विजयादशमी - विजय का पर्व
भगवान श्री कृष्ण श्रीमद्भगवद्गीता में कहते हैं -
" द्वौ भूतसर्गौ लोकेऽस्मिन्दैव आसुर एव च।"अर्थात् इस लोक में भूतों की सृष्टि यानी मनुष्य समुदाय दो ही प्रकार का है - एक तो दैवी प्रकृति वाला और दूसरा आसुरी प्रकृति वाला।
हम दैवी - शक्ति के उपासक हैं। दैवी - शक्ति की आसुरी शक्ति पर विजय को हम हिंदू हर्ष - उल्लास के साथ आज भी मनाते आ रहे हैं। दैवी - शक्ति के आसुरी - शक्ति पर विजय का प्रतीक है - विजयादशमी।
आश्विन शुक्ल दशमी को सायं काल में तारा उदय होने के समय "विजय " नामक काल होता है। वह सभी कार्यों को सिद्ध करने वाला होता है।
प्रभु श्री राम ने इसी "विजय " काल में रावण पर विजय पाई थी , अतः यह दिन विजयादशमी के रूप में मनाया जाता है।
हिंदू परंपरा में आश्विन शुक्ल दशमी अक्षय स्फूर्ति , शक्ति - उपासना एवं विजय - प्राप्ति का दिवस है। किसी भी शुभ एवं सांस्कृतिक कार्य को प्रारंभ करने के लिए यह तिथि सर्वोत्तम माना जाता है।
विजयादशमी को निम्नलिखित कार्य हुए थे : ---
१. सत्ययुग में भगवती दुर्गा के रूप में दैवी शक्ति ने महिषासुर का वध किया था । दुर्गम नामक असुर का वध करने के कारण मां भगवती " दुर्गा " कहलाई।
२. त्रेता युग में प्रभु श्री राम ने वानरों (वनवासियों) का सहयोग लेकर अत्याचारी रावण की आसुरी शक्ति का विनाश विजयादशमी के दिन किया था।
३. द्वापर युग में १२ वर्ष के वनवास तथा १ वर्ष के अज्ञातवास के पश्चात् पांडवों ने अपने अस्त्र - शस्त्रों का पूजन इसी दिन किया था । अतः इस तिथि को आज भी शस्त्र - पूजन अपने समाज में मनाया जाता है।
४. कलियुग के अंतर्गत प्रतिकूल परिस्थितियों में भी हिंदुत्व का स्वाभिमान लेकर हिंदू - पद - पादशाही (हिंदवी स्वराज) की स्थापना करने वाली छत्रपति शिवाजी ने " सीमोल्लंघन " की परंपरा का प्रारंभ इसी दिन किया था।
५. अपने राष्ट्र में प्रत्येक भारतवासी के अंतःकरण में देशभक्ति का भाव जगा कर , उन्हें स्नेह एवं अनुशासन के सूत्र में पिरो कर एक प्रबल संगठित - शक्ति का निर्माण करने के लिए डॉ० केशव हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना १९२५ में विजयादशमी के दिन की थी। यह विश्व का वृहत्तम स्वायत्त संस्था है।
६. मातृशक्ति (नारी शक्ति) को संगठित करने के लिए राष्ट्र सेविका समिति का प्रादुर्भाव भी १९३६ में विजयादशमी के दिन ही हुआ था।
हिंदू समाज की अवनति के कई कारणों में से एक प्रमुख कारण रहा है - हिंदुओं में विजिगीषु वृत्ति का अभाव। अर्थात जिस दिन से हम आगे बढ़ना भूल गए एवं संकुचित विचारों में कैद हो गए , तभी से हम पर बाह्य - आक्रमण प्रारंभ हुए।
अपने हृदय में महान भारत को पुनः विश्व - गुरु के पद पर आसीन करने का संकल्प लेकर , भुजाओं में सभी हिंदुओं को समेट कर तथा पैरों में युग परिवर्तन की गति लेकर मां भगवती दुर्गा से प्रार्थना करें -
दैवी - शक्ति की विजय हो तथा आसुरी - शक्ति का संपूर्ण विनाश हो।
आप सभी को विजयादशमी - पर्व पर बधाई।
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