Thursday, October 6, 2022

भगवान का घर🏡*

 *

❤️  प्रस्तुति -  नवल किशोर प्रसाद 


एक बुजुर्ग के यहां जाने पर उन्होंने बातचीत के दौरान बताया, "इस *'भगवान के घर'* में हम दोनों पति-पत्नी ही रहते हैं! हमारे बच्चे तो विदेश में रहते हैं।" 

मैंने जब उन्हें *भगवान के घर* के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि "हमारे परिवार में *भगवान का घर* कहने की पुरानी परंपरा है! इसके पीछे की भावना हैं कि यह घर भगवान का है और हम तो उस घर में रहते हैं! *जबकि लोग कहते हैं कि "घर हमारा है और भगवान हमारे घर में रहते है!*"

मैंने विचार किया कि दोनों कथनों में कितना अंतर है! तदुपरांत वह बोले...

*"भगवान का घर"* बोला तो अपने से कोई *"नकारात्मक कार्य नहीं होते और हमेशा सदविचारों से ओत प्रेत रहते हैं।"*

बाद में मजाकिया लहजे में बोले ...

*"लोग मृत्यु उपरान्त भगवान के घर जाते हैं परन्तु हम तो जीते जी ही भगवान के घर का आनंद ले रहे हैं!"*

यह वाक्य भी जैसे भगवान ने दिया कोई *प्रसाद* ही है!

भगवान ने ही मुझे उनको घर छोड़ने की प्रेरणा दी!

     "घर *भगवान का* और हम उनके घर में रहते हैं।"

*यह वाक्य बहुत दिनों तक मेरे दिमाग में घूमता रहा, सही में कितने अलग विचार थे!*

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