रेत के टीले ठहरे कितने दिन
लहरें आई और बहा ले चली
यादों के टीले उमर भर को
समय की तक एक न चली .
यह ठीक है की समय और
रेत मे बहुत समानता है
समय भी रेत की तरह
पल भर मे फिसल जाता है
पर यादों के सफ़र को
कोई रोक नहीं पाता है
रूकती नही है यादें पर पर .कई लोग इससे होते है खफा
सबको संभाव कर याथ चलना है कठिन
बेबस सा बस में नहीं मन
बस में नहीं यादें और बस में नहीं महाभारत को रोकना
लहरें तो यार आकर चली जाती है , पर कभी नहीं फिर आता यकीन
जिसके खोने पर साथी को होता है दर्द?
एम. एस. सुमन
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