*राधास्वामी! 04-05-2022
-आज शाम सतसंग में पढ़ा जाने वाला दूसरा शब्द पाठ:-
सुरत मेरी हुई चरन गुरु लीन।
लखी घट मूरत मन हुआ दीन।।१।।
वारती तन मन गुरु चरना।
धारती मन में गुरु सरना॥२॥
जगत का परमारथ छोड़ा।
करम सँग अब नाता तोड़ा॥३॥
भक्ति गुरु लागी अति प्यारी।
संत मत हित चित से धारी॥४॥
सुरत और शब्द जुगत अनमोल।
धार हिये सुनती बाला बोल॥५॥
नाम रस पियत रहँ दिन रात।
गुरू का दम दम अब गुन गात॥६॥
बहुत दिन तीरथ बर्त पचाय।
रही मैं ठगियन संग ठगाय॥७॥
सुफल मेरी नरदेह आज भई।
दीन दिल राधास्वामी सरन गही॥८॥
मेहर हुई चित चरनन लागा।
बढ़त अब दिन दिन अनुरागा॥९॥
बचन सतसँग के हिरदे धार।
उमँग मन त्यागत जगत लबार॥१०॥
चरन में गुरु के चाहत बास।
होत जहाँ निस दिन परम बिलास॥११॥
रूप गुरु धारूँ हिरदे ध्यान।
संत सँग प्रीति बढ़ाऊँ आन॥१२॥
करूँ अस निस दिन किरत सम्हार।
भरम और संशय टारूँ झार॥१३॥
होंय जब राधास्वामी गुरु परसन्न।
दया कर काटें सब बंधन॥१४॥
चढ़े तब सूरत शब्द सम्हार।
लखै फिर घट में मोक्ष दुआर॥१५॥
गगन चढ़ तिरबेनी न्हावे।
भँवर लख सतपुर दरसावे॥१६॥
अलख लख अगम का निरखै रूप।
मिले पिता राधास्वामी कुल भूप॥१७॥
आरती सन्मुख धार रही।
चरन पर तन मन वार रही॥१८।।
(प्रेमबानी-1-शब्द-82- पृ.सं.381,382,383)*
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