*रा धा स्व आ मी!
परम गुरु महाराज साहब के बचन-कल से आगे:-(17)-गुरू की ताड़ और मार सह घर कर प्यार, मूरखों की अस्तुती पर खाक डार ।(प्रेमबानी भाग ३, वचन १६, ग़जल ५) फ़रमाया - मन बड़ा जबरदस्त हैं। जरा से मान अपमान में कैसे तरह तरह के गुनाबन उठाता है। जल्द ही बेमुख हो जाता है । हुक्म है कि ताड़ और मार को इस तरह प्यार से सहो कि जिस तरह एक दुखिया और रोगी इलाज वक्त चाहे कितनी तकलीफ़ चीरने फाड़ने या और किसी किस्म की सख्ती से होवे उसको बड़ी खुशी से झेलता है और शुक्रगुजार होता है। अगर एक गधा भी इसकी स्तुति कर दे तो यह फूला नहीं समाता है । जिनको अपनी भी खबर नहीं और दूसरे की भी खबर नहीं, ऐसे लोग स्तुति करने वाले निहायत दर्जे के बेवकूफ हैं और यह उन्हीं के संग रहना चाहता है । इसलिए हुक्म है कि मूर्खों की स्तुति पर खाक डाल।
क्रमशः🙏🏻रा धा स्व आ मी🙏🏻*
*रा धा स्व आ मी!
परम गुरु हुज़ूर महाराज-प्रेमपत्र-भाग-3-
बचन-14-का भाग-कल से आगे:-(26)-
अब समझना चाहिये कि असल में शुरूआत मज़हबों की किस तरह पर हुई और उनसे क्या मतलब और फ़ायदा मंजूर था। सो संतों के बचनों से ज़ाहिर होता है कि दुनिया में सब जीव आम तौर पर मन और इन्द्रियों के भोग और सुखों की प्राप्ति के लिये, देखा देखी और सुना सुनी के मुवाफ़िक्र जतन करने लगे और हर एक मुआमले में ज़्यादह से ज़्यादह आशा और तृष्णा बढ़ाते गये कि जिसके सबब से ज़्यादह मेहनत उनको करनी पड़ी, चाहे वह आसा पूरी हुई या नहीं और इस सबब से दुख सुख भोगते रहे और रोग सोग और तकलीफ़ वग़ैरह के दूर करने के लिये भी जो जतन कि उनको आम तौर पर जीवों की काररवाई देख कर मालूम हुये करने लगे। पर जब उनसे कुछ फ़ायदा न हुआ तब दुखी रहे और कोई उनकी मदद न कर सका और मौत के वक़्त तो क़तई किसी का जतन पेश न गया और वह भारी दुख सबको भोगना पड़ा, और आइन्दा की हालत से सबको बेख़बरी रही कि आया दुख मिलेगा या सुख।
क्रमशः
🙏🏻रा धा स्व आ मी🙏🏻*
*रा धा स्व आ मी!
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