शिल्प कला में अद्वितीय है देव सूर्य मंदिर
मंदिर के निर्माण में विद्यमान शिल्प कला से स्पष्टXiuml; होता है कि मंदिर का निर्माण 600 से 1200 ई. के बीच हुआ है। नक्काशीदार पत्थरों को जोड़कर बनाया गया सूर्य मंदिर दो भागों में है। पहला गर्भ गृह जिसके ऊपर कमलनुमा शिखर बना है। दूसरा भाग सामने का मुखमंडप है जिसके ऊपर पीरामिडनुमा छत है। ऐसा नियोजन नागर शैली की प्रमुख विशिष्टXiuml;ता है। उडीसा के मंदिरों में अधिकांश शिल्प कला इसी प्रकार का है। हालांकि उडि़सा के मंदिरों की तरह गर्भगृह की बाहरी भीत रथिकाओं का नियोजन देव सूर्य मंदिर में नहीं दिखता है। देव मंदिर के मुख्य मंडप के दोनो पार्श्Xzwj;वों में बने छज्जेदार गवाह जो आंतरिक एवं ब्राह्यXiuml; भाग को संतुलन स्थापित करता है। ऐसा विकसित कोटि के मंदिरों में देखा जाता है। देव मंदिर के निर्माण में प्रयोग किए गए शिल्प कला उड़ीसा के भुवनेश्वर मंदिर, मुक्तेश्वर मंदिर में नजर आता है। देव मंदिर में जाने के लिए सामान्य ऊंचाई की सीढिय़ां तय कर मुख मंडप में प्रवेश किया जाता है। मुख मंडप आयताकार है जिसकी पीरामिडनुमा छत को सहारा देने के लिए विशालकाय पत्थरों को तराशकर बनाया गया स्तंभ है। गर्भ गृह के अंदर तीन रूपी भगवान सूर्य की प्रतिमा है। ये प्रतिमाएं शिल्प की दृष्टिXiuml;कोण से काफी पुराना प्रतीत होते हैं। मंदिर के सर्वाधिक आकर्षक भाग गर्भ गृह के ऊपर बना कमलनुमा शिखर है जिस पर चढ़ पाना असंभव है। नि:संदेह यह मंदिर इस राज्य की धरोहर व अनूठी विरासत की गौरव गाथा है।
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