राधास्वामी!
09- 05-22 सुबह सतसंग में पढ़ा जाने वाला दूसरा शब्द पाठ:-
संत बचन हिरदे में धरना ।
उनसे मुख मोड़न नहिं करना॥१॥
मीठा कड़वा बोल सुहाई ।
मत को तेरे दे हैं पकाई॥२॥
गरम सरद का सोच न लाना । नरक अगिन से तोहि बचाना॥३॥
तेरी समझ है किनके माहीं ।
गुरु पूरा खोजो जग माहीं॥४॥
उन सँग किनका पावे ज्ञान ।
मार लेय तू मन शैतान॥५॥ गुरु पूरा कस्तूर समान ।
बाहर खूँ घट मुश्क बसान॥६।।
जब वे घट का भेद सुनावें ।
नभ की ओर सुरत मन धावें॥७॥
अँधे को शीशा दिखलाना ।
ऐसे हरि पत्थर में जाना॥८॥
गुरु बिन घट में राह न चलना ।
डर और बिघन अनेकन मिलना॥९॥ *
●●कल से आगे-09-05-22-●●
गुरु रक्षा जाके सँग नाहीं । उसको काल dयाते सतगुरु ओट पकड़ना । झूठे गुरु से काज न सरना॥११॥
गिर समान उन छाया जग में ।
सुरत बिहंगम रहत अधर में॥१२॥
जो मन करड़ा पत्थर होवे ।
गुरु से मिलत जवाहिर होवे॥१३॥
बँदगी भजन करे सौ बरसा ।
गुरु का संग दुघड़िया बढ़का॥१४॥
जो मालिक का चहे दीदार ।
जा तू बैठ गुरू दरबार॥१५॥
मालिक का बालक गुरु पूर ।
मालिक का हरदम मंजूर॥१६॥
गुरु पूरे को समरथ जान । क
रम बान उलटावें आन॥१७॥
जो मालिक का मुनता बोल।
उसका वचन सही कर तोल॥१८॥
जो तू घट में चालनहार।
चलने वाला सँग ले यार॥१९॥
हिन्दू चाहे मुसलमाँ होवे ।
अरबी होय तुरक चाहे होवे॥२०॥
रूप रंग उसका मत देख ।
सरधा भाव निशाना पेख॥२१॥
जिनके है मालिक का प्यार।
हिन्दू और तुरक दोउ यार॥२२॥
जो हैं माते मन के केल । दो
हिन्दू का होय न मेल॥२३॥
भान रूप मालिक सुन भाई ।
नर देही में रहा छिपाई॥२४॥
फूल खिलें गुलनारी जबही ।
बाग़ सुहावन लागे तवही॥२५॥
अस गुरु संग करे जो कोई ।
पूरे सँग पूरा होय सोई॥२६॥
(प्रेमबानी-3-शब्द-अशरार सतगुरु
भक्ति-पृ.सं. 381,382,383-पैरा-1-26)*
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