- Comment field is required.
Reply to comment
दाउदनगर
(अनुमंडल) : दाउदनगर के पुराना शहर स्थित दाऊद खां का ऐतिहासिक किला
सरकारी उदासीनता की उपेक्षा का शिकार है. समुचित देखरेख के अभाव में यह
ऐतिहासिक एवं प्राचीन पुरातात्विक स्थल खंडहर में तब्दील होता जा रहा है.
किले की जमीन अतिक्रमित कर ली गयी है. दीवारें क्षतिग्रस्त हो रही हैं. परिसर में गंदगी व्याप्त है. हालांकि कुछ वर्ष पूर्व प्रशासन द्वारा सफाई करायी गयी थी, परंतु बाद में स्थिति पूर्ववत हो गयी. यदि इसके ऐतिहासिक संदर्भ की चर्चा की जाये तो यह किले भी सूबे के महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थलों में से एक है.
मुगल शासक औरंगजेब के शासन काल में दाऊद खां कुरैशी बिहार के प्रथम सूबेदार थे. उनके पलामू विजय अभियान के बाद औरंगजेब ने 1074 हिजरी में उन्हें अंछा परगना इनाम स्वप दिया.
ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार 23 अप्रैल 1660 ई. को दाऊद खां ने पलामू विजय अभियान चलाया था. पलामू फतह के बाद जब उन्हें ठहरने की नौबत आयी तो घने जंगलों को कटवा कर सैनिक छावनी (किला) का निर्माण करवाया गया जो 1663 ई. से शुरू हुआ और 1673 ई. में बन कर तैयार हुआ.
शहर के चारों ओर चार बड़े-बड़े फाटक बनवाये गये. जिसमें छत्तर दरवाजा का वजूद आज भी है. हर प्रकार के हुनर एवं तालिम रखने वालों को लाकर बसाया गया. कहा जाता है कि दाऊद खां के नाम पर इस शहर का नाम सिलौटा बखौरा से दाउदनगर पड़ा.
ऐतिहासिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण इस किले के जीर्णोद्धार की जरूरत है. यदि इसका समुचित संरक्षण नहीं किया गया तो यह एक दिन अतीत की बात बन कर रह जायेगा.
किले की जमीन अतिक्रमित कर ली गयी है. दीवारें क्षतिग्रस्त हो रही हैं. परिसर में गंदगी व्याप्त है. हालांकि कुछ वर्ष पूर्व प्रशासन द्वारा सफाई करायी गयी थी, परंतु बाद में स्थिति पूर्ववत हो गयी. यदि इसके ऐतिहासिक संदर्भ की चर्चा की जाये तो यह किले भी सूबे के महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थलों में से एक है.
मुगल शासक औरंगजेब के शासन काल में दाऊद खां कुरैशी बिहार के प्रथम सूबेदार थे. उनके पलामू विजय अभियान के बाद औरंगजेब ने 1074 हिजरी में उन्हें अंछा परगना इनाम स्वप दिया.
ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार 23 अप्रैल 1660 ई. को दाऊद खां ने पलामू विजय अभियान चलाया था. पलामू फतह के बाद जब उन्हें ठहरने की नौबत आयी तो घने जंगलों को कटवा कर सैनिक छावनी (किला) का निर्माण करवाया गया जो 1663 ई. से शुरू हुआ और 1673 ई. में बन कर तैयार हुआ.
शहर के चारों ओर चार बड़े-बड़े फाटक बनवाये गये. जिसमें छत्तर दरवाजा का वजूद आज भी है. हर प्रकार के हुनर एवं तालिम रखने वालों को लाकर बसाया गया. कहा जाता है कि दाऊद खां के नाम पर इस शहर का नाम सिलौटा बखौरा से दाउदनगर पड़ा.
ऐतिहासिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण इस किले के जीर्णोद्धार की जरूरत है. यदि इसका समुचित संरक्षण नहीं किया गया तो यह एक दिन अतीत की बात बन कर रह जायेगा.
No comments:
Post a Comment