Thursday, October 6, 2022

सतसंग में पढ़ा गया बचन

 *रा धा स्व आ मी!*                                                                   

06-10-22-आज शाम सतसंग में पढ़ा गया बचन

-कल से आगे:


प्रस्तुति - नवल किशोर प्रसाद 


-(26-12-30-शुक्र-का तीसरा व अंतिJम भाग)-*  


*रात के सतसंग में बयान हुआ कि बाज सतसंगी उपदेश लेने के बाद उम्मीद करने लगते हैं कि अब उन्हें कोई दुख व क्लेश व्यापना नहीं चाहिये और दुनिया का हर काम उनकी मर्जी के मुवाफिक होना चाहिये और अपनी इस समझ की हिमायत में- " कल कलेश सब नाश सुख पावे सब दुख हरे" वगैरह कड़ियाँ पेश करते हैं लेकिन वे गलती पर हैं । 

रा धा स्व आ मी मत का उपदेश यह है कि सद्गुरू की शरण लेने पर जीव को अब्बल तो यह समझ आ जाती है कि हर बात के कर्ता धर्त्ता हुजूर रा धा स्व आ मी दयाल हैं और जो कुछ हालत दुख या सुख की उसके सिर पर आती है वह उन दयाल ही की मौज से आती है और जो कुछ वे परम दयाल पिता उसके लिये रवा फ़रमाते हैं वह जरूर उसकी बेहतरी के लिये होगा । पिता अपने पुत्र का बिगाड़ कभी नहीं कर सकता । दूसरे सद्गुरु की शरण वही लेता है जिसने दुनिया व दुनिया के सामान से किसीक़दर मुँह मोड़ लिया है यानी जिसे दुनिया व दुनिया के सामान तुच्छ दिखलाई पड़ते हैं । ऐसी सूरत में ज़िन्दगी की नीच ऊँच हालतें आने पर उसका मन डाँवाडोल नहीं होता और सहज में उसकी अनेक कलह व क्लेश से रक्षा हो जाती है । इसके अलावा यह भी है कि जिसे शरण प्राप्त हो जाती है रा धा स्व आ मी दयाल जरूर उसकी मुनासिब रक्षा व मदद फरमाते हैं लेकिध इसके ये मानी नहीं हैं कि दुनिया का कुल कारखाना आयन्दा उसके हस्बमर्जी चलने लगे।*                                                                *जो लोग मज़कूराबाला गलत समझोती लेते हैं वे अपनी मर्जी के खिलाफ सूरतें नमूदार (प्रकट) होने पर ज़ईफ़ुल्ऐतक़ाद(ढिलमिल-यकीन) हो जाते हैं और स्वार्थ व प्रमार्थ दोनों के लुत्फ़ से महरूम (खाली) रहते हुए दिन काटते हैं। इसके बाद मैंने कहा कि अक्सर सतसंगी  अब तक तो रा धा स्व आ मी मत पर ऐतक़ाद पुस्तकों में लिखे हुए उपदेश पढ़कर या जबानी फ़रमाये हुए उपदेश सुनकर लाये हैं लेकिन अब उन्हें चाहिये कि पढ़ी सुनी हुई बातों की बुनियाद के बजाय जाती तजरुबे की बुनियाद व नीज़ उपदेश करने वाले के ऐतबार पर कायम करें और कम अज कम एक साल तक सच्चा व गहरा विश्वास इस बात का दिल में रखकर कि रा धा स्व आ मी दयाल जरूर हैं और वे हमारे सच्चे रक्षक व मेहरबान हैं , अपनी जिन्दगी बसर करें और सख्त मुश्किल या मुसीबत सिर पर आने पर मदद माँगें और देखें कि जिन्दगी के लुत्फ़ में कुछ इज़ाफ़ा होता है या नहीं । हर किसी को इख़्तियार है कि साल भर के तजरुबे के बाद अगर कोई बेहतरी न हो तो अपनी साबिक़ा ( पिछली ) ढिलमिल - यक़ीनी की हालत में लौट जाय । इस उपदेश का जाहिरा हाज़िरीन बड़ा असर पड़ा । मेरा यक़ीन है । कि अगर लोगों ने ऐसा किया तो ज़रूर ज़रूर वे ख़ास दया के भागी होंगे । हुज़ूर रा धा स्व आ मी दयाल की दया के बादल घुमड़ रहे हैं । हमारे पात्र मैले हैं इसलिये वर्षा में देरी है ।  जहाँ हम लोगों ने अपने दिलों को उनके पवित्र चरणों से Harmonise किया , वर्षा शुरू हो जायगी।                                                                🙏🏻 रा धा स्व आ मी🙏🏻  क्रमशःरोजाना वाकिआत-परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज!*

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