एक बार मुजफ्फर नगर आश्रम मे बाढ़ का पानी भर आया। हम सभी सेवादार तसला आदि से बरतन लेकर पानी उलीचने में लगे रहे तब भी पानी का वेग रोक नहीे पाये। अंत मंे हमने गुरू जी ( स्वामी अनन्त प्रकाशानन्द जी महाराज) को घबराहट में बताया कि पानी रूकने का नाम नही ले रहा है लगता है कि पूरे आश्रम में जल ही जल भर जायेगा गुरू जी बोले-‘परम’ को बुला लाओ। श्री परमगुरू जी महाराज छत पर बजरी पर योहीं लेटे हुए थे, कारण वे देह के ख्याल के प्रति बड़े फक्कड़ तो थे ही, कभी हमारे गुरू जी के साथ बैठकर खाने लगते तो कभी हम सेवको की पाँत मे बैठ जाते। हमने उन्हें जाकर सम्वाद दिया। गुरू जी( स्वामी अनन्त प्रकाशानन्द जी महाराज) बोले-‘भाई’ परम अपनी सिद्धाई दिखाओं और पानी के वेग को रोको वरना हमारा आश्रम डूब जायेगा। श्री परमगुरू जी दौड़कर पूजा-गृह में श्री गुरू महाराज जी (श्री नंगली निवासी भगवान) के सामने दण्डवत् विनती करने लगे और आकर गुरू जी से बोले-‘पानी कह रहा है कि वह श्री गुरू महाराज जी का चरण स्पर्श करेगा फिर स्वतः लौट जायेगा। अतः पानी को श्री गुरू महाराज जी के चरणों तक जाने दो तबतक सभी मिलकर भजन करो। वैसा ही हुआ। पानी गुरू महाराज जी के स्वरूप को छूने के तुरत बाद वापस हो गया और देखते-देखते आश्रम का समुचा पानी बाहर निकल गया। (श्री परम पीयुष) भजन
गुरू की मूर्ति मन मेें ध्यान
गुरू के शबद मन्तर मन मान
गुरू के चरण ह्नदय ले धारू
गुरू पारब्रह्मा सदा नमस्कारू
मत कोई भूले भरम संसारा
गुरू बिन कोई ना उतरे पारा
भूले के गुरू मारग पायो
अवर तेआग हरि भक्ति लाओ
जन्म-मरण की गुरू त्रास मिटाई
गुरू पूरे की बेअन्त बड़ाई
गुरू प्रसाद उरध कमल विकासा
अन्धकार में भयो प्रकाशा
जो कुछ किया सो गुरू ते जाना
गुरू कृपा ते मुकुट मन माना
गुरू कर्ता गुरू करने जोग
गुरू परमेश्वर है भी होग
कह नानक प्रभु एहो जनाई
बिनु गुरू मुकति ना पायो भाई
जाके मन मे गुरू की प्रतिति
तिस जन पावे प्रभु पद प्रति
कह नानक ताका पुरन भाग
गुरू चरणी जाका मन लाग
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