Tuesday, 10 May 2011
यात्रा संस्मरण . केदारनाथ
यात्रायों को लेकर प्राय हर व्यक्ति के अपने निजी अनुभव होते हैं और वही अनुभव यात्रा संस्मरण का नाम ले लेते हैं । यत्रायों की याद आते ही मुझे सह्सा ही केदारनाथ यात्रा की यादें ताज़ा हो जाती है हालाँकि इस यात्रा को किये तक़रीबन ६ बर्ष बीत गए परन्तु आज भी इसकी मधुर यादें ताज़ा तरीन हैं।
बर्ष २००५जून मे चंडीगढ़ से कार द्वारा हमने गढ़वाल यात्रा शुरु की थी । रात का पड़ाव देहरादून और उसके बाद अगले दिन आरभ हुई हमारी रोमांच से भरी गढ़वाल यात्रा । पति की कुशल ड्राइविंग और प्राकृतिक सुन्दरता से ओत प्रोत सफ़र पूरे एक सप्ताह तक बहुत खास रहा।
चारधाम यात्रा की जब बात आती है तो सबसे दुर्गम यात्रा केदारनाथ की मानी जाती है । दिन भर प्राकृतिक सुन्दरता , झरनों , कहीं अच्छी तो कहीं टूटी फूटी सड़क का आनंद लेते हुय हम शाम ६ बजे "गौरीकुंड " पहुँच गए । गौरी कुण्ड केदारनाथ यात्रा शुरु करने का पहला पड़ाव है।
असल मायनो मे यहीं से केदारनाथ यात्रा का आरभ होता है । गौरी कुण्ड का नजारा देखते ही बनता है । यहाँ का नजारा शिवमय बना हुआ था। देहरादून से यह स्थान लगभग २२१ किलोमीटर है और कहते हैं कि भक्त गौरी कुण्ड मे स्नान करके फिर केदारनाथ मंदिर कि यात्रा आरम्भ करते हैं । खेर कुछ भोजन करने के पश्चात् हम ने एक होटल मे बिश्राम किया क्यूंकि कल कि यात्रा वास्तव मे बहुत थकाने वाली होनी थी । हमे १४ कम का सफ़र पैदल ही तय करना था और उसी दिन वापस भी लौटना था ताकि हम अगले दिन आगे बद्रीनाथ कि यात्रा आरभ कर सकें ।तो लीजिये साहिब अगली सुबह आई और हम निकल पडे पैदल यात्रा पर । बाबा भोले नाथ कि जय जय कार से गूंजते स्वर एक अजीब सा जोश भर रहे थे । ज्यादातर यात्री यहाँ गौरीकुंड से ही घोडे ले लेते हैं लेकिन रोमांचक यात्रा का मजा लेना हो तो पैदल यात्रा एक बहुत अच्छा बिकल्प है
१४ किलोमीटर की पैदल यात्रा मे एक नहीं बल्कि कई झरने , बर्फ से गिरी पहाड़िया , ग्लेसियर , पेड पोधे यात्रा को बहुत खुबसूरत बना देते हैं। कहीं दुर्गम चढाई तो कहीं पथरीली कच्ची सड़क यता थोड़ी मुशकिल तो है लेकिन केदारनाथ का असली आनंद इसी मे हे । पहाडियों पर जितना उपर चलते जाते हैं उतना ही मन्दाकिनी नदी का नजारा भी खुबसूरत होता जाता है .कहा जाता है कि मन्दाकिनी नदी का उदगम केदारनाथ से ही हुआ है ।
पैदल यात्रा का आनंद लेते लेते आखिर हम इस पावन धाम केदारनाथ पहुँच जाते हैं जहाँ कि सुन्दरता और पवित्रता दोनों ही मंत्रमुग्ध क़र मनो सारी थकान दूर क़र देती हे । समुद्र तल से तक़रीबन ३५८३ मीटर कि ऊंचाई पर बर्फीले पहाडियों कि चोटियो से घिरा केदारनाथ मंदिर इसकी सुन्दरता का वर्णन शब्दों मे क़र पाना नामुमकिन है । कहते हें कि इस पत्थरो से बने कत्यूरी शैली के मंदिर का निर्माण पांडव वंश के जन्मेजय ने कराया था । मंदिर मे बसा स्यंभू शिवलिंग अति प्राचीन है .बाद मे मंदिर का जीर्णोद्वार जगतगुरु अदि शंकराचार्य ने कराया था । मंदिर का इतिहास अपने आप मे एक पूरा विषय है । फिलहाल तो यहाँ केदारनाथ यात्रा कि बात हो रही हे तो मै उसी के सन्दर्भ मे बात आगे बढ़ती हूँ। शिव पिंडी कि पूजा ही यहाँ का मुख्य पूजन है. मंदिर प्रांगन की एक सबसे बढ़ी खासियत मुझे महसूस हुई है कि वहां पहुंचते ही मनो सारी थकान रफू चक्कर हो जाती है ।
मंदिर प्रांगन मे अमृत कुंड को विशेष रूप से पूजा जाता है । मंदिर के आस पास छोटे छोटे और भी कई पूजने योग्य स्थान हैं पर प्राकृतिक सुन्दरता के शौकीन यहाँ का सोंदर्य को जी भर सराहते हैं। आमतौर पर भक्तो को दर्शन आसानी से हो जाते हैं । केदारनाथ पहुंचना अपने आप माय ही एक सुखद अहसास से कम नहीं । ऐसे अवसर भगवान् की कृपा के बिना प्राप्त होने मुश्किल होते हैं । कोई दो घंटे वहां गुजारने के बाद हम वापस गौरी कुंड की और चल दिए अभी १४ किलोमीटर वापसी का मार्ग तय करना बाकि था । वापसी मे हमने मोसम के बदले हुए मिजाज को पहाड़ो की सुन्दरता और भी बढाते हुए पाया । कुछ किलोमीटर तक हुई बारिश यात्रा को एक नयी ताजगी देती महसूस हुई । २८ किलोमीटर का यह सफ़र गौरी कुंड पहुँच कर संपन्न हुआ । एक कभी न भूलने वाली केदारनाथ यात्रा । अब हमारा अगला पड़ाव कल बद्रीनाथ की और था । लिहाजा आब समय हो गया था की कल की यात्रा के लिए अब कुछ अच्छी नींद ले ली जाये । दो रात गौरीकुंड मे बिताकर हम अगले दिन आगे चल दिए पर आज भी केदारनाथ की ताजगी सिर्फ एक सुखद याद बन कर फिर एक यात्रा का निमंत्रण देती हे ।
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