासिल की. इन दोनों टूर्नामेंट में इसके अलावा
यह समानता है कि इन दोनों का आयोजन दक्षिण अफ्रीका में किया गया और भारत
की दोनों टीमें फाइनल में आस्ट्रेलिया से ही पराजित हुईं. भारतीय टीम के
पिछले विश्व कप मैचों के प्रदर्शन में महिलाओं का पुरुषों के मुकाबले
ज्यादा अच्छा प्रदर्शन देखा गया है.
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