* प्रस्तुति - अश्विनी जारूहार
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स्वादिष्ट व्यंजन की कल्पना करने मात्र से हमारे मुंँह में पानी भर आता है। शोक समाचार पाकर उदासी छा जाती है, चेहरा लटक जाता है। प्रफुल्ल मुखाकृति से आन्तरिक प्रसन्नता का पता चलता है। इस प्रकार अदृश्य होते हुए भी मन की हलचलों का भला और बुरा प्रभाव जीवन में पग-पग पर अनुभव होता है।
मनुष्य अपने मानस का प्रतिबिम्ब है। मानसिक दशा का स्वास्थ्य के साथ घनिष्ठ संबंध है। नवीनतम शोधों के आधार पर तो यह भी कहा जाने लगा है, कि रोग शरीर में नहीं बल्कि मस्तिष्क में उत्पन्न होता है। यही कारण है कि उत्तम और समग्र स्वास्थ्य के लिए मन का स्वस्थ होना सबसे जरूरी है।
प्रसन्नचित्त रहना मानसिक स्वास्थ्य के लिए सबसे अधिक आवश्यक है। उदासीन रहने वालों की अपेक्षा खुशमिजाज लोग अक्सर अधिक स्वस्थ, उत्साही और स्फूर्तिवान पाए जाते हैं।
गीताकार ने प्रसन्नता को महत्वपूर्ण आध्यात्मिक सद्गुण माना है और कहा है कि प्रसन्नचित्त लोगों को उद्विग्नता नहीं सताती एवं उन्हें जीवन में दु:ख कभी सताते नहीं।
अकारण भय, आशंका, क्रोध, दुश्चिन्ता आदि की गणना मानसिक रोगों में की जाती है। जिस प्रकार शारीरिक क्षमता का लक्षण मुख-मण्डल पर दृष्टिगोचर होता है, उसी प्रकार मन की रुग्णता भी चेहरे पर झलकती है।
मनोवैज्ञानिक डॉक्टर लिली एलेन के अनुसार मुस्कान वह दवा है, जो इन रोगों के निशान आपके चेहरे से ही नहीं उड़ा देगी, वरन् इन रोगों की जड़ भी आपके अन्त: से निकाल देगी।
कुछ लोग बोझिल मन से परेशान रहते हैं। ऐसे लोगों को प्रसन्न रहने की कला सीखनी चाहिए। यह अभ्यास करने के लिए आज और अभी से तैयार हुआ जा सकता है। दैनिक जीवन में जिससे भेंट हो उससे यदि मुस्कुराते हुए मिला जाय, तो बदले में सामने वाला भी मुस्कुराहट भेंट करेगा। उसे हल्की-फुल्की बात करने में झिझक नहीं महसूस होगी और इस तरह अपने मन का भारीपन काफी दूर होगा।
अगर कोई चेहरे पर चौबीसों घण्टे गमगीनी लादी रहे, तो धीरे-धीरे उसके सहयोगियों की संख्या घटती चली जाती है। यदि प्रत्येक क्षण प्रसन्नता बांँटते रहने का न्यूनतम संकल्प शुरू किया जाय, तो थोड़े दिनों के प्रयास से ही आशातीत परिणाम मिलने लगेंगे।
( संकलित व सम्पादित)
अखण्ड ज्योति मार्च 1984 पृष्ठ 48
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