सोनिया गाँधी की कहानी सुब्रमण्यम स्वामी की जुबानी
पूर्व
राष्ट्रपति अब्दुल कलाम के सामने जब सोनिया गांधी ने सरकार बनाने का दावा
पेश किया , तो वो पशोपेश में थे। ये 17 मई 2004 का दिन था। तब इस मामले में
कई संवैधानिक अड़चनें थीं और कलाम इस पर सलाह लेना चाहते थे। मीडिया के
तमाम हाइप के बावजूद वो तब सौ करोड़ लोगों के इस देश की प्रधानमंत्री नहीं
बन पाईं। मैं यही कहूंगा कि ये संयोग था कि हमारी राष्ट्रीयता की अस्मिता
की तब रक्षा हुई और इस पर खरोच लगने से बच गई। इसके बाद ये आवाजें भी उठीं
कि भला किस तरह लोकतांत्रिक तरीके से और संवैधानिक तरीके से सोनिया गांधी
को किसी सार्वजनिक पद से दूर रखा जा सकता है। मेरा सोनिया गांधी से विरोध
केवल इसलिए नहीं है कि वो इतालवी हैं और इटली में पैदा हुई हैं। किसी भी
लोकतांत्रिक देश में , जिसमें इटली भी शामिल है इस तरह का मुद्दा उठ ही
पाता कि किसी विदेशी मूल के व्यक्ति को किस तरह देश का प्रमुख होने से रोका
जाये , क्योंकि वहां संविधान में पहले से ही इस बात की साफ-साफ व्यवस्था
की जा चुकी है। उनके कानून में साफ लिखा है कि जो व्यक्ति यहां पैदा हुआ
होगा वही यहां का प्रमुख बन सकता है। भारत में इस तरह का कोई कानून नहीं है
लेकिन मेरी जानकारी के अनुसार राष्ट्रपति ने भारतीय सिटिजनशिप एक्ट (1855)
के सेक्शन पांच के तहत काम किया। किसी विदेशी का भारतीय नागरिक के तौर पर
रजिस्ट्रेशन करने के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय को भारतीय नागरिकता प्रदान
करने के लिए वही स्थिति अपनानी चाहिए थी जो कि इटली में होती है। ऐसे में
श्रीमती गांधी पर भी वह नियम लागू होना चाहिए था जो कि किसी भारतीय के इटली
में नागरिकता हासिल करने के लिए होता है। राष्ट्रपति ने 17 मई 2004 की
दोपहर श्रीमती गांधी को सूचित किया अगर वह खुद अपनी सरकार बनाने पर जोर
देंगी तो वह पहले एक बात को स्पष्ट करना चाहेंगे , जो सुप्रीम कोर्ट के
रिफरेंस में होगा कि उनके प्रधानमंत्री बनने को लेकर विदेशी मूल के मामले
पर चुनौती तो नहीं दी जा सकती है। राष्ट्रपति की ये रिपोर्ट एकदम सही थी।
मैने इस संबंध में दो दिन पहले ही यानि 15 मई 2004 को एक याचिका दायर कर
रखी थी कि सोनिया गांधी की नागरिकता कंडीशनल है और इस सूरत में वह
प्रधानमंत्री नहीं बन सकतीं। राष्ट्रपति ने मुझे 17 मई 2004 की दोपहर मिलने
के लिए बुलाया। उसमें मुझसे राय मांगी गई। मैंने उनसे कहा कि मैं सुप्रीम
कोर्ट में इस असंवैधानिक नियुक्ति का विरोध करूंगा , जैसा कि मैंने 2001
में भी किया था , जब जयललिता को तमिलनाडु के राज्यपाल द्वारा मुख्यमंत्री
पद की शपथ दिलाई गई थी। खैर हम अब सोनिया गांधी की ओर लौटते हैं और पहले ये
जानते हैं कि सोनिया गांधी कौन हैं , उनसे , उनके परिवार और इटली के
मित्रों से क्या खतरे हैं। बहुत कम लोग उनके अतीत के बारे में जानते हैं।
उनका असली नाम एडविग एंतोनिययो अल्बिना मैनो है। और जानेंगे उन झूठ बातों
के बारे में जो सोनिया से जुड़ी हैं। कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि
भारतीय लोग सोनिया के बारे में कुछ नहीं जानते और वो किन लोगों से ताल्लुक
रखती हैं। यहां तक भारत में पैदा हुए नागरिक के बारे में भी कई बार हमें
उसकी सही सही पृष्ठभूमि के बारे में मालूम नहीं हो पाता तो ऐसे में एक
विदेशी के बारे में जानना जो बहुत छोटी सी जगह से ताल्लुक रखता हो , वाकई
बहुत मुश्किल है।
तीन झूठ:
कांग्रेस
पार्टी और खुद सोनिया गांधी अपनी पृष्ठभूमि के बारे में जो बताते हैं , वो
तीन झूठों पर टिका हुआ है। पहला ये है कि उनका असली नाम अंतोनिया है न की
सोनिया। ये बात इटली के राजदूत ने नई दिल्ली में 27 अप्रैल 1973 को लिखे
अपने एक पत्र में जाहिर की थी। ये पत्र उन्होंने गृह मंत्रालय को लिखा था ,
जिसे कभी सार्वजनिक नहीं किया गया। सोनिया का असली नाम अंतोनिया ही है ,
जो उनके जन्म प्रमाण पत्र के अनुसार एकदम सही है। सोनिया ने इसी तरह अपने
पिता का नाम स्टेफनो मैनो बताया था। वो दूसरे वल्र्ड वार के समय रूस में
युद्ध बंदी थे। स्टेफनो नाजी आर्मी के वालिंटियर सदस्य थे। बहुत ढेर सारे
इतालवी फासिस्टों ने ऐसा ही किया था। सोनिया दरअसल इतालवी नहीं बल्कि रूसी
नाम है। सोनिया के पिता रूसी जेलों में दो साल बिताने के बाद रूस समर्थक हो
गये थे। अमेरिकी सेनाओं ने इटली में सभी फासिस्टों की संपत्ति को तहस-नहस
कर दिया था। सोनिया ओरबासानो में पैदा नहीं हुईं , जैसा की उनके बायोडाटा
में दावा किया गया है। इस बायोडाटा को उन्होंने संसद में सासंद बनने के समय
पर पेश किया था , सही बात ये है कि उनका जन्म लुसियाना में हुआ। शायद वह
इस जगह को इसलिए छिपाने की कोशिश करती हैं ताकि उनके पिता के नाजी और
मुसोलिनी संपर्कों का पता नहीं चल पाये और साथ ही ये भी उनके परिवार के
संपर्क इटली के भूमिगत हो चुके नाजी फासिस्टों से युद्ध समाप्त होने तक बने
रहे। लुसियाना नाजी फासिस्ट नेटवर्क का मुख्यालय था , ये इटली-स्विस सीमा
पर था। इस मायनेहीन झूठ का और कोई मतलब नहीं हो सकता। तीसरा सोनिया गांधी
ने हाईस्कूल से आगे की पढ़ाई कभी की ही नहीं , लेकिन रायबरेली से चुनाव
लड़ने के दौरान उन्होंने अपने चुनाव नामांकन पत्र में उन्होंने ये झूठा
हलफनामा दायर किया कि वो अंग्रेजी में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से
डिप्लोमाधारी हैं। ये हलफनामा उन्होंने 2004 के लोकसभा चुनावों के दौरान
रायबरेली में रिटर्निंग ऑफिसर के सम्मुख पेश किया था। इससे पहले 1989 में
लोकसभा में अपने बायोग्राफिकल में भी उन्होंने अपने हस्ताक्षर के साथ यही
बात लोकसभा के सचिवालय के सम्मुख भी पेश की थी , जो की गलत दावा था। बाद
में लोकसभा स्पीकर को लिखे पत्र में उन्होंने इसे मानते हुए इसे टाइपिंग की
गलती बताया। सही बात ये है कि श्रीमती सोनिया गांधी ने कभी किसी कालेज में
पढाई की ही नहीं। वह पढ़ाई के लिए गिवानो के कैथोलिक नन्स द्वारा संचालित
स्कूल मारिया आसीलेट्रिस गईं , जो उनके कस्बे ओरबासानों से 15 किलोमीटर दूर
था। उन दिनों गरीबी के चलते इटली की लड़कियां इन मिशनरीज में जाती थीं और
फिर किशोरवय में ब्रिटेन ताकि वहां वो कोई छोटी-मोटी नौकरी कर सकें। मैनो
उन दिनों गरीब थे। सोनिया के पिता और माता की हैसियत बेहद मामूली थी और अब
वो दो बिलियन पाउंड की अथाह संपत्ति के मालिक हैं। इस तरह सोनिया ने लोकसभा
और हलफनामे के जरिए गलत जानकारी देकर आपराधिक काम किया है , जिसके तहत न
केवल उन पर अपराध का मुकदमा चलाया जा सकता है बल्कि वो सांसद की सदस्यता से
भी वंचित की जा सकती हैं। ये सुप्रीम कोर्ट की उस फैसले की भावना का भी
उल्लंघन है कि सभी उम्मीदवारों को हलफनामे के जरिए अपनी सही पढ़ाई-लिखाई से
संबंधित योग्यता को पेश करना जरूरी है। इस तरह ये सोनिया गांधी के तीन झूठ
हैं , जो उन्होंने छिपाने की कोशिश की। कहीं ऐसा तो नहीं कि कतिपय कारणों
से भारतीयों को बेवकूफ बनाने के लिए उन्होंने ये सब किया। इन सबके पीछे
उनके उद्देश्य कुछ अलग थे। अब हमें उनके बारे में और कुछ भी जानने की जरूरत
है ।
सुब्रमण्यम स्वामी के व्याख्यान सोनिया के संदर्भ मे :
सोनिया का भारत में पदार्पण:
सोनिया
गांधी ने इतनी इंग्लिश सीख ली थी कि वो कैम्ब्रिज टाउन के यूनिवर्सिटी
रेस्टोरेंट में वैट्रेस बन गईं। वो राजीव गांधी से पहली बार तब मिलीं जब वो
1965 में रेस्टोरेंट में आये। राजीव यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट थे , लेकिन
वो लंबे समय तक अपने पढ़ाई के साथ तालमेल नहीं बिठा पाये इसलिए उन्हें 1966
में लंदन भेज दिया गया , जहां उनका दाखिला इंपीरियल कालेज ऑफ इंजीनियरिंग
में हुआ। सोनिया भी लंदन चली आईं। मेरी सूचना के अनुसार उन्हें लाहौर के एक
व्यवसायी सलमान तासिर के आउटफिट में नौकरी मिल गई। तासीर की
एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट कंपनी का मुख्यालय दुबई में था लेकिन वो अपना ज्यादा
समय लंदन में बिताते थे। आईएसआई से जुडे होने के लिए उनकी ये प्रोफाइल
जरूरी थी। स्वाभावित तौर पर सोनिया इस नौकरी से इतना पैसा कमा लेती थीं कि
राजीव को लोन फंड कर सकें। राजीव मां इंदिरा गांधी द्वारा भारत से भेजे गये
पैसों से कहीं ज्यादा पैसे खर्च देते थे। इंदिरा ने राजीव की इस आदत पर
मेरे सामने भी 1965 में तब मेरे सामने भी गुस्सा जाहिर किया था जब मैं
हार्वर्ड में इकोनामिक्स का प्रोफेसर था। श्रीमती इंदिरा गांधी ने मुझे
ब्रेंनेडिस यूनिवर्सिटी के गेस्ट हाउस में , जहां वो ठहरी थीं , व्यक्तिगत
तौर पर चाय के लिए आमंत्रित किया। पीएन लेखी द्वारा दिल्ली हाईकोर्ट में
पेश किये गये राजीव के छोटे भाई संजय को लिखे गये पत्र में साफ तौर पर
संकेत दिया गया है कि वह वित्तीय तौर पर सोनिया के काफी कर्जदार हो चुके थे
और उन्होंने संजय से अनुरोध किया था , जो उन दिनों खुद ब्रिटेन में थे और
खासा पैसा उड़ा रहे थे और कर्ज में डूबे हुए थे। उन दिनों सोनिया के
मित्रों में केवल राजीव गांधी ही नहीं थे बल्कि माधवराव सिंधिया भी थे।
सिंधिया और एक स्टीगलर नाम का जर्मन युवक भी सोनिया के अच्छे मित्रों में
थे। माधवराव की सोनिया से दोस्ती राजीव की सोनिया से शादी के बाद भी जारी
रही। 1972 में माधवराव आईआईटी दिल्ली के मुख्य गेट के पास एक एक्सीडेंट के
शिकार हुए और उसमें उन्हें बुरी तरह चोटें आईं , ये रात दो बजे की बात है ,
उसी समय आईआईटी का एक छात्र बाहर था। उसने उन्हें कार से निकाल कर
ऑटोरिक्शा में बिठाया और साथ में घायल सोनिया को श्रीमती इंदिरा गांधी के
आवास पर भेजा जबकि माधवराव सिंधिया का पैर टूट चुका था और उन्हें इलाज की
दरकार थी। दिल्ली पुलिस ने उन्हें हॉस्पिटल तक पहुंचाया। दिल्ली पुलिस वहां
तब पहुंची जब सोनिया वहां से जा चुकी थीं। बाद के सालों में माधवराव
सिंधिया व्यक्तिगत तौर पर सोनिया के बड़े आलोचक बन गये थे और उन्होंने अपने
कुछ नजदीकी मित्रों से अपनी आशंकाओं के बारे में भी बताया था। कितना
दुर्भाग्य है कि वो 2001 में एक विमान हादसे में मारे गये। मणिशंकर अय्यर
और शीला दीक्षित भी उसी विमान से जाने वाले थे लेकिन उन्हें आखिरी क्षणों
में फ्लाइट से न जाने को कहा गया। वो हालात भी विवादों से भरे हैं जब राजीव
ने ओरबासानो के चर्च में सोनिया से शादी की थी , लेकिन ये प्राइवेट मसला
है , इसका जिक्र करना ठीक नहीं होगा। इंदिरा गांधी शुरू में इस विवाह के
सख्त खिलाफ थीं , उसके कुछ कारण भी थे जो उन्हें बताये जा चुके थे। वो इस
शादी को हिन्दू रीतिरिवाजों से दिल्ली में पंजीकृत कराने की सहमति तब दी जब
सोवियत समर्थक टी एन कौल ने इसके लिए उन्हें कंविंस किया , उन्होंने
इंदिरा जी से कहा था कि ये शादी भारत-सोवियत दोस्ती के वृहद इंटरेस्ट में
बेहतर कदम साबित हो सकती है। कौल ने भी तभी ऐसा किया जब सोवियत संघ ने उनसे
ऐसा करने को कहा।
सोनिया के केजीबी कनेक्शन:
बताया
जाता है कि सोनिया के पिता के सोवियत समर्थक होने के बाद से सोवियत संघ का
संरक्षण सोनिया और उनके परिवार को मिलता रहा। जब एक प्रधानमंत्री का पुत्र
लंदन में एक लड़की के साथ डेटिंग कर रहा था , केजीबी जो भारत और सोवियत
रिश्तों की खासा परवाह करती थी , ने अपनी नजर इस पर लगा दी , ये स्वाभाविक
भी था , तब उन्हें पता लगा कि ये तो स्टेफनो की बेटी है , जो उनका इटली का
पुराना विश्वस्त सूत्र है। इस तरह केजीबी ने इस शादी को हरी झंडी दे दी।
इससे पता चलता है कि केजीबी श्रीमती इंदिरा गांधी के घर में कितने अंदर तक
घुसा हुआ था। राजीव और सोनिया के रिश्ते सोवियत संघ के हित में भी थे ,
इसलिए उन्होंने इस पर काम भी किया। राजीव की शादी के बाद मैनो परिवार को
सोवियत रिश्तों से खासा फायदा भी हुआ। भारत के साथ सभी तरह सोवियत सौदों ,
जिसमें रक्षा सौदे भी शामिल थे , से उन्हें घूस के रूप में मोटी रकम मिलती
रही। एक प्रतिष्ठित स्विस मैगजीन स्विट्जर इलेस्ट्रेटेड के अनुसार राजीव
गांधी के स्विस बैंक अकाउंट में दो बिलियन पाउंड जमा थे , जो बाद में
सोनिया के नाम हो गये। डॉ. येवगेनी अलबैट (पीएचडी , हार्वर्ड) जाने माने
रूसी स्कॉलर और जर्नलिस्ट हैं और वो अगस्त 1981 में राष्ट्रपति येल्तिसिन
द्वारा बनाये गये केजीबी कमीशन के सद्स्यों में भी थीं। उन्होंने तमाम
केजीबी की गोपनीय फाइलें देखीं , जिसमें सौदों से संबंधित फाइलें भी थीं।
उन्होंने अपनी किताब द स्टेट विदइन स्टेट – केजीबी इन द सोवियत यूनियन में
उन्होंने इस तरह की गोपनीय बातों के रिफरेंस नंबर तक दे दिये हैं , जिसे
किसी भी भारतीय सरकार द्वारा क्रेमलिन से औपचारिक अनुरोध पर देखा जा सकता
है। रूसी सरकार की 1982 में अल्बैटस से मीडिया के सामने ये सब जाहिर करने
पर भिङत भी हुई। उनकी बातों की सत्यता की पुष्टि रूस के आधिकारिक प्रवक्ता
ने भी की। (ये हिन्दू 1982 में प्रकाशित हुई थी)। प्रवक्ता ने इन वित्तीय
भुगतानों की पैरवी करते हुए कहा था कि सोवियत हितों की दृष्टि से ये जरूरी
थे। इन भुगतानों में कुछ हिस्सा मैनो परिवार के पास गया , जिससे उन्होंने
कांग्रेस पार्टी की चुनावों में भी फंडिंग की। 1981 में जब सोवियत संघ का
विघटन हुआ तो चीजें श्रीमती सोनिया गांधी के लिए बदल गईं। उनका संरक्षक देश
16 देशों में बंट गया। अब रूस वित्तीय रूप से खोखला हो चुका था और
अव्यवस्थाएं अलग थीं। इसलिए श्रीमती सोनिया गांधी ने अपनी निष्ठाएं बदल लीं
और किसी और कम्युनिस्ट देश के करीब हो गईं , जो रूस का विरोधी है। रूस के
मौजूदा प्रधानमंत्री और इससे पहले वहां के राष्ट्रपति रहे पुतिन एक जमाने
में केजीबी के बड़े अधिकारी थे। जब डा. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री पद की शपथ
ले रहे थे तो रूस ने अपने करियर डिप्लोमेट राजदूत को नई दिल्ली से वापस
बुला लिया और तुरंत उसके पद पर नये राजदूत को तैनात किया , जो नई दिल्ली
में 1960 के दशक में केजीबी का स्टेशन चीफ हुआ करता था। इस मामले में डॉ.
अल्बैट्स का रहस्योदघाटन समझ में आता है कि नया राजदूत सोनिया के केजीबी के
संपर्कों के बारे में बेहतर तरीके से जानता था। वो सोनिया से स्थानीय
संपर्क का काम कर सकता था। नई सरकार सोनिया के इशारों पर ही चलती है और
उनके जरिए आने वाली रूसी मांगों को अनदेखा भी नहीं कर सकती। क्या इससे ये
नहीं लगता कि ये भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरनाक भी हो सकता है। वर्ष
2001 में मैंने दिल्ली में एक रिट याचिका दायर की , जिसमें केजीबी
डाक्यूमेंट्स की फोटोकापियां भी थीं और इसमें मैंने सीबीआई जांच की मांग की
थी लेकिन वाजपेई सरकार ने इसे खारिज कर दिया। इससे पहले सीबीआई महकमे को
देखने वाली गृह राज्य मंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया ने मेरे 3 मार्च 2001 के
पत्र पर सीबीआई जांच का आदेश भी दे दिया था लेकिन इस मामले पर सोनिया और
उनकी पार्टी ने संसद की कार्रवाई रोक दी। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेई
ने वसुधरा की जांच के आदेश को खारिज कर दिया। मई 2002 में दिल्ली हाईकोर्ट
ने एक दिशा निर्देश जारी किया कि वो रूस से मालूम करे कि सत्यता क्या है ,
रुसियों ने ऐसी किसी पूछताछ का कोई जवाब नहीं दिया लेकिन सवाल ये है कि
किसने सीबीआई को इस मामले पर एफआईआर दर्ज करने से मना कर दिया था। वाजपेई
सरकार ने , लेकिन क्यों ? इसकी भी एक कहानी है। अब सोनिया ड्राइविंग सीट पर
हैं और सीबीआई की स्वायत्ता लगभग खत्म सी हो चुकी है
सोनिया और भारत के कानूनों का हनन :
सोनिया
के राजीव से शादी के बाद वह और उनकी इतालवी परिवार को उनके दोस्त और स्नैम
प्रोगैती के नई दिल्ली स्थित प्रतिनिधि आटोवियो क्वात्रोची से मदद मिली।
देखते ही देखते मैनो परिवार इटली में गरीबी से उठकर बिलियोनायर हो गया। ऐसा
कोई भी क्षेत्र नहीं था जिसे छोड़ा गया। 19 नवंबर 1964 को नये सांसद के
तौर पर मैंने प्रधानमंत्री श्रीमति इंदिरा गांधी से संसद में पूछा क्या
उनकी बहू पब्लिक सेक्टर की इंश्योरेंस के लिए इंश्योरेंस एजेंट का काम करती
है (ओरिएंट फायर एंड इंश्योरेंस) और वो भी प्रधानमंत्री हाउस के पते पर और
उसके जरिए अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके पीएमओ के अधिकारियों का
इंश्योरेंस करती हैं। जबकि वो अभी इतालवी नागरिक ही हैं (ये फेरा के
उल्लंघन का मामला भी था) । संसद में हंगामा हो गया। कुछ दिनों बाद एक लिखित
जवाब में उन्होंने इसे स्वीकार किया और कहा हां ऐसा हुआ था और ऐसा गलती से
हुआ था लेकिन अब सोनिया गांधी ने इंश्योरेंस कंपनी से इस्तीफा दे दिया है।
जनवरी 1970 में श्रीमती इंदिरा गांधी फिर से सत्ता में लौटीं और सोनिया ने
पहला काम किया और ये था खुद को वोटर लिस्ट में शामिल कराने का। ये नियमों
और कानूनों का सरासर उल्लंघन था। इस आधार पर उनका वीसा भी रद्द किया जा
सकता था तब तक वो इतालवी नागरिक के रूप में कागजों में दर्ज थीं। जब मीडिया
ने इस पर हल्ला मचाया तो मुख्य निर्वाचक अधिकारी ने उनका नाम 1972 में
डिलीट कर दिया। लेकिन जनवरी 1973 में उन्होंने फिर से खुद को एक वोटर के
रूप में दर्ज कराया जबकि वो अभी भी विदेशी ही थीं और उन्होंने पहली बार
भारतीय नागरिकता के लिए अप्रैल 1973 में आवेदन किया था।
सोनिया गांधी आधुनिक रॉबर्ट क्लाइव :
मोटे
तौर पर कहा जा सकता है कि सोनिया गांधी भारतीय कानूनों का सम्मान नहीं
करतीं। अगर कभी उन्हें किसी मामले में गलत पाया गया या कठघरे में खडा किया
गया तो वो हमेशा इटली भाग सकती हैं। पेरू में राष्ट्रपति फूजीमोरी जो खुद
को पेरू में पैदा हुआ बताते थे , जब भ्रष्टाचार के मामले में फंसे और उन पर
अभियोग चलने लगा तो वो जापान भाग गये और जापानी नागरिकता के लिए दावा पेश
कर दिया। 1977 में जब जनता पार्टी ने चुनावों में कांग्रेस को हराया और नई
सरकार बनाई तो सोनिया अपने दोनों बच्चों के साथ नई दिल्ली के इतालवी
दूतावास में भाग गईं और वहीं छिपी रहीं यहां तक की इस मौके पर उन्होंने
इंदिरा गांधी को भी उस समय छोड़ दिया। ये बात अब कोई नई नहीं है बल्कि कई
बार प्रकाशित भी हो चुकी है। राजीव गांधी उन दिनों सरकारी कर्मचारी (इंडियन
एयरलाइंस में पायलट) थे। लेकिन वो भी सोनिया के साथ इस विदेशी दूतावास में
छिपने के लिए चले गये। ये था सोनिया का उन पर प्रभाव। राजीव 197८ में
सोनिया के प्रभाव से बाहर निकल चुके थे लेकिन जब तक वो स्थितियों को समझ
पाते तब तक उनकी हत्या हो चुकी थी। जो लोग राजीव के करीबी हैं , वो जानते
हैं कि वो 1981 के चुनावों के बाद सोनिया को लेकर कोई सही कदम उठाने वाले
थे। उन्होंने सभी प्रकार के वित्तीय घोटालों और 197८ के चुनावों में हार के
लिए सोनिया को जिम्मेदार माना था। मैं तो ये भी मानता हूं कि सोनिया के
करीबी लोग राजीव से घृणा करते थे। इस बात का जवाब है कि राजीव के हत्यारों
के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के मृत्युदंड के फैसले पर मर्सी पीटिशन की अपील
राष्ट्रपति से की गई। ऐसा उन्होंने इंदिरा गांधी के हत्यारे सतवंत सिंह के
लिए क्यों नहीं किया या धनंजय चट्टोपाध्याय के लिए नहीं किया ? वो लोग जो
भारत से प्यार नहीं करते वो ही भारत के खजाने को बाहर ले जाने का काम करते
हैं , जैसा मुहम्मद गौरी , नादिर शाह और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के
रॉबर्ट क्लाइव ने किया था। ये कोई सीक्रेट नहीं रह गया है। लेकिन सोनिया
गांधी तो उससे भी आगे निकलती हुई लग रही हैं। वो भारतीय खजाने को जबरदस्त
तरीके से लूटती हुई लग रही हैं। जब इंदिरा गांधी और राजीव गांधी
प्रधानमंत्री थे तो एक भी दिन ऐसा नहीं हुआ जब क्रेट के क्रेट बहुमूल्य
सामानों को बिना कस्टम जांच के नई दिल्ली या चेन्नई इंटरनेशनल एयरपोर्ट से
रोम न भेजा गया हो। सामान ले जाने के लिए एयर इंडिया और अलीटालिया को चुना
जाता था। इसमें एंटिक के सामान , बहुमूल्य मूर्तियां , शॉल्स , आभूषण ,
पेंटिंग्स , सिक्के और भी न जाने कितनी ही बहुमूल्य सामान होते थे। ये
सामान इटली में सोनिया की बहन अनुष्का उर्फ अलेक्सांद्रो मैनो विंसी की
रिवोल्टा की दुकान एटनिका और ओरबासानो की दुकान गणपति पर डिसप्ले किया जाता
था। लेकिन यहां उनकी बिक्री ज्यादा नहीं थी इसलिए इसे लंदन भेजा जाने लगा
और सोठेबी और क्रिस्टी के जरिए बेचा जाने लगा। इस कमाई का एक हिस्सा राहुल
गांधी के वेस्टमिनिंस्टर बैंक और हांगकांग एंड शंघाई बैंक की लंदन स्थित
शाखाओं में भी जमा किया गया। लेकिन ज्यादातर पैसा गांधी परिवार के लिए
काइमन आइलैंड के बैंक आफ अमेरिका में है। राहुल जब हार्वर्ड में थे तो उनकी
एक साल की फीस बैंक आफ अमेरिका काइमन आइलैंड से ही दी जाती थी। मैं वाजपेई
सरकार को इस बारे में बार-बार बताता रहा लेकिन उन्हें विश्वास में नहीं ले
सका , तब मैने दिल्ली हाईकोर्ट में एक पीआईएल दायर की। कोर्ट ने इस मामले
में सीबीआई को इंटरपोल और इटली सरकार की मदद लेकर जांच करने को कहा।
इंटरपोल ने इन दोनों दुकानों की एक पूरी रिपोर्ट तैयार करके सीबीआई को भी
दी , जिसे कोर्ट ने सीबीआई से मुझे दिखाने को भी कहा , लेकिन सीबीआई ने ऐसा
कभी नहीं किया। सीबीआई का झूठ तब भी अदालत में सबके सामने आ चुका था जब
उसने अलेक्सांद्रो मैनो का नाम एक आदमी का बताया और विया बेलिनी 14 ,
ओरबासानो को एक गांव का नाम बताया था जबकि मैनो के निवास की स्ट्रीट का पता
था। अलबत्ता सीबीआई के वकील द्वारा इस गलती के लिए अदालत के सामने खेद
जाहिर करना था लेकिन उसे नई सरकार द्वारा एडिशिनल सॉलिसीटर जनरल के पद पर
प्रोमोट कर दिया गया।
स्वामी ने सोनिया को लपेटा :
जनता
पार्टी के अध्यक्ष सुब्रमण्यम स्वामी ने अब 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जद
में कांग्रेस व यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी को भी ले आए हैं। उन्होंने आरोप
लगाया कि पौने दो लाख करोड के 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में 60 हजार करोड
रुपए घूस बांटी गई जिसमें चार लोग हिस्सेदार थे। इस घूस में सोनिया गांधी
की दो बहनों का हिस्सा 30-30 प्रतिशत है। 10 जनपथ को घोटाले का केंद्र
बिंदु बताते हुए उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री सब कुछ जानते हुए भी मूक
दर्शक बने रहे। स्पेक्ट्रम मामले पर सुप्रीम कोर्ट में अगली सुनवाई से पहले
अपने घर आराम करने देहरादून पहुंचे स्वामी ने पत्रकार वार्ता के दौरान २जी
मामले में कांग्रेस नेतृत्व पर कई आरोप लगा स्वामी ने दावा किया इस घोटाले
में घूस के तौर पर बांटे गए 60 हजार करोड़ रुपये का दस प्रतिशत हिस्सा
पूर्व संचार मंत्री ए राजा को गया। 30 फीसदी हिस्सेदारी तमिलनाडु के
मुख्यमंत्री एम करुणानिधि को और 30-30 प्रतिशत हिस्सेदारी सोनिया गांधी की
दो बहनों नाडिया और अनुष्का को गया है। हालांकि इसके कोई दस्तावेजी सबूत
उन्होंने उपलब्ध नहीं कराए। स्वामी ने प्रधानमंत्री से अनुरोध किया है कि
अमेरिका से स्पेक्ट्रम मामले में हुए लेनदेन का रिकार्ड भी मंगाया जाए। साथ
ही उन्होंने पूर्व मंत्री ए राजा की सुरक्षा की मांग भी प्रधानमंत्री से
की है। उनका कहना था कि ए राजा की सबसे अच्छी सुरक्षा तभी हो सकती है जब वो
जेल में हों या फिर उन्हें हाउस अरेस्ट किया जाए। स्वामी ने राजा की
सुरक्षा को लेकर लिखी चिठ्ठी के जवाब में प्रधानमंत्री की ओर से आए पत्र को
भी सार्वजनिक किया। इस पत्र में कहा गया है कि ए राजा को उचच स्तरीय
सुरक्षा दी जा रही है और स्पेक्ट्रम डील के बैंक रिकॉर्ड की जानकारी के लिए
अमेरिका सरकार से कहा जा रहा है। ए राजा की चिंता की वजह पूछे जाने पर
स्वामी ने कहा कि इस महाघोटाले की सारी जानकारी राजा के पास है। इस मामले
में अरब देशों के अंडरवर्ल्ड के लोग भी शामिल हैं। राजा की हत्या कर वे
सबूत मिटाना चाहेंगे। उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ बाबा रामदेव मुहिम में
सहयोग करने पर भी खुद को तैयार बताया
मनमोहन एक अमेरिकन एजेंट है : राजीव दीक्षित - 1
मनमोहन एक अमेरिकन एजेंट है : राजीव दीक्षित - 2
कॉंग्रेस सरकार के षड्यंत्र : विश्व बंधु गुप्ता
मनमोहन सिंह खुद महाभ्रष्ट है : विश्व बंधु गुप्ता
भारत मे है नकली नोटो का विशाल साम्राज्य : विश्व बंधु गुप्ता
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