**राधास्वामी!
01-05-2022-आज शाम सतसंग में पढ़ा गया बचन:-
[डायरी-परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज-रोजाना वाकिआत-(भूमिका)]:
- हुजूर साहबजी महाराज ने अत्यन्त दया करके 18 सितम्बर , 1930 से एक डायरी ( दैनिकी ) लिखनी शुरू की थी । सतसंग की सप्ताहिक पत्रिकाओं में इसके कुछ संकलन प्रकाशित किये गये थे । सतसंगियों के अनुरोध पर 18 सितम्बर ,1930 से 31 दिसम्बर 1930 के समय के सम्बन्धित इस संकलन को 1931 में राधास्वामी सतसंग सभा ने एक पुस्तक के रूप में " रोजाना वाकआत " के शीर्षक के साथ उर्दू और हिन्दी में प्रकाशित किया था ।
हुजूर साहब जी महाराजने अपने अतिव्यस्त कार्यक्रम के बावजूद 2 अप्रैल , 1933 तक डायरी लिखी थी । यह युग सतसंग की कार्यवाहियों में तीव्र विकास का था । देश में राधास्वामी सतसंग का नाम उज्जवल हुआ और देश में ही नहीं अपितु विदेश में दयालबाग , इसके आदर्श और यहाँ की जीवन शैली की ओर सार्वजनिक ध्यान आकृष्ट हुआ ।
यह डायरी उस ज़माने के जीवन का एक सजीव प्रतिबिम्ब है । इसमें उस समय देश विदेश में होने वाली विभिन्न घटनाओं और व्यक्तियों का , जो हुजूर साहबजी महाराज के सम्पर्क में आये , विवरण है और धार्मिक विषयों , दयालबाग की रहनी गहनी और सतसंग के प्रति जन साधारण की प्रतिक्रियाओं तथा उन पर हुजूर साहबजी महाराज के कथन और टिप्पणी का उल्लेख है ।
हुजूर साहबजी महाराज ने स्वयं इस डायरी के लिखने का मतव्य इस प्रकार से बताया था “ इस दैनिकी के लिखने और इसे प्रकाशित करने का उद्देश्य यह है कि सतसंगी मेरे विचारों से अवगत हो जायें और ऊनसे लाभ उठा सकें। इस डायरी म़े परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज के महान और अनुपम व्यक्तित्व की झलक दिखती है । सतसंगियों के लिये यह एक बहुमूल्य पूंजी है ।। डायरी का अंग्रेजी भाषान्तर 1973 में प्रकाशित किया गया था । अब हिन्दी में दैनिकी का द्वितीय खण्ड सभा प्रकाशित कर रही है । इस प्रथम भाग में 18 सितम्बर , 1930 से 31 दिसम्बर , 1931 को समय का विवरण है।*
*राधास्वामी सहाय ।
डायरी [रोज़ाना वाक़िआत]--◆◆--
(18 सितम्बर सन् 1930 ई०से 31 दिसम्बर सन् 1931ई०तक )°°°° 18-9-30 बृहस्पति ।:- अय्याम तालिबइल्मी में ( तालिबइल्मी के दिनों में )
मुझे रोजाना वाक़िआत तहरीर करने ( लिखने ) का शौक़ हुआ और मैंने करीबन छः माह तक वाक़िआत क़लमबन्द किये ( लिखे ) लेकिन एक दिन एक दोस्त ने तान मारा कि डायरी तो बड़े बड़े लोग रक्खा करते हैं , मेरा डायरी रखना सरीह ( साफ़ ) हिमाकत है । मुझे शर्म आई और मैंने डायरी लिखना बन्द कर दिया और पिछली डायरी आग के हवाले कर दी ।
अब मैंने चन्द वजूह ( कुछ कारणों ) से रोजाना वाक़िआत तहरीर करना ( लिखना ) फिर शुरू किया है । मेरे दोस्त का तान ग़लतफ़हमी ( भ्रम ) पर मबनी ( निर्भर ) था । अन्दाजन् छः माह तक सिल्सिलए तहरीर जारी रखकर देखूँगा कि मुझसे यह काम इन दिनों में चलाया जा सकता है कि नहीं ।
मैंने रोजाना कामों के लिए वक़्त मुक़र्रर कर रक्खे हैं और जहाँ तक मुमकिन होता है मैं मुक़र्ररा अवक़ात ( वक्तों ) की पाबन्दी करता हूँ । इसमें मुझे बड़ी सहूलियत रहती है और काम भी सब हो जाता है ।
चुनाँचे आजकल सुबह का सतसंग ठीक छः बजे शुरू होता है और क़रीबन् सात बजे ख़त्म होता है । इसके बाद पाव घंटा जरूरियात में सर्फ़ ( खर्च ) होता है और निस्फ़ ( आध ) घंटा चहलकदमी में । इसके बाद सुबह का वक़्त क़रीबन ग्यारह बजे तक ख़त व किताबत में सर्फ़ होता है ।
J तीन बजे सेह ( तीसरे ) पहर से साढ़े पाँच बजे तक कारखाने में खर्च होता है । इसके बाद एक घंटा Lawn ( लॉन ) पर जहाँ सब सतसंगी भाई जमा होते हैं और मुख्तलिफ़ ( तरह तरह के ) मजामीन ( विषयों ) पर बातचीत होती है । इसके बाद रात का सतसंग होता है।
क्रमशः🙏🏻राधास्वामी🙏🏻 रोजाना वाक़िआत भाग-1-परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज!*
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