Written by डा. आशीष वशिष्ठ
Category: विश्लेषण-आलेख-ब्लाग-टिप्पणी-चर्चा-चौपाल
Published on 24 January 2012
जब जनरल शाहनवाज ब्रिटिश आर्मी में शामिल हुए थे, तब विश्व युद्व चल रहा था और उनकी तैनाती सिंगापुर में थी। जापानी फौज ने ब्रिटिश इंडियन आर्मी के सैंकड़ों सैनिकों को बंदी बनाकर जेलों में ठूंस दिया था। सन 1943 में जब नेता जी सुभाष चंद्र बोस सिंगापुर आए और उन्होंने आजाद हिंद फौज की मदद से इन बंदी सैनिकों को रिहा करवाया। नेताजी के ओजस्वी वाणी और जोशीले नारे ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ से प्रभावित होकर शाहनवाज के साथ सैंकड़ों सैनिक आजाद हिन्द फौज में शामिल हो गए और भारत माता की मुक्ति के लिए अंग्रेजों से लोहा लेने लगे। शाहनवाज खान के देशभक्ति और नेतृत्व क्षमता से प्रभावित होकर नेताजी ने उन्होंने आरजी हुकूमत-ए-आजाद हिंद की कैबिनेट में शामिल किया था। दिसंबर 1944 में जनरल शाहनवाज को नेता जी ने मांडले में तैनात सेना की टुकड़ी का नम्बर 1 कमांडर नियुक्त किया था। सितंबर 1945 में नेता जी आजाद हिंद फौज के चुनिंदा सैनिकों को छांटकर सुभाष ब्रिगेड बनायी थी, जिसका कमांड नेताजी ने जनरल शाहनवाज के हाथ सौंपी थी। इस ब्रिगेड ने कोहिमा में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ मोर्चा संभाला था। संयुक्त सेना सेकेंड डिविजन का कंमाडर बनाकर बर्मा के मोर्च पर भेजा।
ब्रिटिश आर्मी से लड़ाई के दौरान बर्मा में जनरल शाहनवाज खान और उनके दल को ब्रिटिश आर्मी ने 1945 में बंदी बना लिया था। नवंबर 1946 में मेजर जनरल शाहनवाज खान, कर्नल प्रेम सहगल और कर्नल गुरुबक्श सिंह के खिलाफ दिल्ली के लाल किले में अंग्रेजी हकूमत ने राजद्रोह का मुकदमा चलाया। लेकिन भारी जनदबाव और समर्थन के चलते ब्रिटिश आर्मी के जनरल आक्निलेक को न चाहते हुए भी आजाद हिंद फौज के अफसरों को अर्थदण्ड का जुर्माना लगाकर छोड़ने का विवश होना पड़ा। जनरल शाहनवाज खान और बाकी अफसरों की पैरवी सर तेज बहादुर सप्रू, जवाहर लाल नेहरु, आसफ अली, बुलाभाई देसाई और कैलाश नाथ काटजू ने की थी। 1946 में आजाद हिंद फौज की समाप्ति के बाद जनरल शाहनवाज खान ने महात्मा गांधी और पंडित जवाहर लाल नेहरू के प्रेरणा से इंडियन नेशनल कांग्रेस में शामिल हो गये। 1947 में प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने जनरल शाहनवाज खान को कांग्रेस सेवा दल के सदस्यों को सैनिकों की भांति प्रशिक्षण और अनुशासन सिखाने की अहम जिम्मेदारी सौंपी। जनलर खान को कांग्रेस सेवा दल के सेवापति का पद नवाजा गया, जिसका निर्वाहन उन्होंने वर्ष 1947 से 1951 तक किया था, और अपने जीवन के अंतिम दिनों में भी वह 1977 से 1983 तक कांग्रेस सेवा दल के प्रभारी बने रहे।
वर्ष 1952 में पहले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर मेरठ से चुनाव जीते। इसके बाद वर्ष 1957, 1962 व 1971 में मेरठ से लोकसभा चुनाव जीता। मेरठ लोकसभा सीट से प्रतिनिधित्व करने वाले जनरल शाहनवाज खान 23 साल केंद्र सरकार में मंत्री रहे। 1952 में चुनाव जीतने के बाद वह पॉलियामेंट्री सेक्रेटी और डिप्टी रेलवे मिनिस्टर बने। 1957-1964 तक वह केन्द्रीय खाद्य एवं कृषि मंत्री के पद पर रहे। 1965 में कृषि मंत्री एवं 1966 में श्रम, रोजगार एवं पुनर्वास मंत्रालय की जिम्मेदारी संभाली। 1971 से 1975 तक उन्होंने पेट्रोलियम एवं रसायन और कृषि एवं सिंचाई मंत्रालयों की बागडोर संभाली। 1975 से 1977 के दौरान वह केन्द्रीय कृषि एवं सिंचाई मंत्री के साथ एफसीआई के चेयरमैन का उत्तदायित्व भी उन्होंने संभाला। मेरठ जैसे संवेदनशील शहर का दो दशकों से अधिक प्रतिनिधित्व जनरल खान ने किया और उनके कुशल नेतृत्व और सबको साथ लेकर चलने की नीति के कारण शहर में कभी कोई दंगा फसाद नहीं हुआ, जो एक मिसाल है। 1956 में भारत सरकार ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की नेताजी की मौत के कारणों और परिस्थितियों के खुलासे के लिए एक कमीशन बनाया था, जिसकी अध्यक्ष जनरल शाहनवाज खान थे।
जनरल शाहनवाज खान शुरू में नेताजी सुभाष चंद्र बोस से प्रभावित हुए तो बाद में गांधी जी के साथ रहे। पंडित नेहरु ने उन्हें ‘खान’ की उपाधि से नवाजा। जनरल शाहनवाज के पीए रहे मतीन बताते हैं कि छठें लोकसभा चुनाव में जब मेरठ से उनके बजाय मोहसिना जी को टिकट दिया गया तो उन्होंने मोहसिना जी के साथ जाकर नामांकन कराया। वह सबके सुख-दुख में शामिल होते थे। जनरल शाहनवाज के पोते आदिल शाहनवाज बताते हैं कि, ‘रेलवे का एक कर्मचारी बिना अवकाश घर चला गया तो उसे सस्पेंड कर दिया गया। जनरल साहब ने तब कैबिनेट मंत्री लाल शास्त्री जी से कहा। उन्होंने गंभीरता से नहीं लिया। इस पर उन्होंने अगले दिन अपना इस्तीफा भेज दिया। शास्त्री जी ने कारण पूछा तो बोले कि ‘अगर अवाम के लिए काम करने लायक नहीं हूं तो इस कुर्सी पर बैठने का मुझे हक नहीं है। आजाद हिन्दुस्तान में लाल किले पर ब्रिटिश हुकूमत का झंडा उतारकर तिरंगा लहराने वाले जनरल शाहनवाज ही थे। देश के पहले तीन प्रधानमंत्रियों ने लालकिले से जनरल शाहनवाज का जिक्र करते हुए संबोधन की शुरुआत की थी। आज भी लालकिले में रोज शाम छह बजे लाइट एंड साउंड का जो कार्यक्रम होता है, उसमें नेताजी के साथ जनरल शाहनवाज की आवाज है। प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष सेवानिवृत्त न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू ने जनरल खान की देश के प्रति निष्ठा और राष्ट्रनिर्माण में अग्रणी भूमिका को देखते हुए भारत सरकार से जनरल खान को भारत रत्न देने की मांग की है। डाक विभाग महान स्वतंत्रा सेनानी जनरल शाहनवाज खा कर्नल प्रेम चंद और कर्नल गुरुबख्श पर डाक टिकट जारी कर चुका है।
महान स्वतंत्रता सेनानी, देशभक्त और कुशल राजनेता जनरल शाहनवाज खान को काल के क्रूर हाथों ने हम सबसे से 9 दिसंबर 1983 को हमसे छीन लिया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जनरल खान की मौत को देश के अपूरणीय क्षति करार दिया था और उनके परिवार को फोन करके जनरल खान के पार्थिव शरीर को मेरठ से दिल्ली दफनाने का आग्रह किया था। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने इंदिरा जी के कहने पर गाजियाबाद मोहन नगर में जनरल खान के शवयात्रा की अगुआई की थी। इंदिरा जी ने उस समय कहा था कि नेताजी ने आजाद हिंद फौज के दौरान ‘दिल्ली चलो’ का नारा बुलंद किया था, और जनरल खान भी यही चाहते थे कि उनको लालकिले के पास दफनाया जाए। लालकिले के पास स्थित जामा मस्जिद के निकट जनरल खान को पूरे सम्मान के साथ दफनाया गया था। जनरल खान के परिवार में उनके तीन पुत्र महमूद नवाज, अकबर नवाज, अजमल नवाज और तीन पुत्रियां मुमताज, फहमिदा और लतीफ फातिमा हैं। लतीफ फातिमा को उन्होंने गोद लिया था। लतीफ फातिमा बालीवुड के मशहूर अभिनेता शाहरूख खान की मां हैं। जनरल खान के पोते आदिल शाहनवाज अपने दादा के नाम से जनरल शाहनवाज खान फांउडेशन का संचालन करते हैं।
लेखक डा. आशीष वशिष्ठ लखनऊ के स्वतंत्र पत्रकार हैं
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